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Monday, 24 August 2020

हम जन्म दिन पर खुशी मनाते हैं तो मरने में गम क्यों मनाते हैं?

यह अजीब सवाल है, इसको देखकर कोई भी चैंक सकता है, मुझे सिरफिरा या पागल भी कह सकता है, इसकी मुझे परवाह नहीं है लेकिन जरा ध्यान से सोचने वाली बात है कि प्रकृति में जो जन्म लेता है तो उसका मरण भी निश्चित है। इस ध्रुव सत्य को कोई नकार नहीं सकता है। जन्म लेते ही मनुष्य के मरने की घड़ी टिक टिक कर आगे बढ़ने लगती है। लगभग सभी समाज में अपने प्रियजन का जन्म दिन धूमधाम से मनाते हैं। प्राचीन काल में जब लोग गांवों में रहते थे तबकी मुझे याद है कि जब परिवार में किसी का जन्मदिन आता था तो जश्न मनाया जाता था। धनी व्यक्ति पूरे गांव को न्यौता, देकर , धार्मिक कार्यक्रम आयोजित करके जन्मदिन धूमधाम से मनाता था और साधारण परिवार वाले भी अपने सामूहिक परिवार को न्योता देकर, धार्मिक कार्यक्रम आयोजित करने के साथ शाम को पूरे गांव में बुलौवा जाता था, पूरे गांव की महिलाएं उस घर में आतीं थीं, ढोलक मंजीरा पर देवी-देवताओं को अर्पित गीत गाकर जन्मदिन पर दीर्घायु व स्वस्थ होने की कामनाएं की जातीं थीं, इसके साथ ही सोहर गीत भी गाये जाते थे। अब परम्पराएं बदल गयीं हैं लेकिन जन्म दिन अब केक काट कर, पार्टियां आयोजित कर मनाये जाते हैं। यह तो हुई परम्परा की बात अब मूल विषय पर आते हैं कि जैसे जैसे इंसान बड़ा होता है उसके जीवन के दिन उसकी कुल आयु से कम होते जाते हैं, यानी उसके बिछुड़ने का दिन करीब आता जाता है, लेकिन हम खुशियां मनाते हैं। जन्म दिन मनाते-मनाते वो दिन भी आ जाता है जब वह इंसान हमसे जुदा होता है यानी मृत अवस्था में पहुंच जाता है उस समय दहाड़े मांर कर रोते हैं। इस बात को तो हम पहले से ही जानते हैं लेकिन इस सत्य से आंखें मूंदे रहते हैं। अब समझ में नहीं आता कि कैसे लिखूं कि जन्म दिन पर खुशी मनाउं या गम?