ग्रेटर नोएडा (ब्यूरो)। रोजा इस्लाम में फर्ज है और इसकी फर्जियत कुरान, हदीस से साबित है। यह कहना है कि कादरी मस्जिद के इमाम मतलूम हुसैन का। रोजे के बारे में विस्तार से बताते हुए उन्होंने कहा कि हर मुसलमान आकिल और मालिब पर रोजा रखना जरूरी है। अगर बगैर किसी मजबूरी के जानबूझकर किसी ने रोजा छोड़ दिया तो वह शरियत का मुजरिम व गुनहगार है।
हदीस में रोजे को ढाल कहा गया है। ढाल का काम बचाना होता है उसी तरह से रोजा इंसान को गुनाहों से बचाता है। रोजा इंसान को बुराइयों से बचाता है। उन्होंने कहा कि रोजा इंसान के जहनोंफिक्र की गंदगियां दूर करता है। उन्होंने कहा कि रोजा शरीर के हर अंग का रखना होता है। नजर को बुरायों को रोकना, जुबान को गलत बात से रोकना, कानों से बुरी बातों को सुनने से रोकना रोजे में बेहद जरूरी है।
उन्होंने कहा कि अल्लाह ने इंसान को अपनी इबादत के लिए पैदा किया है। बस इंसान का फर्ज है कि वो अपने खालिकोमालिक की इबादत करता रहे और अल् लाह के बंदों की खिदमत करता रहे। इसी का नाम इंसानियत है।
मोहसिने आजम सलल्लाहू अलैह वसल्लम ने अल्लाह की हर मखलूख के साथ मेहरबानी व हमदर्दी करने का हुक्म फरमाया है। इसलिए हर इंसान को जरूरी है कि वह अपने नबी सलल्लाहू अलैह वसल्लम ताला के फरमान पर अमल करे।
हदीस में रोजे को ढाल कहा गया है। ढाल का काम बचाना होता है उसी तरह से रोजा इंसान को गुनाहों से बचाता है। रोजा इंसान को बुराइयों से बचाता है। उन्होंने कहा कि रोजा इंसान के जहनोंफिक्र की गंदगियां दूर करता है। उन्होंने कहा कि रोजा शरीर के हर अंग का रखना होता है। नजर को बुरायों को रोकना, जुबान को गलत बात से रोकना, कानों से बुरी बातों को सुनने से रोकना रोजे में बेहद जरूरी है।
उन्होंने कहा कि अल्लाह ने इंसान को अपनी इबादत के लिए पैदा किया है। बस इंसान का फर्ज है कि वो अपने खालिकोमालिक की इबादत करता रहे और अल् लाह के बंदों की खिदमत करता रहे। इसी का नाम इंसानियत है।
मोहसिने आजम सलल्लाहू अलैह वसल्लम ने अल्लाह की हर मखलूख के साथ मेहरबानी व हमदर्दी करने का हुक्म फरमाया है। इसलिए हर इंसान को जरूरी है कि वह अपने नबी सलल्लाहू अलैह वसल्लम ताला के फरमान पर अमल करे।
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