परमपिता परमात्मा की कृपा से जब मनुष्य में सद्बुद्धि जाग्रत होती है, तो वह इस अद्भुत मानव-शरीर एवं जीवन को देखकर यह विचारता है कि मैं कौन हूं्र, मैं कहां से आया हूं, मैं इस पृथ्वी पर क्यों आया हूं, और इस जीवन के बाद मैं कहा चला जाऊंगा। यह विचार प्रत्येक मनुष्य के मन में उत्पन्न नहीं होता क्योंकि जो व्यक्ति मात्र खाने-पीने ,सोने-जागने,धन-संग्रह करने, भोग-विलास करने, शरीर को सजाने-संवारने या अन्य सांसारिक कार्यो में ही लगे रहते हें, जो सदैव इन कार्यों को करने की ही चिन्ता करते रहते हैंं। इस संसार को अद्भुत रचना-प्रक्रिया को देखकर चकित नहीं होते और इसके रचयिता का चिन्तन नहीं करते,उनके मन में ये प्रश्न उत्पन्न नहीं होते । जिस व्यक्ति के मन में ये प्रश्न उत्पन्न होते हें और जो उनका उत्तर पाना चाहता है, वह व्यक्ति निश्चय ही सौभाग्यशाली है। इसके विपरीत जिसके मन में ये प्रश्न उत्पन्न नहीं होते या उत्पन्न होने पर भी जो इनका उत्तर पाना नहीं चाहता, वह व्यक्ति अभागा है और उसका यह जीवन व्यर्थ है।
क्या है आत्मा का गूढ़ रहस्य
हम जब अध्यात्म की बात करते हैं तो हमारे सामने दो चीजें सामने आतीं हैं। एक ईश्वर,परमात्मा और दूसरी आत्मा या जीवात्मा। यदि हम प्रैक्टिकल बात करें तो हम देखते हैं कि आजकल के अर्थ युग में आधुनिक जीवनशैली में भागमभाग में इतना समय ही नहीं मिल पाता है कि मनुष्य अध्यात्म या आत्मा व परमात्मा के बारे में चर्चा कर सके। आज का मनुष्य आत्मा-परमात्मा के बारे में बात तभी करता है जब या तो वह किसी व्यक्ति की अंतिम यात्रा में जाता है या अंत्येष्टि स्थल पर लिखे गीता व अन्य ग्रंथों के वाक्यों पर चर्चा करने के बाद फिर भूल जाता है। इस कटु सत्य हमें स्वीकार करना होगा। सत्य है कि हम मोक्ष या मुक्ति के बारे में आसानी से बात करने लगते हैं लेकिन इसे पहले हमें आत्मा और परमात्मा के गूढ़ रहस्य के बारे में बात करनी होगी। आत्मा के दो प्रकार हैं-एक अणु आत्मा और दूसरा विभु आत्मा। कठोपनिषद् में इसकी पुष्टि इस प्रकार हुई है-
अणोरणीयान्महतो महीयानात्मस्य जन्तोर्निहितो गुहायाम्।
तमक्रतु: पश्यति वीतशोको धातु: प्रसादान्महिमानमात्मन:।।
परमात्मा तथा अणु आत्मा दोनो शरीर रूपी वृक्ष में जीव के हृदय में विद्यमान हैं और इनमें जो समस्त इच्छाओं तथा शोकों से मुक्त हो चुका है, वही ईश्वर की कृपा से आत्मा की महिमा को जान सकता है।
आत्मा के बारे में रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं:-
ईश्वर अंश जीव अविनाशी,चेतन अमल सहज सुख राशि।।
श्रीमदभगवदगीता के दूसरे अध्याय के 20 श्लोक में लिखा है
न जायते म्रियते वा कदाचिन्, नायं भूत्वा भविता वा न भूय:।
अजो नित्य: शाश्वतोऽयं पुराणों न हन्यते हन्यमाने शरीरे।।
आत्मा के लिए किसी भी काल में न तो जन्म है न मृत्यु। वह न तो कभी जन्मा है, न जन्म लेता है और न जन्म लेगा। वह अजन्मा, नित्य,शाश्वत तथा पुरातन है। शरीर के मारे जाने पर मारा नहीं जाता।
जो जीवात्मा ईश्वर को प्राप्त करना चाहता है, वह अपनी शक्ति, गुण,स्वरूप को जाने बिना ईश्वर को नहीं जान सकता। जब व्यक्ति शीशे में देखता है तो विचारता है कि मैं पुरुष वा स्त्री हूं। काला,गोरा,नाटा,बालक,वृद्ध हूं । यह मिथ्या ज्ञान है। परन्तु मैं स्त्री,पुरुष आदि शरीर वाला हूं यह विचार करना चाहिए। आज व्यक्ति ने पृथ्वी का चप्पा-चप्पा खोज मारा,चन्द्रमादि ग्रहों तक पहुंच गया है। प्राकृतिक यानी भौतिक अनेक पदार्थों को जान लिया है परन्तु स्वयं के बारे में मानव को बहुत अल्पज्ञान है।
परिभाषाएं व सिद्धान्त बदल जाने से विचार और व्यवहार बदल जाते हैं। कुरान-बाइबिल में आत्मा के बारे में बहुत कम बातें लिखीं हैं। जो लिखी हैं वे भी प्राय: गलत हैं। जैसे मनुष्य को छोड़कर किसी में आत्मा नहीं मानी। स्त्री में पूरी आत्मा मानते ही नहीं हैं। पाकिस्तान में स्त्री को आधी आत्मायुक्त मानने से उसे चुनाव में आधे वोट का अधिकार है। अग्नि आदि भौतिक पदार्थ के बारे में हमारा जैसा व्यावहारिक ज्ञान है, वैसा आत्मा के बारे में भी हो। मुझ आत्मा को अस्त्र काट नहीं सकते, अग्नि जला नहीं सकती इतना समझ लेने मात्र से कितनी शक्ति व निर्भयता आ जाती है। दयानन्द पर विष प्रयोग हुआ,मतीदास को चीरा गया। वैरागी की खाल नुचवाई गई,गुरु के बच्चे को दीवार में चिनवाए गए, कढ़ाई में तले गए, परन्तु उन्होंने आत्मा का सच्चा नित्य स्वरूप जानकर काहा कि हमारे आत्मा का कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता। उन्होंने अपने अनित्य शरीर को आत्मा नहीं माना। आत्मा को जानकर व्यक्ति महान् सामथ्र्यवान् हो जाता है। यह वास्तविक ज्ञान के कारण है। जीवात्मा का कोई रंग-रूप नहीं,कोई भार नहीं है। जैसे भौतिक वस्तुओं में रंग,रूप,स्पर्श,लम्बाई,चौड़ाई आदि गुण पाये जाते हैं,वैसे जीवात्मा में नहीं हैं।
एक रोचक बात,एक पुस्तक है 501 आश्चर्यजनक तथ्य उसमें जीवात्मा का भार लिखा है कि जीवात्म 21 ग्राम का है। कुछ वैज्ञानिकों ने प्रयोग किया। मरते हुए एक व्यक्ति को बॉक्स में बन्द करके तुला में तोला गया । थोड़े काल में वह मर गया, अर्थात आत्मा निकल गई उसे फिर तोला गया तो 21 ग्राम भार कम हुआ। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि जीवात्मा 21 ग्राम का है। अब इस ग्राम में कितनी चीटियां समा जाएंगी? शायद हजारों..। कितना अज्ञान हैं आत्मा के विषय में विज्ञान। जैसे लोग कहते है कि आत्मा घटता-बढ़ता है। हाथी मे जाएगा तो बढ़ जाएगा और चीटी में जाएगा तो घट जाएगा। सत्य वैदिक सिद्धान्त यह है कि जीवात्मा अपरिणामी होने से घटता-बढ़ता नही है वह अभौतिक वस्तु होने से स्थान भी नहीं घेरता। एक सुई की नोक में विश्व के सभी जीवात्मा समा सकते हैं।
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