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Sunday, 25 June 2017

इमरजेंसी से कम नहीं है मोदी राज?

इंदिरा जैसी हिम्मत दिखाने की गलती कोई नहीं कर सकता

आज लोग यह तेज़ी से महसूस कर रहे हैं कि अगर दशकों पहले इंदिरा गांधी का एकक्षत्र राज था तो आज की तारीख में यही राज नरेंद्र मोदी का है। ज़्यादतर अख़बारों और टेलीविजऩ चैनलों ने उनके काम करने को तरीके को मान लिया है जैसा कि इंदिरा गांधी के वक़्त में कर लिया था। हालांकि नरेंद्र मोदी का एकक्षत्र राज इस मामले में और बदतर हो गया है कि बीजेपी सरकार के किसी भी कैबिनेट मंत्री की कोई अहमियत नहीं रह गई है और कैबिनेट की सहमति सिर्फ कागज़ी कार्रवाई बन कर रह गई है। सभी राजनीतिक दलों को एकजुट होकर किसी भी इमरजेंसी जैसे हालात की मुखालफ़त करनी चाहिए जैसा कि पहले भी कर चुके हैं। लेकिन अरुण जेटली जैसे लोग जो इमरजेंसी के दौर को देख चुके है और उसके भुक्तभोगी रह चुके हैं, मौजूदा हालात में उनकी सोच संघ के हिसाब से नहीं निर्देशित हो सकती है। उन्हें इमरजेंसी के दौरान जेल भी हुई थी। यह कल्पना करना भी मुश्किल है कि इमरजेंसी फिर से लागू होगा क्योंकि जनता सरकार ने संविधान में संशोधन करके इसे असंभव कर दिया है।
फिर भी ऐसे हालात बनाए जा सकते हैं जो बिना किसी क़ानूनी दायरे के इमरजेंसी जैसे नतीजे में तब्दील हो जाए। जनमत इतना मज़बूत बन चुका है कि अब इमरजेंसी जैसा क़दम संभव नहीं है. लोग सडक़ों पर किसी भी उस सरकार के खिलाफ़ निकल सकते हैं जो निरंकुश या इमरजेंसी जैसे हालात पैदा करते हुए लगेंगे।  वाकई में जो बात मायने रखती है. वो है संस्थानों की मज़बूती. इमरजेंसी के पहले की तरह भले ही संविधानिक संस्थानों की मज़बूती ना रह गई हो लेकिन ये संविधानिक संस्थान अभी भी इतने मज़बूत हैं जो उनकी आज़ादी छिनने वाले किसी भी क़दम की मजबूत मुखालफ़त कर सकते हैं।
हाल ही में कुछ ऐसे उदाहरण दिखे हैं जो इस उम्मीद को पुख़्ता करते हैं। इस मामले में उत्तराखंड का मामला देखा जा सकता है। विधानसभा में शक्ति परीक्षण के दिन पहले ही सदन को भंग कर दिया गया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने गर्वनर के आदेश को पलटते हुए सदन को फिर से बहाल किया। एक और मामले को देखे। महाराष्ट्र के हाई कोर्ट ने एक केस में सेंसर बोर्ड को चेतावनी दी कि वो दादी मां जैसा व्यवहार करना बंद करे और काटने-छांटने पर ज़ोर देने के बजाए फि़ल्मों को प्रमाणपत्र देने के अपने काम पर ज़्यादा ध्यान दें। इस केस में सेंसर बोर्ड की ओर से 90 कट के प्रस्ताव को खारिज करते हुए कोर्ट ने सिर्फ़ एक कट की इजाज़त दी थी। इसने आलोचकों को एक हिम्मत दी कि संविधानिक संस्थानों में सुधार हो रहे हैं और आने वाले समय में उनमें इतनी ताक़त आ जाएगी जैसी कि इमरजेंसी से पहले होती थी।

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