हमने प्रथम परिचर्चा का आयोजन किया और उसके प्रत्युत्तर में अनेक विद्वतजनों के गूढ़,महत्वपूर्ण एवं मनुष्य जीवन को मार्ग दर्शन करने वाले अमूल्य विचार आए हैं। हमें देश के लगभग एक दर्जन हिन्दीभाषी राज्यों के लोगों के विचार जानने को मिले हैं। इनमें से कई लोगों ने ईश्वर और देव को एक ही माना है। यह सतही जानकारी है। परन्तु अनेक विद्वानों ने इस पर महत्वपूर्ण प्रकाश डाला है। कई विद्वानों ने ईश्वर और देवों दोंनो की एक सत्ता माना है तो कुछ विद्वतजनों ने ईश्वर को परम देव और देवों को उनके अधीन दैविक कार्य करने वाला माना है। प्रथमदृष्टि में साधारण व्यक्ति देव और ईश्वर को एक ही मानता है जबकि वास्तविकता यह नहीं है। वास्तविकता में ये दोनों ही शक्तियां अलग-अलग हैं। या यूं कहें कि ईश्वर एक ही है। उसकी परमसत्ता में देव भी अपना कत्र्तव्य पूर्ण करके जीवन व्यतीत करते हैं। अब सवाल उठता है कि ईश्वर कौन है और देव कौन है? तो आइए जानें कि वेदों और आर्ष ग्रन्थों में किसको सच्चा ईश्वर कहा गया है-ओं खम्ब्रह्मं।। यजुर्वेद अ. ४०। मं.१७। ओंकार परमेश्वर का सर्वोत्तम नाम है। इसमें जो अ, उ, और म् तीन अक्षर मिलकर ओ३म् शब्द बना है। इस एक नाम में सारा ब्रह्मांड समाया है। ओ३म् जिसका नाम है और जो कभी नष्ट नहीं होता है, उसी की उपासना करनी चाहिए अन्य की नहीं। ‘ओ३म’ नाम सार्थक है। जैसे ‘अवतीत्योम्, आकाशमिव व्यापकत्वात् खम्, सर्वेभ्यो बृहत्वाद् ब्रह्म’ रक्षा करने से ‘ओम’, आकाशवत् व्यापक होने से ‘खम्’ सबसे बड़ा होने से ईश्वर का नाम ‘ब्रह्म’ है। ओमित्येतदक्षरमिद् सर्वं तस्योपव्याख्यानाम्।। सब वेदादि शास्त्रों में परमेश्वर का प्रधान और निज नाम ‘ओ३म्’ को कहा है। इसी प्रकार देवों को दिव्यगुण वाला बताया गया है। दिव्य गुण वह होते हैं जो मानव एवं ऋषियों द्वारा प्रदत्त गुणों से भी श्रेष्ठ होते हैं। दिव्य गुण का सीधा सा अर्थ बताया जाता है कि वह शक्ति जो जनकल्याण और जगतपालन के लिए अपनी क्षमता से जीवनदायिनी वस्तु बिना किसी भेदभाव के सबको समान रूप से अबाध देता रहे और उसका प्रतिमूल्य किसी भी प्रकार नहीं लेता है। जैसे सूर्य,हवा,जल,चन्द्रमा,अग्नि आदि को साक्षात् देव कहा गया है। सूर्य अपने पथ पर अबाध रूप से जलकर चलते रहने के कारण देव कहा गया है। हवा को भी निरंतर चलते रहते तथा प्रत्येक जीवधारी के प्राणदायिनी होने के कारण देव कहा गया है। जल भी जीवन है, यह भी प्रत्येक जीवधारी को जीवन प्रदान करते हुए निरंतर गति से बहता रहता है। इसे भी देव कहा गया है। इसी तरह के अन्य अनेक देव हैं। यहां यह भी बता देना उचित होगा कि ईश्वर इन सब देवगणों का रचयिता व संचालनकर्ता है। ईश्वर एक है और ये देवगण उसके सहायक एवं उसकी व्यवस्था बनाने में सहायक हैं।
हमें इस परिचर्चा ईश्वर और देवों में क्या अन्तर है? के परिप्रेक्ष्य में कहां-कहां से लोगों ने अपने-अपने विचार भेजे हैं। इन लोगों में उत्तर प्रदेश,उत्तराखण्ड,हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल,ओडिसा,छत्तीसगढ़ आदि राज्यों से प्रमुख हैं। प्रस्तुत हैं इन लोगों के विचार-
ईश्वर और देव एक ही हैं। केवल भाषा का ही अन्तर है। कोई इन्हें देव यानी देवता कहता है तो कोई ईश्वर कहता है।
राजीव शाह,सोनपुर, मुजफ्फरपुर, बिहार।
ईश्वर बड़ा होता है और देव छोटे होते हैं। इस विषय में मेरा ज्ञान बहुत सीमित है फिर भी हम इतना जानते हैं कि ईश्वर एक होता है और देव अनेक होते हैं। इस बारे में अधिक ज्ञान न होने से इतना ही कहना चाहती हूं।
सीमा पटेल, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश
ईश्वर और देव में अन्तर जरूर है परन्तु बहुत ज्यादा अन्तर नहीं है। ईश्वर भी देवों की तरह होता है। साधारण भाषा में हम देवों को ही जानते हैं। इससे अलग कोई ईश्वर होता होगा तो हम जानते नहीं है। परन्तु अवश्य ही होता होगा। रजनी विष्ट, अल्मोड़ा, उत्तराखण्ड
परमब्रह्म परमात्मा एवं सच्चिदानन्द एक ही है और उसे निराकार रूप में हम जानते हैं वहीं ईश्वर है। ईश्वर ही सारी सृष्टि का संचालन कर्ता है। सृष्टि में उसके सहायक शक्तियों जो दिव्य गुणों से सम्पन्न हैं और सृष्टि के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इन्हीं महत्वपूर्ण शक्तियों को ही देव कहा जाता है।
महंत श्री क्षमाराज जी महाराज,सींथल,राजस्थान।
ब्रह्मा,विष्णु, महेश, राम, कृष्ण,बुद्ध आदि जिन्हें हम भगवान,ईश्वर या देवता जानते हैं। ये सभी अपने-अपने महान कार्यों से महानगुणों वाले व्यक्तित्व के धनी हैं। इन सभी के आराध्य को ईश्वर कहा गया है। आपने चित्रों में ब्रह्मा,विष्णु और महेश को भी ध्यान लगाते हुए या अपने इष्ट की पूजा-अर्चना करते हुए देखा होगा। अब सवाल उठता है कि ये स्वयं परमदेव हैं तो फिर ये किसकी आराधना करते हैं। यही सोचने की बात है और महत्वपूर्ण बात यह है कि ये सभी अपने आराध्य उसी परम शक्ति की आराधना करते हैं,जिसे ईश्वर कहा जाता है।
पं. शीतला प्रसाद मिश्र, कटरा, रीवा, मध्य प्रदेश।
देश में शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों और मां दुर्गा के 51 शक्तिपीठों को ईश्वर के धाम कहे जाते हैं। इन्हीं को देव स्थान कहा जाता है। ये महत्वपूर्ण स्थान है। ईश्वर वह है जो हमें सूर्य की रोशनी देता है, चन्द्रमा का प्रकाश देता है, सांस लेने के लिए वायु देता है, जीवन के संचालन के लिए जल देता है और सभी जीवों के जीवनचक्र को चलाता है और इस जीवनचक्र को चलाने के लिए वनस्पति,अन्न एवं अन्य साधन उपलब्ध कराता है।
मोहन राव, रांची, झारखंड।
ओ३म नाम ही ईश्वर का है, जो सभी कहीं रहता है परन्तु कहीं दिखाई नहीं देता, जो सबकुछ करता है परन्तु सीधे वह कुछ भी करता नहीं दिखाई देता। हाथीं से चीटीं में समाने वाला ईश्वर है। विश्व के सारे वैज्ञानिक जीव के प्राण का अन्त आज तक नहीं जान पाए हैं। यही रहस्य आज ईश्वर की सत्ता को बताता है।
रानी सिंह, जींद, हरियाणा।
प्रकृति के संचालन में देवगणों का नेतृत्व करने वाला ही ईश्वर है। उसके इशारे पर सारे देवगण जनकल्याण के कार्यों में निस्वार्थ भाव से लगे रहते हैं। देवों के बारे में यह कहा जाता है कि मनुष्य यदि देवों के सदृश कार्य करने लगे तो देव बन सकता है परन्तु वह ईश्वर नहीं बन सकता क्योंकि ईश्वर सिर्फ एक है और उसकी सत्ता त्रुटिरहित निरंतर गति से चलती रहती है।
बेबीरानी मिश्रा, शिमला, हिमाचल प्रदेश।
हमें इस परिचर्चा ईश्वर और देवों में क्या अन्तर है? के परिप्रेक्ष्य में कहां-कहां से लोगों ने अपने-अपने विचार भेजे हैं। इन लोगों में उत्तर प्रदेश,उत्तराखण्ड,हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल,ओडिसा,छत्तीसगढ़ आदि राज्यों से प्रमुख हैं। प्रस्तुत हैं इन लोगों के विचार-
ईश्वर और देव एक ही हैं। केवल भाषा का ही अन्तर है। कोई इन्हें देव यानी देवता कहता है तो कोई ईश्वर कहता है।
राजीव शाह,सोनपुर, मुजफ्फरपुर, बिहार।
ईश्वर बड़ा होता है और देव छोटे होते हैं। इस विषय में मेरा ज्ञान बहुत सीमित है फिर भी हम इतना जानते हैं कि ईश्वर एक होता है और देव अनेक होते हैं। इस बारे में अधिक ज्ञान न होने से इतना ही कहना चाहती हूं।
सीमा पटेल, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश
ईश्वर और देव में अन्तर जरूर है परन्तु बहुत ज्यादा अन्तर नहीं है। ईश्वर भी देवों की तरह होता है। साधारण भाषा में हम देवों को ही जानते हैं। इससे अलग कोई ईश्वर होता होगा तो हम जानते नहीं है। परन्तु अवश्य ही होता होगा। रजनी विष्ट, अल्मोड़ा, उत्तराखण्ड
परमब्रह्म परमात्मा एवं सच्चिदानन्द एक ही है और उसे निराकार रूप में हम जानते हैं वहीं ईश्वर है। ईश्वर ही सारी सृष्टि का संचालन कर्ता है। सृष्टि में उसके सहायक शक्तियों जो दिव्य गुणों से सम्पन्न हैं और सृष्टि के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इन्हीं महत्वपूर्ण शक्तियों को ही देव कहा जाता है।
महंत श्री क्षमाराज जी महाराज,सींथल,राजस्थान।
ब्रह्मा,विष्णु, महेश, राम, कृष्ण,बुद्ध आदि जिन्हें हम भगवान,ईश्वर या देवता जानते हैं। ये सभी अपने-अपने महान कार्यों से महानगुणों वाले व्यक्तित्व के धनी हैं। इन सभी के आराध्य को ईश्वर कहा गया है। आपने चित्रों में ब्रह्मा,विष्णु और महेश को भी ध्यान लगाते हुए या अपने इष्ट की पूजा-अर्चना करते हुए देखा होगा। अब सवाल उठता है कि ये स्वयं परमदेव हैं तो फिर ये किसकी आराधना करते हैं। यही सोचने की बात है और महत्वपूर्ण बात यह है कि ये सभी अपने आराध्य उसी परम शक्ति की आराधना करते हैं,जिसे ईश्वर कहा जाता है।
पं. शीतला प्रसाद मिश्र, कटरा, रीवा, मध्य प्रदेश।
देश में शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों और मां दुर्गा के 51 शक्तिपीठों को ईश्वर के धाम कहे जाते हैं। इन्हीं को देव स्थान कहा जाता है। ये महत्वपूर्ण स्थान है। ईश्वर वह है जो हमें सूर्य की रोशनी देता है, चन्द्रमा का प्रकाश देता है, सांस लेने के लिए वायु देता है, जीवन के संचालन के लिए जल देता है और सभी जीवों के जीवनचक्र को चलाता है और इस जीवनचक्र को चलाने के लिए वनस्पति,अन्न एवं अन्य साधन उपलब्ध कराता है।
मोहन राव, रांची, झारखंड।
ओ३म नाम ही ईश्वर का है, जो सभी कहीं रहता है परन्तु कहीं दिखाई नहीं देता, जो सबकुछ करता है परन्तु सीधे वह कुछ भी करता नहीं दिखाई देता। हाथीं से चीटीं में समाने वाला ईश्वर है। विश्व के सारे वैज्ञानिक जीव के प्राण का अन्त आज तक नहीं जान पाए हैं। यही रहस्य आज ईश्वर की सत्ता को बताता है।
रानी सिंह, जींद, हरियाणा।
प्रकृति के संचालन में देवगणों का नेतृत्व करने वाला ही ईश्वर है। उसके इशारे पर सारे देवगण जनकल्याण के कार्यों में निस्वार्थ भाव से लगे रहते हैं। देवों के बारे में यह कहा जाता है कि मनुष्य यदि देवों के सदृश कार्य करने लगे तो देव बन सकता है परन्तु वह ईश्वर नहीं बन सकता क्योंकि ईश्वर सिर्फ एक है और उसकी सत्ता त्रुटिरहित निरंतर गति से चलती रहती है।
बेबीरानी मिश्रा, शिमला, हिमाचल प्रदेश।
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