कहां से आया और कैसे फैला, विशेषज्ञ भी नहीं बच सके इसकी मार सेग्र्रेटर नोएडा (डीएलई)।आजकल सुर्खियों मे आया इबोला वा्रयरस दक्षिण अफ्रीका से आने वालों के साथ भारत में आ रहा है।
यह वायरस बहुत ही खतरनाक है और इससे बहुत तेज बुखार होता हे और यह जानलेवा होता है। इस बीमार के होने से अचानक सरदर्द, शरीर में दर्द और बुखार हो जाता है। इसके साथ ही बीमारी के दौरान शरीर में दाने पडऩे शुरू हो जाते हैं। जो कभी भी वहां से खून निकलने लगता है और मरीज (ह्यद्धशद्म)शाक में चला जाता है।
यह बीमारी एक मरीज से शुरू होती है और चारों तरफ फैल जाती है। अधिकतर इस बीमारी के चपेट में वह लोग आते हैं जो रोगग्रस्त लोगों के आस-पास रहते हैँ।
इबोला वायरस की चार जातियां पाईं जातीं हैं। उनके नाम इस प्रकार है:- (1) जैके, (2) सूडान, (3) कोट डी इवायर और चौथी रेस्टान है। रेस्टान वायरस की बीमानी फिलीपीन्स से दूसरे देशों में फैली है।
इस बीमारी का सबसे पहले पता 1967 में जर्मनी में उस समय पता पलगा जब कुछ बन्दर (ब्ल्यू मंकी) यूगांडा से जर्मनी रिर्स के लिए लाए गए थे। इस कार्य में 25 संबंधित विशेषज्ञ अपनी सेवाएं दे रहे थे। उनमें से सात लोगों की मृत्यु हो गई थी। यह कार्य करने वाले उनके बड़ी नजदीक रहते थे। जो बचे थे उनें एक पत्नी इस बीमारी से ग्रसित हो गई थी। जांच करने पर पता चला कि आदमी के वीर्य में यह वायरस मिला था।
फिर 1999 में कांगों में सोने की खान में काम करने वालों के मारबर्ग वायरस का पता लगा था और यह बहुत ही खतरनाक था। साथ के लोगों को सफाई करने को कहा गया। यह भी इबोला जाति का वायरस है। फिर मारबर्ग वायरस से 2004-2005 में 258 केस अंगोला में मिले जो कि इबोला वायरस से मिलते जुलते थे। इससे करीब 90 प्रतिशत लोग मर गए थे। इसके बाद 1976 में 550 केस जायरे और सूडान में इबोला वायरस के मिले। यह बीमारी आदमी से आदमी को मिली थी क्योंकि वहां पर गंदी सिरिंज से इंजेक्षन दिया गया और सफाई नहीं रखी गई।
कांगो में 317 केस मिले जिनमें से 88 प्रतिशत लोग इसी इबोला वायरस से मर गए थे। यह वाकया 1995 का है। यहां पर यह पाया गया कि उनमें सफाई नहीं अपनाई गई और खाने-पीने में भी सावधानी नही बरती गई। एक साथ पानी पीना और खाना बीमारी फैलने का बहुत बड़ा कारण बना। फिर अंतरराष्ट्रीय सहायता से उन्होंने वहां अस्पताल बंद करवाए। नांक से फैलने वाली यह बीमारी बंद हो गई। फिर गाम्बिया में यह बीमारी 1994-2003 के बीच घने जंगलों में मिली। 1996 में एक डाक्टर दक्षिण अफ्रीका और एक नर्स इबोला वायरस से बचाने के लिए अच्छी इन्सेन्टिव केयर के बाद भी नहीं बचाए जा सके।उनमें भी यह वायरस मिला। वर्ष 2000-2001 में सूडान इबोला वायरस ने 224 लोगों की यूगांडा में जान ले ली। 1989 में रेस्टन इबोला वायरस की रिसर्च के लिए कुछ बंदर फिलीपींस से अमेरिका लाए गए थे उनमें से यह बीमारी मिली थी। बाद में इन बंदरों को मारा गया। इबोला वायरस चमगादड़ में रहता है। उनसे यह बीमारी मनुष्यों में फैलती है। इबोला वायरस से ग्रस्त रोगी के पसीने और उसके साथ पानी पीने से फैलती है। इनका इनक्यूवेशन समय 3-16 दिनों के बीच होता है। इसमें मनुष्य को बुखार, सरदर्द, शरीर दर्द, जी मिचलाना, और उलटी होती है। बुखार के साथ-साथ दस्त भी आने लगते हैँ।
छाती में भी दर्द होने लगता है और खांसी भी परेशान करने लगती है। इसके अलावा अंग्रेजों की खाल में से ऊपर दाने दिखाई देने लगते हैं। इन दानों से खून निकलने लगता है। किसी-किसी को बहुत ज्यादा खून की उलटी होने लगती है। साथ ही चेहरे और गर्दन पर सूजन आ जाती है। लीवर बढ़ जाता है और गले मेें खरास हो जाती है। इसके बचाव के लिए अभी जो वैक्सीन बनीं वह मनुष्यों पर कारगर नहीं हो पाई है। उपचार से बेहतर होगा कि जहां तक हो सके इस बीमारी से खुद को बचाएं।
डॉ. बी.एन. सचान
बीएससी. एमबीबीएस. एक्स पीएमस
रोशन हास्पिटल, ग्रेटर नोएडा।
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