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Sunday, 17 April 2016

व्यंग्य पुराण-जब थाना बना कुरुक्षेत्र का मैदान

पुराने जमाने में नारद जी पृथ्वी लोक का भ्रमण करने आए तो उन्होंने अपना जरूरी-जरूरी काम निपटाया और वापस अपने वतन को लौट गए। वहां जाकर विष्णु भगवान से बोले कि आपने हमें कहां भेज दिया। वहां तो हमारा एक पल के लिए भी मन नहीं लगा,मैं तो अपना काम निपटा कर तत्काल आपके दर्शन के लिए चला आया। कंठी माला पटक कर बोले भूखे भजन न होहिं गोपाला, यह लो अपना कंठी माला। भगवन ने पूछा कि क्या हुआ, खाना-पीना नहीं मिला। गुस्से में बोले, हां मिला, घी चुपड़ी रोटी,छौंकी हुई अरहर की दाल,आलू का चोखा और चावल और कुछ नहीं। और क्या चाहिए था,नारद जी। स्वर्ग जैसा सोमरस का पान व अप्सराओं की जगह भोले बाबा की भांग और तम्बाकू,अप्सराओं की जगह लम्बे-लम्बे घूंघट वाली महिलाएं।अब बताओ कि हम किस तरह से वहां अपना मन लगाते। विष्णु भगवान ने चेताया कि एक बार तुम मोहिनी के चक्कर में बंदर बन चुके हो अब क्या फिर ? इस पर नारद जी तमतमा उठे,भगवन पिछली बार आपने धोखा दिया था। इस बार ऐसा नहीं चलेगा। इस बार आप बंदर नहीं कुछ भी बना दोगे तो हम आपका शाप नहीं बल्कि वरदान देंगे। अब जमाना बदल गया है। ऐसा क्या हुआ नारद जी। भगवन,मैं आपसे झूठ नहीं बोलता। मैं आपसे छिप-छिप कर पृथ्वी लोक को देखा करता हूं। आजकल तो पृथ्वी लोक बहुत ही अच्छा लगने लगा है। अच्छा नारद जी, अब मैं समझा कि चौबीस घंटे नारायण-नारायण भजने वाला नारद अब चौबीस घंटे में एक बार भी नारायण क्यों नहीं बोल रहा है। अच्छा नारद जी लगता है कि स्वर्ग लोग से आपका मोह भंग हो गया है। नहीं-नहीं,भगवन-ऐसा कतई नहीं है लेकिन क्या करूं रोज-रोज एक ही खाना खाने से मन ऊब जाता है, तो यह मन भी भटक जाता है। क्या चाहते हो नारद जी, थोड़े दिनों के लिए पृथ्वी लोक जाना चाहता हूं । भगवन ने चेताया कि देख लो नारद जी, हमारे यहां कर्म आधारित व्यवस्था है, हमारी कसौटी पर खरे उतरोगे तो तभी स्वर्ग में वापस आ पाओगे। आप पृथ्वी लोक जाना चाहते हो तो जाओ मुझे कोई आपत्ति नहीं है। काफी सोच विचार कर नारद जी बोले-ठीक है, भगवन। मुझे सारा कुछ मालूम है,हम ध्यान रखेंगे। इसके बाद नारद जी ने वहां से प्रस्थान किया। जैसे ही स्वर्ग का दरवाजा पार किया,धड़ाम से धरती में औंधे आ पड़े। बोले-नारायण-नारायण। किसी व्यक्ति को गिरा देख आस-पास के लोग दौड़े और जब उन्होंनें देखा कि एक बाबा पड़ा कराह रहा है और नारायण-नारायण बुला रहा है। सभी व्यक्ति बोले ये तो नंगा बाबा है, इसके पास तो धेला नहीं है, इसकी क्या मदद करनी है। उनमें से एक बोला कि बाबा नारायण-नारायण बुला रहा है। आपमें से जो भी नारायण हो आ जाओ। लगता है कि नारायण बाबा का कोई रिश्तेदार है। कोई नारायण तो सामने नहीं आया लेकिन एक धर्मालु प्रवृत्ति का व्यक्ति था वह अवश्य आगे आया और नारद जी के हाल-चाल पूछे और यह पूछा कि यह चोट कैसे लगी। चलिए आपको अस्पताल लेकर चलते हैं। यह सुनकर नारद जी चौंके कि मुझसे तो उठा नहीं जा रहा है और ये मुझे अस्पताल ले जाने की बात कह रहा है। नारद जी ने कहा कि मैं नारद हूं नारद। हमारे जमाने में लक्ष्मण को शक्ति लगी थी तो लक्ष्मण नहीं गए सुषेन वैद्य के पास, सुषेन वैद्य आए थे लक्ष्मण जी के पास। वह व्यक्ति बोला बाबा ये उस जमाने की बात आज के जमाने में अस्पताल ही हैं। चलना तो चलिए नहीं तो हम भी अन्य लोगों की तरह अपने घर को जावें। नारद जी बोले-नहीं नहीं भाई। चलिये चलते हैं। काफी मशक्कत के बाद नारद जी सरकारी अस्पताल पहुंच गए। वहां देखा तो चारों ओर चीख-पुकार मची हुई। कोहराम मचा हुआ है। लोग लम्बी-लम्बी लाइन में लगे हुए हैं। काफी समय बाद नारद जी का नम्बर आया तो अस्पताल का डॉक्टर ने उस व्यक्ति से पूछा जो नारद जी को घायलावस्था में लेकर आया था। यह चोट कैसे लगी,कोई एक्सीडेंट मालूम होता है। इसकी पुलिस में रिपोर्ट लिखाई। इसके बिना इलाज शुरू नहीं हो सकेगा। अब नारद जी चक्कर में पड़ गए कि डाक्टर ने मानवता छोड़कर पहले पुलिस में रिपोर्ट लिखाने का बात कर रहा है। इस पर तीमारदार बोला कि चलो नारद जी थाने, पर क्यों वहां तो चोर-जुआरी,बदमाश और अपराधी जाते हैं । हमने कौन सा जुर्म किया है कि जो हमें वहां ले जा रहे हो। वह बोला तुम इस दुनिया में नए-नए आए हो सब कुछ जान जाओगे। यहां से उठकर चलो। नारदजी उसके पीछे-पीछे चल दिए। वहां पहुंचे तो देखा कि वहां तो बड़े-बड़े अपराधी। पुलिस वालों के साथ बड़े आराम से बातें कर रहे हैं। बातें हीं नहीं कर रहे हैं खान-पान,धूम्रपान,सोमपान में व्यस्त हैं। कुछ लोग तो थोड़ी-थोड़ी देर तक की सैर-सपाटा करके सीट पर बैठ जाते थे। नारद जी का साथी किसी पुलिस वाले से बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था, तो नारद जी ने सोचा कि चलो मैं स्वयं अपनी पैरवी करूं और अपना इलाज तो करवाऊं । यह सोच कर वह जिस पुलिस वाले के पास जाते वह कह देता बाबा-छुट्टे नहीं हैं कल आना या नौ हों तो दस का ले जाओ। कुछ को दया आ गई तो उसने हाथ में पाच-दस का नोट जो आया दे दिया। जब नारद जी कुछ कहने को हुए तो उसन डांटते हुए कहा अब क्या है दे दिया है जाओ अगला दरवाजा खटखटाओ। बहुत लालची लगते हो। अब नारदजी हैरान-परेशान। कहने लगे ये क्या बला है। इन रक्षकों को यह भी तमीज नहीं है कि किस तरह से बात की जाए। साथी व्यक्ति ने कहा कि महाराज ये पुलिस वाले तो आपसे बहुत तमीज से बात करते हैं वरना इनकी भाषा सुनकर इंसान तो क्या जानवर भी भाग जाते हैं। फिर उसने कहा कि आप मेरे साथ चलो। फिर वह चला तो पुलिस वाले के पास बहुत हिम्मत करके पहुंचा। देखते ही बोला बाबा मेरे पीछे क्यों पड़े हो दे दिए। साथी ने का कि ये बाबा मांगने नहीं आए हैं तो क्या करने आए हैं-पुलिस वाला बोला। नारद जी के साथी ने कहा कि इनके चोट लगी है अस्पताल लेकर गया था तो उन्होंने कहा कि पहले पुलिस में रिपोर्ट लिखाओ तब इलाज होगा। इसलिए मैं यहां आया था। पहले तू कहां मर गया था, जो अब आया है बड़ा भारी बाबा का वकील बनके। चलो आओ। बाबा की जेब में कुछ है या तुम्हारी जेब में कुछ है, कि खाली बाबा की रिपोर्ट लिखाओगे। उसने नारद जी की ओर इशारा किया तो उन्होंने जो पुलिस वालों से पैसे मिले थे सारे-के सारे दे दिए। इस पर पुलिस वाला चिल्लाया। इनसे क्या होगा। क्या मैं बाबा की तरह भिखारी हूं। मेरी भी कोई हैसियत है। हैसियत देखकर बात करो वरना भागो यहां से नहीं तो किसी गंभीर दफा में बंद कर दूंगा। इस पर साथी बोला कि मैं तो मदद करने आया था। आप चाहें तो बाबा की मदद करके इनकी रिपोर्ट लिख लो या चाहे जो कुछ करो मैं तो चला। यह सुनते ही पुलिस वाले ने साथी को पकड़ कर बिठा लिया जाते कहां हो।चलो मैं तुम्हारी और बाबा की मदद करता हूं। रिपोर्ट लिखानी है तो पहले नाम बताओ। वह बोला कि चोट तो बाबा को लगी है उनका नाम उन्हीं से पूछो हमें नहीं मालूम। इसपर वह नारद जी की ओर मुखातिब हुआ और पूछा कि आपका नाम क्या है? नारद, ब्रह्मर्षि नारद, पिता का नाम ब्रह्माजी, निवास स्वर्गलोक। फिर उसने साथी से पूछा कि तुम्हारी गवाही लगेगी कि तुम्ही थाने तक लाए थे इसलिए अपना नाम बताओ? चंद मिनट सोच कर बोला-मेरा नाम नामालूम, पिता का नाम पता नहीं और निवास अज्ञात स्थान तो जनपद ढूंढते रह जाओगे। किस राज्य से हो इस पर वह फंस गया,मौन हो गया। तभी पुलिस वाले की तंद्रा टूटी। फिर उसने दोनों के नामों को गौर से पढ़ा। हमें तुम दोनों पागल लगते हो। तुम्हें अस्पताल नहीं पागलखाने भेजने की जरूरत है। इस पर नारद जी से भागो कह कर वह भागा। तभी पुलिस वाले ने शोर मचा दिया। पकड़ो-पकड़ो। पागल हैं, पागलखाने ले जाना है। बहुत खतरनाक पागल है। फिर क्या था, मच गई भगदड़। कोई कहीं गिरा-कोई कहीं पड़ा। थोड़ी देर में थाना कुरुक्षेत्र का मैदान बन गया। हर कोई एक दूसरे उलझ रहा था। तभी थानेदार भगवान कृष्ण की भूमिका में हाथ में सुदर्शन चक्र की जगह पर अपनी सरकारी पिस्तौल से एक हवाई फायर किया। फिर जो जहां था थम कर रह गया। और बाबा नारद और उनके साथी को पकड़ लिया गया। मामला पूछा तो कहा कि ये दोनों पागल हैं और पागलखाने ले जाना है। बड़े अधिकारी से राहत पाने की उम्मीद में बाबा के साथी ने उनसे गुहार की कि हम पागल नहीं हैं हम तो बाबा की मदद करने आए थे। थानेदार ने कहा कि तुम झूठ बोलते हो। इस पर पुलिसवाले को बुलाया उसने दोनों नाम पते दिखाते हुए कहा कि ये बाबा खुद को नारद कहता है पिता का नाम ब्रह्मा बताता है निवासी स्वर्गलोग बताता है, बीच में नारद जी ने बोलने का प्रयास किया तो थानेदार ने डांटते हुए कहा-तुम चुप रहो। कागज देखने के बाद एक पिंजड़ानुमा गाड़ी पागलखाने से मंगाई गई और उसमें कैद करके नारद जी और उनके साथी को पागलखाने ले जाया गया।
क्रमश:

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