13 दिन चुनाव तिथियां इसीलिए टाली गई थीं
गुजरात में विधानसभा चुनाव की तिथियां चुनाव आयोग ने स्वयं नहीं टाली गईं जैसी कि आशंका थी, ठीक वैसा ही हुआ। मोदी और रूपानी सरकार को रेवडिय़ां बांटने का मौका देने के लिए थोड़ी देर के लिए चुनाव आयोग ने शेषन के जमाने के आयोग का चोला ओढ़ लिया था। लेकिन जैसे ही चुनाव तिथियों की घोषणा हुई वैसे ही सच्चाई सामने आ गई। कुलदीप नैय्यर ने अपने आलेख में चुनाव आयोग पर संदेह की बात कही है, जो बात पूरी तरह से सच साबित हो रही है। जैसा कि चुनाव आयोग ने गुजरात में चुनाव तिथियां हिमाचल विधानसभा की चुनाव तिथियों के साथ घोषित न किए जाने की अपनी विवशता बताई थी। गुजरात में बाढ़ एवं पुनर्वास का कार्य पूर्ण न हो पाने के कारण चुनाव आयोग ऐसा न कर सका। इस पर दो पूर्व चुनाव आयुक्त ने अपनी सख्त टिप्पणी दी। एक पूर्व चुनाव आयुक्त ने कहा कि बाढ़ राहत का कार्य अधिकारी करते हैं न कि राजनीतिज्ञ और एक पखवाड़े के अंदर होने वाले दो राज्यों की विधानसभा के चुनाव की तिथियां एक साथ ही घोषित की जानी चाहिएं भले ही वहां चुनाव एक पखवाड़े के अंदर कराए जाएं। चुनाव आयोग की इन बातों का मतलब देश की जनता आसानी से निकाल रही है। उसे सब मालूम है कि गुजरात की चुनाव तिथियां क्यों नहीं घोषित की जा सकीं थी। अब क्यों हुई?चुनाव आयोग ने बुधवार को विवादों और आरोपों के बाद गुजरात चुनावों का कार्यक्रमों की घोषणा कर दी है , जिसके अनुसार 9 और 14 दिसम्बर को दो चरणों में मतदान कराये जायेंगे और 18 दिसम्बर को नतीजे घोषित होंगे । इसके तुरंत बाद से राज्य में चुनाव आचार संहिता लागू हो गई है यानी अब सरकार किसी भी नई योजना की घोषणा नहीं कर सकेगी। हिमाचल के चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा 12 अक्टूबर को की गई थी जिसके 13 दिन बाद गुजरात की तारीख़ों का ऐलान किया गया। इस बीच आरोप लगे कि चुनाव आयोग जान-बूझकर देरी कर रहा है ताकि नरेंद्र मोदी को बड़ी योजनाओं की घोषणा करने का समय मिल जाए। 12 अक्टूबर से 25 अक्टूबर के बीच कई बड़ी सरकारी योजनाओं का ऐलान किया भी गया। मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने 16 अक्टूूबर को किसानों को तीन लाख रुपए तक का कर्ज़ बिना ब्याज के देने का ऐलान किया था जिससे सरकार पर 700 करोड़ रुपए का भार पडऩे का अनुमान है। ड्रिप सिंचाई के उपकरणों पर 18 प्रतिशत जीएसटी का पूरा भार अब सरकार उठाएगी।
गुजरात सरकार पाटीदार आंदोलन के दौरान पटेल समुदाय के लोगों पर दर्ज किए मुक़दमे ख़त्म करने का फ़ैसला लिया है। पाटीदार समुदाय से जुड़े ओमिया माताजी संस्थान को ऊंझा में पर्यटन सेवाओं के विकास के लिए आर्थिक मदद देने की घोषणा की है। मां वात्सल्य योजना का लाभ अब तक 1.5 लाख रुपए सालाना कमाने वाली महिलाओं को मिलता था लेकिन अब ये सीमा बढ़ाकर 2.5 लाख की गई। कांट्रेक्ट पर काम करने वाली महिला कर्मियों के लिए 90 दिनों का मातृत्व अवकाश देने की घोषणा की गई। आशा कार्यकर्ताओं का वेतन 50 फ़ीसदी बढ़ाया गया।
उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल ने नगरपालिका कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग का फ़ायदा और आईटीआई के कर्मचारियों के वेतन में बढ़ोत्तरी और साथी सहायक शिक्षक (शिक्षामित्र) का वेतन 10500 रुपए प्रति महीने से बढ़ाकर 16222 रुपए किया था. विद्या सहयाकों का वेतन 16500 से बढ़ाकर 25000 किया गया. चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के वेतन में भी वृद्धि की गई. सरकार ने ठेके पर काम कर रहे सरकारी कर्मचारियों के लिए 11 दिन की कैज़ुअल छुट्टी देने,काम के दौरान दुर्घटना में मौत होने पर परिजनों को दो लाख रुपए मुआवज़ा देने का ऐलान किया। सरकार ने इन कर्मचारियों को ढाई सौ रुपए का यात्रा भत्ता भी देने की घोषणा की है.
बड़ी योजनाओं का ऐलान
मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने 16 अकटूूबर को 900 करोड़ के प्रोजेक्टों का उद्घाटन किया था। गुजरात सरकार ने अहमदाबाद शहर में साढ़े छह हज़ार करोड़ रुपए की लागत से बनने वाले मेट्रो प्रोजेक्ट के दूसरे चरण को भी मंज़ूरी दे दी है। गुजरात सरकार ने अहमदाबाद के रिंग रोड पर टोल टैक्स ख़त्म कर दिया था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी वडोदरा यात्रा के दौरान 100 करोड़ रुपए के सिटी कमांड एंड कंट्रोल सेंटर, 160 करोड़ रुपए की लागत से बनने वाले ट्रांसपोर्ट हब प्रोजेक्ट, 125 करोड़ की जनमहल सिटी ट्रांसपोर्ट हब योजना, 267 करोड़ की लागत से बनने वाले वेस्ट टू एनर्जी सेंटर जैसी योजनाओं का शिलान्यास किया या घोषणा की। मोदी ने 6 करोड़ के वेटरनिटी हॉस्पिटल, 265 करोड़ के दो फ्लाइओवर, 166 करोड़ के वाटर ट्रीटमेंट प्लांट का भी ऐलान किया।
वरिष्ठ पत्रकार मानते हैं कि गुजरात सरकार ने चुनावों की घोषणा में हुई देरी का पूरा फ़ायदा उठाया है और समाज के कई वर्गों को आकर्षित करने की कोशिश की है। उनका कहना है कि भाजपा सरकार ने समाज के असंतुष्ट या असंगठित वर्गों को लुभाने की कोशिशें की हैं। सरकार ने रविवार को भी कैबिनेट की बैठक कर कई योजनाओं का ऐलान किया है। ऐसे में सरकार ने मतदाताओं को रिझाने की हर मुमकिन कोशिश की है।
इसे शुद्ध राजनीतिक बेमानी कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगी क्योंकि सरकार से बाहर के लोग मतदाताओं को किसी तरह से रिझाते हैं तो उन पर उंगलियां उठ सकती हैं। ऐसे में राहुल गांधी कितना चमत्कार दिखा सकते हैं ये तो वक्त ही बताएगा।
No comments:
Post a Comment