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Sunday, 25 August 2019

धर्म-मर्म: गरीब अमीर क्यों नहीं बन पाता, ईश्वर उसकी मदद क्यों नहीं करते?

हम अर्थ युग में जी रहे हैं। इसलिए अर्थ ही मूल स्त्रोत होने के साथ ही जीवनाधार है लेकिन सर्वाधार नहीं है। जिसके पास अर्थ यानी धन अधिक है, उसी को सुखी और संपन्न माना जाता है। हमारे इस अर्थसंक्रमित समाज में ऐसे ही धनी-मानी व्यक्तियों को मान-सम्मान मिलता है। जिस व्यक्ति के पास धनाभाव होता है,उसे उपेक्षित माना जाता है। वह व्यक्ति स्वयं को दुर्भाग्यशाली मानता है और इसके लिए ईश्वर के आश्रय होकर अनेक अपेक्षाओं को पाल लेता है। अपेक्षाएं पूर्ण न हो पाने पर ईश्वर को कोसता है। यहां तक तो हो गई आपकी सामान्य बात लेकिन धर्म-मर्म की बात यह है कि गरीब यानी धनाभाव का शिकार व्यक्ति ईश्वर का सबसे प्रिय होता है। वह पूजन-भजन करे या न करे। ईश्वर की कृपा हर क्षण उसके साथ रहती है। अब आप पूछेंगे कि यह कैसे सत्य हो सकता है। इसे तरह से समझिये कि आपके दो संतान हैं। एक संतान आपकी बात मानती है और दूसरी संतान आपकी बात नहीं मानती है। आपको जब भी कोई कार्य कराना होगा तो किससे कहेंगे। बात मानने वाले से या न बात मानने वाले से। निश्चित रूप से बात मानने वाले से ही आप अपने कार्य को करने को कहेंगे। यदि कार्य करने में कोई उसे परेशानी आएगी तो आप उसकी हर संभव मदद भी करेंगे लेकिन कार्य पूरा करने को कहेंगे। इस तरह से आपने अपनी संतानों में एक पात्र व्यक्ति खोजा। आप चाहेंगे कि यह पात्र व्यक्ति इसी तरह आपके सब काम पूरे न हो जाएं तब तक वह इसी तरह बना रहे। इसके लिए उसे आप अनुशासन का पाठ भी पढ़ा सकते हैं। अनुशासन में उसे कठोर अभ्यास भी करा सकते हैं ताकि वह हमेशा आपके काम आने के वक्त किसी तरह की कमजोरी का शिकार न हो जाए। इसी तरह से परमपिता हम सबका पिता है और वह अपने कार्य उन लोगों से कराने का संदेश देता है जो उसकी बात मानते हैं। बस सोचने का तरीका अलग है। यह ब्रह्मवाणी का संदेश है कि आप उसकी नजरों में पात्र हैं और आपसे वह अपने काम कराना चाहता है। इसलिए वह अपने अनुशासन की पाठशाला में आपको संसाधनों से सीमित कर देता है। हम अर्थ युग में हैं तो हमेंं अर्थ से अनुशासित करता है वरना श्री राम और श्रीकृष्ण भी हमारे जैसे मानव ही थे लेकिन उन्हें पात्र समझ कर ही उनसे इतना काम कराया कि वह आज पूज्य हो गये। उनके जीवन को गंभीरता से विचार करेंगे तो आज के गरीब से भी अधिक कष्टकारी जीवन उन्होंने बिताया है। 

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