छोटे कारोबारी,किसान और आम जनता पर बढ़ेगा बोझ, महंगाई डायन खाएगी?
एक जुलाई से शुरू हुई नई कर प्रणाली जीएसटी को लेकर जश्न और विरोध मनाया जा रहा है। केन्द्र सरकार फिलहाल अपने कानून को सबसे अच्छा बताते हुए अनेक लाभ गिना रही है लेकिन उसके होने वाले जनता के नुकसान के बारे में आर्थिक विशेषज्ञ बता रहे हैं। विशेषज्ञों की बातें मानें तो जीएसटी से बड़े कारोबारियों को लाभ होगा छोटे और मझोले कारोबारी संकट में आयेंगे और काम-धंधे बंद हो जाएंगे। बेरोजगारी बढ़ेगी। कृषक पदार्थों और पेट्रो पदार्थों पर जीएसटी के अपरोक्ष हिडेन टैक्स से महंगाई बढ़ेगी। गरीब और गरीब होगा। एक राष्ट्र्र, एक बाजार, एक टैक्स से राज्यों की स्वतंत्रता छिनने का खतरा उत्पन्न हो गया है। कई आलोचक तो इसे डिक्टेटरशिप की शुरुआत बता रहे हैं। पहला ट्रायल नोटबंदी के रूप में सामने आया था। यही नहीं जीएसटी के लगभग छह स्लैबों को मनमाफिक तरीके से इस्तेमाल करने से काला धन फिर बढऩे लगेगा। कुल मिलाकर जीएसटी के परिणाम आम जनता के विपरीत आने वाले हैं। हालांकि सरकार यह कर रही है कि कर वंचक ही इससे घबरा रहे हैं और वे अब कर चोरी नहीं कर पाएंगे। आम जनता को राहत मिलेगी। कर चोरी से से निजात मिलने से जनता से अनाप-शनाप लूट खसोट नहीं कर पाएंगे और सरकार को भी पूरा टैक्स व पूरा हिसाब देना ही होगा।जीएसटी में सभी अप्रत्यक्ष करों को एक जगह ला दिया गया है. ये वो सरलीकरण है जिसके बारे में सरकार बात कर रही है। लेकिन सवाल उठता है कि ये लागू कैसे होगा. जीएसटी पूरी तरह से एक कंप्यूटरीकृत व्यवस्था है. अगर ये कंप्यूटराइज्ड नहीं होता है तो ये लागू नहीं हो सकता है। कंप्यूटराइजेशन में कई तरह की दिक्कतें हैं जो अब सामने आ रही हैं. इसे लेकर व्यापारी तबका और छोटे उद्योगों से जुड़े लोगों का विरोध भी हो रहा है।इसमें यही बात ख़ास है कि सभी कर एक साथ लाए जा रहे हैं.
सरकार एक राष्ट्र, एक टैक्स, एक बाज़ार की बात कर रही है. इसमें ज़ीरो के अलावा टैक्स के चार स्लैब बनाए गए हैं। तो ये एक टैक्स कैसे हुआ जिसमें चार अलग-अलग दर से टैक्स लग रहा है? इसमें एक टैक्स का मतलब ये हुआ कि एक चीज़ पर सारे देश में एक ही टैक्स लगेगा. अभी तक हर प्रांत अपना टैक्स अलग निर्धारित करते थे। आपने अगर कार खरीदी तो हरियाणा में टैक्स कुछ और होगा, उत्तर प्रदेश में कुछ और होगा. नई व्यवस्था में एक कार पर सारे देश में एक ही कर लगेगा लेकिन मेरा मानना है कि इस बात को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है. ऐसा नहीं था कि पहले देश एक नहीं था और अब टैक्स रेट एक हो जाएगा तो देश एक हो जाएगा।
ये सवाल सही है कि चार-पांच टैक्स स्लैब के साथ सेस को जोड़ दें तो छह टैक्स स्लैब हो जाते हैं. ये बात जीएसटी को और जटिल बनाती है। हालांकि सरकार ये कह रही है कि धीरे-धीरे जीएसटी को दो या तीन टैक्स स्लैब पर लाया जाएगा।
देश भर से जीएसटी के जश्न की तस्वीरें भी आ रही हैं तो कहीं-कहीं व्यापारी विरोध और भूख हड़ताल भी कर रहे हैं। जीएसटी के विरोध या समर्थन की वजह समझने के लिए इसकी डिज़ाइन को समझना ज़रूरी है। जीएसटी बड़े पैमाने पर चलने वाले उद्योग को मदद करता है। लेकिन हमारे देश में लार्ज स्केल इंडस्ट्री के अलावा मंझोले और लघु उद्योग भी हैं, साथ ही कुटीर उद्योग भी है. इन सभी सेक्टर्स की ज़रूरतें अलग-अलग हैं। चूंकि इस टैक्स को बड़े उद्योगों के लिए लाया गया है तो मंझोले, छोटे और कुटीर उद्योगों को इससे धक्का लगने वाला है। प्रभावित होने वाले ऐसे लोग इसका विरोध कर रहे हैं. बड़े उद्योगों को इससे फ़ायदा होने वाला है। इस वजह से वे इसका समर्थन कर रहे हैं।भारत ऐसा देश है जहां लोगों के हितों में भी भारी विविधता है, इसलिए कोई इसका समर्थन कर रहा है तो कोई इसका विरोध.।
किसानों को कितना नुकसान?
खाद्यान्न पदार्थों पर तो जीएसटी लागू नहीं है, लेकिन इसके इनपुट्स जैसे उर्वरक, कीटनाशक जैसी चीज़ों पर टैक्स लगेगा। इस वजह से खेती में आने वाला खर्च थोड़ा-बहुत बढ़ सकता है। जीएसटी आने से कृषि की उत्पादकता पर कोई फर्क पड़ता तो ज़रूर फ़ायदा होता, लेकिन इससे न तो कोई ख़ास फ़ायदा है और न कोई बड़ा नुकसान।
पेट्रोल और डीज़ल से राज्य बहुत ज़्यादा राजस्व प्राप्त करते हैं. उनको लगता है कि ये चीज़ें जीएसटी के दायरे में आ गईं तो उनकी आमदनी कम हो जाएगी। उन्हें लगता है कि उन्हें जब भी राजस्व की ज़रूरत होगी, वे इस टैक्स के ज़रिए और टैक्स ले सकते हैं। राज्यों को ये डर भी है कि जीएसटी से उनका टैक्स मिलना कम हो सकता है और केंद्र सरकार इसकी किस हद तक भरपाई करेगी, ये तय नहीं है। इस वजह से राज्य सरकारें पेट्रो गुड्स के मामले में स्वायत्तता खोना नहीं चाहती हैं.
हमारे देश में संघीय ढांचा अपनाया गया है. संविधान में राज्यों को एक स्वायत्तता दी गई है. जीएसटी व्यवस्था राज्यों की स्वायत्ता को खत्म कर रही है। हिमाचल प्रदेश की ज़रूरतें तमिलनाडु से अलग हैं. असम और गुजरात भी अलग-अलग ज़रूरतों वाले राज्य हैं.
पुरानी टैक्स व्यवस्था में हर राज्य के लिए ये मौका था कि वे अपनी ज़रूरतों के मुताबिक टैक्स का फ़ैसला करें. इसीलिए विकेंद्रीकरण की बात होती है। नई व्यवस्था में ये बात ख़त्म हो रही है. जीएसटी में स्थानीय निकायों की आमदनी का रास्ता भी बंद हो गया है. उनके लिए क्या व्यवस्था की गई है, ये अभी पता नहीं है। कश्मीर के सवाल को आप वित्तीय संघवाद के बड़े सवाल से जोड़ सकते हैं। एक तो उन्हें स्पेशल स्टेटस मिला हुआ है और दूसरा वे फ़िस्कल फ़ेडरेलिज़्म का मुद्दा उठा रहे हैं। केसी त्यागी ने कहा कि जीएसटी ऐसी बड़ी घटना नहीं कि केंद्र इतने बड़े पैमाने पर जश्न मनाए।
नीति आयोग के सदस्य और अर्थशास्त्री विवेक देबरॉय ने कहा है कि इससे जीडीपी नहीं बढऩे वाला है। शुरू में ये सोचा गया था कि एक या दो टैक्स स्लैब होंगे, लेकिन अभी ये छह हैं. अगर ये आदर्श रूप में होता तो जीडीपी एक से दो फ़ीसदी तक बढ़ सकती थी।
अब समस्या ये आ रही है कि पांच टैक्स स्लैब में किस वस्तु को कहां रखना है, किससे कितना टैक्स कमाना है। दूसरी समस्या ये है कि किसी वस्तु को ग़लत स्लैब में रखे जाने की ग़लती हो सकती है। इससे काले धन को बढ़ावा मिल सकता है। तीसरी समस्या ये है कि अगर छोटे उद्योग ठप होते हों तो बेरोजग़ारी बढऩे का खतरा है।
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