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Saturday, 28 October 2017

क्या कांग्रेस से सबक लेगी भाजपा?

चेहरा से बड़ा कद होगा पार्टी का या...

भारतीय जनता पार्टी आजकल सफलता की सीढिय़ों पर लगातार अग्रसर है। इस सफलता का श्रेय भाजपा की जगह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दें तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। लेकिन यहां पर यह गहन मंथन करने की आवश्यकता है कि भाजपा क्या हमेशा लोकप्रिय चेहरे पर निर्भर रहेगी। इतिहास में झांके तो दूसरी बार यह सफलता भाजपा को नहीं लोकप्रिय चेहरे को मिली है। इससे पहले अटल बिहारी वाजपेयी का चेहरा था अब नरेन्द्र मोदी का चेहरा है। यही कुछ किस्सा कांग्रेस का है। कांग्रेस के पास जब तक लोकप्रिय चेहरा रहा तब तक वह सत्ता की सीढिय़ों पर चढ़ती रही। इसके अलावा कांग्रेस को दो मौके सहानुभूति लहर के मिले। पार्टी इन अवसरों को भुनाने की जगह सत्ता को अपनी बपौती मान बैठी। जनता को विकल्पविहीन मान बैठी। हालांकि जनता ने इसी कांग्रेस को सहानुभूति लहर का लाभ देते हुए 10 वर्ष तक झेला। झेला इसलिए कहेंगे कि जनता की आवाज को कोई सुनने वाला नहीं था और न ही कोई जवाब देने वाला था। प्रधानमंत्री पद पर मनमोहन सिंह नेता कम अधिकारी अधिक थे। अधिकारी काम करता है और नेता बोलता है। अधिकारी की भूमिका मनमोहन सिंह ने अच्छी निभाई परन्तु एक परिपक्व नेता की भूमिका जो राहुल गांधी को निभानी चाहिए थी, उसकी जगह बचकानी हरकत करते नजर आए। और देश के प्रधानमंत्री को अपनी पार्टी और अपने परिवार का नौकर की तरह ट्रीट किया। मनमोहन सिंह की सत्ता के दूसरे कार्यकाल में तो अति ही कर दी। किंगमेकर की तरह सरकार को रोज-रोज डांटना फटकारना, वह भी पब्लिकली। इस पर मनमोहन सिंह जब सत्ता में शामिल होने को कहते, उप प्रधानमंत्री बनने को कहते, प्रधानमंत्री पद की पेशकश तक की, तब चुप रहे। यह सब नजारा जनता से छिपा भी नहीं रहा। इसका असर आज जो दिख रहा है वह सब सामने है। आज गुजरात के चुनाव में कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी पूरा जोर लगा रहे हैं लेकिन हालात यह है कि हार्दिक पटेल उनसे ज्यादा लोकप्रिय हैं और कांग्रेस को धमकी दे रहे हैं। कांग्रेस के पास इंदिरा गांधी का चेहरा था, सत्ता में लगातार रही, उसके बाद सहानुभूति लहर से राजीव गांधी सत्ता में आए और चले गए। दूसरी बार वह अपनी मेहनत और लोकप्रियता के चलते सत्ता में आते-आते रह गए। आने वाले ही थे कि ईश्वर ने उनके साथ बहुत दुखद हादसा कर दिया। इसके बाद सहानुभूति लहर में कांग्रेस फिर सत्ता में आई लेकिन चेहरा राजीव गांधी का ही रहा। इसके बाद जो दुर्गति कांग्रेस की हुुई वह सब जानते ही हैं।  अब सवाल भाजपा का है  कि क्या वह कांग्रेस से सबक लेना चाहेगी। क्या वह लोकप्रिय चेहरे को पार्टी से ऊपर रखेगी या पार्टी का कद बढ़ाएगी। गुजरात के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोद को जरूर समझ में आ रहा होगा कि चेहरा अब पार्टी पर भारी पड़ रहा है। उनके स्वयं के सिवाय कोई और जनता के बीच लोकप्रिय नहीं है और इसलिए मोदी को गुजरात में अधिक जोर लगाना पड़ रहा है। बेहतर तो यही होगा कि मोदी अभी से अपने चेहरे से अधिक भाजपा को अधिक लोकप्रिय बनाएं तो पार्टी का भविष्य उज्ज्वल हो सकता है क्योंकि मोदी का चेहरा कब तक लोकप्रिय रहेगा कोई नहीं जानता। शायद इसकी शुरुआत जल्द ही हो। वरना भाजपा के कांग्रेस बनते देर नहीं लगेगी। 

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