मोदी जब प्रधानमंत्री पद के दावेदार बनें और देशभर में घूम-घूम कर अच्छे दिन का प्रचार कर रहे थे। तब यह माना जा रहा था कि मोदी की सरकार बनेगी लेकिन खिचड़ी सरकार बनेगी या एनडीए की साझा सरकार बनेगी। उस समय अमित शाह ने ही जुमला दिया था कि यदि मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं तो देश का काला धन जो स्विस बैंकों में जमा है, उसे देश लाया जाएगा और इससे प्रत्येक भारतवासी के खाते में 15-15 लाख रुपये जमा किए जाएंगे। इससे मोदी और भाजपा के प्रति लोगों का समर्थन बढ़ गया। यही नहीं उत्तर प्रदेश में चुनाव हो रहे थे तो वहां पश्चिमी उत्तर प्रदेश मेें हुए दंगों को लेकर उन्होंने एक ऐसा बयान दिया था जिसके चलते वोटों का एकतरफा धु्रवीकरण हो गया था, जिसके परिणामस्वरूप भाजपा को प्रचंड बहुमत और विपक्ष धराशायी हो गया था। अब चूंकि आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार की किरकिरी हो रही है और विपक्ष के साथ ही असंतुष्ट भाजपाई सरकार को घेर रहे हैं। ऐसे में जय शाह का मामला आग में घी की तरह है। इस मामले में पहली बार अमित शाह ने जो सफाई दी है वह जनता के गले नहीं उतर रही है। अमित शाह के लिए सुनहरा मौका है, यदि वे नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे देते हैं तो मोदी सरकार की टीआरपी फर्श से अर्श तक पहुंच जाएगी। यदि ऐसा नहीं करते हैं तो इसका खामियाजा मोदी सरकार को ही भुगतना होगा। लोग ये समझ रहे हैं कि मोदी तो ईमानदार हैं लेकिन उनके साथी वैसे नहीं हैं, वे दोनों हाथों से अपनी झोलियां भर रहे हैं। अमित शाह जब सफाई देते वक्त बोफोर्स कांड का जिक्र कर रहे थे तब उन्हें यह भी ध्यान कर लेना चाहिए था कि इस कांड का खुलासा ठीक ऐसे ही समय हुआ था जब राजीव गांधी ईमानदार व्यक्ति थे और उनकी किचेन कैबिनेट के लोग ऐसे थे जिनकी वजह से प्रचंड बहुमत वाली कांग्रेस को सरकार बनाने तक का मौका नहीं मिला था।
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Friday, 13 October 2017
शाह मोदी को ले डूबेंगे
मोदी जब प्रधानमंत्री पद के दावेदार बनें और देशभर में घूम-घूम कर अच्छे दिन का प्रचार कर रहे थे। तब यह माना जा रहा था कि मोदी की सरकार बनेगी लेकिन खिचड़ी सरकार बनेगी या एनडीए की साझा सरकार बनेगी। उस समय अमित शाह ने ही जुमला दिया था कि यदि मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं तो देश का काला धन जो स्विस बैंकों में जमा है, उसे देश लाया जाएगा और इससे प्रत्येक भारतवासी के खाते में 15-15 लाख रुपये जमा किए जाएंगे। इससे मोदी और भाजपा के प्रति लोगों का समर्थन बढ़ गया। यही नहीं उत्तर प्रदेश में चुनाव हो रहे थे तो वहां पश्चिमी उत्तर प्रदेश मेें हुए दंगों को लेकर उन्होंने एक ऐसा बयान दिया था जिसके चलते वोटों का एकतरफा धु्रवीकरण हो गया था, जिसके परिणामस्वरूप भाजपा को प्रचंड बहुमत और विपक्ष धराशायी हो गया था। अब चूंकि आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार की किरकिरी हो रही है और विपक्ष के साथ ही असंतुष्ट भाजपाई सरकार को घेर रहे हैं। ऐसे में जय शाह का मामला आग में घी की तरह है। इस मामले में पहली बार अमित शाह ने जो सफाई दी है वह जनता के गले नहीं उतर रही है। अमित शाह के लिए सुनहरा मौका है, यदि वे नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे देते हैं तो मोदी सरकार की टीआरपी फर्श से अर्श तक पहुंच जाएगी। यदि ऐसा नहीं करते हैं तो इसका खामियाजा मोदी सरकार को ही भुगतना होगा। लोग ये समझ रहे हैं कि मोदी तो ईमानदार हैं लेकिन उनके साथी वैसे नहीं हैं, वे दोनों हाथों से अपनी झोलियां भर रहे हैं। अमित शाह जब सफाई देते वक्त बोफोर्स कांड का जिक्र कर रहे थे तब उन्हें यह भी ध्यान कर लेना चाहिए था कि इस कांड का खुलासा ठीक ऐसे ही समय हुआ था जब राजीव गांधी ईमानदार व्यक्ति थे और उनकी किचेन कैबिनेट के लोग ऐसे थे जिनकी वजह से प्रचंड बहुमत वाली कांग्रेस को सरकार बनाने तक का मौका नहीं मिला था।
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