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Tuesday, 15 August 2017

जीएसटी मानें गरीबों से टैक्स है क्या?

देश में गरीब न हों तो न सरकार चले न कारोबार, सब भूखों मर जाएं

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस की 70 वीं वर्षगांठ के अवसर पर राजधानी नई दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले की प्राचीर से देश को संबोधित करते हुए जीएसटी यानी गुड्स एण्ड सर्विस टैक्स की तारीफ की है उसकी हकीकत आप जानना चाहेंगे। यह टैक्स गरीबों पर सीधी मार है। कोई भी बिजनेस मैन या कारोबारी अथवा मीडियेटर अपनी जेब या अपने प्रोडक्ट के रेट कम करके या अन्य किसी तरह का समझौता करके यह टैक्स नहीं भरने वाला बल्कि इस टैक्स पर अपना खर्चा जोडक़र आम जनता या कहें सीधे उपभोक्ता से वसूलेगा। यह उपभोक्ता गरीब भी है। उदाहरण के लिए एक जुलाई से लागू हुए जीएसटी के बाद जब उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में एक उपभोक्ता के घर पर एलपीजी सिलेंडर आया तो उसके बिल पर केन्द्र सरकार की ओर से 13.85 और राज्य सरकार की ओर से 13.85 रुपये का जीएसटी अतिरिक्त लगा हुआ था। यह भार प्रधानमंत्री की उज्जवला स्कीम के तहत मुफ्त एलपीजी कनेक्शन पाई उस महिला के परिवार को भी देना होगा जो गरीबी की रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहा है।
दूसरा उदाहरण एक छात्र द्वारा बैँक की प्रतियोगिता के लिए कोचिंग का है। यह छात्र अगस्त में एक कोचिंग में दाखिला लेने गया तो उससे छह हजार रुपये लिए गए तो उसे जब रसीद दी गई तो उस पर जीएसटी के 915 रुपये लगे थे। अब बताइए कि ये दोनो उदाहरण किस अमीर परिवार को टारगेट किया गया है। बैंक की परीक्षा में बैठने वाला एक गरीब छात्र ही होगा। प्रतियोगिता के युग में कोचिंग का सहारा लेना आवश्यक हो गया है।
इन दो उदाहरणों के बाद यह साफ हो जाता है कि जीएसटी की सफलता का ग्राफ जितना ऊंचा होगा। उपभोक्ता का शोषण उतना ही होगा। बाकी का अनुमान आप स्वयं लगाइए।

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