हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभा चुनाव के मैदान में भाजपा अब वास्तव में आगे और कांग्रेस पिछड़ती नजर आ रही है। हालांकि कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अकेले दम पर भाजपा को बैकफुट पर ला दिया था। अपनी अमेरिकी यात्रा के दौरान जिस तरह से राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर अपने प्रहार किए वह काफी धारदार थे। यही नहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गढ़ गुजरात में जिस तरीके से राहुल गांधी ने मतदाताओं के बीच पैठ बनाने की कोशिश की वह तारीफेकाबिल है। इसी वजह से भाजपा का हाईकमान चिंतित हो उठा। इसी चिंता से सराबोर होकर प्रधानमंत्री ने अपने तरकश से तीर निकाल कर गुजरात और हिमाचल प्रदेश दोनों को ही अपनी ओर आकर्षित किया है वह यह बता रहा है कि देश में चल रहा 2014 से मोदी तिलिस्म अभी खत्म नहीं हुआ है। आर्थिक मंदी की खबरों ने लोगों को परेशान किया और लोग मोदी के विरोध खड़े भी हो रहे थे लेकिन मोदी सरकार जिस तरह से आर्थिक मंदी के मुद्दे को ठंडे बस्ते में डालकर राष्ट्रप्रेम के मुद्दे आगे ले कर आई है। उसने राहुल गांधी की रणनीति को फेल कर दिया है। हालांकि सोमवार को कांग्रेस की जीएसटी व नोटबंदी पर हुई बड़ी बैठक के बाद राहुल गांधी ने जिस तरह से मोदी सरकार पर वार किया था। वह यह समझ कर किया कि वह भाजपा को आर्थिक मोर्चे पर घेर कर सफलता हासिल कर लेंगे। उन्होंने नोटबंदी और जीएसटी को तारपीडो और बम तक करार दिया लेकिन उनकी आवाज को अच्छी तरह से सुना ही नहीं गया बल्कि मोदी और शाह की आवाज बुलंद हो गई। अभी तक का चुनावी गणित यही कहता है कि यही दशा रही तो गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव को लेकर आ रहे विभिन्न एजेंसियों के सर्वे सही साबित होंगे। यदि इसमें किसी तरह का मोड़ कांगे्रस ला पाता है तो अवश्य ही परिवर्तन हो सकता है। हालांकि ये चुनाव कांग्रेस बनाम भाजपा ही हो रहे हेँ। अन्य दलों की कोई भूमिका नजर नहीं आ रही है। कांग्रेस के साथ महाराष्ट्र से शिवसेना अवश्य खडी दिखाई देती है, लेकिन दोनों की विचारधारा में जमीन आसमान का अंतर है और इस साथ का इन चुनावों पर कोई प्रत्यक्ष असर पड़ता नहीं दिखाई दे रहा है। राहुल की स्थिति को समझकर ही गुजरात के पाटीदार व अन्य समाज के नेता अनावश्यक दबाव बना रहे हैं। वे ऐसी मांगे सामने रख रहे हैं जिनको पूरा कर पाना असंभव है। कांग्रेस हाईकमान को पहले ही सोच समझ कर काम करना चाहिए था। कांग्रेस ने ऐसा भानुमती का कुनबा जोडऩे की कोशिश की, जिसका नाकाम होना तय ही माना जा रहा था। गुजरात चुनाव को लेकर एक हफ्ते पहले तक कांग्रेस के राहुल गांधी ड्राइविंग सीट पर थे वहीं अब मोदी ने उस सीट पर कब्जा कर लिया है। जनता का रुख क्या आता है, यह तो वक्त ही बता सकता है। क्योंकि अभी तो चुनाव होने में काफी वक्त है। तब तक को बहुत कुछ हो सकता है।
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Tuesday, 31 October 2017
दमदार बैट्री है नोकिया-2 की
नोकिया कंपनी के मोबाइल फोन खरीदने वालों को काफी दिनों से इस सस्ते हैंडसेट नोकिया-2 का इंतजार था। आज बुधवार को इसकी लांचिंग हो गई। इस हैंडसेट की सबसे बड़ी खूबी इसकी दमदार 4100 एमएएच की बैट्री बताई जा रही है। इस हैंडसेट के दाम 7000 से 7500 के बीच बताए जा रहे हैं। इस हैंडसेट का मुकाबला मोटो सी और शाओमी रेडमी 4 से बताया जा रहा है।
युवाओं को आजकल अपने हैंडसेट में स्पेस अधिक चाहिए। नोकिया ने स्पेस एक जीबी और आठ जीबी कर रखा है जबकि इस स्पेस वाले मोटो सी के हैंडसेट के रेट 5200 रुपये हैं। ऐसी स्थिति में लोग नोकिया खरीदेंगे या मोटो सी, इस बात का अनुमान स्वयं कंपनी लगाए। केवल बैट्री की कीमत पर अब लोग हैंडसेट नहीं खरीदना चाहते। अब तो लोग हैंडसेट में सभी सुविधाओं के साथ अधिक से अधिक सुविधाओं वाला हैंडसेट खरीदना चाहते हैं।
नोकिया 2 एंड्रायड 7.1.1 नॉगट आपरेटिंग सिस्टम पर रन करता है और इसमें जल्द ही एंड्रॉयड 8.0 ओरिया का अपडेट किया जाएगा। फोन में 5 इंच का एचडी रेजोल्यूशन वाली 16:9 ऐस्पेक्ट रेशियो वाली एलटीपीएस स्क्रीन दी गई है। कंपनी ने दावा किया है कि इस स्मार्ट फोन में दी गई 4100 एमएएच की बैट्री दो दिनों तक चलेगी। इस हैंडसेट में 1 जीबी की रेम और 8 जीबी की इनबिल्ट स्टोरेज दी गई हेै। नोकिया-2 में 5 मेगापिक्सल का फिक्सड फोकस फ्रंट कैमरा और 8 मेगापिक्सल का आटोफोकस रियर कैमरा एलईडी फ्लैश के साथ मिलेगा। इस फोन की सबसे कमी यही बताई जा रही है कि हैंडसेट की रैम एक जीबी है जबकि अन्य हैंडसेट में 2 जीबी और 16 जीबी की दी हुई है।
सस्ता है मोटो सी
मात्र 5,199 रुपये वाले मोटो सी में 5 इंच की डिस्पले स्क्रीन है। एंड्रायड 7.0 नॉगट पर सिस्टम रन करता है। कैमरा दो एमपी और 5 एमपी का रियर कैमरा है। इस हैंडसेट में एक जीबी रैम और 17 जीबी रोम है। इसकी बैटरी कमजोर है। बैट्री केवल 2350 एमएएच की है। हालांकि 6,999 के मोटोसी हैंडसेट में 2 जीबी की रैम दी हुई है।
रेडमी-4 भी नहीं है कमजोर
नवंबर 2016 में लांच हुए शाओमी का रेडमी-4 हैडसेट भी 6,999 रुपये का है। इस सेट में 5 इंच की स्कूली है। इसमें 3 जीबी की रैम है। फोन पैक में 32 जीबी तक की इंटरनल स्टोरेज है। इसे माइक्रो एसटी कार्ड से 128 जीबी तक एक्सपेंड किया जा सकता है। इस हैंडसेट में 5 मेगा पिक्सल का सेल्फी कैमरा और 13 मेगा पिक्सल का रियर कैमरा है। इ हैंडसेट में 4100 एमएएच की बैट्री है। लेकिन यह बैट्री हैंडसेट में ही इन्सटाल्ड है। इसके अलावा इस फोन की खूबियों की लम्बी फेहरिस्त है। या यूं कहें कि आजकल के युवाओं को जो कुछ भी हैंडसेट में चाहिए वह सब कुछ है।
युवाओं को आजकल अपने हैंडसेट में स्पेस अधिक चाहिए। नोकिया ने स्पेस एक जीबी और आठ जीबी कर रखा है जबकि इस स्पेस वाले मोटो सी के हैंडसेट के रेट 5200 रुपये हैं। ऐसी स्थिति में लोग नोकिया खरीदेंगे या मोटो सी, इस बात का अनुमान स्वयं कंपनी लगाए। केवल बैट्री की कीमत पर अब लोग हैंडसेट नहीं खरीदना चाहते। अब तो लोग हैंडसेट में सभी सुविधाओं के साथ अधिक से अधिक सुविधाओं वाला हैंडसेट खरीदना चाहते हैं।
नोकिया 2 एंड्रायड 7.1.1 नॉगट आपरेटिंग सिस्टम पर रन करता है और इसमें जल्द ही एंड्रॉयड 8.0 ओरिया का अपडेट किया जाएगा। फोन में 5 इंच का एचडी रेजोल्यूशन वाली 16:9 ऐस्पेक्ट रेशियो वाली एलटीपीएस स्क्रीन दी गई है। कंपनी ने दावा किया है कि इस स्मार्ट फोन में दी गई 4100 एमएएच की बैट्री दो दिनों तक चलेगी। इस हैंडसेट में 1 जीबी की रेम और 8 जीबी की इनबिल्ट स्टोरेज दी गई हेै। नोकिया-2 में 5 मेगापिक्सल का फिक्सड फोकस फ्रंट कैमरा और 8 मेगापिक्सल का आटोफोकस रियर कैमरा एलईडी फ्लैश के साथ मिलेगा। इस फोन की सबसे कमी यही बताई जा रही है कि हैंडसेट की रैम एक जीबी है जबकि अन्य हैंडसेट में 2 जीबी और 16 जीबी की दी हुई है।
सस्ता है मोटो सी
मात्र 5,199 रुपये वाले मोटो सी में 5 इंच की डिस्पले स्क्रीन है। एंड्रायड 7.0 नॉगट पर सिस्टम रन करता है। कैमरा दो एमपी और 5 एमपी का रियर कैमरा है। इस हैंडसेट में एक जीबी रैम और 17 जीबी रोम है। इसकी बैटरी कमजोर है। बैट्री केवल 2350 एमएएच की है। हालांकि 6,999 के मोटोसी हैंडसेट में 2 जीबी की रैम दी हुई है।
रेडमी-4 भी नहीं है कमजोर
नवंबर 2016 में लांच हुए शाओमी का रेडमी-4 हैडसेट भी 6,999 रुपये का है। इस सेट में 5 इंच की स्कूली है। इसमें 3 जीबी की रैम है। फोन पैक में 32 जीबी तक की इंटरनल स्टोरेज है। इसे माइक्रो एसटी कार्ड से 128 जीबी तक एक्सपेंड किया जा सकता है। इस हैंडसेट में 5 मेगा पिक्सल का सेल्फी कैमरा और 13 मेगा पिक्सल का रियर कैमरा है। इ हैंडसेट में 4100 एमएएच की बैट्री है। लेकिन यह बैट्री हैंडसेट में ही इन्सटाल्ड है। इसके अलावा इस फोन की खूबियों की लम्बी फेहरिस्त है। या यूं कहें कि आजकल के युवाओं को जो कुछ भी हैंडसेट में चाहिए वह सब कुछ है।
Saturday, 28 October 2017
अखिलेश के बढ़ते कदमों को थामना होगा भाजपा को
उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। सभी दलों में खलबली मच चुकी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस अतिविश्वास से अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा है कि 2019 की चिंता छोड़ो और 2024 की तैयारी में लग जाओ, वह कहीं भारी न पड़ जाए। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार अच्छा कार्य कर रही है, लेकिन यहां चाटुकारों के चलते उसकी किरकिरी भी हो रही है। ऐसे में 2014 के चुनावों में अपना सब कुछ गंवाए सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपनी नई पारी कुछ ज्यादा ही जोश से शुरू की है। इलाहाबाद विश्व विद्यालय के छात्रसंघ के चुनाव में सपा को मिली सफलता से उन्हें संजीवनी मिल गई है। इस बीच निकाय चुनाव में मची दलों के भगदड़ में सपा को काफी लाभ मिल रहा है। इससे यह टैम्पो बन रहा है कि निकाय चुनावों में सपा चौँकाने वाले परिणाम दे सकती है। यदि यह सच रहा तो मोदी के लिए 2019 का आम चुनाव कम से कम उत्तर प्रदेश में महंगा पड़ सकता है। उसका कारण योगी सरकार की कार्यशैली से असंतुष्ट जनता और टिकट की मारामारी से असंतुष्ट पार्टी नेता अपना बागी रोल तो निभायेंगे। ऐसे में भाजपा को उतनी प्रचंड जीत नहीं मिल पाएगी जितनी 2014 में मिल चुकी है। वैसे भी यह कहा जा रहा है कि 2014 में जीत भाजपा को नहीं बल्कि सपा के हिन्दू विरोधी रवैये से सफलता मिली थी। रहा सवाल उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का तो वह तो सभी के सामने स्पष्ट है कि सपा के यादव कुनबे में महाभारत न होती तो भाजपा का परिणाम इतना सकारात्मक न होता। यह तो चुनाव से पहले भाजपा नेता स्वयं ही स्वीकार रहे थे।
क्या कांग्रेस से सबक लेगी भाजपा?
चेहरा से बड़ा कद होगा पार्टी का या...
भारतीय जनता पार्टी आजकल सफलता की सीढिय़ों पर लगातार अग्रसर है। इस सफलता का श्रेय भाजपा की जगह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दें तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। लेकिन यहां पर यह गहन मंथन करने की आवश्यकता है कि भाजपा क्या हमेशा लोकप्रिय चेहरे पर निर्भर रहेगी। इतिहास में झांके तो दूसरी बार यह सफलता भाजपा को नहीं लोकप्रिय चेहरे को मिली है। इससे पहले अटल बिहारी वाजपेयी का चेहरा था अब नरेन्द्र मोदी का चेहरा है। यही कुछ किस्सा कांग्रेस का है। कांग्रेस के पास जब तक लोकप्रिय चेहरा रहा तब तक वह सत्ता की सीढिय़ों पर चढ़ती रही। इसके अलावा कांग्रेस को दो मौके सहानुभूति लहर के मिले। पार्टी इन अवसरों को भुनाने की जगह सत्ता को अपनी बपौती मान बैठी। जनता को विकल्पविहीन मान बैठी। हालांकि जनता ने इसी कांग्रेस को सहानुभूति लहर का लाभ देते हुए 10 वर्ष तक झेला। झेला इसलिए कहेंगे कि जनता की आवाज को कोई सुनने वाला नहीं था और न ही कोई जवाब देने वाला था। प्रधानमंत्री पद पर मनमोहन सिंह नेता कम अधिकारी अधिक थे। अधिकारी काम करता है और नेता बोलता है। अधिकारी की भूमिका मनमोहन सिंह ने अच्छी निभाई परन्तु एक परिपक्व नेता की भूमिका जो राहुल गांधी को निभानी चाहिए थी, उसकी जगह बचकानी हरकत करते नजर आए। और देश के प्रधानमंत्री को अपनी पार्टी और अपने परिवार का नौकर की तरह ट्रीट किया। मनमोहन सिंह की सत्ता के दूसरे कार्यकाल में तो अति ही कर दी। किंगमेकर की तरह सरकार को रोज-रोज डांटना फटकारना, वह भी पब्लिकली। इस पर मनमोहन सिंह जब सत्ता में शामिल होने को कहते, उप प्रधानमंत्री बनने को कहते, प्रधानमंत्री पद की पेशकश तक की, तब चुप रहे। यह सब नजारा जनता से छिपा भी नहीं रहा। इसका असर आज जो दिख रहा है वह सब सामने है। आज गुजरात के चुनाव में कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी पूरा जोर लगा रहे हैं लेकिन हालात यह है कि हार्दिक पटेल उनसे ज्यादा लोकप्रिय हैं और कांग्रेस को धमकी दे रहे हैं। कांग्रेस के पास इंदिरा गांधी का चेहरा था, सत्ता में लगातार रही, उसके बाद सहानुभूति लहर से राजीव गांधी सत्ता में आए और चले गए। दूसरी बार वह अपनी मेहनत और लोकप्रियता के चलते सत्ता में आते-आते रह गए। आने वाले ही थे कि ईश्वर ने उनके साथ बहुत दुखद हादसा कर दिया। इसके बाद सहानुभूति लहर में कांग्रेस फिर सत्ता में आई लेकिन चेहरा राजीव गांधी का ही रहा। इसके बाद जो दुर्गति कांग्रेस की हुुई वह सब जानते ही हैं। अब सवाल भाजपा का है कि क्या वह कांग्रेस से सबक लेना चाहेगी। क्या वह लोकप्रिय चेहरे को पार्टी से ऊपर रखेगी या पार्टी का कद बढ़ाएगी। गुजरात के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोद को जरूर समझ में आ रहा होगा कि चेहरा अब पार्टी पर भारी पड़ रहा है। उनके स्वयं के सिवाय कोई और जनता के बीच लोकप्रिय नहीं है और इसलिए मोदी को गुजरात में अधिक जोर लगाना पड़ रहा है। बेहतर तो यही होगा कि मोदी अभी से अपने चेहरे से अधिक भाजपा को अधिक लोकप्रिय बनाएं तो पार्टी का भविष्य उज्ज्वल हो सकता है क्योंकि मोदी का चेहरा कब तक लोकप्रिय रहेगा कोई नहीं जानता। शायद इसकी शुरुआत जल्द ही हो। वरना भाजपा के कांग्रेस बनते देर नहीं लगेगी।Friday, 27 October 2017
निकाय चुनाव अगले माह, होगा दिग्गजों का पॉलिटिकल टेस्ट
उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है। इन चुनावों से भाजपा की ओर से सीएम योगी आदित्यनाथ, कांग्रेस की ओर राहुल गांधी, सपा की ओर से अखिलेश यादव व बसपा की ओर से सुश्री मायावती की कड़ी परीक्षा होगी। युपी के इस चुनाव को 2019 के आम चुनाव का मिनी चुनाव माना जा रहा है क्योंकि इन्ही चुनाव से आम चुनाव के लिए राजनीतिक दलों की नींव रखी जाएगी।
चुनाव तीन चरण में होगा। पहले चरण की वोटिंग 22 नवंबर, दूसरा 26 नवंबर और तीसरे चरण की वोटिंग 29 नवंबर को होगी। चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ प्रदेश में आचार संहिता लागू हो गई है। यूपी के राज्य निर्वाचन आयुक्त एसके अग्रवाल ने शुक्रवार को नगर निकाय सामान्य निर्वाचन 2017 की अधिसूचना जारी की। 16 नगर निगम, 198 नगर पालिका परिषद, 438 नगर पंचायत में चुनाव कराया जाएगा। कुल मतदाताओं की संख्या 3.32 करोड़ है। जिनमें 53.5 फीसदी पुरुष और 46.5 फीसदी महिलाएं हैं।
नगर पालिका परिषद और नगर पंचायत के वैलेट पेपर से होंगे। वोटिंग तीन चरणों में होगी। पहला चरण 22 नवंबर को होगा जिसमें 25 जिलों में 5 नगर निगम के लिए वोटिंग होगी। दूसरे चरण का मतदान 26 नवंबर को होगा। इसमें 6 नगर निगम हैं। जबकि तीसरे और आखिरी चरण के लिए 29 नवंबर को मतदान होगा। वहीं मतगणना 1 दिसंबर को सुबह 8 बजे से होगी।
अब नगर निगम से जुड़े सभी राजस्व, गृह और नगर विकास के विभागों में नियुक्ति और ट्रान्सफर पर प्रतिबंध रहेगा। चुनाव तक सभी डीएम और एसएसपी अपने जिले को नहीं छोड़ सकेंगे। आयोग की पूर्व अनुमति से ही डीएम और एसएसपी ऐसा कर सकते हैं।
कानपुर और लखनऊ के मेयर 25 लाख खर्च कर सकते हैं। इसके अलावा मेयर 20 लाख खर्च कर सकते हैं। अभी तक साढ़े 12 लाखरुपये खर्च कर सकते थे। वहीं पार्षद 2 लाख रुपये खर्च कर सकते हैं। अभी तक ये 1 लाख रुपये खर्च कर सकते थे। नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष अब 8 लाख रुपये खर्च कर सकते हैं। इससे पहले सिर्फ 4 लाख रुपये ही खर्च कर सकते थे। सभी प्रत्याशियों को अपना खर्च देना होगा। जिले के जिलाधिकारी के नेतृत्व में टीम गठित होगी।
यूपी में इस बार 16 सीटों के लिए मेयर का चुनाव हो रहा है। आगरा, इलाहाबाद, बरेली, मुरादाबाद, अलीगढ़, झांसी और फैजाबाद की सीटों को अनारक्षित रखा गया है। वहीं फिरोजाबाद, बनारस, सहारनपुर और गोरखपुर की मेयर सीट ओबीसी के लिए आरक्षित की गई है। मेरठ की सीट एससी महिला के लिए रखी गई है। गाजियाबाद में महिला सामान्य के लिए आरक्षित रखा गया है। इस बार चार निगमों में पहली बार मेयर का चुनाव हो रहा है। इनमें सहारनपुर, फिरोजाबाद, मथुरा और फैजाबाद नगर निगम शामिल हैं।
पहले चरण में यहां होंगे चुनाव (22 नवंबर)
शामली, मेरठ, हापुड़, बिजनौर, बदायूं, हाथरस, कासगंज, आगरा, कानपुर, जालौन, हमीरपुर, चित्रकूट, कौशाम्बी, प्रतापगढ़, उन्नाव, हरदोई, अमेठी, फैजाबाद, गोंडा, बस्ती, गोरखपुर, आजमगढ़, गाजीपुर और सोनभद्र में चुनाव होंगे।
दूसरे चरण में यहां होंगे चुनाव (26 नवंबर)
लखनऊ, मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, अमरोहा, रामपुर, पीलीभीत, शाहजहांपुर, अलीगढ़, मथुरा, मैनपुरी, फर्रुखाबाद, इटावा, ललितपुर, बांदा, इलाहाबाद, सुल्तानपुर, अम्बेडकरनगर, बहराइच, श्रावस्ती, संतकबीरनगर, देवरिया, बलिया, वाराणसी और भदोही में मतदान होगा।
तीसरे चरण में इन जिलों में मतदान (29 नवंबर)
सहारनपुर, बागपत, बुलंदशहर, मुरादाबाद, संभल, बरेली, एटा, फिरोजाबाद, कन्नौज, औरैया, कानपुर देहात, झांसी, महोबा, फतेहपुर, रायबरेली, सीतापुर, लखीमपुर खीरी, बाराबंकी, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर, महराजगंज, कुशीनगर, मऊ, चंदौली, जौनपुर और मिर्जापुर में वोट पड़ेंगे।
चुनाव तीन चरण में होगा। पहले चरण की वोटिंग 22 नवंबर, दूसरा 26 नवंबर और तीसरे चरण की वोटिंग 29 नवंबर को होगी। चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ प्रदेश में आचार संहिता लागू हो गई है। यूपी के राज्य निर्वाचन आयुक्त एसके अग्रवाल ने शुक्रवार को नगर निकाय सामान्य निर्वाचन 2017 की अधिसूचना जारी की। 16 नगर निगम, 198 नगर पालिका परिषद, 438 नगर पंचायत में चुनाव कराया जाएगा। कुल मतदाताओं की संख्या 3.32 करोड़ है। जिनमें 53.5 फीसदी पुरुष और 46.5 फीसदी महिलाएं हैं।
नगर पालिका परिषद और नगर पंचायत के वैलेट पेपर से होंगे। वोटिंग तीन चरणों में होगी। पहला चरण 22 नवंबर को होगा जिसमें 25 जिलों में 5 नगर निगम के लिए वोटिंग होगी। दूसरे चरण का मतदान 26 नवंबर को होगा। इसमें 6 नगर निगम हैं। जबकि तीसरे और आखिरी चरण के लिए 29 नवंबर को मतदान होगा। वहीं मतगणना 1 दिसंबर को सुबह 8 बजे से होगी।
अब नगर निगम से जुड़े सभी राजस्व, गृह और नगर विकास के विभागों में नियुक्ति और ट्रान्सफर पर प्रतिबंध रहेगा। चुनाव तक सभी डीएम और एसएसपी अपने जिले को नहीं छोड़ सकेंगे। आयोग की पूर्व अनुमति से ही डीएम और एसएसपी ऐसा कर सकते हैं।
कानपुर और लखनऊ के मेयर 25 लाख खर्च कर सकते हैं। इसके अलावा मेयर 20 लाख खर्च कर सकते हैं। अभी तक साढ़े 12 लाखरुपये खर्च कर सकते थे। वहीं पार्षद 2 लाख रुपये खर्च कर सकते हैं। अभी तक ये 1 लाख रुपये खर्च कर सकते थे। नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष अब 8 लाख रुपये खर्च कर सकते हैं। इससे पहले सिर्फ 4 लाख रुपये ही खर्च कर सकते थे। सभी प्रत्याशियों को अपना खर्च देना होगा। जिले के जिलाधिकारी के नेतृत्व में टीम गठित होगी।
यूपी में इस बार 16 सीटों के लिए मेयर का चुनाव हो रहा है। आगरा, इलाहाबाद, बरेली, मुरादाबाद, अलीगढ़, झांसी और फैजाबाद की सीटों को अनारक्षित रखा गया है। वहीं फिरोजाबाद, बनारस, सहारनपुर और गोरखपुर की मेयर सीट ओबीसी के लिए आरक्षित की गई है। मेरठ की सीट एससी महिला के लिए रखी गई है। गाजियाबाद में महिला सामान्य के लिए आरक्षित रखा गया है। इस बार चार निगमों में पहली बार मेयर का चुनाव हो रहा है। इनमें सहारनपुर, फिरोजाबाद, मथुरा और फैजाबाद नगर निगम शामिल हैं।
पहले चरण में यहां होंगे चुनाव (22 नवंबर)
शामली, मेरठ, हापुड़, बिजनौर, बदायूं, हाथरस, कासगंज, आगरा, कानपुर, जालौन, हमीरपुर, चित्रकूट, कौशाम्बी, प्रतापगढ़, उन्नाव, हरदोई, अमेठी, फैजाबाद, गोंडा, बस्ती, गोरखपुर, आजमगढ़, गाजीपुर और सोनभद्र में चुनाव होंगे।
दूसरे चरण में यहां होंगे चुनाव (26 नवंबर)
लखनऊ, मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, अमरोहा, रामपुर, पीलीभीत, शाहजहांपुर, अलीगढ़, मथुरा, मैनपुरी, फर्रुखाबाद, इटावा, ललितपुर, बांदा, इलाहाबाद, सुल्तानपुर, अम्बेडकरनगर, बहराइच, श्रावस्ती, संतकबीरनगर, देवरिया, बलिया, वाराणसी और भदोही में मतदान होगा।
तीसरे चरण में इन जिलों में मतदान (29 नवंबर)
सहारनपुर, बागपत, बुलंदशहर, मुरादाबाद, संभल, बरेली, एटा, फिरोजाबाद, कन्नौज, औरैया, कानपुर देहात, झांसी, महोबा, फतेहपुर, रायबरेली, सीतापुर, लखीमपुर खीरी, बाराबंकी, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर, महराजगंज, कुशीनगर, मऊ, चंदौली, जौनपुर और मिर्जापुर में वोट पड़ेंगे।
चाटुकारों से बचकर चलें योगी वरना....?
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पिछले एक माह से राजनीति की सुर्खियों में छाए हुए हैं। केरल में संघ के कार्यकर्ताओं की हत्या के बाद निकाली गई यात्रा में भाग लेने व हरियाणा में हिन्दुत्व की लहर जगाने के लिए अथवा गुजरात में मोदी की मदद करने के लिए उनकी भूमिका को लेकर चर्चांएं हैं। इसके साथ ही यूपी में छिड़े ताज विवाद में उनकी भूमिका को लेकर भी चर्चाएं तेज हैं। यदि सियासी नजरों से हटकर ताज विवाद की घटना को देखा जाए तो ये सिर्फ अतिशय चाटुकारिता का ही परिणाम है। सरकारी पुस्तक से ताज महल को हटाने की घटना से उत्साहित होकर अपने नंबर बढ़ाने के लिए सरधना के भाजपा विधायक संगीत सोम ने ताजमहल को लेकर अनाप-शनाप बयान दे डाला। इसका नतीजा यह हुआ कि यूपी में भाजपा की देशव्यापी फजीहत होने लगी। इसे डैमेज कंट्रोल करने के लिए शीर्ष नेतृत्व ने सीएम योगी आदित्यनाथ का सहारा लिया। योगी आदित्यनाथ ने अपनी भूमिका बड़े ही अच्छे ढंग से निभाई लेकिन जैसे वीरेन्द्र सहवाग द्रविड़ नहीं बन सकते। वैसे ही योगी मोदी नहीं बन सके। हश्र ये हुआ कि मामला थमने की जगह आगे बढ़ गया है। अब देखिये कब तक इस पर विराम लगता है।
अतिशय चाटुकारिता का दूसरा नमूना कानपुर में उस समय देखने को मिला जब वहां खेलने के लिए आई भारतीय क्रिकेट टीम के खिलाडिय़ों का स्वागत भगवा गमछे से किया गया, जिस पर योगी छपा हुआ था। खेल और राजनीति के इस घालमेल को सियासी कद्दावर पचा नहीं पा रहे हैं। लोग अपने नंबर बढ़ाने के चक्कर में योगी जी आपके नंबर घटा रहे हैं। आप ठहरे साधु-संत वरना अब तक तो आपको भी पसीना आ जाता। इसलिए आप अपने प्रशंसकों और पार्टी कार्यकर्ताओं को एक सख्त संदेश दे दें वरना ये कहीं भी आपको ले जाकर डुबो देंगे।
अतिशय चाटुकारिता का दूसरा नमूना कानपुर में उस समय देखने को मिला जब वहां खेलने के लिए आई भारतीय क्रिकेट टीम के खिलाडिय़ों का स्वागत भगवा गमछे से किया गया, जिस पर योगी छपा हुआ था। खेल और राजनीति के इस घालमेल को सियासी कद्दावर पचा नहीं पा रहे हैं। लोग अपने नंबर बढ़ाने के चक्कर में योगी जी आपके नंबर घटा रहे हैं। आप ठहरे साधु-संत वरना अब तक तो आपको भी पसीना आ जाता। इसलिए आप अपने प्रशंसकों और पार्टी कार्यकर्ताओं को एक सख्त संदेश दे दें वरना ये कहीं भी आपको ले जाकर डुबो देंगे।
क्या ‘ताज’ भी ‘बाबरी मस्जिद’ बन जाएगा
आगरा में प्यार की निशानी और दुनिया के आठ अजूबों में से एक ताजमहल को लेकर जिस तरह की चर्चाएं और बयानबाजियां चल रहीं है, उनसे यही कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या खूबसूरत ताजमहल का हश्र भी बाबरी मस्जिद जैसा हो सकता है। यह बात अचानक नहीं कुछ लोगों के विचारों और घटनाओं के बाद सामने आई है। सरधना विधायक संगीत सोम ने ताज को लेकर टिप्पणी करके एक सियासी तूफान खड़ा कर दिया है। इस तूफान को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी धरोहर और गौरव का सम्मान करके और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ताज परिसर में झाड़ू लगाकर रोकने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन स्थिति ज्यों-ज्यों दवा की त्यों-त्यों मर्ज बढ़ता ही गया वाली हो रही है। इस तूफान की गति तेजी से बढ़ रही है। अब हर कोई इस सियासी गंगा में डुबकी लगाना चाह रहा है। जब सीएम योगी ने ताज को अपनी पुस्तिका से बाहर निकाल फेंका तो सबसे पहले सपा के आजम खां ने टिप्पणी करते हुए कहा कि छोटे बादशाह से कहो कि वह ताज गिराने चलें तो हम भी फावड़ा लेकर उनके साथ चलेंगे। इसके बाद जब बहस आगे बढ़ी तो उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति भवन, संसद,लाल किला सहित अनेको इमारतें गुलामी की निशानी हैं, इनमें से क्या-क्या गिराओगे। आजम खान यहीं पर नहीं रुके उन्होंन बढ़ते विवाद में घी डालते हुए यह भी बयान दे डाला कि ताज महल को निश्चित रूप से डायनामाइट से उड़ा दिया जाएगा। बात यहीं नहीं खत्म होती अब आजम खान के साथ फिल्म सिंघम के विलेन प्रकाश राज ने भी बयान दे डाला कि बच्चों को एक बार ताजमहल अवश्य दिखा दो क्योंकि जल्दी ही यह इतिहास बनने वाला है। उनका इशारा भी ताज के खात्मे की ओर था। अब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की इतिहास की शाखा अखिल भारतीय इतिहास संकलन समिति ने दो टूक कह दिया है कि ताजमहल में शुक्रवार को होने वाली नमाज पर प्रतिबंध लगा दिया जाए अन्यथा दूसरे पक्ष को वहां शिव चालीसा का पाठ करने की अनुमति दे दी जाए। इसे लेकर विवाद उठ खड़ा हुआ है। इस संगठन का यह तर्क है कि वहां एक मंदिर था जिसे तत्कालीन राजा ने बनवाया था। इसके समर्थन में उन्होंने कहा कि आज तक किसी नदी के किनारे किसी भी तरह का मकबरा नहीं बना देखा है बल्कि सारे मंदिर नदियें के तट पर ही होती है। इस पर ताजमहल की मस्जिद के इमाम ने कहा कि यहां पर शिव चालीसा की इजाजत नहीं दी जा सकी, बल्कि नमाज पढ़ी जा सकती है। उन्होंन इसका कारण यह बताया कि यहां पर मस्जिद है। इसलिए नमाज तो पढ़ी जा सकती है लेकिन साथ ही यह कहा कि यह तो एक कब्रिस्तान है यहां पर शिव चालीसा का पाठ नहीं किया जा सकता। संघ के संगठन ने कहा कि जब यह राष्ट्रीय धरोहर के रूप में घोषित है तो इस पर किसी एक वर्ग को धार्मिक कार्य करने की अनुमति दिया जाना अनुचित और पक्षपातपूर्ण है। यह विवाद बढ़ा और विवाद में तल्खी आई तो क्या बाबरी मस्जिद वाली स्थिति बन सकती है या नहीं, यह तो भविष्य ही बता पाएंगा।
Thursday, 26 October 2017
सूना ही रह गया धक-धक गर्ल का ताज का दीदार
बॉलीवुड की धक-धक गर्ल माधुरी दीक्षित ने भी आगरा पहुंचकर ताज का दीदार किया। इस खूबसूरत पल को उन्होंने ट्विटर पर भी शेयर किया है। लेकिन इसकी चर्चा तब हुई जब यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने वहां जाकर झाड़ू लगाई। माधुरी ने ट्विटर पर दो तस्वीरें शेयर की हैं। फोटो में माधुरी अपने पति, दो बेटों अरिन और रयान के अलावा परिवार के दूसरे सदस्यों के साथ हैं। उन्होंने साथ ही कहा कि भारत के साथ प्यार जारी है। जय हिंद! बता दें, इसी हफ्ते माधुरी ने अपनी शादी के 18 साल पूरे किए हैं। 17 अक्टूबर 1999 को उन्होंने श्रीराम नेने से शादी की थी। श्रीराम पेशे से डॉक्टर हैं। जल्द ही माधुरी मराठी फिल्मों में अपना डेब्यू करने जा रही हैं। हाल ही में उन्होंने सोशल मीडिया पर इसकी जानकारी दी थी। आखिरी बार वह साल 2014 में फिल्म गुलाब गैंग में नजर आई थीं। इस बीच नेताओं के साथ ही अभिनेता और सिंघम फिल्म में खलनायक का अभिनय करने वाले प्रकाश राज ने तो यहां तक कह दिया कि देश के लोग अपने बच्चों को एक बार ताज अवश्य दिखा दें क्योंकि भविष्य में ताजमहल इतिहास की चीज बन जाएगा।
वाह ताज से भाजपा को क्या-क्या लाभ होगा?
मतों का ध्रुवीकरण के साथ यूपी के निकाय चुनाव, हिमाचल व गुजरात विस चुनाव में भाजपा की नैया होगी पार
केन्द्र में भाजपा की मोदी सरकार और भाजपा हाईकमान और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ से वाह ताज करवाकर एक तीर से कई निशाने साधे हैं। किसी को पता ही नहीं चला कि सरधना के विधायक संगीत सोम ने भाजपा के पक्ष में मतों के ध्रुवीकरण की जो नींव रखी थी उस पर विशाल महल बनकर तैयार हो गया। आज पूरे देश में ताज महल के अलावा किसी अन्य की चर्चा नहीं हो रही है। इससे पहले जीएसटी, नोटबंदी, आर्थिक मंदी, यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी, अमित शाह के बेटे जयंत शाह का मामला सुर्खियों में था और लोग मोदी सरकार से इतने नाखुश थे, विशेषकर व्यापारी खुलकर अपनी भड़ास निकाल रहे थे। अब वे सब कहां गए। सारे के सारे मुद्दे ताज के गड़े मुर्दों में समा गए।मतों के ध्रुवीकरण का सबसे बड़ा लाभ गुजरात को मिलने वाला है, जहां पर विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। उसके बाद इसका लाभ यूपी में होने वाले निकाय चुनाव में भाजपा को मिलेगा जो 2019 की नींव बनकर तैयार होंगे। इसके अलावा इसका अच्छा खासा असर हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भी होने वाला है जहां पर कांग्रेस की सरकार है। इसका सीधा असर 2019 के आम चुनाव के नतीजों पर पडऩे वाला है। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गुजरात की पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक में कह चुके हैं कि आप लोग 2019 की चिंता छोड़ दो 2024 की अभी से तैयारी करो।
‘आह ताज’ से ‘वाह ताज’ के राग का क्या है राज
मात्र एक माह में यूपी के सीएम आदित्य नाथ योगी का हृदयपरिवर्तन हो गया कि अपनी सूचना प्रसारण मंत्रालय की बुकलेट से जिस ताज को बाहर निकाल फेंका आज उसी के आंगन में झाड़ू लगाते नजर आए। क्या आगरा में नगर निगम के सफाई कर्मी हड़ताल पर चले गए थे या सरकार की बात नहीं मान रहे थे। ऐसा तो कुछ भी नहीं था। ताज के सफाई अभियान को लोग भले ही डैमेज कंट्रोल मान रहे हों परन्तु वैसा है नहीं जैसा कि दिखता है। इसमें दाल में काला कुछ जरूर है कि सरधना के भाजपा विधायक संगीत सोम अवश्य ही फायर ब्रांड भाजपाई नेता हैं लेकिन वह इतने मंदबुद्धि भी नहीं हैं कि पार्टी लाइन के खिलाफ अपनी जुबान खोल लें। जब योगी जी ने ताज महल को निकाल फेंक कर गोरखपुर को अपना ड्रीम प्रोजेक्ट मानकर तरजीह दी तो संगीत सोम को लगा यही पार्टी लाइन है ओर उन्होंने योगी जी के रास्ते पर ही दो कदम और आगे चलकर बयान दे डाला। उनका बयान देते ही अवकाश बिता रहे विपक्षी खासकर सपा के आजम खान और औवैसी को मौका मिल गया। फिर क्या छिड़ गई बहस। दोनों ओर से जमकर बयानबाजी हुई। जिसको जो समझ में आया वो कहा। लेकिन अचानक चली गई चाल से भाजपा को नुकसान होता नजर आया। यही नहीं ताज की बात होते ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी सरकार पर दबाव बनने लगा। तब सरकार हरकत में आई और आनन-फानन में इस मसले को सुलटाने के लिए भाग-दौड़ शुरू कर दी गई।
बच्चे ने की शरारत और घर के बड़ों ने उसे डांट-फटकार कर मामला शांत करने वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए सीएम योगी को संकटमोचक का रोल दे दिया गया। मन में बहुत कसमसाए तो होंगे योगी जी, क्योकि वे खुद ही सबसे बड़े फायरब्रांड नेता है, एक हाथ में माला तो एक हाथ में भाला, तुम एक मारोगे तो हम दस मारेंगे, तुम हमारी एक लडक़ी को भगाओगे तो हम तुम्हारी 100 लड़कियों को...? विचारधारा वाले भगवा नेता हैं। मन में कसमसाहट को लेकर बैक फुट पर आकर आह ताज से वाह ताज करने का निश्चय किया।
बच्चे ने की शरारत और घर के बड़ों ने उसे डांट-फटकार कर मामला शांत करने वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए सीएम योगी को संकटमोचक का रोल दे दिया गया। मन में बहुत कसमसाए तो होंगे योगी जी, क्योकि वे खुद ही सबसे बड़े फायरब्रांड नेता है, एक हाथ में माला तो एक हाथ में भाला, तुम एक मारोगे तो हम दस मारेंगे, तुम हमारी एक लडक़ी को भगाओगे तो हम तुम्हारी 100 लड़कियों को...? विचारधारा वाले भगवा नेता हैं। मन में कसमसाहट को लेकर बैक फुट पर आकर आह ताज से वाह ताज करने का निश्चय किया।
मोदी का ये नया मेंटास जिंदगी वाला स्टंट
गुजरात चुनाव की टीआरपी में भाजपा सबसे ऊपर
आप सभी टीवी देखते होंगे तो एक विज्ञापन मेंटास जिंदगी वाला तो आपने देखा होगा कि साधारण जिंदगी में जो मात खाता है वहीं मेंटास जिंदगी यानी अपनी दिमागी चाल से कैसे ऐश करता है। वही चाल हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई दामोदर दास मोदी चल रहे हैं। राहुल भैया गुजरात की गलियों में खाक छान कर लोगों को जातिवाद और पंथवाद और पार्टी वाद पर रिझाने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं पीएम नरेन्द्र मोदी ने बड़ौदा को एक फोल काल करके वहां रहने वाले भाजपा कार्यकर्ता गोपालभाई से बात करके चंद घंटों में उसे पूरा इंडिया का हीरो बना दिया। इससे अब प्रत्येक गुजराती नागरिक के मन में गोपालभाई के प्रति मोदी की हमदर्दी का प्रभाव पड़ा होगा। यह खबर साधारण सी है कि एक भाजपा के वरिष्ठ नेता ने अपने कार्यकर्ता से बातचीत कर उसे कांग्रेस के बहकावे में न आकर भाजपा के कार्यकलापों को जारी रखने का संदेश देना है लेकिन आजकल मीडिया और सोशल मीडिया का इतना प्रभाव है कि बड़ोदरा के स्टेशनरी की दुकान चलाने वाले गोपालभाई चंद पल में हीरो बन गए। एक गुजराती को हीरो बनाकर पीएम मोदी ने अपने गुजराती भाइयों को दिल से जोड़ लिया है, जो उनका वोट बैँक बनेंगे और यही वोट बैंक भाजपा की नैया पार लगाएगा। इसमें किसी तरह का संदेह नहीं है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी इस बार गुजरात में मोदी को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। क्योंकि केन्द्र की मोदी सरकार की जीएसटी व नोटबंदी, इनकम टैक्स की सख्ती आदि ऐसे फैसले हैं जो व्यापारियों के खिलाफ जा रहे हैं। यह बात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज स्वयं स्वीकारी है कि जीएसटी का असली लाभ मिडिल क्लास को मिलने वाला है। उन्होंने परोक्ष रूप से कहा कि जीएसटी के चलते बाजार और व्यापारियों में कड़ी प्रतिस्पर्धा होगी और व्यापारी अपना माल बेचने के लिए कम से कम लाभ पर सौदा करना पसंद करेंगे। इससे व्यापारियें को नहीं मिडिल क्लास के खरीददार को फायदा होगा। जीएसटी और नोटबंदी को लेकर चुनावी सर्वे भी मोदी सरकार के खिलाफ अपनी राय दे रहे हेँ ऐसे में पिछले 20 वर्षों से राज्य में काबिज भाजपा की सरकार को पुन: सत्ता में लाना मोदी और उसकी केन्द्र की सरकार के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुका है। यदि भाजपा हार जाती है तो निश्चित रूप से 2019 के आम चुनाव में विपरीत असर पड़ सकता है। यही बात मान कर राहुल गांधी अपनी पार्टी के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं।मोदी ने मेंटास जिंदगी वाला दांव इसीलिए चला है ताकि लोगों का असल मुद्दों से ध्यान हट जाए और लोग इमोशनल होकर भाजपा और मोदी को जिता दें। गुजरात में भाजपा के साथ एक बात और यह है कि वहां का कोई ऐसा बड़ा चेहरा नहीं है जिसे भाजपा आगे करके उसके नाम पर वोट मांग सके। 2014 से 2017 तक के तीन साल के कार्यकाल में गुजरात ही ऐसा राज्य है जहां तीन-तीन मुख्यमंत्री सरकार चला रहे हैँ। ऐसे अस्थिर सरकार से हुई खामियों का खामियाजा और असंतुष्ट भाजपाइयों का असर कहां जाएगा। इसलिए मोदी ने इन चुनावों में किसी चेहरे को आगे करने की जगह खुद को आगे किया है।
Wednesday, 25 October 2017
...तो ये था मोदी का गुजरात में धोबीपछाड़ दांव
13 दिन चुनाव तिथियां इसीलिए टाली गई थीं
गुजरात में विधानसभा चुनाव की तिथियां चुनाव आयोग ने स्वयं नहीं टाली गईं जैसी कि आशंका थी, ठीक वैसा ही हुआ। मोदी और रूपानी सरकार को रेवडिय़ां बांटने का मौका देने के लिए थोड़ी देर के लिए चुनाव आयोग ने शेषन के जमाने के आयोग का चोला ओढ़ लिया था। लेकिन जैसे ही चुनाव तिथियों की घोषणा हुई वैसे ही सच्चाई सामने आ गई। कुलदीप नैय्यर ने अपने आलेख में चुनाव आयोग पर संदेह की बात कही है, जो बात पूरी तरह से सच साबित हो रही है। जैसा कि चुनाव आयोग ने गुजरात में चुनाव तिथियां हिमाचल विधानसभा की चुनाव तिथियों के साथ घोषित न किए जाने की अपनी विवशता बताई थी। गुजरात में बाढ़ एवं पुनर्वास का कार्य पूर्ण न हो पाने के कारण चुनाव आयोग ऐसा न कर सका। इस पर दो पूर्व चुनाव आयुक्त ने अपनी सख्त टिप्पणी दी। एक पूर्व चुनाव आयुक्त ने कहा कि बाढ़ राहत का कार्य अधिकारी करते हैं न कि राजनीतिज्ञ और एक पखवाड़े के अंदर होने वाले दो राज्यों की विधानसभा के चुनाव की तिथियां एक साथ ही घोषित की जानी चाहिएं भले ही वहां चुनाव एक पखवाड़े के अंदर कराए जाएं। चुनाव आयोग की इन बातों का मतलब देश की जनता आसानी से निकाल रही है। उसे सब मालूम है कि गुजरात की चुनाव तिथियां क्यों नहीं घोषित की जा सकीं थी। अब क्यों हुई?चुनाव आयोग ने बुधवार को विवादों और आरोपों के बाद गुजरात चुनावों का कार्यक्रमों की घोषणा कर दी है , जिसके अनुसार 9 और 14 दिसम्बर को दो चरणों में मतदान कराये जायेंगे और 18 दिसम्बर को नतीजे घोषित होंगे । इसके तुरंत बाद से राज्य में चुनाव आचार संहिता लागू हो गई है यानी अब सरकार किसी भी नई योजना की घोषणा नहीं कर सकेगी। हिमाचल के चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा 12 अक्टूबर को की गई थी जिसके 13 दिन बाद गुजरात की तारीख़ों का ऐलान किया गया। इस बीच आरोप लगे कि चुनाव आयोग जान-बूझकर देरी कर रहा है ताकि नरेंद्र मोदी को बड़ी योजनाओं की घोषणा करने का समय मिल जाए। 12 अक्टूबर से 25 अक्टूबर के बीच कई बड़ी सरकारी योजनाओं का ऐलान किया भी गया। मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने 16 अक्टूूबर को किसानों को तीन लाख रुपए तक का कर्ज़ बिना ब्याज के देने का ऐलान किया था जिससे सरकार पर 700 करोड़ रुपए का भार पडऩे का अनुमान है। ड्रिप सिंचाई के उपकरणों पर 18 प्रतिशत जीएसटी का पूरा भार अब सरकार उठाएगी।
गुजरात सरकार पाटीदार आंदोलन के दौरान पटेल समुदाय के लोगों पर दर्ज किए मुक़दमे ख़त्म करने का फ़ैसला लिया है। पाटीदार समुदाय से जुड़े ओमिया माताजी संस्थान को ऊंझा में पर्यटन सेवाओं के विकास के लिए आर्थिक मदद देने की घोषणा की है। मां वात्सल्य योजना का लाभ अब तक 1.5 लाख रुपए सालाना कमाने वाली महिलाओं को मिलता था लेकिन अब ये सीमा बढ़ाकर 2.5 लाख की गई। कांट्रेक्ट पर काम करने वाली महिला कर्मियों के लिए 90 दिनों का मातृत्व अवकाश देने की घोषणा की गई। आशा कार्यकर्ताओं का वेतन 50 फ़ीसदी बढ़ाया गया।
उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल ने नगरपालिका कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग का फ़ायदा और आईटीआई के कर्मचारियों के वेतन में बढ़ोत्तरी और साथी सहायक शिक्षक (शिक्षामित्र) का वेतन 10500 रुपए प्रति महीने से बढ़ाकर 16222 रुपए किया था. विद्या सहयाकों का वेतन 16500 से बढ़ाकर 25000 किया गया. चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के वेतन में भी वृद्धि की गई. सरकार ने ठेके पर काम कर रहे सरकारी कर्मचारियों के लिए 11 दिन की कैज़ुअल छुट्टी देने,काम के दौरान दुर्घटना में मौत होने पर परिजनों को दो लाख रुपए मुआवज़ा देने का ऐलान किया। सरकार ने इन कर्मचारियों को ढाई सौ रुपए का यात्रा भत्ता भी देने की घोषणा की है.
बड़ी योजनाओं का ऐलान
मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने 16 अकटूूबर को 900 करोड़ के प्रोजेक्टों का उद्घाटन किया था। गुजरात सरकार ने अहमदाबाद शहर में साढ़े छह हज़ार करोड़ रुपए की लागत से बनने वाले मेट्रो प्रोजेक्ट के दूसरे चरण को भी मंज़ूरी दे दी है। गुजरात सरकार ने अहमदाबाद के रिंग रोड पर टोल टैक्स ख़त्म कर दिया था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी वडोदरा यात्रा के दौरान 100 करोड़ रुपए के सिटी कमांड एंड कंट्रोल सेंटर, 160 करोड़ रुपए की लागत से बनने वाले ट्रांसपोर्ट हब प्रोजेक्ट, 125 करोड़ की जनमहल सिटी ट्रांसपोर्ट हब योजना, 267 करोड़ की लागत से बनने वाले वेस्ट टू एनर्जी सेंटर जैसी योजनाओं का शिलान्यास किया या घोषणा की। मोदी ने 6 करोड़ के वेटरनिटी हॉस्पिटल, 265 करोड़ के दो फ्लाइओवर, 166 करोड़ के वाटर ट्रीटमेंट प्लांट का भी ऐलान किया।
वरिष्ठ पत्रकार मानते हैं कि गुजरात सरकार ने चुनावों की घोषणा में हुई देरी का पूरा फ़ायदा उठाया है और समाज के कई वर्गों को आकर्षित करने की कोशिश की है। उनका कहना है कि भाजपा सरकार ने समाज के असंतुष्ट या असंगठित वर्गों को लुभाने की कोशिशें की हैं। सरकार ने रविवार को भी कैबिनेट की बैठक कर कई योजनाओं का ऐलान किया है। ऐसे में सरकार ने मतदाताओं को रिझाने की हर मुमकिन कोशिश की है।
इसे शुद्ध राजनीतिक बेमानी कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगी क्योंकि सरकार से बाहर के लोग मतदाताओं को किसी तरह से रिझाते हैं तो उन पर उंगलियां उठ सकती हैं। ऐसे में राहुल गांधी कितना चमत्कार दिखा सकते हैं ये तो वक्त ही बताएगा।
Monday, 16 October 2017
यूपी में सपा का उदय होना भाजपा के लिए खतरा
उत्तर प्रदेश में चार बड़ी राजनीतिक घटनाएं हुईं। ये सारी घटनाएं देश और प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ जातीं हैँ। पहली घटना यह कि उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य और मंत्री सिद्धार्थ सिंह के क्षेत्र और भाजपा के तीन वर्ष से बने अजेय दुर्ग इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र संघ के चुनाव में सत्ता में आने को बेताब समाजवादी पार्टी ने सेध लगा ली है। इसका सीधा मतलब यह लगाया जा रहा है कि छात्र राजनीति के सहारे अखिलेश यादव का उदय हो रहा है। बताया जा रहा है कि इन चुनावों में श्री मौर्य और सिद्धार्थ सिंह दोनों ने ही छात्र-छात्राओं से एबीवीपी के पक्ष में मत करने के लिए अपील की थी लेकिन तीन साल से लगातार एबीवीपी की जीत के बाद आज उस समय सपा की छात्र सभा ने एबीवीपी को मात्र एक सीट देकर सारी सीटों पर कब्जा कर लिया है। यह भी उस समय जब यूपी में भाजपा के फायरब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ की सरकार है। एक तरह से इसे भाजपा के खिलाफ जनादेश कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
दूसरी घटना यह है कि इस जीत से समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल सिंह यादव को किनारे लगाते हुए अपने पिता नेताजी मुलायम सिंह को अपने साथ कर लिया है। इससे समाजवादी पार्टी को बहुत बड़ी ताकत मिलने जा रही है। इसका असर प्रदेश के निकाय चुनावों में देखने को मिलेगा।
तीसरी घटना यह है कि महाराष्ट्र और पंजाब में मिली जीत से कांग्रेस पूरे रंग में आ गई है। पार्टी के महासचिव गुलाम नबी आजाद ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन को तोड़ते हुए निकाय चुनाव अकेले ही लडऩे का निश्चय किया है। उन्हें विश्वास है कि गुजरात से राहुल गांधी और पंजाब की बड़ी जीत से जहां हिमाल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में पार्टी को अच्छी सफलता मिलेगी वहीं यूपी के निकाय चुनाव में पार्टी पहले से बेहतर प्रदर्शन करेगी।
चौथी घटना कानपुर महानगर से है। यहां के व्यापारी आजकल रेजगारी यानी चिल्लर को लेकर बहुत परेशान हैं। ये व्यापारी बैंकों की दादागिरी से भी परेशान हैं। आरबीआई के निर्देशों को ताक पर रखने वाले बैंकों से तंग आकर इन व्यापारियों ने पूरे प्रशासन में हाथ-पांव मारे और अखबारबाजी भी कर डाली लेकिन जब इन्हें कोई रास्ता न सूझा तो एक होडिँ्रग बनवा कर लगवा दी। गलती यह हो गई कि इन व्यापारियो ने अपनी भड़ास पीएम मोदी पर सीधी निकाली और उनकी तुलना उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन से कर डाली। बस क्या था पूरा प्रशासन इन व्यापारियों के पीछे पड़ गया और एक व्यापारी जेल में बाकी के खिलाफ मुकदमा। लेकिन यह गुस्सा भाजपा के खिलाफ ही फूट रहा है।
दूसरी घटना यह है कि इस जीत से समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल सिंह यादव को किनारे लगाते हुए अपने पिता नेताजी मुलायम सिंह को अपने साथ कर लिया है। इससे समाजवादी पार्टी को बहुत बड़ी ताकत मिलने जा रही है। इसका असर प्रदेश के निकाय चुनावों में देखने को मिलेगा।
तीसरी घटना यह है कि महाराष्ट्र और पंजाब में मिली जीत से कांग्रेस पूरे रंग में आ गई है। पार्टी के महासचिव गुलाम नबी आजाद ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन को तोड़ते हुए निकाय चुनाव अकेले ही लडऩे का निश्चय किया है। उन्हें विश्वास है कि गुजरात से राहुल गांधी और पंजाब की बड़ी जीत से जहां हिमाल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में पार्टी को अच्छी सफलता मिलेगी वहीं यूपी के निकाय चुनाव में पार्टी पहले से बेहतर प्रदर्शन करेगी।
चौथी घटना कानपुर महानगर से है। यहां के व्यापारी आजकल रेजगारी यानी चिल्लर को लेकर बहुत परेशान हैं। ये व्यापारी बैंकों की दादागिरी से भी परेशान हैं। आरबीआई के निर्देशों को ताक पर रखने वाले बैंकों से तंग आकर इन व्यापारियों ने पूरे प्रशासन में हाथ-पांव मारे और अखबारबाजी भी कर डाली लेकिन जब इन्हें कोई रास्ता न सूझा तो एक होडिँ्रग बनवा कर लगवा दी। गलती यह हो गई कि इन व्यापारियो ने अपनी भड़ास पीएम मोदी पर सीधी निकाली और उनकी तुलना उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन से कर डाली। बस क्या था पूरा प्रशासन इन व्यापारियों के पीछे पड़ गया और एक व्यापारी जेल में बाकी के खिलाफ मुकदमा। लेकिन यह गुस्सा भाजपा के खिलाफ ही फूट रहा है।
Sunday, 15 October 2017
क्या दिखने लगा जीएसटी,नोटबंदी का असर
बदल रहा जनता का मूड, मौका देख कर लगा सकती है कांग्रेस चौका
अभिनेता से नेता बने बीजेपी सांसद विनोद खन्ना के निधन के कारण पंजाब की गुरदासपुर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में जिस तरह से कांग्रेस की पंजाब इकाई के अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने बीजेपी-अकाली गठजोड़ के उम्मीदवार स्वर्ण सलारिया को 1.93 लाख वोटों से शिकस्त दी है,उससे लगता है कि मोदी सरकार पर जीएसटी और नोटबंदी का विपरीत असर होना शुरू हो गया है। महाराष्ट्र और पंजाब से मिली जीत ने कांग्रेस को संजीवनी प्रदान की है। यह भी कहा जा रहा है कि राहुल गांधी के बदले स्वरूप ने अभी से जादू दिखाना शुरू कर दिया है। इसीलिए भाजपा पिछले पैरों पर आ गई है। मोदी स्वयं सोच रहे होगें कि कोई भी जतन करके फिलहाल गुजरात बचा लिया जाए। गुजरात की हार बहुत महंगी पड़ेगी। इसके बाद होने वाले चुनाव का असर 2019 में होने वाले आम चुनाव पर सीधा असर पड़ेगा। क्योंकि इस समय जो चीज़ बदली है, वह है जनता का मूड। जनता का मूड बदलता है तो नेता के लिए रवैया भी बदलता है। कांग्रेस के लोग ख़ुद कह रहे हैं कि पहले हम नरेंद्र मोदी या भाजपा पर हमला करते थे तो लगता था कि दीवारों से बात कर रहे हैं. लेकिन अब बात करते हैं तो लगता है कि हमारी बात सुनी जा रही है।सुनील जाखड़ के पक्ष में 4,99,752 वोट पड़े और उनके सबसे कऱीबी उम्मीदवार रहे स्वर्ण सलारिया को 3,06,533 वोट मिले.
आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार मेजर जनरल सुरेश कथूरिया के पक्ष में महज 23,579 वोट ही पड़े। अभिनेता से नेता बने बीजेपी सांसद विनोद खन्ना के निधन के कारण पंजाब की गुरदासपुर लोकसभा सीट पर ये उपचुनाव कराए गए थे। राहुल गांधी पिछले महीने जब अमरीका की एक यूनिवर्सिटी गए तो वहां उन्होंने अपने कम्युनिकेशन से काफ़ी ध्यान खींचा. इस स्तर पर राहुल में ज़रूर सुधार दिखाई देता है. उनके जुमलों में भी पैनापन दिखा है। लेकिन राहुल के अपने हुनर के अलावा भी गुजरात में कांग्रेस ने अपने संवाद और सोशल मीडिया के मोर्चे पर बहुत सुधार किया है और जैसा फ़ीडबैक मिला है कि एक मज़बूत टीम खड़ी की है. गुजरात में पूरी कांग्रेस पार्टी की आक्रामकता ज़ाहिर हो रही है। सोशल मीडिया पर कांग्रेस का चलाया ट्रेंड विकास पगला गया है वायरल हो गया है और यह बात बिल्कुल घर-घर में चली गई है। भाजपा को रक्षात्मक तरीक़े से इसका जवाब देना पड़ा है।
Friday, 13 October 2017
खतरे की घंटी है राहुल गांधी का बढ़ता कद
2014 में भाजपा के हाथों पिटने के बाद आंख खुली हो या न खुली हो लेकिन कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी इस बार गुजरात की राजनीति में खुलकर खेल रहे हैं और उन्हें उत्तर भारत से अधिक समर्थन भी मिल रहा है। राहुल गांधी के कद को बढ़ाने के लिए पुराने कांग्रेसी और राष्ट्रपति पद को सुशोभित कर चुके प्रणव मुखर्जी आगे आए हैं। जनाब मुखर्जी दूध के धुले हुए नहीं हैं, इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनाया जा रहा था तब विरोध करने वाले यही मुखर्जी थे। उस समय प्रधानमंत्री इसलिए बनना चाहते थे कि वह कैबिनेट में दूसरे नंबर के मंत्री थे। राष्ट्रपति पद से अवकाश लेने के बाद इतनी बड़ी हस्ती हो जाती है कि वह राजनीति से दूर रहना चाहती है लेकिन प्रणव मुखर्जी ने अचानक राजनीति वह भी कांग्रेसपरस्त राजनीति की वकालत करके लोगों को चौंका दिया है। उन्होंने भविष्यवाणी कर दी है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस फिर से वापसी करेगी। यही नहीं उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कांग्रेसी नेता की हैसियत से कहा कि यह कहना बिलकुल गलत है कि 132 साल पुरानी पार्टी फिर से सत्ता में वापसी नहीं करेगी। यही नहीं रुके और आगे बढक़र बोले कि पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दाम और गिरती अर्थव्यवस्था के कारण मोदी सरकार की किरकिरी हो रही है। इतना ही नहीं उन्होंने चेतावनी भरी सलाह देते हुए कहा कि मोदी सरकार इनमें अधिक बार फेरबदल करके इसे पैनिक न बनाए वरना....। राहुल गांधी का कद महाराष्ट्र के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों अशोक चव्हाण और पृथ्वीराज चव्हाण ने बढ़ाया है। अशोक चव्हाण ने अपने गढ़ महाराष्ट्र के नांदेड़ की म्युनिसिपल कारपोरशन के चुनाव में कांग्रेस को जबर्दस्त जीत दिलवाई है। यह कहा जा रहा है कि भाजपा के गढ़ में सेंध लगा दी है जो मोदी राज में आसान नहीं है। इसी से मोदी जी को समझना चाहिए कि नाम नहीं काम बोलता है। पृथ्वीराज चव्हाण ने ऐलान कर दिया है कि राहुल गांधी गुजरात समेत पूरे देश की कमान संभालने के लिए तैयार हैं। अशोक चव्हाण ने अपने गढ़ के चुनाव में भाजपा-शिवसेना दोनों को कसके पटकनी दी है। नांदेड़ म्युनिसिपल कारपोरेशन की 81 सीटों में 73 सीटें कांग्रेस की झोली में डलवाकर मोदी सरकार को सोचने को विवश कर दिया है। क्योंकि महाराष्ट्र की सीमा से ही लगी हैं गुजरात की सीमाएं जहां पर दिसंबर में विधानसभा चुनाव संभावित हैं।
शाह मोदी को ले डूबेंगे
मोदी जब प्रधानमंत्री पद के दावेदार बनें और देशभर में घूम-घूम कर अच्छे दिन का प्रचार कर रहे थे। तब यह माना जा रहा था कि मोदी की सरकार बनेगी लेकिन खिचड़ी सरकार बनेगी या एनडीए की साझा सरकार बनेगी। उस समय अमित शाह ने ही जुमला दिया था कि यदि मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं तो देश का काला धन जो स्विस बैंकों में जमा है, उसे देश लाया जाएगा और इससे प्रत्येक भारतवासी के खाते में 15-15 लाख रुपये जमा किए जाएंगे। इससे मोदी और भाजपा के प्रति लोगों का समर्थन बढ़ गया। यही नहीं उत्तर प्रदेश में चुनाव हो रहे थे तो वहां पश्चिमी उत्तर प्रदेश मेें हुए दंगों को लेकर उन्होंने एक ऐसा बयान दिया था जिसके चलते वोटों का एकतरफा धु्रवीकरण हो गया था, जिसके परिणामस्वरूप भाजपा को प्रचंड बहुमत और विपक्ष धराशायी हो गया था। अब चूंकि आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार की किरकिरी हो रही है और विपक्ष के साथ ही असंतुष्ट भाजपाई सरकार को घेर रहे हैं। ऐसे में जय शाह का मामला आग में घी की तरह है। इस मामले में पहली बार अमित शाह ने जो सफाई दी है वह जनता के गले नहीं उतर रही है। अमित शाह के लिए सुनहरा मौका है, यदि वे नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे देते हैं तो मोदी सरकार की टीआरपी फर्श से अर्श तक पहुंच जाएगी। यदि ऐसा नहीं करते हैं तो इसका खामियाजा मोदी सरकार को ही भुगतना होगा। लोग ये समझ रहे हैं कि मोदी तो ईमानदार हैं लेकिन उनके साथी वैसे नहीं हैं, वे दोनों हाथों से अपनी झोलियां भर रहे हैं। अमित शाह जब सफाई देते वक्त बोफोर्स कांड का जिक्र कर रहे थे तब उन्हें यह भी ध्यान कर लेना चाहिए था कि इस कांड का खुलासा ठीक ऐसे ही समय हुआ था जब राजीव गांधी ईमानदार व्यक्ति थे और उनकी किचेन कैबिनेट के लोग ऐसे थे जिनकी वजह से प्रचंड बहुमत वाली कांग्रेस को सरकार बनाने तक का मौका नहीं मिला था।
Wednesday, 11 October 2017
गुस्ताखी माफ: देखना है जोर कितना बाजुए ‘साहिल’ में है
देखना है जोर कितना बाजुए साहिल में है
हम अभी से क्या बताएं,ऐ भारत के सरजमी औ आसमां
हम लिखेंंगे 2022 में गरीबी की नई दासतां
ये बात कहां तलक सच है मान लेता ये सारा जहां
पांच साल में क्या हुआ, औ था तुमने क्या-क्या कहा
अब हमें तुम क्या सुनाओगे, गरीबी की नई दासतां
देखना है जोर कितना बाजुए साहिल में है...
बात करते हो गरीबी भारत छोड़ो की
करते हो नोटबंदी औ लगाते हो जीएसटी
पहले नोटबंदी ने मारा,फिर जीएसटी ने रुलाया
बचाखुचा इन्कम टैक्स के हौवा ने हाहा कार मचाया
कौन सुन रहा है गरीबों की दासतां
देखना है जोर कितना बाजुए साहिल में है...
तुमने भले ही चाय बेची हो, गरीबी देखी हो
आज आइना उठा देखो क्या तुम वही मोदी हो
साथी बदल गए, जमाना बदल गया
हम कैसे न माने कि फसाना बदल गया
तुमसे बहुत दूर हो गया गरीबी का रास्ता
देखना है जोर कितना बाजुए साहिल में है...
गरीबी कांग्रेस नहीं, जिसे तुम यूं ही मिटा दोगे
चहेते दौलमंदों को क्या गुरुद्वारे पर बिठा दोगे
उनकी अकूत दौलत को गरीबों में बंटवा दोगे
या फिर कोई 15 लाख का नया जुमला दोगे
अब तुम्हारा पड़ा है गरीबों से ही वास्ता
देखना है जोर कितना बाजुए साहिल में है...
वाह क्या बात है गुजरात के नगीनों करें गुफ्तगू
दयानंद,बापू और पटेल ने बिखेरी उम्दा खुशबू
जां पर खेल कर भारत मां को दिया खासमखास
इसलिए हिंदोस्तां ही नहीं, जमाना करता है याद
एक ने दिया आर्य समाज,दूसरे ने आजादी
तीसरे ने तो अखंड भारत की राह दिखला दी
अब तुम्हारे हिस्से में आया है हिंदोस्तां
देखना है जोर कितना बाजुए साहिल में है...
जुबां पर एक बार फिर ये फरियाद आती है
मोदी जी आप भी इन्हीं हस्तियों के साथी हैं
वतन वही और वही तुम्हारी माटी है
अब तुम देख रहे हो किसका रास्ता
देखना है जोर कितना बाजुए साहिल में है...
अब तुम्हारी बारी है, कुछ करक दिखलाओ
कोरे आंकड़ों से गरीबों का मजाक न उड़ाओ
क्योंकि अब तुम्हारे घर से उठी आवाज मोदी भगाओ
मोदी भगाओ, देश बचाओ, हो गई है हमसे भूल
हमनें क्यों चुना था 2014 में कमल कर फूल
2019 में ही निकालों कुछ नया रास्ता
देखना है जोर कितना बाजुए साहिल में है...
हालांकि तुम्हें याद आ गयी अपनी देहरी और अपना घर
भूले-बिसरे याद आए और पहचान ली तुमने अपनी डगर
फिर भी सभी ओर से आई आवाज, मोदी भाई करलो कुछ जतन
क्योंकि उम्मीद से ज्यादा उम्मीद कर बैठा है वतन
अब तुम ही निकालों गरीबों का कोई नया रास्ता
देखना है जोर कितना बाजुए साहिल में है...
हम अभी से क्या बताएं,ऐ भारत के सरजमी औ आसमां
हम लिखेंंगे 2022 में गरीबी की नई दासतां
ये बात कहां तलक सच है मान लेता ये सारा जहां
पांच साल में क्या हुआ, औ था तुमने क्या-क्या कहा
अब हमें तुम क्या सुनाओगे, गरीबी की नई दासतां
देखना है जोर कितना बाजुए साहिल में है...
बात करते हो गरीबी भारत छोड़ो की
करते हो नोटबंदी औ लगाते हो जीएसटी
पहले नोटबंदी ने मारा,फिर जीएसटी ने रुलाया
बचाखुचा इन्कम टैक्स के हौवा ने हाहा कार मचाया
कौन सुन रहा है गरीबों की दासतां
देखना है जोर कितना बाजुए साहिल में है...
तुमने भले ही चाय बेची हो, गरीबी देखी हो
आज आइना उठा देखो क्या तुम वही मोदी हो
साथी बदल गए, जमाना बदल गया
हम कैसे न माने कि फसाना बदल गया
तुमसे बहुत दूर हो गया गरीबी का रास्ता
देखना है जोर कितना बाजुए साहिल में है...
गरीबी कांग्रेस नहीं, जिसे तुम यूं ही मिटा दोगे
चहेते दौलमंदों को क्या गुरुद्वारे पर बिठा दोगे
उनकी अकूत दौलत को गरीबों में बंटवा दोगे
या फिर कोई 15 लाख का नया जुमला दोगे
अब तुम्हारा पड़ा है गरीबों से ही वास्ता
देखना है जोर कितना बाजुए साहिल में है...
वाह क्या बात है गुजरात के नगीनों करें गुफ्तगू
दयानंद,बापू और पटेल ने बिखेरी उम्दा खुशबू
जां पर खेल कर भारत मां को दिया खासमखास
इसलिए हिंदोस्तां ही नहीं, जमाना करता है याद
एक ने दिया आर्य समाज,दूसरे ने आजादी
तीसरे ने तो अखंड भारत की राह दिखला दी
अब तुम्हारे हिस्से में आया है हिंदोस्तां
देखना है जोर कितना बाजुए साहिल में है...
जुबां पर एक बार फिर ये फरियाद आती है
मोदी जी आप भी इन्हीं हस्तियों के साथी हैं
वतन वही और वही तुम्हारी माटी है
अब तुम देख रहे हो किसका रास्ता
देखना है जोर कितना बाजुए साहिल में है...
अब तुम्हारी बारी है, कुछ करक दिखलाओ
कोरे आंकड़ों से गरीबों का मजाक न उड़ाओ
क्योंकि अब तुम्हारे घर से उठी आवाज मोदी भगाओ
मोदी भगाओ, देश बचाओ, हो गई है हमसे भूल
हमनें क्यों चुना था 2014 में कमल कर फूल
2019 में ही निकालों कुछ नया रास्ता
देखना है जोर कितना बाजुए साहिल में है...
हालांकि तुम्हें याद आ गयी अपनी देहरी और अपना घर
भूले-बिसरे याद आए और पहचान ली तुमने अपनी डगर
फिर भी सभी ओर से आई आवाज, मोदी भाई करलो कुछ जतन
क्योंकि उम्मीद से ज्यादा उम्मीद कर बैठा है वतन
अब तुम ही निकालों गरीबों का कोई नया रास्ता
देखना है जोर कितना बाजुए साहिल में है...
मोदी जी नारे से गरीबी भारत नहीं छोड़ सकती
संभल कर रहिये ये पब्लिक है सब कुछ जानती है
मई 2014 में जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केन्द्र में सत्तारूढ़ हुए थे तब देश की सवा करोड़ जनता को यह विश्वास था कि यह सरकार उनके खाते में कालेधन का 15-15 लाख रुपया डालेगी। जब भाजपा की ओर से मात्र जुमला बताया गया तो लोगों को काफी धक्का लगा। इसके बाद भी लोगों ने विश्वास किया कि यह सरकार ईमानदार और गरीबों की समर्थक है। इसलिए नोटबंदी जैसा सख्त कदम भी आसानी से पचा गए कि इससे बड़े लोगों की शामत आएगी। पता चला कि उलटा हो गया और गरीबों के सामने रोजी-रोटी का संकट उत्पन्न हो गया। नंबर दो के काम खत्म तो आमदनी भी खत्म और जब आमदनी खत्म तो उनके आश्रित रहने वाले कामगारों की नौकरी भी खत्म। मतलब इसकी गाज गरीबों पर ही गिरी। 8 नवंबर 2016 के इस आर्थिक भूकंप की मार से अभी उबर भी नहीं पाए थे कि जीएसटी का बवाल सिर पर आ गिरा वह भी 28 प्रतिशत टैक्स का। एक चौथाई से अधिक टैक्स का। इस झटके ने दरिद्रनारायण के शरीर से एक और चिथड़ा उतार लिया। अब फिर से छोटे व्यापारी और कल कारखाने वालों ने अपने मातहतों के समक्ष हाथ खड़े कर दिये। इसका नतीजा यह हुआ कि आम आदमी सडक़ पर आ गया। पेट्रोल पर केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच चल रहे बंदरबाट के खेल से आम आदमी कराह उठा। आम आदमी तो छोडिय़े छोटे मझोले कारोबारी अपने लेन-देन से इतने तनावग्रस्त हो गए कि आत्महत्या जैसा घातक कदम उठाने को मजबूर हो गए हैं। अब मोदी जी ने संघ प्रचारक नानाजी देशमुख की जन्मशती और जयप्रकाश नारायण की जयंती पर भारत गरीबी छोड़ो का नारा बुलंद करते हुए अपने लिए 2019 की जमीन तैयार करने की पटकथा लिखनी शुरू कर दी है। मोदी जी उत्तर प्रदेश के हजारों स्कूलों में मध्यान्ह भोजन यानी मिड डे मील जिसे एमडीएम भी कहा जाता है, का अन्न नहीं पहुंचा है आप गरीबी हटाने की बात कर रहे हैं। यह असंभव बात है। देश को कांग्रेस मुक्त आपने नहीं कांग्रंस ने खुद बनवाया है। आपको शायद यह गलतफहमी हो गई है कि आपने देश को कांग्रेस मुक्त का नारा दिया और देश कांग्रेस मुक्त हो गया। मोदी जी ऐसे ही गरीबी भारत छोड़ों का नारा देने और कुछ सरकारी आंकड़ों के दिखाने भर से काम नहीं चलने वाला। गुजरात और महाराष्ट्र के निकाय चुनाव के भरोसे न बैठिये। गुजरात तो आपका गढ़ है। वहां विधानसभा चुनाव में आपको सफलता एक बार मिल भी सकती है लेकिन गरीब तो पूरे देश में हैं और वोटिंग के दिन वह गरीब नहीं जनार्दन यानि मालिक बन जाता है, आपके किस्मत की रेखा वहीं तय करेगा। इस बात को सोच कर चेतिये वरना जब इंदिरा गांधी को कोइ्र नहीं बचा सकता तो आप तो अभी पांच साल की पहली पारी पूरी करके मैदान में आने वाले हैं। ये जनता जनार्दन है। आपसे पूरे पांच साल का हिसाब लेगी। पास फेल तो वह सीधे चुनाव में करेगी। नाना देशमुख की जयंती पर पीएम ने कहा कि नानाजी देशमुख और लोकनायक जेपी ने मातृभूमि की सेवा की। दोनों महापुरुषों ने अपना जीवन राष्ट्र को समर्पित कर दिया।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि गांवों और शहरों को समान सुविधाएं मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि शहर को गांवों के लिए मार्केट बनना चाहिए। पीएम ने कहा कि दीपावली के दीये गांव के कुम्हार से खरीदें। उन्होंने कहा कि 18000 गांव ऐसे थे जो कि 18वीं शताब्दी में जी रहे थे वहां पर बिजली भी नहीं थी। हमने लालकिले से 1000 दिन में इन गांवों में बिजली देने का बीड़ा उठाया, अब तक 15,000 गांवों में बिजली पहुंचा चुके हैं। हमारी सरकार मुफ्त में बिजली कनेक्शन दे रही है। पीएम मोदी ने कहा कि देश में कमी संसाधनों की नहीं बल्कि सुशासन की है। ग्रामीण विकास के लिए सुशासन का प्रयास जारी है. आने वाले दिनों पर ग्रामीण विकास पर सरकार का ज्यादा जोर होगा. जिन राज्यों में ज्यादा गरीबी है, वहां मनरेगा का काम कम हो रहा है। जिन राज्यों में सुशासन है, वहां मनरेगा का काम ज्यादा हुआ है।मोदी ने आगे बताया कि देश में गरीबी भारत छोड़ो अभियान चलाया जा रहा है और 2022 तक इसको पाने की कोशिश होगी। मोदी ने कहा कि टिंबर की खेती लोगों के लिए काफी फायदेमंद हो सकती है। कार्यक्रम में मोदी ने शौचालय बनाने और गंदगी को खत्म करने की भी बात की। प्रधानमंत्री ने कहा कि लोकतंत्र में केवल वोट का अधिकार नहीं है, बल्कि जनता की भागीदारी भी काफी जरूरी है। सरकार हर योजना की समीक्षा कर रही है।
नाबालिगों का विवाह ही क्यों?
शर्मनाक: 27प्रतिशत शादियां नाबालिगों की ही होती हैं
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अन्तर्राष्ट्रीय बालिका दिवस के मौके पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है कि नाबालिग पत्नी के साथ संबंध बनाना रेप माना जाएगा। साथ ही कोर्ट ने सरकार से बाल विवाह रोकने को कहा है। अब सवाल उठता है कि ये स्थिति क्योंआई कि सुप्रीम कोर्ट के समक्ष ऐसा वाद क्यों पहुंचा कि नाबालिग पत्नी के साथ संबंध बनाने पर अपराध है या नहीं।सुप्रीम कोर्ट से इतर आज बालिका दिवस भी है। इस अवसर पर हमें यह जानकर शर्म आती है कि आज भी देश में जितनी शादियां होतीं हैं उनमें से 27 प्रतिशत शादियां नाबालिग कन्याओं की होती हैं। कहा जाता है कि कथित रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान,मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड जैसे राज्यों में बाल विवाह की सबसे अधिक प्रथा प्रचलित है। जब ये आंकड़े सरकार के सामने आते हैं। तो सरकार क्या करती है। जब सुप्रीम कोर्ट को यह मालूम है कि अक्षय तृतीया के दिन इन राज्यों में बड़ी संख्या में सामूहिक रूप से बाल विवाह होते हैं। सरकार को चाहिए कि कानूनी सख्ती करने के साथ ही जागरुकता लाए। मैं कहता हूं कि सरकार बनाने के लिए और चुनाव जीतने के लिए आप वोटरों को अपनी पार्टी के प्रति जागरुक कर सकते हैं तो देश के भविष्य के लिए आप क्या नहीं कर सकते हैं। सिर्फ इच्छा शक्ति होनी चाहिए। हम 21 वीं शताब्दी में जी रहे हैँ , जहां गांव का अनपढ-अशिक्षित व्यक्ति भी आपको एंड्रायथ फोन धड़ल्ले से चलाता मिल जाएगा। उसे डंडे से हांकने की आवश्यकता अब नहीं रह गई है अब आवश्यकता है उसे समझाने और उसके फायदे की बात बताने की है ताकि ऐसी नौबत ही न आए कि नाबालिगों के साथ किसी तरह का अत्याचार हो।
Tuesday, 10 October 2017
‘छोटी कुर्सी’ के लिए छिड़ी महाभारत और ‘बड़ी कुर्सी’ के लिए क्या...
समाजवादी पार्टी की ओर से पार्टी अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आजकल अपनी राजनीति चमका रहे हैं। इसके दो कारण है। पहला तो वह 2019 में अपनी पार्टी को अच्छे परिणाम दिलाना चाहते हैं। समाजवादी पार्टी में यह परंपरा है कि चुनाव से दो वर्ष पूर्व मैदान में उतर कर अपने समर्थकों और मतदाताओं को मनाने की कोशिशें करते रहो चुनाव अपने आप जीत जाओगे। उनकी यह बात सही है। अब उन्होंने कहा कि बड़ी कुर्सी छीन लेंगे। ठीक है छोटी कुर्सी के लिए परिवार में महाभारत के हालात है तो बड़ी कुर्सी के लिए क्या होगा? कभी इस पर विचार करोगे और एक बार मान भी लिया कि अच्छी इमेज और पढ़े लिखे युवा होने के नाते आपको बड़ी कुर्सी छीनने में कामयाबी मिल भी गई तो उस पर किसे बिठाओगे टीपू भइया। सारा देश देख रहा है कि कोई ऐसा चेहरा तो सामने आए जो इस कांटों भरी बड़ी कुर्सी पर बैठने को तैयार हो। रही बात कांग्रेस की तो उसकी दशा तुम्हारे सामने ही है। क्योंकि इसी सभा में अखिलेश ने कहा कि कांग्रेस के साथ गठजोड़ तो जारी रखेंगे। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने सहारनपुर के तीतरों में एक जनसभा को संबोधित करते हुए बीजेपी पर हमला बोला। उन्होंने कहा कि बीजेपी ने हमसे छोटी (सीएम) की कुर्सी छीनी है लेकिन हम उनसे बड़ी (पीएम) की कुर्सी छीनेंगे। इसके इतर अखिलेश ने ईवीएम की गड़बड़ी की ओर इशारा करते हुए बीजेपी पर आरोप लगाया कि हम विधानसभा चुनाव में हारे नहीं बल्कि हमें धोखे से शिकस्त दी गई है। पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी यशपाल सिंह की जयंती के मौके पर सहारनपुर में जुटी भीड़ को संबोधित करते हुए अखिलेश यादव ने कहा कि बीजेपी समाज को बांटने का काम करती है, जातिवाद की राजनीति करती है। एसपी सुप्रीमो अखिलेश ने कहा कि 'अब हम भी जातिवाद की राजनीति करेंगे। हमने विकास की राजनीति की थी लेकिन हमें वोट नहीं मिला इसी वजह से अब जातिवाद की राह पर चलना होगा।
भाजपा ने फिर पीट दिया...
अब क्या करेंगे कांग्रेस के युवराज
कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी केक गढ़ गुजरात के बड़ोदरा में अजीबोगरीब बयान दिया। उन्होंने कहा कि 2014 में भाजपा ने हमे इतना पीटा कि हमारी आंखें खुल गईँ। साथ ही यह भी कहा कि हम सत्ता में आएंगे तो सबसे पहले महंगाई पर काबू पाएंगे। वहां उपस्थित किसी ने पूछा कि आपके पास महंगाई रोकने का क्या फार्मूला है तो इसके जवाब मेकं उन्होंने कहा कि पेट्रोल की कीमतें सबसे पहले कम करें क्योंकि यही महंगाई की जड़ हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जो आप कपड़े पहन रहे हैँ, खा पी रहे है या कोई भी वस्तु बाजार से खरीद रहे हैं उसमें पेट्रोल की कीमतों की बहुत बड़ी भूमिका है। सोशल मीडिया में यह भी टिप्पणी आई कि राहुल गांधी अपने कांग्रेस शासित राज्यों में महंगाई को रोकने के लिए पेट्रोल कीमतें कम करने को कहें। पंजाब में सबसे अधिक महंगाई है। उसके लिए राहुल कुछ करेंगे। अभी यह बात चल ही रही थी कि अचानक दिन में खबर आई कि गुजरात और महाराष्ट्र के निकाय चुनावों में भाजपा की जबर्दस्त विजय हुई है और कांग्रेस सिमट कर रह गई है। महाराष्ट्र में हाल ही में हुए ग्राम पंचायत चुनावों में दमदार जीत के बाद बीजेपी के लिए विधानसभा चुनाव से पहले गुजरात से भी अच्छी खबर आई है। यहां स्थानीय निकाय चुनाव में बीजेपी ने बड़ी जीत दर्ज की है। बीजेपी ने 7 में से 5 सीटें जीत ली है। कांग्रेस की सीटें घटकर आधी रह गई।इससे पहले महाराष्ट्र में पहले चरण के मतदान रिजल्ट में बीजेपी ने करीब 50 फीसदी सीटों पर कब्जा जमा लिया। 7 अक्टूबर को हुए 3,884 ग्राम पंचायत चुनावों में से 2,974 पंचायत के नतीजे मंगलवार को घोषित हुए जिसमें बीजेपी को 1457 सीटों पर जीत मिली। महाराष्ट्र पंचायत चुनाव में मिली इस बड़ी जीत पर पीएम नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को बधाई दी है और इसके लिए महाराष्ट्र की जनता का शुक्रिया अदा किया है। ग्राम पंचायत चुनावों में दूसरी पार्टियां बीजेपी से काफी पीछे हैं। इसमें कांग्रेस को 301 सीटें मिली हैं। वहीं 222 सीटों पर शिव सेना ने कब्जा किया है। एनसीपी ने 194 सीट पर बाजी मारी है। इस पर यह भी तंज आया कि भाजपा ने फिर पीट दिया। अब कांग्रेस के युवराज क्या फिर से भाजपा को यह कहते हुए धन्यवाद देंगे कि महाराष्ट्र और गुजरात तुम ले जाओ हम यूपी के निकाय चुनाव में इसका बदला लेंगे। राहुल जी तैयार रहिये यूपी में निकाय चुनाव अगले माह के अंत में होने वाले हैं।Monday, 9 October 2017
राहुल को पीएम बनने के लिए पहले आत्मविश्वास ढूंढना होगा
मोदी के सामने ब्रह्मास्त्र चलाना आसान नहीं, यूपी में पीके फार्मूला ने कांग्रेस में फूंकी थी जान
राहुल गांधी पीएम बननें और 2019 में कांग्रेस को सत्ता में लाने के लिए गुजरात में पूरी दमखम लगा रहे हैं। इस बीच यह खबर मिली कि उन्हें मोदी को हराने के लिए एक अमेरिकी कंपनी रूपी ब्रह्मास्त्र मिल गया है। पहले यह परंपरा थी कि ब्रह्मास्त्र उसे ही दिया जाता था जो इसको चलाने में पारंगत होता था। अब पहले ब्रह्मास्त्र को चलाने की विद्या राहुल को सीखनी होगी वरना यूपी जैसा ही हश्र होगा। चुनाव से पहले जब कांग्रेस ने पीके को कमान सौंपी थी। पीके ने अपना फार्मूला अपनाया था, जिसने शुरुआती चरण में 27 वर्ष से मृतप्राय पड़ी कांग्रेस में जान फूंक दी थी। फिर अचानक कांग्रेस ने सपा से समझौते की बात छेड़ दी और समझौता किया तो उसका हश्र सामने आ गया। अब पहले राहुल गांधी आत्म विश्वास पैदा करें और लोगों पर विश्चास करना सीखें तभी कुछ बात बन सकती है। यही मौका है कि राहुल गुजरात को सीढ़ी बनाकर आगे बढें और अगले साल कई राज्यों में चुनाव हैं यदि आज से कमर कस कर कुछ काम करें तो बात बन सकती है और जिस तरह से आम जनता मोदी के शासन के तीन साल में ऊब गई है उसका फायदा मिल सकता है वरना कोई भी ब्रह्मास्त्र राहुल को पीएम की गद्दी तक नहीं पहुंचा सकता।क्या कांग्रेस को 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए ब्र्रह्राास्त्र मिल गया है? रिपोर्ट्स के मुताबिक, कांग्रेस कैंब्रिज ऐनालिटिका नाम की उस चर्चित कंपनी के संपर्क में है जिसने पिछले साल अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डॉनल्ड ट्रंप को जितवाने में अहम भूमिका निभाई थी। दरअसल, कैंब्रिज ऐनालिटिका कन्ज़्यूमर्स के इंटरनेट डेटा का विश्लेषण करके यह पता लगाने का काम करती है कि लोगों को क्या पसंद-नापसंद है, लोगों के लिए मुद्दे क्या हैं ताकि नेता उसी हिसाब से अपनी रणनीति तैयार कर सकें। इस विश्लेषण में ऑनलाइन सर्च, ईमेल और यहां तक की शॉपिंग वेबसाइट्स को भी खंगाला जाता है। 2014 के लोकसभा चुनाव में जब यह बात सामने आई कि बीजेपी सोशल मीडिया को भी ध्यान में रखकर चुनावी रणनीति तैयार कर रही है तो राजनीतिक पंडितों ने इसे ज्यादा तवज्जो नहीं दी। उनका मानना था कि भारत की ग्रामीण जनता का इससे कोई सीधा ताल्लुक नहीं है, लेकिन बीजेपी की शानदार जीत ने यह साबित किया कि मतदाताओं के समूह की पहचान करने और फिर उन्हें ध्यान में रखते हुए चुनावी रणनीति बनाने में इंटरनेट का भारी योगदान रहा। बीजेपी और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोशल मीडिया पर काफी ऐक्टिव रहते हैं और उसके जरिए उन्होंने कई बड़े अभियान भी चलाए हैं। स्मार्ट ऑनलाइन कैंपेन के जमाने में अब पुरानी चुनावी रणनीतियां और तरीके उतने कारगर नहीं रहे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कैंब्रिज ऐनालिटिका के सीईओ अलेग्जेंडर निक्स ने अगले लोकसभा चुनाव में यूपीए के लिए चुनावी रणनीति बनाने के सिलसिले में विपक्ष के कई नेताओं से मुलाकात की है। कंपनी ने कांग्रेस को एक प्रेजेंटेशन भी दिया है जिसमें वोटरों को ऑनलाइन साधने की रणनीति को विस्तार से बताया गया है।
बता दें कि कैंब्रिज ऐनालिटिका का लोहा आज पूरी दुनिया मान रही है। कंपनी ने न सिर्फ अमेरिका में ट्रंप की जीत में बड़ा रोल निभाया, बल्कि ब्रेग्जिट को लेकर हुए जनमत संग्रह में भी कमाल दिखाया। ऐनालिटिका ने ब्रेग्जिट के पक्ष में कैंपेन चलाया था जिस पर ब्रिटेन की जनता ने भी मुहर लगाई। दुनियाभर की कई राजनीतिक पार्टियां आज कंपनी के संपर्क में हैं। माना यह जा रहा है कि अगर सही वोटरों को टारगेट कर के ट्रंप जैसे उम्मीदवार चुनाव जीत सकते हैं तो फिर अन्य लोग भी जीत सकते हैं। बता दें कि अमेरिकी चुनाव की शुरुआत में ट्रंप को काफी कमजोर माना जा रहा था। अपने चुनावी अभियान में ट्रंप ने विदेशी कामगारों को लेकर सख्त रवैया अपनाया था, लेकिन फिर भी वह हिंदुओं को लुभाने में कामयाब रहे। बताया जाता है कि यह रणनीति कंपनी के उस डेटा पर आधारित थी जिसमें बताया गया था कि कुछ अहम राज्यों में हिंदू वोटर्स अपना पाला बदल सकते हैं। यह कंपनी की सुझायी रणनीति ही थी कि ट्रंप ने भारतीय वोटरों को लुभाने के लिए हिंदी में विज्ञापन जारी किए। वर्जिनिया में ट्रंप की बेटी एक हिंदू मंदिर में दीपावली मनाती नजर आईं और ट्रंप यह कहते देखे गए कि वाइट हाउस में भारतीयों और हिंदू समुदाय का एक सच्चा दोस्त पहुंचेगा। अभी तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा चलाए जाने वाले ऑनलाइन अभियानों की कोई काट विपक्ष नहीं ढूंढ पाया है। मोदी की सीधे वोटरों तक पहुंचने की कला और बीजेपी चीफ अमित शाह की चुनावी रणनीति, मतदाता की इच्छाओं के विश्लेषण के आधार पर ही तैयार होती है। अभी तक इस मोर्चे पर कमजोर माने जाने वाले विपक्ष ने भी अब इसी रास्ते पर आगे बढऩे का फैसला किया है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या कैंब्रिज ऐनालिटिका जैसी कंपनी के सहारे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अगले लोकसभा चुनाव में मोदी को हरा पाएंगे? इस सवाल का जवाब शायद वक्त और डेटा ही तय करेंगे।
Sunday, 8 October 2017
स्ट्रीट फ़ाइट के साथ होम फाइट के लिए तैयार रहिए मोदी जी!
बीबीसी के अनुसार नरेंद्र मोदी की कई ख़ूबियों में से एक ख़ूबी ये है कि वो ज़रूरत पडऩे पर बेखटके प्रधानमंत्री की गरिमा वाला चोला उतार फेंकते हैं और फिर अपना पुराना स्ट्रीट फ़ाइटर वाला चोला पहन लेते हैं जिसे पहनकर उन्होंने अब तक भारतीय जनता पार्टी के भीतर और बाहर के विरोधियों को परास्त किया है और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक साधारण प्रचारक से देश के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे हैं। लेकिन मोदी जी इस बार फाइट अपने घर से शुरू हो गई है। यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी बाहर के नहीं बल्कि आपके घर के ही लोग हैं। अभी तो यह शुरुआत हुई है।
लोकसभा चुनाव जीतने और प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने शायद ही फिर कभी युवराज कहकर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का मखौल उड़ाया हो पर पिछले हफ़्ते हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनावों के लिए अपनी पार्टी के प्रचार अभियान की शुरुआत करते हुए उन्होंने फिर से राहुल गांधी का मज़ाक उड़ाने के अंदाज़ में उन्हें युवराज कहा और कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष और युवराज सहित पूरी कांग्रेस पार्टी ज़मानत पर है.
स्ट्रीट फ़ाइटर वाला चोला पहनते ही मोदी अपने विरोधियों को जोकरों की जमात में बदलने की कोशिश करते हैं ताकि उन पर हमला बोलना आसान हो जाए और सुनने वाले के दिमाग़ में मोदी-विरोधियों की यही थेथरी छवि बन जाए। तो दिल्ली में 49 दिन तक सरकार चलाने वाले अरविंद केजरीवाल एके-49 कहलाए गए, राहुल गांधी युवराज हो गए. पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी का दायरा मोदी ने अल्पसंख्यकों तक सीमित कर दिया था। इस कड़ी में ताज़ा नाम भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी का भी जुड़ गया है जिन्हें इशारे-इशारे में मोदी ने महाभारत के शल्य की उपाधि से विभूषित कर दिया।
मोदी ने कहा कि महाभारत के शल्य की तरह कुछ मु_ी भर लोग हमेशा हताशा की बात करते हैं और कहते हैं — कुछ भी ठीक नहीं होगा। इन लोगों को हताशा फैलाने से रात को अच्छी नींद आती है। पर नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण के हर तीसरे वाक्य पर ताली बजाने वाले कंपनी सेक्रेटरीज़ को ये नहीं बताया कि नकारात्मकता फैलाने वाले शल्य को दुर्योधन ने एक चाल के ज़रिए महाभारत में कौरवों का पक्ष लेने के लिए तैयार किया था। जब शल्य को इस छल का अंदाज़ा हुआ तब उन्होंने युधिष्ठिर को वचन दिया कि वो युद्ध में कर्ण को हतोत्साहित करते रहेंगे। शरीर से कौरवों के पक्ष में लड़ेंगे पर मन और दिमाग़ से पाण्डवों का साथ देंगे।
शल्य को मालूम था कि कौरव महाभारत का युद्ध नहीं जीत पाएंगे और वो युद्ध के दौरान कर्ण को लगातार यही सच बता रहे थे। पर कर्ण को शल्य का सच पसंद नहीं आया।
किसी भी युग, देश, काल और परिस्थितियों में तमाम बाधाओं को पार कर, अपने विरोधियों को परास्त कर एक ख़ास मुक़ाम तक पहुंचे कर्ण को फ़ैसलाकुन क्षणों में शल्य का सच निराशाजनक ही लगता है।
गुजरात से दिल्ली की ओर क़दम बढ़ाने के साथ ही नरेंद्र मोदी ने लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे बुज़ुर्ग नेताओं के साथ-साथ यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी जैसे बीजेपी के नेताओं को भी हाशिए पर डाल दिया था। इससे पहले गुजरात में तो उन्होंने आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद के कुछ लोगों के लिए भी कई दरवाज़े बंद कर दिए. मोदी का सितारा बुलंद था और उनके हर फ़ैसले को लीक से हटकर और बोल्ड माना जाता था। इसलिए दबे सुरों में थोड़ी बहुत आलोचना हुई पर इससे ज़्यादा कुछ नहीं कहा गया। पर फिर आई आठ नवंबर 2016 की शाम जब नरेंद्र मोदी ने एक बोल्ड फ़ैसला लेकर ऐलान कर दिया कि आधी रात के बाद से 500 और 1000 के नोट लीगल टेंडर नहीं रह जाएंगे। अगले कुछ महीने पूरा हिंदुस्तान बैंको के आगे लाइन लगाकर खड़ा था और ख़ुश होकर सोच रहा था मोदी जी ने अमीरों को भी हमारी तरह लाइन में खड़ा कर दिया है. मोदी ने नोटबंदी को वर्ग संघर्ष में बदल दिया. हालांकि, अमीर किसी को भी बैंकों की लाइन में खड़े नहीं दिख रहे थे.
जब लोगों में ये शंका घर करने लगी कि कहीं ऐसा तो नहीं कि सिर्फ़ वो ही लाइन में लगा दिए गए हैं अंबानी और अडानी नहीं — तो गांधीनगर से ख़बर आ गई कि प्रधानमंत्री मोदी की नब्बे वर्ष की मां हीराबेन तक बैंक की लाइन में खड़ी हुई हैं।
चारों ओर मोदी-मोदी के नारे गुंजायमान होने लगे पर विपक्ष ने मोदी के इस फ़ैसले पर हमला बोला तो मोदी ने जापान की यात्रा से लौटते ही तुरंत वहीं पुराना स्ट्रीट फ़ाइटर वाला चोला ओढ़ा और गोवा में बेहद तरल आवाज़ में कहा कि मेरे विरोधियों का बस चले तो वो मुझे ङ्क्षज़िदा जला दें।
फिर आया जीएसटी यानी गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स जिसको मोदी गुड एंड सिंपल टैक्स कहते हैं. पर जिसकी जेब से जीएसटी जाता है वो समझने लगा कि ये कितना गुड और कितना सिंपल टैक्स है. आधी रात को संसद के दोनों सदनों का संयुक्त सत्र आहूत करते जीएसटी को दूसरी आज़ादी की तरह पेश किया गया. ये कई दूसरे इवेंट्स की तरह एक और इवेंट था जिसे देखकर राष्ट्रभक्तों के सीने गर्व से फूल गए। पर जैसा कि इवेंट मैनेजमेंट। करने वाले जानते हैं कि इवेंट संपन्न होने के कुछ समय इसका नशा उतर जाता है और उत्तेजना ख़त्म हो जाती है, इस इवेंट का असर बहुत दिनों तक नहीं रहा. गुजरात में व्यापारी लाखों की संख्या में सडक़ों पर उतर आए। यहां व्यापारियों ने ेजगह-जगह होर्डिंग्स लगाकर मोदी भगाओ देश बचाओं के नारे लगा दिए। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में किसान बेचैन होने लगे उन्हें उनकी फ़सल की लागत तक नहीं मिल रही थी।
काला धन पता नहीं कहां बिला गया क्योंकि प्रतिबंधित नोट का 99 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्सा लोगों ने बैंकों में जमा करा दिया. नोटबंदी के बावजूद हिंदुस्तान से आतंकवाद की जड़ें नहीं उखड़ पाईं और न कश्मीरी पत्थरबाज़ ही बाज़ आए। और जब ये बात सामने आई कि अर्थव्यवस्था के विकास की दर 5.7 प्रतिशत तक गिर गई तब लोगों ने अपने नेज़े-भाले सान पर चढ़ाने शुरू कर दिए. महाभारत हर बार घर के भीतर ही लड़ा जाता रहा है.
इस बार भी नरेंद्र मोदी की नीतियों पर हमला ख़ुद उनकी पार्टी के सुब्रह्मण्यन स्वामी जैसे पुरोधाओं ने किया। आरएसएस से जुड़े एस. गुरुमूर्ति जो मोदी के परम समर्थकों में हैं -भी अर्थव्यवस्था के उत्तरोत्तर ख़स्ताहाल को नजऱअंदाज़ नहीं कर सके। अरुण शौरी तो लंबे अर्से से मोदी सरकार को ढाई लोगों की सरकार कहते आ रहे हैं — एक मोदी ख़ुद, एक बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और आधे अरुण जेटली। पर जब यशवंत सिन्हा ने इंडियन एक्सप्रेस में खुला लेख लिखकर जेटली को सीधे-सीधे और मोदी को थोड़ा इशारे से कठघरे में खड़ा किया तो लड़ाई कुरुक्षेत्र के मैदान में आ गई और मोदी जवाब देने को मजबूर हुए। मोदी ने सिन्हा को परोक्ष रूप से शल्य कहा तो बहुत से लोगों ने कोने में रखी महाभारत की धूल झाडक़र उसे पढऩा शुरू कर दिया. यशवंत सिन्हा ने भी नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी पर कटाक्ष करने के लिए महाभारत का ही सहारा लिया और एक समारोह में कहा - कौरव सौ भाई थे पर सिर्फ़ दो प्रसिद्ध हुए: दुर्योधन और दुशासन।
बीते साढ़े तीन बरस में यही सबसे बड़ा अंतर आया है. तब नरेंद्र मोदी एक स्ट्रीट फ़ाइटर की तरह अपने विरोधियों को सरेआम चारों खाने चित्त करते थे तो कहीं से कोई आवाज़ नहीं आती थी. अब यशवंत सिन्हा मोदी को उन्हीं की तरह, उन्हीं के मुहावरे में जवाब देकर राष्ट्रीय बहस का रुख़ मोड़ दे रहे हैं। मोदी जी आपको स्ट्रीट फाइट के साथ होम फाइट के लिए भी तैयार रहना होगा।
लोकसभा चुनाव जीतने और प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने शायद ही फिर कभी युवराज कहकर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का मखौल उड़ाया हो पर पिछले हफ़्ते हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनावों के लिए अपनी पार्टी के प्रचार अभियान की शुरुआत करते हुए उन्होंने फिर से राहुल गांधी का मज़ाक उड़ाने के अंदाज़ में उन्हें युवराज कहा और कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष और युवराज सहित पूरी कांग्रेस पार्टी ज़मानत पर है.
स्ट्रीट फ़ाइटर वाला चोला पहनते ही मोदी अपने विरोधियों को जोकरों की जमात में बदलने की कोशिश करते हैं ताकि उन पर हमला बोलना आसान हो जाए और सुनने वाले के दिमाग़ में मोदी-विरोधियों की यही थेथरी छवि बन जाए। तो दिल्ली में 49 दिन तक सरकार चलाने वाले अरविंद केजरीवाल एके-49 कहलाए गए, राहुल गांधी युवराज हो गए. पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी का दायरा मोदी ने अल्पसंख्यकों तक सीमित कर दिया था। इस कड़ी में ताज़ा नाम भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी का भी जुड़ गया है जिन्हें इशारे-इशारे में मोदी ने महाभारत के शल्य की उपाधि से विभूषित कर दिया।
मोदी ने कहा कि महाभारत के शल्य की तरह कुछ मु_ी भर लोग हमेशा हताशा की बात करते हैं और कहते हैं — कुछ भी ठीक नहीं होगा। इन लोगों को हताशा फैलाने से रात को अच्छी नींद आती है। पर नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण के हर तीसरे वाक्य पर ताली बजाने वाले कंपनी सेक्रेटरीज़ को ये नहीं बताया कि नकारात्मकता फैलाने वाले शल्य को दुर्योधन ने एक चाल के ज़रिए महाभारत में कौरवों का पक्ष लेने के लिए तैयार किया था। जब शल्य को इस छल का अंदाज़ा हुआ तब उन्होंने युधिष्ठिर को वचन दिया कि वो युद्ध में कर्ण को हतोत्साहित करते रहेंगे। शरीर से कौरवों के पक्ष में लड़ेंगे पर मन और दिमाग़ से पाण्डवों का साथ देंगे।
शल्य को मालूम था कि कौरव महाभारत का युद्ध नहीं जीत पाएंगे और वो युद्ध के दौरान कर्ण को लगातार यही सच बता रहे थे। पर कर्ण को शल्य का सच पसंद नहीं आया।
किसी भी युग, देश, काल और परिस्थितियों में तमाम बाधाओं को पार कर, अपने विरोधियों को परास्त कर एक ख़ास मुक़ाम तक पहुंचे कर्ण को फ़ैसलाकुन क्षणों में शल्य का सच निराशाजनक ही लगता है।
गुजरात से दिल्ली की ओर क़दम बढ़ाने के साथ ही नरेंद्र मोदी ने लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे बुज़ुर्ग नेताओं के साथ-साथ यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी जैसे बीजेपी के नेताओं को भी हाशिए पर डाल दिया था। इससे पहले गुजरात में तो उन्होंने आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद के कुछ लोगों के लिए भी कई दरवाज़े बंद कर दिए. मोदी का सितारा बुलंद था और उनके हर फ़ैसले को लीक से हटकर और बोल्ड माना जाता था। इसलिए दबे सुरों में थोड़ी बहुत आलोचना हुई पर इससे ज़्यादा कुछ नहीं कहा गया। पर फिर आई आठ नवंबर 2016 की शाम जब नरेंद्र मोदी ने एक बोल्ड फ़ैसला लेकर ऐलान कर दिया कि आधी रात के बाद से 500 और 1000 के नोट लीगल टेंडर नहीं रह जाएंगे। अगले कुछ महीने पूरा हिंदुस्तान बैंको के आगे लाइन लगाकर खड़ा था और ख़ुश होकर सोच रहा था मोदी जी ने अमीरों को भी हमारी तरह लाइन में खड़ा कर दिया है. मोदी ने नोटबंदी को वर्ग संघर्ष में बदल दिया. हालांकि, अमीर किसी को भी बैंकों की लाइन में खड़े नहीं दिख रहे थे.
जब लोगों में ये शंका घर करने लगी कि कहीं ऐसा तो नहीं कि सिर्फ़ वो ही लाइन में लगा दिए गए हैं अंबानी और अडानी नहीं — तो गांधीनगर से ख़बर आ गई कि प्रधानमंत्री मोदी की नब्बे वर्ष की मां हीराबेन तक बैंक की लाइन में खड़ी हुई हैं।
चारों ओर मोदी-मोदी के नारे गुंजायमान होने लगे पर विपक्ष ने मोदी के इस फ़ैसले पर हमला बोला तो मोदी ने जापान की यात्रा से लौटते ही तुरंत वहीं पुराना स्ट्रीट फ़ाइटर वाला चोला ओढ़ा और गोवा में बेहद तरल आवाज़ में कहा कि मेरे विरोधियों का बस चले तो वो मुझे ङ्क्षज़िदा जला दें।
फिर आया जीएसटी यानी गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स जिसको मोदी गुड एंड सिंपल टैक्स कहते हैं. पर जिसकी जेब से जीएसटी जाता है वो समझने लगा कि ये कितना गुड और कितना सिंपल टैक्स है. आधी रात को संसद के दोनों सदनों का संयुक्त सत्र आहूत करते जीएसटी को दूसरी आज़ादी की तरह पेश किया गया. ये कई दूसरे इवेंट्स की तरह एक और इवेंट था जिसे देखकर राष्ट्रभक्तों के सीने गर्व से फूल गए। पर जैसा कि इवेंट मैनेजमेंट। करने वाले जानते हैं कि इवेंट संपन्न होने के कुछ समय इसका नशा उतर जाता है और उत्तेजना ख़त्म हो जाती है, इस इवेंट का असर बहुत दिनों तक नहीं रहा. गुजरात में व्यापारी लाखों की संख्या में सडक़ों पर उतर आए। यहां व्यापारियों ने ेजगह-जगह होर्डिंग्स लगाकर मोदी भगाओ देश बचाओं के नारे लगा दिए। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में किसान बेचैन होने लगे उन्हें उनकी फ़सल की लागत तक नहीं मिल रही थी।
काला धन पता नहीं कहां बिला गया क्योंकि प्रतिबंधित नोट का 99 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्सा लोगों ने बैंकों में जमा करा दिया. नोटबंदी के बावजूद हिंदुस्तान से आतंकवाद की जड़ें नहीं उखड़ पाईं और न कश्मीरी पत्थरबाज़ ही बाज़ आए। और जब ये बात सामने आई कि अर्थव्यवस्था के विकास की दर 5.7 प्रतिशत तक गिर गई तब लोगों ने अपने नेज़े-भाले सान पर चढ़ाने शुरू कर दिए. महाभारत हर बार घर के भीतर ही लड़ा जाता रहा है.
इस बार भी नरेंद्र मोदी की नीतियों पर हमला ख़ुद उनकी पार्टी के सुब्रह्मण्यन स्वामी जैसे पुरोधाओं ने किया। आरएसएस से जुड़े एस. गुरुमूर्ति जो मोदी के परम समर्थकों में हैं -भी अर्थव्यवस्था के उत्तरोत्तर ख़स्ताहाल को नजऱअंदाज़ नहीं कर सके। अरुण शौरी तो लंबे अर्से से मोदी सरकार को ढाई लोगों की सरकार कहते आ रहे हैं — एक मोदी ख़ुद, एक बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और आधे अरुण जेटली। पर जब यशवंत सिन्हा ने इंडियन एक्सप्रेस में खुला लेख लिखकर जेटली को सीधे-सीधे और मोदी को थोड़ा इशारे से कठघरे में खड़ा किया तो लड़ाई कुरुक्षेत्र के मैदान में आ गई और मोदी जवाब देने को मजबूर हुए। मोदी ने सिन्हा को परोक्ष रूप से शल्य कहा तो बहुत से लोगों ने कोने में रखी महाभारत की धूल झाडक़र उसे पढऩा शुरू कर दिया. यशवंत सिन्हा ने भी नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी पर कटाक्ष करने के लिए महाभारत का ही सहारा लिया और एक समारोह में कहा - कौरव सौ भाई थे पर सिर्फ़ दो प्रसिद्ध हुए: दुर्योधन और दुशासन।
बीते साढ़े तीन बरस में यही सबसे बड़ा अंतर आया है. तब नरेंद्र मोदी एक स्ट्रीट फ़ाइटर की तरह अपने विरोधियों को सरेआम चारों खाने चित्त करते थे तो कहीं से कोई आवाज़ नहीं आती थी. अब यशवंत सिन्हा मोदी को उन्हीं की तरह, उन्हीं के मुहावरे में जवाब देकर राष्ट्रीय बहस का रुख़ मोड़ दे रहे हैं। मोदी जी आपको स्ट्रीट फाइट के साथ होम फाइट के लिए भी तैयार रहना होगा।
कौन था नीरो
नीरो रोम का सम्राट् था। उसकी माता ऐग्रिप्पिना, जो रोम के प्रथम सम्राट् आगस्टस की प्रपौत्री थी, बड़ी ही महत्वाकांक्षिणी थी। उसने बाद में अपने मामा सम्राट् क्लाडिअस प्रथम से विवाह कर लिया और अपने नए पति को इस बात के लिए राजी कर लिया कि वह नीरो को अपना दत्तक पुत्र मान ले और उसे ही राज्य का उत्तराधिकारी घोषित कर दे। नीरो को शीघ्र ही गद्दी पर बैठाने के लिए ऐग्रिप्पिना उतावली हो उठी और उसने जहर दिलाकर क्लाडिअस की हत्या करा दी।
रोम निवसियों ने पहले तो नीरो का स्वागत और समर्थन किया क्योंकि वह पितृ परंपरा से ही नहीं मातृ परंपरा से भी सम्राट् आगस्टस का वंशज था। शुरु में उसने अपने गुरु सेनेका से प्रभावित होकर राज्य का शासन भी अच्छी तरह से किया किंतु शीघ्र ही उसके दुर्गुण प्रकट होने लगे। सन्? 55 में उसने अपने प्रतिद्वंद्वी ब्रिटेनिकस को, जो क्लाडिअस का अपना पुत्र होने के कारण, राज्य का वास्तविक दावेदार था, जहर देकर मरवा डाला और चार वर्ष बाद खुद अपनी माता की भी हत्या करा दी। फिर उसने अनी पत्नी आक्टेविया को भी मरवा डाला और अपनी दूसरी स्त्री पापीया को क्रोधाविष्ट होकर मार डाला। उसने एक तीसरी स्त्री से विवाह करना चाहा पर उसने इनकार कर दिया और उसे भी मौत के घाट उतार दिया गया। इसके बाद नीरो ने एक और स्त्री के पति को मरवा डाला ताकि वह उसे अपनी पत्नी बना सके। धीरे धीरे उसके प्रति असंतोष बढऩे लगा। एक षडय़ंत्र का सुराग पाकर उसने अपने गुरु सेनेका को आत्महत्या करने का आदेश दिया। इसके सिवा और भी कई प्रसिद्ध पुरुषों को मृत्युदंड दे दिया गया।
सन् 64 में रोम नगर में अत्यंत रहस्यमय ढंग से आग की लपटें भडक़ उठीं जिससे आधे से अधिक नगर जलकर खाक हो गया। जब आग धूधू कर के जल रही थी नीरो एक स्थान पर खड़े होकर उसकी विनाशलीला देख रहा था और सारंगी बजा रहा था। यद्यपि कुछ लोगों का ख्याल है कि आग स्वयं नीरो ने लगवाई थी पर ऐसा समझने के लिए वस्तुत: कोई आधार नहीं है। आग बुझ जाने के बाद नीरो ने नगर के पुनर्निमणि का कार्य आरंभ किया और अपने लिए 'स्वर्ण मंदिर' नामक एक भव्य प्रासाद बनवाया। असह्य करभार, शासन संबंधी बुराइयों तथा अनेक क्रूरताओं के कारण उसके विरुद्ध विद्रोह की भावना बढ़ती गई। स्पेन के रोमन गवर्नर ने अपनी फौजों के साथ रोम पर हमला बोल दिया जिसमें स्वयं नीरो को अंगरक्षक सेना भी शामिल हो गई। नीरो को राज्य से पलायन करना पड़ा। इसी बीच सिनेट ने उसे फाँसी पर चढ़ा देने का निर्णय किया। गिरफ्तारी से बचने के लिए उसने आत्महत्या कर ली।
रोम निवसियों ने पहले तो नीरो का स्वागत और समर्थन किया क्योंकि वह पितृ परंपरा से ही नहीं मातृ परंपरा से भी सम्राट् आगस्टस का वंशज था। शुरु में उसने अपने गुरु सेनेका से प्रभावित होकर राज्य का शासन भी अच्छी तरह से किया किंतु शीघ्र ही उसके दुर्गुण प्रकट होने लगे। सन्? 55 में उसने अपने प्रतिद्वंद्वी ब्रिटेनिकस को, जो क्लाडिअस का अपना पुत्र होने के कारण, राज्य का वास्तविक दावेदार था, जहर देकर मरवा डाला और चार वर्ष बाद खुद अपनी माता की भी हत्या करा दी। फिर उसने अनी पत्नी आक्टेविया को भी मरवा डाला और अपनी दूसरी स्त्री पापीया को क्रोधाविष्ट होकर मार डाला। उसने एक तीसरी स्त्री से विवाह करना चाहा पर उसने इनकार कर दिया और उसे भी मौत के घाट उतार दिया गया। इसके बाद नीरो ने एक और स्त्री के पति को मरवा डाला ताकि वह उसे अपनी पत्नी बना सके। धीरे धीरे उसके प्रति असंतोष बढऩे लगा। एक षडय़ंत्र का सुराग पाकर उसने अपने गुरु सेनेका को आत्महत्या करने का आदेश दिया। इसके सिवा और भी कई प्रसिद्ध पुरुषों को मृत्युदंड दे दिया गया।
सन् 64 में रोम नगर में अत्यंत रहस्यमय ढंग से आग की लपटें भडक़ उठीं जिससे आधे से अधिक नगर जलकर खाक हो गया। जब आग धूधू कर के जल रही थी नीरो एक स्थान पर खड़े होकर उसकी विनाशलीला देख रहा था और सारंगी बजा रहा था। यद्यपि कुछ लोगों का ख्याल है कि आग स्वयं नीरो ने लगवाई थी पर ऐसा समझने के लिए वस्तुत: कोई आधार नहीं है। आग बुझ जाने के बाद नीरो ने नगर के पुनर्निमणि का कार्य आरंभ किया और अपने लिए 'स्वर्ण मंदिर' नामक एक भव्य प्रासाद बनवाया। असह्य करभार, शासन संबंधी बुराइयों तथा अनेक क्रूरताओं के कारण उसके विरुद्ध विद्रोह की भावना बढ़ती गई। स्पेन के रोमन गवर्नर ने अपनी फौजों के साथ रोम पर हमला बोल दिया जिसमें स्वयं नीरो को अंगरक्षक सेना भी शामिल हो गई। नीरो को राज्य से पलायन करना पड़ा। इसी बीच सिनेट ने उसे फाँसी पर चढ़ा देने का निर्णय किया। गिरफ्तारी से बचने के लिए उसने आत्महत्या कर ली।
नीरो की तरह योगी भी जलते उत्तर प्रदेश को छोड़ कर बंसी बजा रहे हैंं?
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आजकल रोम के सम्राट नीरो की भूमिका निभा रहे हैं। पूरा प्रदेश आपराधिक घटनाओं से जल रहा है परन्तु वे भाजपा के संकटमोचक बने हुए हैं। कभी केरल, कभी हरियाणा तो कभी गुजरात की ओर रुख कर रहे हैं। यहां उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ गैंगरेप, विस्फोट से हिल रही है तो पड़ोसी शहर कानपुर महानगर भी विस्फोट और दंगों से सुलग रहा है। नोएडा और ग्रेटर नोएडा की बात ही कहने की नहीं है। अब एक दिल दहलाने वाली घटना मुजफ्फरनगर में हुई जहां एक महिला के साथ चार-पांच बदमाशों ने पति और बच्चे को गन प्वाइंट पर लेकर गन्ने के खेतों में गैंगरेप किया।
हालांकि वह पार्टी के सदस्य हैं, पदाधिकारी है और लंबे समय तक सांसद भी रहे हैं और अब देश की राजनीति दिशा तय करने वाले राज्य के मुख्यमंत्री भी हैं। ऐसे में योगी आदित्यनाथ को सबसे पहले अपना घर संभालना चाहिये कि केरल,हरियाणा और गुजरात को संभालना चाहिए। कहावत कहीं गयी है एक को साधे सब मिले सब साधे सब जाए। यानी पहले एक को संभालों तो कम से कम एक तो मिले। सब संभालने के लिए भागदौड़ भी करोगे और हाथ कुछ भी न आएगा। प्रदेश की जनता योगी से कितनी अपेक्षाएं रख रहीं थी वह पूरी हुई कि नहीं यह देखना चाहिए।
सबसे बड़ी बात यह है कि प्रदेश के राज्यपाल नामनाईक जो पहले, भाजपा के पदाधिकारी भी रह चुके हैँ, वह भी कह चुके हैं कि प्रदेश की कानून-व्यवस्था की स्थिति ठीक नहीं है, इसे सुधारो। हाल ही में कानपुर विश्वविद्यालय में अपने कार्यक्रम से पूर्व पत्रकारों से बाचतीत में उन्होंने कहा कि प्रदेश में कानून- व्यवस्था की स्थिति ठीक नहीं है। योगी शासन में भी यही कर रहा हूं और अखिलेश सरकार में भी कहता था।
हालांकि वह पार्टी के सदस्य हैं, पदाधिकारी है और लंबे समय तक सांसद भी रहे हैं और अब देश की राजनीति दिशा तय करने वाले राज्य के मुख्यमंत्री भी हैं। ऐसे में योगी आदित्यनाथ को सबसे पहले अपना घर संभालना चाहिये कि केरल,हरियाणा और गुजरात को संभालना चाहिए। कहावत कहीं गयी है एक को साधे सब मिले सब साधे सब जाए। यानी पहले एक को संभालों तो कम से कम एक तो मिले। सब संभालने के लिए भागदौड़ भी करोगे और हाथ कुछ भी न आएगा। प्रदेश की जनता योगी से कितनी अपेक्षाएं रख रहीं थी वह पूरी हुई कि नहीं यह देखना चाहिए।
सबसे बड़ी बात यह है कि प्रदेश के राज्यपाल नामनाईक जो पहले, भाजपा के पदाधिकारी भी रह चुके हैँ, वह भी कह चुके हैं कि प्रदेश की कानून-व्यवस्था की स्थिति ठीक नहीं है, इसे सुधारो। हाल ही में कानपुर विश्वविद्यालय में अपने कार्यक्रम से पूर्व पत्रकारों से बाचतीत में उन्होंने कहा कि प्रदेश में कानून- व्यवस्था की स्थिति ठीक नहीं है। योगी शासन में भी यही कर रहा हूं और अखिलेश सरकार में भी कहता था।
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