नारद जी और उनके साथी नामालूम पागलखाने की गाड़ी से पागलखाने पहुंच गए। उन्हें पता ही नहीं चला कि वह कब पागलखाने में दाखिल हो गए क्योंकि गेट खुला और गाड़ी सीधे सुपरिटेंडेंट के दफ्तर के बाहर रुकी। प्रहरियों ने पिंजड़ेनुमा गाड़ी का दरवाजा खोला और दोनों लोगों से बाहर आने को कहा तो नारदजी चौंक पड़े,क्या वास्तव में पागलखाने आ गए। प्रहरी ने कहा जी हां। इसे पागलखाना कहकर अपमानित न करिये। यह भी एक तरह का अस्पताल है,मेडिकल कालेज है। सच कहें तो आम अस्पतालों से हटकर अस्पताल है। आम अस्पतालों के मरीजों को अन्य डाक्टर,वैद्य,हकीम, पंसारी और झोलाछाप डॉक्टर मिल भी जाते हैं परन्तु इस तरह के अस्पतालों के मरीजों को सिर्फ यहीं आना पड़ता है। प्रहरी का बखान सुनकर नारदजी बोले पीछे हट,हमें उतरने दे। आओ नामालूम तुम भी आओ। उतरते ही लगभग एक दर्जन लोगों ने दोनों को घेर लिया। इसके साथ ही पूरे पागल खाने की बैरकों और बारामदों में मौजूद मरीजों में खासी हलचल मच गई। सबसे पहले तो सुपरिटेंडेंट आया और उसने नारद जी का स्वागत करते हुए कहा कि बहुत पहुंचे हुए संत-ज्ञानी मालूम पड़ते हो। हाथ-वाथ देख लेते हो। कुंडली पढ़ लेते हो या ढोंगी और भिक्षा मांगने वाले साधु हो। इस पर नारद ने मौन धारण कर लिया। इतने में सुपरिटेंडेंट की नजर उनके सर व शरीर पर आई चोटों की ओर पड़ी। अरे यह क्या हुआ? इनमे सिर का बहा हुआ खून भी सूख गया लगता है कि इसी के कारण इनके दिमाग पर असर पड़ा है। उसने अपनी जेब से एक सीटी निकाली और जोर-जोर से बजानी शुरू कर दी। इतने में कई सफेद कोट वाले लड़के और लड़कियां यानी वार्ड ब्वाय और वार्ड नर्स आ गईं। हरएक की नजर बाबाजी पर पड़ी और उनके शरीर पर आई चोटों पर पड़ीं। अब लड़कियों और लड़कों में बाबाजी को उठाने में होड़ मच गई। लड़के चाहते थे कि हम बाबाजी को उठा कर ऑपरेशन थियेटर में ले जाएं और लड़कियां भी इसी कोशिश में थीं। सबके मन में एक ही लालच था कि अपना भविष्य बाबाजी को हाथ दिखाकर जानें। फिर क्या था दोनों टीमें जुट गईं अपने-अपने काम में। लड़कियों ने पैर की ओर से पकड़ा और लड़कों ने हाथ पकड़ कर बाबाजी का जुलूस निकालना शुरू कर दिया। बेचार नारदजी को पैर में नरम हाथों की चुभन से गुदगुदी हो रही थी। वे बिन जल मछली की तरह तडफ़ड़ाए , बोले मैं इतना बीमार नहीं हू कि चार कदम चल न सकूं। मेरी विनय है कि दोनों ही ओर से छोड़ दो। वही खड़े सुपरिटेंडेंट ने दहाड़ कर कहा कि छोडऩा नही वरना बाबा हम सबको परेशान कर डालेगा। थाने में क्या हुआ ये थानेदार पहले ही बता चुके हैं। वो थानेदार इन दोनों पागलों को यहां पहुंचाने की सरकारी राशि भी ले गए हैं। यह सुनकर नारदजी बेहोश हो गए। नामालूम वही खड़ा होकर यह सब तमाशा देखता रहा। अब नारदजी को ऑपरेशन थियेटर ले जाया गया उनके चोटों की जांच पड़ताल करके पट्टी बांध दी गई। डॉक्टरों ने कहा कि अभी तो दवाओं से काम चलेगा और बीमारी ठीक न हुई तो फिर आपरेशन करना होगा। यह सुनकर नामालूम भी बेहोश हो गया। अब दोनों को अगल-बगल लिटाया गया। दोनों साथियों को जब होश आया तो दोंनों यह देखकर चौंके कि नारदजी के जहां चोट थी वहां पट्टी नहीं बांधी गई। नई जगह पट्टियां बांधी गईं थी। काफी पूछताछ के बाद पता चला कि वार्ड ब्वाय और वार्ड नर्सों में झगड़ा होने के कारण दोनों ने बाबाजी को मेज,कुर्सियां,लोहे की जालियों से टकराते हुए ऑपरेशन थिएटर पहुंचाया। इसके बाद तो गजब जब हुआ पता चला कि बाबाजी का दाहिना हाथ ही नहीं उठ रहा है। नारदजी ने कहा कि यह तो ठीक है कि बायां हाथ ठीक वरना सुबह शौच के समय क्या करते। नामालूम बोला अरे बाबाजी आपका दाहिना हाथ काम नहीं कर रहा है और आप मस्ती ले रहे हो। सुपरिटेंडेंट का धैर्य जवाब दे गया और सुबह के चार बजते ही देखा कि बाबाजी न जाने क्या बड़बड़ा रहे हैं। उसकी समझ में नारायण के अलावा कुछ नहीं आया। उसने कहा कि नारायण अच्छा चपरासी था उसका हाल ही में देहांत हो गया। अब उसकी विधवा काम करती है उसे सुबह ही बुला दूंगा तब हाल चाल पूछ लेना। नारदजी बोले लगता है तक आप पागल हो गए हो। मेरा नारायण कभी नहीं मरता और महारानी लक्ष्मी सदैव सधवा रहतीं हैं। वह तो जगत का पालनहार है। नारदजी की बातें सुनकर सुपरिटेंडेंट बहुत खुश हुआ उसने सोचा कि मेरा काम बन गया। उसने अपना दाहिना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा कि बाबाजी अब देर न लगाओ। जल्दी से बताओ कि प्रमोशन कब होगा,ट्रांसफर कब होगा, नई बीबी कम मिलेगी। पुरानी वाली तो छोड़कर चली गई। बच्चे को भी साथ ले गई। अब आधी तनख्वाह हर महीने ले जाती है। बाबा ने कहा कि तुम्हारे हाथ में विवाह की सात लकीरें हैं । इसका मतलब तुम्हें सात बीवियां मिलेंगी। जब एक ने यह हाल कर रखा है तो बाकी की छह क्या करेंगी यह भी सोचा। और प्रमोशन और ट्रांसफर ? इसके बारे में मत पूछो। क्यों? क्योंकि प्रमोशन एक बार मिल सकता है और ट्रांसफर की नौबत ही नहीं आएगी। क्यों? क्योंकि सातवीं बीवी के मिलते ही तुम्हारा ट्रांसफर परमानेंट भगवान के घर हो जाएगा। सुपरिटेंंडेंट बोला कि मैं कंस की तरह बेवकूफ नहीं हूं कि देवकी को आठ संतानों के लिए जिंदा रखूं। मैं तो छह ही शादी करूंगा। सातवीं करूंगा ही नहीं तो फिर देखता हूं कि मौत कैसे आएगी। फिर नारद जी ने कहा आपकी लड़कों और लड़कियों की फौज ने मेरा क्या हाल बना रखा है? नई-नई जगह घायल कर दिया है और मेरा दाहिना हाथ बेकार कर दिया है। इसका उपचार कराइये। उन्होंने सुपरिटेंडेंंट को एक इशारा कर दिया कि अभी तुम्हारे हाथ में बहुत कुछ छिपा है वो हाथ ठीक होने के बाद ही बताऊंगा क्योंकि अभी अपने प्रभु की माला भी अशुद्ध बाएं हाथों से जपनी पड़ रही है वे भी नाराज हो रहे होंगे। अच्छा ठीक हैं अब तुम जाओ और मैं दो घंटे का मौन व्रत रखूंगा। किसी को मेरे पास आने नहीं देना।
इसके बाद नारदजी ने ध्यान लगाया और करीब आधे घंटे तक मौन रहे। इसके बाद फिर उन्होंने अपने साथी को चुपके से बुलाया। बड़ी गंभीरता से पूछा कि साथी, तुम इतने समय से मेरे साथ हो लेकिन दुर्भाग्य है कि मैंने तुम्हारा परिचय तक न पूछ पाया। नामालूम बोला, मौका मिला होता तब पूछते ना। कभी थाने तो कभी पागलखाने के हंगामे ने बुद्धि भ्रष्ट कर रखी है। न आप पूछ पाए और न ही मैं बता सका। चलो कोई बात नहीं देर आए दुरुस्त आए अब बताओ कि तुम्हारा असली नाम क्या है? जिससे मैं तुम्हें पुकारूं। तुम्हारे माता-पिता कौन हैं? जिनका मैं धन्यवाद कर सकूं। तुम्हारा निवास स्थान कहां है? जिसके मैं दर्शन कर सकूं। यह सुनते ही नामालूम फफक कर रो पड़ा। नारदजी ने कारण पूछा तो वह बता न सका। थोड़ी देर बाद जब वह संयत स्थिति में आया तो उसने बताया कि मेरा असली नाम मनहूस है। वह क्यों? क्योंकि मेरे जन्म के साथ ही मेरे माता-पिता का देहांत हो गया था। मैं करीब छह-सात महीने का ही रहा हूंगा। मेरे माता-पिता का स्वर्गवास हो गया था। इसके बाद मुझे कई लोगों ने पालने की कोशिश की जिसके यहां जाता कुछ न कुछ अप्रिय घटित हो जाता लोग मुझे छोड़ देते,फिर किसी को दया आती वह पालता फिर उसके साथ अशुभ घटना होती तो वह मुझे लावारिस छोड़ देता। इस तरह से जब तीन वर्ष के आसपास की आयु हुई होगी। तब से मैं लावारिस हूं। आसपास के लोग मुझे मनहूस कह कर पुकारते थे। इसके बाद इधर-उधर के धक्के खाता फिर रहा हूं। मुझे नहीं पता कि मेरा नाम क्या है,मेरे माता-पिता कौन हैं, कौन सा मेरा घर है? यह कह कर फिर रोने लगा। नारद जी ने शांत करते हुए कहा कि तुम धैर्य रखो सब कुछ ठीक हो जाएगा। उसने कहा कि खाक ठीक हो जाएगा। मैं ने अभी तक सारे गलत काम किए हैं लोगों को सताया-रुलाया है। लोगों के दिल दुखाए हैं,चोरी जारी करके अपना पेट भरा है। मुझे इन सबका कोई ज्ञान ही नहीं था, फिर कोई राह दिखाने वाला भी नहीं था। एक बार मैं एक मंदिर में सो गया था तो वहां एक बाबा कुछ लोगों को बता रहे थे, जब भी किसी से जाने-अनजाने में गलती या दुष्कर्म हो जाए तो उसे मौका मिलते ही पश्चाताप कर लेना चाहिए। भगवान सबकुछ भूल कर उसे माफ कर देते हैं और रास्ता भी बताते हैं। मेरे मन में यह बात काफी दिनों से गूंज रही थी। इतने में आप गिरे तो मैं भी लोगों के साथ देखने गया सब लोग तो चले गए लेकिन मैं यह सोच कर आपके साथ हो लिया हो न हो यही मेरे लिए पश्चाताप का समय है। तब से मैं आपके साथ हूं लेकिन मेरी मनहूसित तो देखिये कि आप भी नित नई नई मुसीबतो में फंसते जा रहे हैं। यकीन मानिये आप मेरी वजह से ही पागलखाने में है। फिर रोने लगा। इतने में पागलखाने का सुपरिटेंडेंट आ गया। अभिवादन करते हुए नामालूम को डांटने लगा कि तुम कैसे यहां आए? मैंने सबको दो घंटे के लिए मना किया था। नारदजी बीच में ही बोल पड़े , इसे मैंने ही बुलाया था श्रीमानजी। देखिये समय दो घंटे से दस मिनट ऊपर हो गया है। क्रमश:
इसके बाद नारदजी ने ध्यान लगाया और करीब आधे घंटे तक मौन रहे। इसके बाद फिर उन्होंने अपने साथी को चुपके से बुलाया। बड़ी गंभीरता से पूछा कि साथी, तुम इतने समय से मेरे साथ हो लेकिन दुर्भाग्य है कि मैंने तुम्हारा परिचय तक न पूछ पाया। नामालूम बोला, मौका मिला होता तब पूछते ना। कभी थाने तो कभी पागलखाने के हंगामे ने बुद्धि भ्रष्ट कर रखी है। न आप पूछ पाए और न ही मैं बता सका। चलो कोई बात नहीं देर आए दुरुस्त आए अब बताओ कि तुम्हारा असली नाम क्या है? जिससे मैं तुम्हें पुकारूं। तुम्हारे माता-पिता कौन हैं? जिनका मैं धन्यवाद कर सकूं। तुम्हारा निवास स्थान कहां है? जिसके मैं दर्शन कर सकूं। यह सुनते ही नामालूम फफक कर रो पड़ा। नारदजी ने कारण पूछा तो वह बता न सका। थोड़ी देर बाद जब वह संयत स्थिति में आया तो उसने बताया कि मेरा असली नाम मनहूस है। वह क्यों? क्योंकि मेरे जन्म के साथ ही मेरे माता-पिता का देहांत हो गया था। मैं करीब छह-सात महीने का ही रहा हूंगा। मेरे माता-पिता का स्वर्गवास हो गया था। इसके बाद मुझे कई लोगों ने पालने की कोशिश की जिसके यहां जाता कुछ न कुछ अप्रिय घटित हो जाता लोग मुझे छोड़ देते,फिर किसी को दया आती वह पालता फिर उसके साथ अशुभ घटना होती तो वह मुझे लावारिस छोड़ देता। इस तरह से जब तीन वर्ष के आसपास की आयु हुई होगी। तब से मैं लावारिस हूं। आसपास के लोग मुझे मनहूस कह कर पुकारते थे। इसके बाद इधर-उधर के धक्के खाता फिर रहा हूं। मुझे नहीं पता कि मेरा नाम क्या है,मेरे माता-पिता कौन हैं, कौन सा मेरा घर है? यह कह कर फिर रोने लगा। नारद जी ने शांत करते हुए कहा कि तुम धैर्य रखो सब कुछ ठीक हो जाएगा। उसने कहा कि खाक ठीक हो जाएगा। मैं ने अभी तक सारे गलत काम किए हैं लोगों को सताया-रुलाया है। लोगों के दिल दुखाए हैं,चोरी जारी करके अपना पेट भरा है। मुझे इन सबका कोई ज्ञान ही नहीं था, फिर कोई राह दिखाने वाला भी नहीं था। एक बार मैं एक मंदिर में सो गया था तो वहां एक बाबा कुछ लोगों को बता रहे थे, जब भी किसी से जाने-अनजाने में गलती या दुष्कर्म हो जाए तो उसे मौका मिलते ही पश्चाताप कर लेना चाहिए। भगवान सबकुछ भूल कर उसे माफ कर देते हैं और रास्ता भी बताते हैं। मेरे मन में यह बात काफी दिनों से गूंज रही थी। इतने में आप गिरे तो मैं भी लोगों के साथ देखने गया सब लोग तो चले गए लेकिन मैं यह सोच कर आपके साथ हो लिया हो न हो यही मेरे लिए पश्चाताप का समय है। तब से मैं आपके साथ हूं लेकिन मेरी मनहूसित तो देखिये कि आप भी नित नई नई मुसीबतो में फंसते जा रहे हैं। यकीन मानिये आप मेरी वजह से ही पागलखाने में है। फिर रोने लगा। इतने में पागलखाने का सुपरिटेंडेंट आ गया। अभिवादन करते हुए नामालूम को डांटने लगा कि तुम कैसे यहां आए? मैंने सबको दो घंटे के लिए मना किया था। नारदजी बीच में ही बोल पड़े , इसे मैंने ही बुलाया था श्रीमानजी। देखिये समय दो घंटे से दस मिनट ऊपर हो गया है। क्रमश:
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