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Thursday, 16 November 2017

भाजपा फिर राम की शरण में क्यों?

भारतीय जनता पार्टी के तारनहार और पालनहार भगवान श्रीराम ही हैं। यही ब्रह्मास्त्र उठाकर भाजपा फिर से गुजरात और यूपी की चुनावी वैतरणी पार करना चाहती है। हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव आसानी से निकालने के बाद जब कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भाजपा के सुपरस्टार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को उनके गढ़ गुजरात में घेरा ही नहीं बहुत हद तक घुटनों के बल बैठने को विवश कर दिया। कांग्रेस ने भाजपा नेतृत्व वाली मोदी सरकार की दुखती रग नोटबंदी और जीएसटी और आर्थिक महामंदी  पर हाथ रखते हुए उसे जनता की अदालत के कठघरे में खड़ा कर दिया तो पहले पहल भाजपा नेताओं ने इधर-उधर की बातें कर जनता का दिल बहलाने की कोशिश की लेकिन इसके बाद जब उनकी एक न चली तो जीएसटी की गलती मानते हुए उस पर धीरे-धीरे यू टर्न लेना शुरू कर दिया हे। अब जब जनता की अदालत में अपनी गलती मानने के बाद यह पता चला कि इस बार जनता का रुख भाजपा की ओर से हट रहा है तो फिर से वह अयोध्या में रामलला की शरण में आ गई है। अब गुजरात और यूपी के निकाय चुनाव के लिए भाजपा ने श्रीराम के चरणों को कस कर पकड़ लिया है। आजकल श्री श्री रविशंकर को राम मंदिर की याद अचानक आ गई है। जानकार सूत्रों का मानना है कि रविशंकर अपने आप राम मंदिर सुलझाने नहीं जा रहे हैं और न ही वह सुलझा पाएंगे। यह बात सभी जानते हैं तो फिर इस बात का ढिंढोरा क्यों इतना पीटा जा रहा है। इसका एक ही कारण समझ में आ रहा है कि एक तीर से कई शिकार करने वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए भाजपा अयोध्या के श्रीराम के नाम की माला इसलिए जप रहीं है इससे जहां यूपी के निकाय चुनाव आसानी से पार हो जाएंगे वही गुजरात के विधानसभा के चुनाव भी निकल जाएंगे। अगले 12 दिनों में यूपी के निकाय चुनाव संपन्न होने जा रहे हैँ तब तक यहां की जनता को रामधुन में मस्त रखने का कार्यक्रम भाजपा ने बनाया है और हिन्दू वोटों के धु्रवीकरण के लिए इससे अच्छा और कोई मुद्दा नहीं हो सकता है। इसके अलावा गुजरात में भी भगवान राम बेड़ा पार लगाएंगे। वहां मतदान 9 और 14 दिसम्बर को होने जा रहे हैं। राम मंदिर मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 5 दिसंबर से शुरू होने जा रही है। 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के ढांचे के ध्वंस कांड की वर्षगांठ दोनों पक्षों द्वारा अपने-अपने तरीके से मनाई जाती है। इसका उद्देश्य हिन्दू और मुसलमानों को अपना-अपना वजूद याद दिलाना होता है। छह दिसंबर के दो दिन बाद ही गुजरात में पहले चरण के मतदान होने हैं। इसके बाद 14 दिसंबर तक इस लहर को बनाई रखी जाएगी। 

Thursday, 2 November 2017

बहुत ही छोटे कद के नेता निकले कमल हासन

राजनीति में शार्टकट से चौके-छक्के मारने के इरादे से अभिनेता कमल हासन ने हिन्दू आतंकवाद की चर्चा करके अपना नेता वाला कद काफी छोटा कर लिया है। शायद उन्हें यह भी नहीं मालूम कि वेदों और पुराणों के जमाने से हिन्दुओं में यह परम्परा चली आ रही है कि प्राणरक्षा के लिए शस्त्र उठाना पाप नहीं है। रामायण,महाभारत काल से पहले भी अनेकोंं ऐसी घटनाएं हुईं हैं जब महान हस्तियों में राजाओं ने ही नहीं बल्कि ऋषियों ने भी आवश्यकता पडऩे पर और प्राण रक्षा के लिए शस्त्र तक उठाए हैं। इसे यदि आप हिन्दू आतंकवाद कहते हैं तो ये आपकी नादानी है। शायद इस तरह के शगल करके सीधे तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे हों तो कोई ताज्जुब की बात नहीं है। आज पूरा हिन्दुस्तान हिन्दुओं के पक्ष में एक हो रहा है। ऐसे में कमल हासन साहब आपकी यह ओछी मानसिकता और फूट डालो राज करो की रणनीति सफल होने वाली नहीं है। आज का भारतीय हर एक बात को अच्छी तरह से जानता है। अपने नेताओं को ऐसी पटकनी देता है कि वह उठने के काबिल भी नहीं रहते हैँ।
कमल हासन साहब की यह गलती नहीं है क्योंकि वह जानते हैं कि उनकी सीमा तमिलनाडु से लेकर केरल तक ही है। इसके आगे उन्हें कोई पूछने वाला नहीं है। क्योंकि उनका फिल्मी लोकप्रियता का जमाना निकल चुका है। इसलिए वह राजनीति में अपना भाग्य आजमा रहे हैं। अभिनेता कमल हासन ने एक तमिल पत्रिका में अपने साप्ताहिक लेख में हिंदू आतंकवाद का मुद्दा उठाया है। हासन ने लिखा, आप ये नहीं कह सकते कि हिंदू आतंकवाद नहीं है । पहले हिंदू कट्टरपंथी बातचीत करते थे, अब वे हिंसा करते हैं। अपने लेख में कमल हासन ने ये भी कहा है कि अब सत्यमेव जयते से लोगों का विश्वास उठ गया है। उन्होंने लिखा,सत्य की ही जीत होती थी, लेकिन अब ताक़त की ही जीत होती है ऐसा बन गया है। इससे लोग अमानवीय हो गए हैं। इससे पहले आमिर खान ने भीे ऐसी बयानबाजी की थी। इसका जवाब लोग अच्छी तरह से दे चुके हैं। कमल हासन को एहसानफरामोश नहीं होना चाहिए। जिस धरती ने उन्हें जन्म दिया और वो सब कुछ दिया,जिसके लिए लोग तरसते हैं। और उसी धरती को अपमानित करके अपना निशाना साधने की कोशिश कर रहे हैं क्या यही उनका आदर्श है। विचारधारा कोई भी हो सकती लेकिन सस्ती लोकप्रियता की सीढ़ी नहीं लिफ्ट से चढक़र राजनीति का आकाश छूना चाहते हैं। कमल हासन साहब सीढ़ी में तो पायदान होते हैं आदमी किसी न किसी पायदान से फिसलने पर निचले वाले पायदान पर ठहर तो सकता है लेकिन लिफ्ट तो लिफ्ट है एक मिनट पर आपको आसमान भी दिखा सकती है तो दूसरे मिनट में आपको कहां ले जा सकती है, इसकी आपने कल्पना भी की है या....

5 नवंबर को होगी ट्रांस्पोर्टरों की स्कीम लांच

रेट कम करने पर बनी सहमति

नोएडा। नोएडा ट्रांस्पोर्टरों का एक प्रतिनिधिमंडल आज ओएसडी राजेश प्रकाश व इंडस्ट्री जीएम नवीन कुमार से मिला। मुलाकात के दौरान ट्रांस्पोर्ट नगर स्कीम लांच करने की 15 नवंबर तारीख की बात कही गई। प्रतिनिधिमंडल में शामिल वेदपाल चौधरी ने बताया कि आज सोमवार को प्राधिकरण अधिकारियों से ट्रांस्पोर्टरों की मांगों को लेकर दो घंटे की बैठक की गई। जिसमें प्राधिकरण द्वारा बढ़ाये जा रहे प्लॉट के रेट 32,200 को कम करने की बात कही गई। इसी के साथ समयानुसार ट्रांस्पोर्ट नगर की स्कमी 15 नवंबर को लांच करने पर सहमति बनी। उन्होंने बताया कि अधिकारियों ने अभी पांच दिन का समय लिया गया है जिसपर ट्रांस्पोर्टर नगर से संबंधित मांगों पर और विचार किया जायेगा।

मनोज गोयल बने सपा से दादरी नगर पालिका अध्यक्ष पद के उम्मीदवार

दादरी:- सामाजवादी पार्टी ने बुधवार को नगर पालिका दादरी अध्यक्ष पद के लिये व्यापारी नेता मनोज गोयल को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। इससे पहले सपा से सम्भावित उम्मीदवारों मे सबसे आगे चल रहे पूर्व चेयरमैन विक्रम सिंह ने अपना आवेदन वापस लेते हुए मनोज गोयल को अपना समर्थन दे दिया था। इस पर विक्रम सिंह ने कहा कि दादरी नगर में व्यापारियों के सम्मान के लिये उन्होंने अपना आवेदन वापस ले लिया है और अपना पूर्ण समर्थन व्यापारी नेता मनोज गोयल को दिया है। उन्होंने कहा कि व्यापारी नेता मनोज गोयल एक साफ सुथरी छवि वाले इंसान है और नगर में सभी वर्गो के लोकप्रिय नेता है। उनके प्रत्याशी घोषित होने से  समाजवादी पार्टी इस चुनाव में भारी जीत हासिल करेगी। समाजवादी पार्टी के जिला संगठन प्रभारी फकीर चंद  नागर ने उन्हें बधाई देते हुए कहा कि  मनोज गोयल  व्यापारी वर्ग के एक बड़े नेता है। उनके रुप में समाजवादी पार्टी को मजबूत उम्मीदवार मिला है।  उन्होंने पार्टी के कार्यकर्ताओ से अपील करते हुए कहा कि सभी समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता पूरी ईमानदारी से इस चुनाव में जुट जाये और पार्टी कि जीत में अहम भूमिका निभाने का काम करे।

Wednesday, 1 November 2017

सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा, तनख्वाह कब बढ़ाएगी सरकार

सेलरी में कैबिनेट सेक्रेटरी, सेना प्रमुख टॉप पर पीएम व राष्ट्रपति हैं चौथे व पांचवें नंबर पर

आप चौँक जाएंगे यह जानकर कि भारत की कमान संभालने वाले राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री, केन्द्रीय मंत्री, गवर्नर,चीफ जस्टिस आफ इंडिया की वेतन की बात करें तो ये नौकरशाह या लालफीताशाह से चौथे-पांचवें पायदान से भी नीचे आते हैं।
आज सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से ये पूछा कि उनकी सेलरी कब बढ़ेगी? लगता है कि सरकार उनके वेतन बढ़ाना भूल गई है? हालांकि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों के वेतन में बढ़ोत्तरी सरकार सीधे नही करती बल्कि संसद में बिल पास कराना होता है।
आइए देखते हैं कि भारत सरकार में वेतन का ढांचा किस प्रकार का है? यहां सबसे अधिक सेलरी कैबिनेट सेक्रेटरी, सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों को मिलती हैं। इनकी सेलरी का बेसिक पे स्केल 2,50,000 रुपये है। इनके बाद नंबर आता है सेक्रेटरी आफ गवर्नमेंट आफ इंडिया,स्पेशल सेक्रेटरी, वाइस आर्मी स्टाफ, चीफ सेके्रटरी आफ गवर्नमेंट का, जिनकी सेलरी का बेसिक पे स्केल है 2,25,000। इसके बाद नंबर है सेके्रटरी आफ इंडिया और प्रिंसिपल सेक्रेटरी आफ स्टेट गवर्नमेंट का, जिनका बेसिक पे स्केल है 1,82,000। इसके अलावा तमाम भत्ते तथा अन्य सरकारी सुविधाएं अलग हैं।
देश की तीन प्रमुख श्रेणियों के बाद नंबर आता है प्रधानमंत्री का, इनकी बेसिक पे है 1,65,000, इसके बाद पांचवां नंबर आता है देश के प्रथम नागरिक यानी महामहिम राष्ट्रपति का, जिनकी सेलरी का बेसिक पे स्केल है 1,50,000। उपराष्ट्रपति का नंबर इसके बाद आता है। इनकी बेसिक पे स्केल है 1,25,000। सातवें नंबर पर आते हैं राज्यों के राज्यपाल। इनका बेसिक पे स्केल है 1,10,000।
आठवें नंबर पर आते हैं देश की सबसे ऊंची अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट के मुखिया यानी चीफ जस्टिस आफ इंडिया, जो राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में उसके समान ही देश की कमान संभालता है। इनकी बेसिक पे स्केल है मात्र 90,000। इनके अलावा इसी तरह संवैधानिक पद की गरिमा को संभालने वाले चीफ इलेक्शन कमिश्नर, चीफ कॉप्ट्रोलर एण्ड आडिटर जनरल, हाई कोर्ट के जज, इन सभी को बेसिक पे एक समान 90,000 ही मिलती है। इनके भत्ते व सरकारी सुविधाएं अलग-अलग होतीं हैं। अन्य जजों की सेलरी का बेसिक पे 80,000 है। जबकि देश के लिए कानून बनाने वाले सांसदों की बेसिक पे है 50,000। इन्हीं सांसदों में कुछ मंत्री भी बनते हैं। इनकी सेलरी तो वहीं रहती है लेकिन भत्ते व सरकारी कामकाज के हिसाब से अन्य सुविधाएं अतिरिक्त मिलतीं हैं। देखिये है न भारत का कितना बढिय़ा ढांचा।
सुप्रीम कोर्ट ने सेलरी को लेकर टिप्पणी की है तो कोई गलत नहीं की है। देखना है कि सरकार अब इस विषय में क्या करती है?