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Sunday, 24 April 2016

मोक्षदायिनी प्रार्थना-आराधना


हम ईश्वर की प्रार्थना करें और उसकी शरण में आएं। लेकिन इसके लिए हमें वह मार्ग और उपाय पता होना चाहिए। इस मार्ग पर किस तरह से प्रस्थान करना चाहिए और कैसे हम अपनी मंजिल यानी मोक्ष को प्राप्त करें। इसकी शुरुआत हम इन मंत्रों और प्रार्थनाओं से करते हैं।
ओ3म भूर्भुव स्व:।  तत्सुवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो न: प्रचोदयात्।। (यजु. 36-3)
ओ3म यह मुख्य परमेश्वर का नाम है, जिस नाम के साथ अन्य सब नाम लग जाते हैँ। जो प्राणों का भी प्राण है,  सब दुखों से छुड़ाने वाला, सुख स्वरूप और अपने उपासकों को सब सुखों की प्राप्ति कराने वाला है, उस सब जगत् की उत्पत्ति करने वाले, सूर्यादि प्रकाशकों के भी प्रकाशक,समग्र एेश्वर्य के दाता, कामना करने योग्य, सर्वत्र विजय कराने  वाले परमात्मा का, जो अतिश्रेष्ठ ,ग्रहण और ध्यान करने योग्य,सब क्लेशों को भस्म करने वाला, पवित्र,शुद्ध स्वरूप है,  उसको हम लोग,  धारण करे,यह जो परमात्मा,हमारी, बुद्धियों को उत्तम गुण, कर्म, स्वभावों की ओर प्रेरित करे। इसी प्रयोजन के लिए इस जगदीश्वर की स्तुति प्रार्थनोपासना करना और इससे भिन्न और किसी को उपास्य,इष्टदेव,उसके तुल्य वा उससे अधिक नहीं मानना चाहिए।
आइए अब हम परमेश्वर से सच्ची लगन लगाने के लिए उसकी प्रार्थना करें। प्रार्थना करने के लिए जिन मन्त्रों का उच्चारण करना होगा, हम सम उन्हीं मन्त्रों को स्वभाषित करें।
ओ3म विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव।
यद्भद्रं तन्न आ सुव।। 1।। (यजु. 30-3)
तू सर्वेश सकल सुखदाता,शुद्ध स्वरूप विधाता है।
उसके कष्ट नष्ट हो जाते, जो तेरे ढिंग आता है।
सारे दुर्गुण दुव्र्यसनों से, हमको नाथ बचा लीजे।
मंगलमय गुण कर्म पदार्थ, प्रेम सिन्धु हमको दीजे।
हिरण्यगर्भ: समवत्र्तताग्रे भूतस्यजात: पतिरेक आसीत्।
स दाधार पृथिवी द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम।। 2।।
                                                            (यजु. 13-4)
तू ही स्वयं प्रकाश सुचेतन, सुखस्वरूप शुभत्राता है।
सूर्य-चन्द्र लोकादिक को तू, रचता और टिकाता है।
पहिले था अब भी तू ही है,घट-घट में व्यापक स्वामी।
योग भक्ति तप द्वारा तुझको, पावें हम अन्तर्यामी।
य आत्मदा बलदा यस्य विश्व उपासते प्रशिषं यस्य देवा: ।
यस्यच्छायाअमृतं यस्य मृत्यु: कस्मै देवाय हविषा विधेम।। 3।।
                                                                   (यजु. 25-13)
तू ही आत्मज्ञान बल दाता, सुयश विज्ञ जन गाते हैं।
तेरी चरण-शरण ें आकर, भवसागर तर जाते हैं।
तुझको ही जपना जीवन है, मरण तुझे बिसराने में।
मेरी सारी शक्ति लगे प्रभु, तुझ से लगन लगाने में।
य: प्राणतो निमिषतो महित्वैग इद्राजा जगतो बबूव।
य ईशे अस्य द्विपदश्चतुष्पद: कस्मै देवाय हविषा विधेम।। 4।। 
                                                                    यजु. 23-2) 
तू न अपनी अनुपम माया से, जग ज्योति जगाई है।
मनुज और पशुओं को रचकर, निज महिमा प्रगटाई है।
हपने हिय-सिंहासन पर, श्रद्धा से तुझे बिठाते हैं।
भक्ति-भाव की भेंटें लेकर, तब चरणों में आते हैं।
येन द्योरुग्रा पृथिवी च दृढ़ा येन स्व स्तभितं येन नाक:।
यो अन्तरिक्षे रजसो विमान: कस्मै देवाय हविषा विधेम।। 5।। 
                                                                  (यजु. 32-6)
तारे रवि चन्द्रादिक रचकर, निज प्रकाश चमकाया है।
धरणी को धारण कर तूने,कौशल अलख लखाया है।
तू ही विश्व विधाता पोषक,तेरा ही हम ध्यान करें।
शुद्ध भाव से भगवन ! तेरे, भजनामृत का पान करें।
प्रजापते न त्वदेतान्यन्यो विश्वा जातानि परि ता बभूव ।
यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नोअस्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम्।। 6।। 
                                                             (ऋग. 10-121-10)
तुझसे भिन्न न कोई जग में, सब में तू ही समाया है।
जड़-चेतन सब तेरी रचना,तुझमें आश्रय पाया है।
हे ! सर्वोपरि विभो विश्व का, तूने साज सजाया है।
हेतु रहित अनुराग दीजिये, यही भक्त को भाया है।
स नो बन्धुर्जनिता स विधाता धामानि वेद भुवनानि विश्वा।
यत्र देवा अमृतमानशानास्तृतीये धामन्नध्यैरयन्त।। 7।। 
                                                             (यजु. 32-10)
तू गुरु है प्रजेश भी तू है, पाप-पुण्य फल दाता है।
तू ही सा-बन्धु मम तू ही है,तुझसे ही सब नाता है।
भक्तों को इस भव बन्धन से ,तू ही मुक्त कराता है।
तू है अज अद्वैत महाप्रभु,सर्वकाल का ज्ञाता है।
अग्ने नय सुपथा राये अस्मान् विश्वानि देव वयुनानि विद्वान्।
युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नम उक्तिं निधेम।। 8।। 
                                                                 (यजु. 40-16)
तू है स्वयं प्रकाशरूप प्रभु,सबका सिरजनहार तू ही।
रसना निशि-दिन रहे तुम्हीं को, मन में बसना सदा तू ही।
अघ-अनर्थ से हमें बचाते,रहना हरदम दयानिधान।
अपने भक्त जनों को भगवन! दीजे यही विशद वरदान।

ओ3म

Friday, 22 April 2016

व्यंग्य पुराण-पागलखाने में नारदजी का ताण्डव

सुपरिटेंडेंट ने नारदजी के खाने का इंतजाम किया। इसके बाद नारदजी ने कहा अब आराम करना चाहूंगा। वह बोला आपने कहा कि मुझे कुछ और बताएंगे। नारदजी बोले कि इतनी जल्दी क्या है? मैं तो यहां आराम से रहने वाला हूं और तुम भी कहीं जा नहीं रहे हो,रोज-रोज कुछ जानकारी देता रहूंगा। ठीक है अब तुम भी खा-पीकर आराम करो। ठीक है फिर कल सुबह तो बताएंगे। हां-नारदजी बोले। नामालूम ने पूछा कि यह क्या कह रहा है? नारदजी बोले,अपनी मौत तलाश रहा है। इसने अपने जीवन इतने पाप किए हैं कि इससे इसे जल्दी मुक्ति नहीं मिलने वाली फिर भी चाहता है कि सब कुछ अच्छा हो जाए। दरअसल पागलों के साथ रहकर यह पागल हो गया है। भौतिक सुख के लिए अपनी जान कुर्बान करने पर तुला है। नामालूम ने फिर पूछा कि क्या मुझे भी कुछ बताओगे,बाबाजी? नारदजी बोले,ज्योतिष विद्या हंसी-मजाक नहीं हैं,आराधना है। हर समय सरस्वती हमारी जुबान में बैठकर बोलने के लिए तैयार नहीं रहतीं हैं। अच्छा,जानना चाहते हो तो चलो तुम भी कल सुबह ही पूछ लेना। इसके बाद नारदजी ने आंखें बंद करके लेट गए। आराम करने के बाद उठे तो काफी विचलित दिखे। नामालूम ने पूछा कि बाबा क्या बात है? आप कुछ परेशान दिख रहे हैं। बताइए मैं आपकी क्या सेवा करूं? उन्होंने कहा कि नामालूम, भाई मेरी परेशानी का कारण यह है कि मैं जब स्वर्ग लोग में रहता था तो वहां पर सभी जगह भ्रमण करता रहता था। सारी जगह की खबरें मिल जाया करतीं थीं। अब जबसे तुम्हारे साथ आया हूं पहली बार तो फुर्सत मिली है तो खबरों को लेकर मन में जिज्ञासा बढ़ रही है। अब समझ में नहीं आता कि क्या करूं? बाबाजी मैं इस मामले में आपकी कोई मदद नहंीं कर सकता हूं क्योंकि मैं काला अक्षर भैंस बराबर हूं। लेकिन मेरे दिमाग में एक आइडिया आ रहा है कि यदि आपको खबरों की जानकारी चाहिए तो अखबार पढिय़े। अखबार आपका भक्त सुपरिटेंडेंट लाकर देगा। उससे ही मांगिये। नारदजी बोले तो ऐसा कर तू ही सुपरिटेंडेंट के पास जाकर कह ना कि बाबा जी अखबार मंगा रहे हैं। ठीक है कहकर नामालूम सुपरिटेंडेंट के पास गया और कहा। उसने कहा कि अखबार आता तो है, लेकिन सुबह अब कहां और किस हाल में होगा पता नहीं फिर भी प्रयास करता हूं। बड़ी कोशिशों के बाद अखबार के कुछ टुकड़े बटोर कर उसने नामालूम को दे दिए और कहा कि बाबाजी से कहो कि आज इसी के काम चला लें बाकी सुबह बढिय़ा अखबार मिल जाएगा। नामालूम ने बाबाजी को अखबार के टुकड़े दे दिए और कहा कि सुपरिटेंडेंट ने कहा है कि समूचा अखबार सुबह ही मिल पाएगा। उन्होंने इन टुकड़ों में लिखी हुई खबरें पढ़ीं तो उनका सर ही चकरा गया। कही हत्या तो कहीं भ्रूण हत्या,चोरी,चकारी,लूट-पाट,छीना-झपटी,लड़ाई-झगड़ा, पति-पत्नी के बीच झगड़े,आत्महत्या,संपत्ति के लिए बाप-बेटे में जंग तो कहीं बाप ने किया बेटे का कत्ल तो कहीं बेटे ने बाप को मौत के घाट उतारा। वह तो माथा ही पकड़ कर बैठ गए । थोड़ी देर बाद उन्होंने कहा कि नामालूम क्या यही खबरेंं हैं। बाबाजी यह तो अखबार के टुकड़े में कुछ नमूने हैं बाकी कल सुबह के अखबार में पढ़ लेना। नारदजी ने कहा कि अखबारों में भगवान विष्णु या राम या कृष्ण के बारे में कुछ नहीं छपता। उसने कहा कि हमने तो पहले ही कहा कि हम तो अंगूठा टेक हैं छपता भी होगा तो हमें कुछ नहीं मालूम। शाम को जब सुपरिटेंडेंट नारदजी से मिलने आया तो उन्होंने अखबार में छपी इन खबरों पर अपना दर्द जताया और साथ ही यह भी कहा कि भगवान की खबरें नहीं छपतीं हैं क्या? उसने कहा कि छपती जरूर होंगी क्योंकि ये अखबार वाले किसी को नहीं छोड़ते। तो भगवान को क्या छोड़ेंगे। सुबह का अखबार आएगा तो सबसे पहले आपके पास ही भेज देंगे।
सुबह हुई तो फिर वहीं कार्यक्रम शुरू हो गया। नारदजी ने ध्यान लगाया और उसके बाद जब उनकी तंद्रा टूटी तो सुपरिटेंडेंट मिलने आ गया और करने लगा तकादा। बच्चों की तरह ठुनक कर बोला बाबा जी अब तो सुबह हो गई अब तो बताइये न। आपने कहा कि सुबह बताएंगे। नारदजी बोले कि आपने भी कहा कि सुबह अखबार देंगे मेरा मन खबरों को लेकर बहुत व्याकुल है। उसने कहा कि बस अखबार आता ही होगा जैसे आ जाएगा वैसे ही भेज देेंगे। बस अब देर मत लगाइये और मुझे बताइये। नारदजी ने काफी सोच विचार कर कहा कि एक काम कर यदि तू वास्तव में अपना कल्याण चाहता है तो जीवन का प्रायश्चित कर ले क्योंकि तू ही याद कर ले कि अपने जीवन में कितने पाप किए हैं? वह सिर झुकाकर बैठ गया। बोला कि मैं किस तरह से प्रायश्चित करूं? तेरे हाथ में इतना बड़ा पागलखाना है। न जाने कितने यतीम होंगे और न जाने कितने पागलों के बच्चे इधर-उधर भटक रहे होंगे उनका सही इलाज करके उनके परिवार को मिला दे। यही तेरे लिए काफी है। इनकी दुआएं ले तेरा सबकुछ ठीक हो जाएगा। किसी का हक मत मार। जी अच्छा कह कर सुपरिटेंडेंट चुप हो गया। नारदजी ने कहा कि आज इतना ही बस फिर देखूंगा कि तुझे कब क्या बताना है।ठीक है। हां जाते जाते अखबार भिजवा देना। अखबार तो साथ ही लाया था। देखो आज इसमें रामजी और रामायण की खबर भी छपी है। नारदजी ने इतना सुनते ही उसके  हाथ से अखबार झपट लिया। अखबार में आज की रामायण कालम पढ़ते ही नारदजी चौंक पड़े। रामायण और उसकी घटनाओं पर छपे व्यंग्य को देखकर नारदजी का मुंह लाल हो गया। धीरे-धीरे वह बड़बड़ाने लगे। फिर जोर-जोर से चिल्लाने चीखने लगे। उनकी चीख पुकार सुनकर इकट्ठे होने लगे। नारदजी से पूछने लगे कि अखबार में ऐसा क्या छपा है कि जिसे पढ़ कर आप इतने नाराज हो गए। वे बोले हमारे प्रभु श्रीराम का घोर अपमान,नहीं था ऐसा अनुमान, माफ कीजिये श्रीमान, नहीं कर पाऊंगा इस पर फिर से ध्यान। अगर आपको जानना ही चाहते हैं तो ये है मेरा साथी नामालूम यह पढ़कर आपको बताएगा। वह बोला बाबा मैं तो पहले ही बता चुका हूं कि मैं हूं अंगूठा टेक । मेरे लिए अखबार में लिखे सारे काले अक्षर भैंस के समान एक जैसे दिखते हैं। इतनी बात सुनते ही भीड़ में से एक अजूबा सा व्यक्ति सामने आया और बोला सुनो जी श्रीमान मेरा नाम है बावला अरमान। मगर ईंट-पत्थर मारने वाला पागल नहीं हूं,थोड़ा सा खिसक गया है तो यहां आ गया हूं। बस अब ठीक होने वाला हूं,ठीक होते ही अपनी लैला के पास चला जाऊंगा। आप सबसे कहूंगा टाटा एण्ड बाय-बाय। तभी भीड़ में से आवाज आई कि अखबार पढ़ेेगा कि अपनी राम कहानी सुनाएगा। नहीं दोस्तो-मैं थोड़ा-घना पढ़ा-लिखा भी हूं । अब अखबार पढ़ कर सुनाता हूं। तो सुनिये दोस्तो।अखबार ने लिखा है कि आज का जमाना होता तो राजा दशरथ के शब्दभेदी बाण से श्रवण कुमार की मृत्यु को इस तरह लिखा जाता कि राजा दशरथ ने की श्रवण कुमार की हत्या, एफआईआर दर्ज। माता-पिता अनशन पर । बाद में दम तोड़ा। कैकेयी द्वारा राजा दशरथ से वरदान मांग कर राम को वनवास भेजने को यूं लिखा जाता अयोध्या की कुर्सी पर राजा-रानी में खटपट। रानी जीतीं भरत को कुर्सी दिलाई कब्जे की आशंका को खत्म करने के लिए राम को किया चौदह बरस के लिए राज्य बदर। केवट द्वारा चरण धोने की घटना को यूं कहा जाता केवट से चरण धुलवाने पर दलित नेता आग-बबूला। कहा ये है दलितों का अपमान। आयोग से गुहार। ताड़का वध और सूर्पणखा दण्ड पर लिखा जाता ताड़का वध और सूर्पणखा की नाक-कान कटाई के विरोध में महिला आयोग का अयोध्या में प्रदर्शन जारी क्योंकि जंगल में राम-लक्ष्मण हुए गुम। अखबार ने चीखने वाले चैनल की खबर लेते हुए लिखा कि राजा दशरथ की अंतिम यात्रा में स्वयं राजा दशरथ मौजूद-टीवी चैनल। फिर अखबार ने बिना संदर्भ क घटनाओं को इस प्रकार लिखना शुरू कर दिया। बालि की हत्या की शक की सुई श्रीराम पर ठहरी, सप्ताह भर में सीबीआई पेश करेगी जांच रिपोर्ट। छह माह तक कोख में रावण को दबा कर घूमने के जुर्म में बाली के खिलाफ इन्द्रजीत ने मुकदमा दायर किया। सोने का हिरन मारने पर श्रीराम को वन विभाग से मिली चेतावनी। श्रीराम ने अपनी पत्नी सीता के अपहरण का मामला दर्ज कराया।समुद्र पर असेवैधारिक सेतु बनाने पर नल व नील से सीबीआई करेगी पूछताछ। अशोक वाटिका उजाडऩे,युवराज अक्षय कुमार को मारने व लंका में आग लगाने के जुर्म में रावण वीर हनुमानको बंदी बनाया। हिमालय वासियों ने पर्वत श्रंखला से एक पर्वत के चोरी हो जाने की रिपोर्ट दर्ज कराई। अंगद ने लंका क राजा का उन्हीं के निवास स्थान में जाकर किया अपमान। विभीषण पर देशद्रोह का आरोप,हुए तड़ीपार। श्रीराम ने किया रावण का फर्जी एनकाउंटर। भारत व श्रीलंका सरकार की दूरियां बढ़ीं। सीता से अग्नि परीक्षा मांगने पर महिला आयोग ने श्रीराम की कड़े शब्दों में निंदा की। सुप्रीम कोर्ट ने जनता की मांग पर श्रीराम व उनकी सेना को सभी आरोपो ंसे मुक्त किया। भगवान श्रीराम जब वन से अयोध्या पुष्पक विमान से लौट रहे थे तो देखा कि जहां अयोध्या सीमा पर आगे बढ़े थे वहां कुछ लोग कीर्तन भजन कर रहे थे। उन्होंन अपना विमान उतरवाया तो देखा कि किन्नर श्रीराम का कीर्तन करने में मस्त थे। तभी श्रीराम ने कहा कि अरे आप लोग चौदह वर्ष से यहीं भजन कीर्तन कर रहे हों। प्रभु आपने सबसे विदा लेते हुए कहा कि अच्छा अयोध्या के नर-नारियों आपसे विदा लेता हूं आप लोग अपने-अपने घर जाइये। हम तो नर में न नारी में। हमने सोचा कि प्रभु ने हमें तो अपने घर जाने की आज्ञा दी नहीं इसलिए हम लोग आपका गुणगान कर रहे हैं। ठीक है अब चलो। खुश होकर सभी चल दिए। क्रमश:

Monday, 18 April 2016

व्यंग्य पुराण-पागलखाने में नामालूम जमकर रोया

नारद जी और उनके साथी नामालूम पागलखाने की गाड़ी से पागलखाने पहुंच गए। उन्हें पता ही नहीं चला कि वह कब पागलखाने में दाखिल हो गए क्योंकि गेट खुला और गाड़ी सीधे सुपरिटेंडेंट के दफ्तर के बाहर रुकी। प्रहरियों ने पिंजड़ेनुमा गाड़ी का दरवाजा खोला और दोनों लोगों से बाहर आने को कहा तो नारदजी चौंक पड़े,क्या वास्तव में पागलखाने आ गए। प्रहरी ने कहा जी हां। इसे पागलखाना कहकर अपमानित न करिये। यह भी एक तरह का अस्पताल है,मेडिकल कालेज है। सच कहें तो आम अस्पतालों से हटकर अस्पताल है। आम अस्पतालों के मरीजों को अन्य डाक्टर,वैद्य,हकीम, पंसारी और झोलाछाप डॉक्टर मिल भी जाते हैं परन्तु इस तरह के अस्पतालों के मरीजों को सिर्फ यहीं आना पड़ता है। प्रहरी का बखान सुनकर नारदजी बोले पीछे हट,हमें उतरने दे। आओ नामालूम तुम भी आओ। उतरते ही लगभग एक दर्जन लोगों ने दोनों को घेर लिया। इसके साथ ही पूरे पागल खाने की बैरकों और बारामदों में मौजूद मरीजों में खासी हलचल मच गई। सबसे पहले तो सुपरिटेंडेंट आया और उसने नारद जी का स्वागत करते हुए कहा कि बहुत पहुंचे हुए संत-ज्ञानी मालूम पड़ते हो। हाथ-वाथ देख लेते हो। कुंडली पढ़ लेते हो या ढोंगी और भिक्षा मांगने वाले साधु हो। इस पर नारद ने मौन धारण कर लिया। इतने में सुपरिटेंडेंट की नजर उनके सर व शरीर पर आई चोटों की ओर पड़ी। अरे यह क्या हुआ? इनमे सिर का बहा हुआ खून भी सूख गया लगता है कि इसी के कारण इनके दिमाग पर असर पड़ा है। उसने अपनी जेब से एक सीटी निकाली और जोर-जोर से बजानी शुरू कर दी। इतने में कई सफेद कोट वाले लड़के और लड़कियां यानी वार्ड ब्वाय और वार्ड नर्स आ गईं। हरएक की नजर बाबाजी पर पड़ी और उनके शरीर पर आई चोटों पर पड़ीं। अब लड़कियों और लड़कों में बाबाजी को उठाने में होड़ मच गई। लड़के चाहते थे कि हम बाबाजी को उठा कर ऑपरेशन थियेटर में ले जाएं और लड़कियां भी इसी कोशिश में थीं। सबके मन में एक ही लालच था कि अपना भविष्य बाबाजी को हाथ दिखाकर जानें। फिर क्या था दोनों टीमें जुट गईं अपने-अपने काम में। लड़कियों ने पैर की ओर से पकड़ा और लड़कों ने हाथ पकड़ कर बाबाजी का जुलूस निकालना शुरू कर दिया। बेचार नारदजी को पैर में नरम हाथों की चुभन से गुदगुदी हो रही थी। वे बिन जल मछली की तरह तडफ़ड़ाए , बोले मैं इतना बीमार नहीं हू कि चार कदम चल न सकूं। मेरी विनय है कि दोनों ही ओर से छोड़ दो। वही खड़े सुपरिटेंडेंट ने दहाड़ कर कहा कि छोडऩा नही वरना बाबा हम सबको परेशान कर डालेगा। थाने में क्या हुआ ये थानेदार पहले ही बता चुके हैं। वो थानेदार इन दोनों पागलों को यहां पहुंचाने की सरकारी राशि भी ले गए हैं। यह सुनकर नारदजी बेहोश हो गए। नामालूम वही खड़ा होकर यह सब तमाशा देखता रहा। अब नारदजी को ऑपरेशन थियेटर ले जाया गया उनके चोटों की जांच पड़ताल करके पट्टी बांध दी गई। डॉक्टरों ने कहा कि अभी तो दवाओं से काम चलेगा और बीमारी ठीक न हुई तो फिर आपरेशन करना होगा। यह सुनकर नामालूम भी बेहोश हो गया। अब दोनों को अगल-बगल लिटाया गया। दोनों साथियों को जब होश आया तो दोंनों यह देखकर चौंके कि नारदजी के जहां चोट थी वहां पट्टी नहीं बांधी गई। नई जगह पट्टियां बांधी गईं थी। काफी पूछताछ के बाद पता चला कि वार्ड ब्वाय और वार्ड नर्सों में झगड़ा होने के कारण दोनों ने बाबाजी को मेज,कुर्सियां,लोहे की जालियों से टकराते हुए ऑपरेशन थिएटर पहुंचाया। इसके बाद तो गजब जब हुआ पता चला कि बाबाजी का दाहिना हाथ ही नहीं उठ रहा है। नारदजी ने कहा कि यह तो ठीक है कि बायां हाथ ठीक वरना सुबह शौच के समय क्या करते। नामालूम बोला अरे बाबाजी आपका दाहिना हाथ काम नहीं कर रहा है और आप मस्ती ले रहे हो। सुपरिटेंडेंट का धैर्य जवाब दे गया और सुबह के चार बजते ही देखा कि बाबाजी न जाने क्या बड़बड़ा रहे हैं। उसकी समझ में नारायण के अलावा कुछ नहीं आया। उसने कहा कि नारायण अच्छा चपरासी था उसका हाल ही में देहांत हो गया। अब उसकी विधवा काम करती है उसे सुबह ही बुला दूंगा तब हाल चाल पूछ लेना। नारदजी बोले लगता है तक आप पागल हो गए हो। मेरा नारायण कभी नहीं मरता और महारानी लक्ष्मी सदैव सधवा रहतीं हैं। वह तो जगत का पालनहार है। नारदजी की बातें सुनकर सुपरिटेंडेंट बहुत खुश हुआ उसने सोचा कि मेरा काम बन गया। उसने अपना दाहिना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा कि बाबाजी अब देर न लगाओ। जल्दी से बताओ कि प्रमोशन कब होगा,ट्रांसफर कब होगा, नई बीबी कम मिलेगी। पुरानी वाली तो छोड़कर चली गई। बच्चे को भी साथ ले गई। अब आधी तनख्वाह हर महीने ले जाती है। बाबा ने कहा कि तुम्हारे हाथ में विवाह की सात लकीरें हैं । इसका मतलब तुम्हें सात बीवियां मिलेंगी। जब एक ने यह हाल कर रखा है तो बाकी की छह क्या करेंगी यह भी सोचा। और प्रमोशन और ट्रांसफर ? इसके बारे में मत पूछो। क्यों? क्योंकि प्रमोशन एक बार मिल सकता है और ट्रांसफर की नौबत ही नहीं आएगी। क्यों? क्योंकि सातवीं बीवी के मिलते ही तुम्हारा ट्रांसफर परमानेंट भगवान के घर हो जाएगा। सुपरिटेंंडेंट बोला कि मैं कंस की तरह बेवकूफ नहीं हूं कि देवकी को आठ संतानों के लिए जिंदा रखूं। मैं तो छह ही शादी करूंगा। सातवीं करूंगा ही नहीं तो फिर देखता हूं कि मौत कैसे आएगी। फिर नारद जी ने कहा आपकी लड़कों और लड़कियों की फौज ने मेरा क्या हाल बना रखा है? नई-नई जगह घायल कर दिया है और मेरा दाहिना हाथ बेकार कर दिया है। इसका उपचार कराइये। उन्होंने सुपरिटेंडेंंट को एक इशारा कर दिया कि अभी तुम्हारे हाथ में बहुत कुछ छिपा है वो हाथ ठीक होने के बाद ही बताऊंगा क्योंकि अभी अपने प्रभु की माला भी अशुद्ध बाएं हाथों से जपनी पड़ रही है वे भी नाराज हो रहे होंगे। अच्छा ठीक हैं अब तुम जाओ और मैं दो घंटे का मौन व्रत रखूंगा। किसी को मेरे पास आने नहीं देना।
इसके बाद नारदजी ने ध्यान लगाया और करीब आधे घंटे तक मौन रहे। इसके बाद फिर उन्होंने अपने साथी को चुपके से बुलाया। बड़ी गंभीरता से पूछा कि साथी, तुम इतने समय से मेरे साथ हो लेकिन दुर्भाग्य है कि मैंने तुम्हारा परिचय तक न पूछ पाया। नामालूम बोला, मौका मिला होता तब पूछते ना। कभी थाने तो कभी पागलखाने के हंगामे ने बुद्धि भ्रष्ट कर रखी है। न आप पूछ पाए और न ही मैं बता सका। चलो कोई बात नहीं देर आए दुरुस्त आए अब बताओ कि तुम्हारा असली नाम क्या है? जिससे मैं तुम्हें पुकारूं। तुम्हारे माता-पिता कौन हैं? जिनका मैं धन्यवाद कर सकूं। तुम्हारा निवास स्थान कहां है? जिसके मैं दर्शन कर सकूं। यह सुनते ही नामालूम फफक कर रो पड़ा। नारदजी ने कारण पूछा तो वह बता न सका। थोड़ी देर बाद जब वह संयत स्थिति में आया तो उसने बताया कि मेरा असली नाम मनहूस है। वह क्यों? क्योंकि मेरे जन्म के साथ ही मेरे माता-पिता का देहांत हो गया था। मैं करीब छह-सात महीने का ही रहा हूंगा। मेरे माता-पिता का स्वर्गवास हो गया था। इसके बाद मुझे कई लोगों ने पालने की कोशिश की जिसके यहां जाता कुछ न कुछ अप्रिय घटित हो जाता लोग मुझे छोड़ देते,फिर किसी को दया आती वह पालता फिर उसके साथ अशुभ घटना होती तो वह मुझे लावारिस छोड़ देता। इस तरह से जब तीन वर्ष के आसपास की आयु हुई होगी। तब से मैं लावारिस हूं। आसपास के लोग मुझे मनहूस कह कर पुकारते थे। इसके बाद इधर-उधर के धक्के खाता फिर रहा हूं। मुझे नहीं पता कि मेरा नाम क्या है,मेरे माता-पिता कौन हैं, कौन सा मेरा घर है? यह कह कर फिर रोने लगा। नारद जी ने शांत करते हुए कहा कि तुम धैर्य रखो सब कुछ ठीक हो जाएगा। उसने कहा कि खाक ठीक हो जाएगा। मैं ने अभी तक सारे गलत काम किए हैं लोगों को सताया-रुलाया है। लोगों के दिल दुखाए हैं,चोरी जारी करके अपना पेट भरा है। मुझे इन सबका कोई ज्ञान ही नहीं था, फिर कोई राह दिखाने वाला भी नहीं था।  एक बार मैं एक मंदिर में सो गया था तो वहां एक बाबा कुछ लोगों को बता रहे थे, जब भी किसी से जाने-अनजाने में गलती या दुष्कर्म हो जाए तो उसे मौका मिलते ही पश्चाताप कर लेना चाहिए। भगवान सबकुछ भूल कर उसे माफ कर देते हैं और रास्ता भी बताते हैं। मेरे मन में यह बात काफी दिनों से गूंज रही थी। इतने में आप गिरे तो मैं भी लोगों के साथ देखने गया सब लोग तो चले गए लेकिन मैं यह सोच कर आपके साथ हो लिया हो न हो यही मेरे लिए पश्चाताप का समय है। तब से मैं आपके साथ हूं लेकिन मेरी मनहूसित तो देखिये कि आप भी नित नई नई मुसीबतो में फंसते जा रहे हैं। यकीन मानिये आप मेरी वजह से ही पागलखाने में है। फिर रोने लगा। इतने में पागलखाने का सुपरिटेंडेंट आ गया। अभिवादन करते हुए नामालूम को डांटने लगा कि तुम कैसे यहां आए? मैंने सबको दो घंटे के लिए मना किया था। नारदजी बीच में ही बोल पड़े , इसे मैंने ही बुलाया था श्रीमानजी। देखिये समय दो घंटे से दस मिनट ऊपर हो गया है।  क्रमश:

Sunday, 17 April 2016

व्यंग्य पुराण-जब थाना बना कुरुक्षेत्र का मैदान

पुराने जमाने में नारद जी पृथ्वी लोक का भ्रमण करने आए तो उन्होंने अपना जरूरी-जरूरी काम निपटाया और वापस अपने वतन को लौट गए। वहां जाकर विष्णु भगवान से बोले कि आपने हमें कहां भेज दिया। वहां तो हमारा एक पल के लिए भी मन नहीं लगा,मैं तो अपना काम निपटा कर तत्काल आपके दर्शन के लिए चला आया। कंठी माला पटक कर बोले भूखे भजन न होहिं गोपाला, यह लो अपना कंठी माला। भगवन ने पूछा कि क्या हुआ, खाना-पीना नहीं मिला। गुस्से में बोले, हां मिला, घी चुपड़ी रोटी,छौंकी हुई अरहर की दाल,आलू का चोखा और चावल और कुछ नहीं। और क्या चाहिए था,नारद जी। स्वर्ग जैसा सोमरस का पान व अप्सराओं की जगह भोले बाबा की भांग और तम्बाकू,अप्सराओं की जगह लम्बे-लम्बे घूंघट वाली महिलाएं।अब बताओ कि हम किस तरह से वहां अपना मन लगाते। विष्णु भगवान ने चेताया कि एक बार तुम मोहिनी के चक्कर में बंदर बन चुके हो अब क्या फिर ? इस पर नारद जी तमतमा उठे,भगवन पिछली बार आपने धोखा दिया था। इस बार ऐसा नहीं चलेगा। इस बार आप बंदर नहीं कुछ भी बना दोगे तो हम आपका शाप नहीं बल्कि वरदान देंगे। अब जमाना बदल गया है। ऐसा क्या हुआ नारद जी। भगवन,मैं आपसे झूठ नहीं बोलता। मैं आपसे छिप-छिप कर पृथ्वी लोक को देखा करता हूं। आजकल तो पृथ्वी लोक बहुत ही अच्छा लगने लगा है। अच्छा नारद जी, अब मैं समझा कि चौबीस घंटे नारायण-नारायण भजने वाला नारद अब चौबीस घंटे में एक बार भी नारायण क्यों नहीं बोल रहा है। अच्छा नारद जी लगता है कि स्वर्ग लोग से आपका मोह भंग हो गया है। नहीं-नहीं,भगवन-ऐसा कतई नहीं है लेकिन क्या करूं रोज-रोज एक ही खाना खाने से मन ऊब जाता है, तो यह मन भी भटक जाता है। क्या चाहते हो नारद जी, थोड़े दिनों के लिए पृथ्वी लोक जाना चाहता हूं । भगवन ने चेताया कि देख लो नारद जी, हमारे यहां कर्म आधारित व्यवस्था है, हमारी कसौटी पर खरे उतरोगे तो तभी स्वर्ग में वापस आ पाओगे। आप पृथ्वी लोक जाना चाहते हो तो जाओ मुझे कोई आपत्ति नहीं है। काफी सोच विचार कर नारद जी बोले-ठीक है, भगवन। मुझे सारा कुछ मालूम है,हम ध्यान रखेंगे। इसके बाद नारद जी ने वहां से प्रस्थान किया। जैसे ही स्वर्ग का दरवाजा पार किया,धड़ाम से धरती में औंधे आ पड़े। बोले-नारायण-नारायण। किसी व्यक्ति को गिरा देख आस-पास के लोग दौड़े और जब उन्होंनें देखा कि एक बाबा पड़ा कराह रहा है और नारायण-नारायण बुला रहा है। सभी व्यक्ति बोले ये तो नंगा बाबा है, इसके पास तो धेला नहीं है, इसकी क्या मदद करनी है। उनमें से एक बोला कि बाबा नारायण-नारायण बुला रहा है। आपमें से जो भी नारायण हो आ जाओ। लगता है कि नारायण बाबा का कोई रिश्तेदार है। कोई नारायण तो सामने नहीं आया लेकिन एक धर्मालु प्रवृत्ति का व्यक्ति था वह अवश्य आगे आया और नारद जी के हाल-चाल पूछे और यह पूछा कि यह चोट कैसे लगी। चलिए आपको अस्पताल लेकर चलते हैं। यह सुनकर नारद जी चौंके कि मुझसे तो उठा नहीं जा रहा है और ये मुझे अस्पताल ले जाने की बात कह रहा है। नारद जी ने कहा कि मैं नारद हूं नारद। हमारे जमाने में लक्ष्मण को शक्ति लगी थी तो लक्ष्मण नहीं गए सुषेन वैद्य के पास, सुषेन वैद्य आए थे लक्ष्मण जी के पास। वह व्यक्ति बोला बाबा ये उस जमाने की बात आज के जमाने में अस्पताल ही हैं। चलना तो चलिए नहीं तो हम भी अन्य लोगों की तरह अपने घर को जावें। नारद जी बोले-नहीं नहीं भाई। चलिये चलते हैं। काफी मशक्कत के बाद नारद जी सरकारी अस्पताल पहुंच गए। वहां देखा तो चारों ओर चीख-पुकार मची हुई। कोहराम मचा हुआ है। लोग लम्बी-लम्बी लाइन में लगे हुए हैं। काफी समय बाद नारद जी का नम्बर आया तो अस्पताल का डॉक्टर ने उस व्यक्ति से पूछा जो नारद जी को घायलावस्था में लेकर आया था। यह चोट कैसे लगी,कोई एक्सीडेंट मालूम होता है। इसकी पुलिस में रिपोर्ट लिखाई। इसके बिना इलाज शुरू नहीं हो सकेगा। अब नारद जी चक्कर में पड़ गए कि डाक्टर ने मानवता छोड़कर पहले पुलिस में रिपोर्ट लिखाने का बात कर रहा है। इस पर तीमारदार बोला कि चलो नारद जी थाने, पर क्यों वहां तो चोर-जुआरी,बदमाश और अपराधी जाते हैं । हमने कौन सा जुर्म किया है कि जो हमें वहां ले जा रहे हो। वह बोला तुम इस दुनिया में नए-नए आए हो सब कुछ जान जाओगे। यहां से उठकर चलो। नारदजी उसके पीछे-पीछे चल दिए। वहां पहुंचे तो देखा कि वहां तो बड़े-बड़े अपराधी। पुलिस वालों के साथ बड़े आराम से बातें कर रहे हैं। बातें हीं नहीं कर रहे हैं खान-पान,धूम्रपान,सोमपान में व्यस्त हैं। कुछ लोग तो थोड़ी-थोड़ी देर तक की सैर-सपाटा करके सीट पर बैठ जाते थे। नारद जी का साथी किसी पुलिस वाले से बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था, तो नारद जी ने सोचा कि चलो मैं स्वयं अपनी पैरवी करूं और अपना इलाज तो करवाऊं । यह सोच कर वह जिस पुलिस वाले के पास जाते वह कह देता बाबा-छुट्टे नहीं हैं कल आना या नौ हों तो दस का ले जाओ। कुछ को दया आ गई तो उसने हाथ में पाच-दस का नोट जो आया दे दिया। जब नारद जी कुछ कहने को हुए तो उसन डांटते हुए कहा अब क्या है दे दिया है जाओ अगला दरवाजा खटखटाओ। बहुत लालची लगते हो। अब नारदजी हैरान-परेशान। कहने लगे ये क्या बला है। इन रक्षकों को यह भी तमीज नहीं है कि किस तरह से बात की जाए। साथी व्यक्ति ने कहा कि महाराज ये पुलिस वाले तो आपसे बहुत तमीज से बात करते हैं वरना इनकी भाषा सुनकर इंसान तो क्या जानवर भी भाग जाते हैं। फिर उसने कहा कि आप मेरे साथ चलो। फिर वह चला तो पुलिस वाले के पास बहुत हिम्मत करके पहुंचा। देखते ही बोला बाबा मेरे पीछे क्यों पड़े हो दे दिए। साथी ने का कि ये बाबा मांगने नहीं आए हैं तो क्या करने आए हैं-पुलिस वाला बोला। नारद जी के साथी ने कहा कि इनके चोट लगी है अस्पताल लेकर गया था तो उन्होंने कहा कि पहले पुलिस में रिपोर्ट लिखाओ तब इलाज होगा। इसलिए मैं यहां आया था। पहले तू कहां मर गया था, जो अब आया है बड़ा भारी बाबा का वकील बनके। चलो आओ। बाबा की जेब में कुछ है या तुम्हारी जेब में कुछ है, कि खाली बाबा की रिपोर्ट लिखाओगे। उसने नारद जी की ओर इशारा किया तो उन्होंने जो पुलिस वालों से पैसे मिले थे सारे-के सारे दे दिए। इस पर पुलिस वाला चिल्लाया। इनसे क्या होगा। क्या मैं बाबा की तरह भिखारी हूं। मेरी भी कोई हैसियत है। हैसियत देखकर बात करो वरना भागो यहां से नहीं तो किसी गंभीर दफा में बंद कर दूंगा। इस पर साथी बोला कि मैं तो मदद करने आया था। आप चाहें तो बाबा की मदद करके इनकी रिपोर्ट लिख लो या चाहे जो कुछ करो मैं तो चला। यह सुनते ही पुलिस वाले ने साथी को पकड़ कर बिठा लिया जाते कहां हो।चलो मैं तुम्हारी और बाबा की मदद करता हूं। रिपोर्ट लिखानी है तो पहले नाम बताओ। वह बोला कि चोट तो बाबा को लगी है उनका नाम उन्हीं से पूछो हमें नहीं मालूम। इसपर वह नारद जी की ओर मुखातिब हुआ और पूछा कि आपका नाम क्या है? नारद, ब्रह्मर्षि नारद, पिता का नाम ब्रह्माजी, निवास स्वर्गलोक। फिर उसने साथी से पूछा कि तुम्हारी गवाही लगेगी कि तुम्ही थाने तक लाए थे इसलिए अपना नाम बताओ? चंद मिनट सोच कर बोला-मेरा नाम नामालूम, पिता का नाम पता नहीं और निवास अज्ञात स्थान तो जनपद ढूंढते रह जाओगे। किस राज्य से हो इस पर वह फंस गया,मौन हो गया। तभी पुलिस वाले की तंद्रा टूटी। फिर उसने दोनों के नामों को गौर से पढ़ा। हमें तुम दोनों पागल लगते हो। तुम्हें अस्पताल नहीं पागलखाने भेजने की जरूरत है। इस पर नारद जी से भागो कह कर वह भागा। तभी पुलिस वाले ने शोर मचा दिया। पकड़ो-पकड़ो। पागल हैं, पागलखाने ले जाना है। बहुत खतरनाक पागल है। फिर क्या था, मच गई भगदड़। कोई कहीं गिरा-कोई कहीं पड़ा। थोड़ी देर में थाना कुरुक्षेत्र का मैदान बन गया। हर कोई एक दूसरे उलझ रहा था। तभी थानेदार भगवान कृष्ण की भूमिका में हाथ में सुदर्शन चक्र की जगह पर अपनी सरकारी पिस्तौल से एक हवाई फायर किया। फिर जो जहां था थम कर रह गया। और बाबा नारद और उनके साथी को पकड़ लिया गया। मामला पूछा तो कहा कि ये दोनों पागल हैं और पागलखाने ले जाना है। बड़े अधिकारी से राहत पाने की उम्मीद में बाबा के साथी ने उनसे गुहार की कि हम पागल नहीं हैं हम तो बाबा की मदद करने आए थे। थानेदार ने कहा कि तुम झूठ बोलते हो। इस पर पुलिसवाले को बुलाया उसने दोनों नाम पते दिखाते हुए कहा कि ये बाबा खुद को नारद कहता है पिता का नाम ब्रह्मा बताता है निवासी स्वर्गलोग बताता है, बीच में नारद जी ने बोलने का प्रयास किया तो थानेदार ने डांटते हुए कहा-तुम चुप रहो। कागज देखने के बाद एक पिंजड़ानुमा गाड़ी पागलखाने से मंगाई गई और उसमें कैद करके नारद जी और उनके साथी को पागलखाने ले जाया गया।
क्रमश: