ग्रेटर नोएडा (ब्यूरो)। सूरजपुर को उच्च शिक्षा की रोशनी से रोशन करने वाले पंडित महाशय यादराम जी को सूरजपुर का सूरज कहा जाए तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। वर्तमान समय में सूरजपुर में उच्च शिक्षा का ढांचा दिख रहा है उसकी बुनियाद पंडित महाशय यादराम जी ने अपनी भूमि दान देने के साथ कड़ी मेहनत करके रखी थी। यही नहीं इन्हीं पंडित महाशय यादराम जी ने ही सुरजपुर में आर्य समाज की स्थापना करवाई और वर्तमान समय में आर्य समाज मंदिर दिख रहा है उसके लिए भी उन्होंने अपनी भूमि दान दी। पंडित महाशय यादराम जी के पौत्र पंडित मूलचंद आर्य उन्हीं के नक्शेकदम चलते हुए समाज सेवा में लगे हुए हैं और आजकल आर्यसमाज मंदिर की साज-सज्जा में तल्लीन हैं।
पंडित महाशय यादराम जी का जन्म सात अगस्त 1907 को हुआ था। वह समाज के उत्थान और शिक्षा के प्रति शुरू से ही लगनशील थे और उनके मन में अक्सर समाज को एकजुट करने और शिक्षाा को बढ़ावा देने के लिए विचार चला करते थे। सूरजपुर में आर्य समाज की स्थापना में स्व. महाशय राम चन्द्र जी वैदिक सिद्धान्ती उर्फ राम मुनि का बहुत बड़ा योगदान रहा है। उन्होने स्वलेख में इसका जिक्र भी किया है। उनके स्वलेख के अनुसार बात वर्ष 1961 की है, जब वह चर्चा शुरू हुई कि सुरजपुर में आर्य समाज की स्थापना होनी चाहिए। उन्होने अपने लेख में बताया कि सूरजपुर में श्री पं. यादराम महाशय जी, पंडित श्री नारायण जी, श्री चन्द्रभान जी, श्री पं. मुंशी लाल जी, श्री पं. भोला राम जी आदि से मिले और सलाह-मशविरा के बाद दिनांक 11 अगस्त 1961 दिन शुक्रवार को सूरजपुर में आर्य समाज की स्थापना की तारीख निश्चित हो गई। इस दिन श्री यशपाल वैद्य जी, श्री चन्दू महाशय जी तिलपता, श्री कमल सिंह आदि की उपस्थिति में श्री यादराम महाशय जी की बैठक में आर्य समाज की स्थापना 11 अगस्त 1961 में आधे भादों की अमावस्या दिन शुक्रवार को कर दी गई। उसके पश्चात प्रत्येक अमावस्या को हवन किया जाने लगा। एक दिन जोरदार वर्षा हो रही थी और श्री महाशय रामचन्द्र जी श्री यादराम जी की बैठक में बैठे हुए थे। तभी उन्होंने महाशय यादराम जी से कहा कि मैं ऐसी वर्षा में बालकों को कहां बैठाकर संध्या हवन, सत्संग करूं और समाज के अन्य उत्सव आदि कहां किएं जाएं? इस पर महाशय यादराम जी न5े कहा कि यदि उत्सव हुआ ओर उसमें श्री स्वामी भीष्म जी, स्वामी श्री रामेश्वरानन्द जी आए तो आर्य समाज मंदिर के लिए जितनी भूमि के लिए वे कहेंगे हम उतनी भूमि समाज को दे देंगे। श्री यादराम जी महाशय की यह बात श्री यशपाल जी वैद्य को श्री राम चन्द्र जी ने बताई। वैद्य जी के समक्ष जब श्री यादराम जी ने भूमि देने की बात कही तो उसके बाद जलसे की तैयारी शुरू हो गई। फिर 5,6, और 7 मार्च 1962 को जलसे की मंजूरी मिल गई। इसी जलसे में श्री स्वामी भीष्म जी, श्री स्वामी रामेश्वरानन्द जी तथा एमपी लोकसभा दिल्ली आए। इन सभी की उपस्थिति में श्री महाशय यादराम जी ने अपने दोनों भाइयों की साजली जमीन आर्य समाज के लिए दान देने की घोषणा कर दी। इसी जमीन पर वर्तमान समय में सूरजपुर में आर्य समाज मंदिर बना हुआ है। तब से यह मंदिर सूरजपुर को धर्म की ज्ञान गंगा का अविरल प्रवाहित कर रहा है। यहां नित्य हवन,यज्ञ एवं ज्ञान की चर्चा होती है। इससे यहां के निवासी लाभान्वित होते हैं। समाज के उत्थान के प्रति प्रयासरत महाशय पं. यादराम जी को सूरजपुर में उच्च शिक्षा की कमी खटक रही थी। इस दौरान 1979 में खवासपुर से पंडित सूरजभान शर्मा सूरजपुर पधारे और उन्होंने जिक्र किया कि वह उच्च शिक्षा के लिए कुछ करना चाहते हैं बशर्ते उन्हें यहां पर पूर्ण सहयोग मिले। इस पर श्री यादराम जी उनके विचारों से सहमत हुए और कहा कि आप पाठशाला शुरू करेों हम पूर्ण सहयोग देंगे। उनकी यह बात मान कर पंडित सूरजभान शर्मा ने आर्य समाज मंदिर में तत्काल कक्षा छह की पढ़ाई शुरू की। इस कक्षा के प्रथम विद्यार्थी पंडित मूल चंन्द्र शर्मा के साथ ओमी, मुकेश और मधुबाला आदि थे। आगे की पढ़ाई न रुके इसके लिए पंडित महाशय यादराम जी ने अपने प्रयास तेज कर दिए जूनियर हाई स्कूल के लिए अपनी जमीन 23 मार्च 1979 को दान देकर शहीद भगत सिंह विद्यालय स्थापित करवाया। इसके साथ ही उन्होंने यमुना खादर के गांव सूरजपुर, मलकपुर, लखनावली, मौजापुर, झट्टा बदौली, हबीबपुर,तुस्याना, तिलपता, देवला, दादरी आदि से अपनी बैलगाड़ी से जा कर लोगों से स्कूल बनवाने के लिए चंदा एकत्र किया। उस जमाने में जिनके पास नकद रुपये देने की क्षमता थी वह दान दिए लेकिन अधिकांश लोगों ने अनाज दान दिया। वह अनाज एकत्र करके दादरी में बेच कर धनराशि जुटाई। उस समय विद्यालय के प्रबंध समिति के अध्यक्ष स्व. बाबूराम, प्रबंधक कालीचरन मलकपुर, ओर कोषाध्यक्ष लाला लक्ष्मण प्रसाद थे।
वर्तमान समय में विद्यालय ने दिन दूनी - रात चौगुनी तरक्की करते हुए इंटर कालेज का रूप धारण कर लिया है, इसमें आसपास के हजारों छात्र-छात्राएं विद्यार्जन कर जनपद का नाम रोशन कर रहे हैं। वर्तमान समय में विद्यालय की प्रबंध समिति में संरक्षक पं. मनोहर लाल शर्मा, अध्यक्ष डॉ. धनीराम देवधर, मैनेजर कालीचरन और कोषाध्यक्ष पं. महेन्द्र आर्य हैं। विद्यालय के वर्तमान रूप में हुए निर्माण कार्य के लिए एस्कॉर्ट कंपनी, ग्रेटर नोएडा अथारिटी और प्रकाश लखनावली ने विशेष सहयोग प्रदान किया है।
पंडित महाशय यादराम जी का जन्म सात अगस्त 1907 को हुआ था। वह समाज के उत्थान और शिक्षा के प्रति शुरू से ही लगनशील थे और उनके मन में अक्सर समाज को एकजुट करने और शिक्षाा को बढ़ावा देने के लिए विचार चला करते थे। सूरजपुर में आर्य समाज की स्थापना में स्व. महाशय राम चन्द्र जी वैदिक सिद्धान्ती उर्फ राम मुनि का बहुत बड़ा योगदान रहा है। उन्होने स्वलेख में इसका जिक्र भी किया है। उनके स्वलेख के अनुसार बात वर्ष 1961 की है, जब वह चर्चा शुरू हुई कि सुरजपुर में आर्य समाज की स्थापना होनी चाहिए। उन्होने अपने लेख में बताया कि सूरजपुर में श्री पं. यादराम महाशय जी, पंडित श्री नारायण जी, श्री चन्द्रभान जी, श्री पं. मुंशी लाल जी, श्री पं. भोला राम जी आदि से मिले और सलाह-मशविरा के बाद दिनांक 11 अगस्त 1961 दिन शुक्रवार को सूरजपुर में आर्य समाज की स्थापना की तारीख निश्चित हो गई। इस दिन श्री यशपाल वैद्य जी, श्री चन्दू महाशय जी तिलपता, श्री कमल सिंह आदि की उपस्थिति में श्री यादराम महाशय जी की बैठक में आर्य समाज की स्थापना 11 अगस्त 1961 में आधे भादों की अमावस्या दिन शुक्रवार को कर दी गई। उसके पश्चात प्रत्येक अमावस्या को हवन किया जाने लगा। एक दिन जोरदार वर्षा हो रही थी और श्री महाशय रामचन्द्र जी श्री यादराम जी की बैठक में बैठे हुए थे। तभी उन्होंने महाशय यादराम जी से कहा कि मैं ऐसी वर्षा में बालकों को कहां बैठाकर संध्या हवन, सत्संग करूं और समाज के अन्य उत्सव आदि कहां किएं जाएं? इस पर महाशय यादराम जी न5े कहा कि यदि उत्सव हुआ ओर उसमें श्री स्वामी भीष्म जी, स्वामी श्री रामेश्वरानन्द जी आए तो आर्य समाज मंदिर के लिए जितनी भूमि के लिए वे कहेंगे हम उतनी भूमि समाज को दे देंगे। श्री यादराम जी महाशय की यह बात श्री यशपाल जी वैद्य को श्री राम चन्द्र जी ने बताई। वैद्य जी के समक्ष जब श्री यादराम जी ने भूमि देने की बात कही तो उसके बाद जलसे की तैयारी शुरू हो गई। फिर 5,6, और 7 मार्च 1962 को जलसे की मंजूरी मिल गई। इसी जलसे में श्री स्वामी भीष्म जी, श्री स्वामी रामेश्वरानन्द जी तथा एमपी लोकसभा दिल्ली आए। इन सभी की उपस्थिति में श्री महाशय यादराम जी ने अपने दोनों भाइयों की साजली जमीन आर्य समाज के लिए दान देने की घोषणा कर दी। इसी जमीन पर वर्तमान समय में सूरजपुर में आर्य समाज मंदिर बना हुआ है। तब से यह मंदिर सूरजपुर को धर्म की ज्ञान गंगा का अविरल प्रवाहित कर रहा है। यहां नित्य हवन,यज्ञ एवं ज्ञान की चर्चा होती है। इससे यहां के निवासी लाभान्वित होते हैं। समाज के उत्थान के प्रति प्रयासरत महाशय पं. यादराम जी को सूरजपुर में उच्च शिक्षा की कमी खटक रही थी। इस दौरान 1979 में खवासपुर से पंडित सूरजभान शर्मा सूरजपुर पधारे और उन्होंने जिक्र किया कि वह उच्च शिक्षा के लिए कुछ करना चाहते हैं बशर्ते उन्हें यहां पर पूर्ण सहयोग मिले। इस पर श्री यादराम जी उनके विचारों से सहमत हुए और कहा कि आप पाठशाला शुरू करेों हम पूर्ण सहयोग देंगे। उनकी यह बात मान कर पंडित सूरजभान शर्मा ने आर्य समाज मंदिर में तत्काल कक्षा छह की पढ़ाई शुरू की। इस कक्षा के प्रथम विद्यार्थी पंडित मूल चंन्द्र शर्मा के साथ ओमी, मुकेश और मधुबाला आदि थे। आगे की पढ़ाई न रुके इसके लिए पंडित महाशय यादराम जी ने अपने प्रयास तेज कर दिए जूनियर हाई स्कूल के लिए अपनी जमीन 23 मार्च 1979 को दान देकर शहीद भगत सिंह विद्यालय स्थापित करवाया। इसके साथ ही उन्होंने यमुना खादर के गांव सूरजपुर, मलकपुर, लखनावली, मौजापुर, झट्टा बदौली, हबीबपुर,तुस्याना, तिलपता, देवला, दादरी आदि से अपनी बैलगाड़ी से जा कर लोगों से स्कूल बनवाने के लिए चंदा एकत्र किया। उस जमाने में जिनके पास नकद रुपये देने की क्षमता थी वह दान दिए लेकिन अधिकांश लोगों ने अनाज दान दिया। वह अनाज एकत्र करके दादरी में बेच कर धनराशि जुटाई। उस समय विद्यालय के प्रबंध समिति के अध्यक्ष स्व. बाबूराम, प्रबंधक कालीचरन मलकपुर, ओर कोषाध्यक्ष लाला लक्ष्मण प्रसाद थे।
वर्तमान समय में विद्यालय ने दिन दूनी - रात चौगुनी तरक्की करते हुए इंटर कालेज का रूप धारण कर लिया है, इसमें आसपास के हजारों छात्र-छात्राएं विद्यार्जन कर जनपद का नाम रोशन कर रहे हैं। वर्तमान समय में विद्यालय की प्रबंध समिति में संरक्षक पं. मनोहर लाल शर्मा, अध्यक्ष डॉ. धनीराम देवधर, मैनेजर कालीचरन और कोषाध्यक्ष पं. महेन्द्र आर्य हैं। विद्यालय के वर्तमान रूप में हुए निर्माण कार्य के लिए एस्कॉर्ट कंपनी, ग्रेटर नोएडा अथारिटी और प्रकाश लखनावली ने विशेष सहयोग प्रदान किया है।
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