गाय को पवित्र क्यों माना जाता है? गौ माता की पूजा क्यों की जाती है? गौ माता की रक्षा क्यों की जाती है? गौ माता के लिए आज उसकी हत्या करने वालों और रक्षा करने वालों के बीच युद्ध चल रहा है। हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी इस युद्ध में बीच-बचाव करने की मुद्रा में कूद पड़े हैं। जबकि कानून व्यवस्था को मजबूत करना चाहिए। पुलिस एवं नागरिक प्रशासन को इतना सतर्क कर देना चाहिए कि गौ हत्या और गौ रक्षा के लिए नागरिक हिंसा की नौबत ही न आए। आइए गाय के महत्व और गौ माता को लेकर एक पुरातन कहानी का बयान करते हैं, जो इस प्रकार है:-
एक दिन राजा विश्वामित्र अपनी सेना को लेकर वशिष्ठ ऋषि के आश्रम में गए। विश्वामित्र जी उन्हें प्रणाम करके वहीं बैठ गए। वशिष्ठ जी ने विश्वामित्र जी का यथोचित आदर सत्कार किया और उनसे कुछ दिन आश्रम में ही रह कर आतिथ्य ग्रहण करने का अनुरोध किया। इस पर यह विचार करके कि मेरे साथ विशाल सेना है और सेना सहित मेरा आतिथ्य करने में वशिष्ठ जी को कष्ट होगा। विश्वामित्र जी ने नम्रतापूर्वक जाने की अनुमति माँगी किन्तु वशिष्ठ जी के अत्यधिक अनुरोध करने पर थोड़े दिनों के लिए उनका आतिथ्य स्वीकार कर लिया।
वशिष्ठ जी ने नंदिनी गौ का आह्वान करके विश्वामित्र तथा उनकी सेना के लिए छह प्रकार के व्यंजन तथा समस्त प्रकार की सुख-सुविधा की व्यवस्था कर दी। वशिष्ठ जी के आतिथ्य से विश्वामित्र और उनके साथ आए सभी लोग बहुत प्रसन्न हुए।
नंदिनी गौ का चमत्कार देखकर विश्वामित्र ने उस गौ को वशिष्ठ जी से माँगा पर वशिष्ठ जी बोले राजन! यह गौ मेरा जीवन है और इसे मैं किसी भी कीमत पर किसी को नहीं दे सकता।
वशिष्ठ जी के इस प्रकार कहने पर विश्वामित्र ने बलात् उस गौ को पकड़ लेने का आदेश दे दिया और उसके सैनिक उस गौ को डण्डे से मार-मार कर हाँकने लगे। नंदिनी गौ ने क्रोधित होकर उन सैनिकों से अपना बन्धन छुड़ा लिया और वशिष्ठ जी के पास आकर विलाप करने लगी। वशिष्ठ जी बोले कि हे नंदिनी! यह राजा मेरा अतिथि है इसलिये मैं इसको शाप भी नहीं दे सकता और इसके पास विशाल सेना होने के कारण इससे युद्ध में भी विजय प्राप्त नहीं कर सकता। मैं स्वयं को विवश अनुभव कर रहा हूँ। उनके इन वचनों को सुन कर नंदिनी ने कहा कि हे ब्रह्मर्षि! एक ब्राह्मण के बल के सामने क्षत्रिय का बल कभी
श्रेष्ठ नहीं हो सकता। आप मुझे आज्ञा दीजिए, मैं एक क्षण में इस क्षत्रिय राजा को उसकी विशाल सेनासहित नष्ट कर दूँगी। और कोई उपाय न देख कर वशिष्ठ जी ने नंदिनी को अनुमति दे दी।
आज्ञा पाते ही नंदिनी ने योगबल से अत्यंत पराक्रमी मारक शस्त्रास्त्रों से युक्त पराक्रमी योद्धाओं को उत्पन्न किया,जिन्होंने शीघ्र ही शत्रु सेना को गाजर-मूली की भाँति काटना आरम्भ कर दिया। अपनी सेना का नाश होते देख विश्वामित्र के सौ पुत्र अत्यन्त कुपित हो वशिष्ठ जी को मारने दौड़े। वशिष्ठ जी ने उनमें से एक पुत्र को छोड़ कर शेष सभी को भस्म कर दिया।
अपनी सेना तथा पुत्रों के नष्ट हो जाने से विश्वामित्र बड़े दु:खी हुए। अपने बचे हुए पुत्र को राज सिंहासन सौंप कर वे तपस्या करने के लिए हिमालय की कन्दराओं में चले गए।
एक दिन राजा विश्वामित्र अपनी सेना को लेकर वशिष्ठ ऋषि के आश्रम में गए। विश्वामित्र जी उन्हें प्रणाम करके वहीं बैठ गए। वशिष्ठ जी ने विश्वामित्र जी का यथोचित आदर सत्कार किया और उनसे कुछ दिन आश्रम में ही रह कर आतिथ्य ग्रहण करने का अनुरोध किया। इस पर यह विचार करके कि मेरे साथ विशाल सेना है और सेना सहित मेरा आतिथ्य करने में वशिष्ठ जी को कष्ट होगा। विश्वामित्र जी ने नम्रतापूर्वक जाने की अनुमति माँगी किन्तु वशिष्ठ जी के अत्यधिक अनुरोध करने पर थोड़े दिनों के लिए उनका आतिथ्य स्वीकार कर लिया।
वशिष्ठ जी ने नंदिनी गौ का आह्वान करके विश्वामित्र तथा उनकी सेना के लिए छह प्रकार के व्यंजन तथा समस्त प्रकार की सुख-सुविधा की व्यवस्था कर दी। वशिष्ठ जी के आतिथ्य से विश्वामित्र और उनके साथ आए सभी लोग बहुत प्रसन्न हुए।
नंदिनी गौ का चमत्कार देखकर विश्वामित्र ने उस गौ को वशिष्ठ जी से माँगा पर वशिष्ठ जी बोले राजन! यह गौ मेरा जीवन है और इसे मैं किसी भी कीमत पर किसी को नहीं दे सकता।
वशिष्ठ जी के इस प्रकार कहने पर विश्वामित्र ने बलात् उस गौ को पकड़ लेने का आदेश दे दिया और उसके सैनिक उस गौ को डण्डे से मार-मार कर हाँकने लगे। नंदिनी गौ ने क्रोधित होकर उन सैनिकों से अपना बन्धन छुड़ा लिया और वशिष्ठ जी के पास आकर विलाप करने लगी। वशिष्ठ जी बोले कि हे नंदिनी! यह राजा मेरा अतिथि है इसलिये मैं इसको शाप भी नहीं दे सकता और इसके पास विशाल सेना होने के कारण इससे युद्ध में भी विजय प्राप्त नहीं कर सकता। मैं स्वयं को विवश अनुभव कर रहा हूँ। उनके इन वचनों को सुन कर नंदिनी ने कहा कि हे ब्रह्मर्षि! एक ब्राह्मण के बल के सामने क्षत्रिय का बल कभी
श्रेष्ठ नहीं हो सकता। आप मुझे आज्ञा दीजिए, मैं एक क्षण में इस क्षत्रिय राजा को उसकी विशाल सेनासहित नष्ट कर दूँगी। और कोई उपाय न देख कर वशिष्ठ जी ने नंदिनी को अनुमति दे दी।
आज्ञा पाते ही नंदिनी ने योगबल से अत्यंत पराक्रमी मारक शस्त्रास्त्रों से युक्त पराक्रमी योद्धाओं को उत्पन्न किया,जिन्होंने शीघ्र ही शत्रु सेना को गाजर-मूली की भाँति काटना आरम्भ कर दिया। अपनी सेना का नाश होते देख विश्वामित्र के सौ पुत्र अत्यन्त कुपित हो वशिष्ठ जी को मारने दौड़े। वशिष्ठ जी ने उनमें से एक पुत्र को छोड़ कर शेष सभी को भस्म कर दिया।
अपनी सेना तथा पुत्रों के नष्ट हो जाने से विश्वामित्र बड़े दु:खी हुए। अपने बचे हुए पुत्र को राज सिंहासन सौंप कर वे तपस्या करने के लिए हिमालय की कन्दराओं में चले गए।
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