उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। सभी दलों में खलबली मच चुकी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस अतिविश्वास से अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा है कि 2019 की चिंता छोड़ो और 2024 की तैयारी में लग जाओ, वह कहीं भारी न पड़ जाए। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार अच्छा कार्य कर रही है, लेकिन यहां चाटुकारों के चलते उसकी किरकिरी भी हो रही है। ऐसे में 2014 के चुनावों में अपना सब कुछ गंवाए सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपनी नई पारी कुछ ज्यादा ही जोश से शुरू की है। इलाहाबाद विश्व विद्यालय के छात्रसंघ के चुनाव में सपा को मिली सफलता से उन्हें संजीवनी मिल गई है। इस बीच निकाय चुनाव में मची दलों के भगदड़ में सपा को काफी लाभ मिल रहा है। इससे यह टैम्पो बन रहा है कि निकाय चुनावों में सपा चौँकाने वाले परिणाम दे सकती है। यदि यह सच रहा तो मोदी के लिए 2019 का आम चुनाव कम से कम उत्तर प्रदेश में महंगा पड़ सकता है। उसका कारण योगी सरकार की कार्यशैली से असंतुष्ट जनता और टिकट की मारामारी से असंतुष्ट पार्टी नेता अपना बागी रोल तो निभायेंगे। ऐसे में भाजपा को उतनी प्रचंड जीत नहीं मिल पाएगी जितनी 2014 में मिल चुकी है। वैसे भी यह कहा जा रहा है कि 2014 में जीत भाजपा को नहीं बल्कि सपा के हिन्दू विरोधी रवैये से सफलता मिली थी। रहा सवाल उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का तो वह तो सभी के सामने स्पष्ट है कि सपा के यादव कुनबे में महाभारत न होती तो भाजपा का परिणाम इतना सकारात्मक न होता। यह तो चुनाव से पहले भाजपा नेता स्वयं ही स्वीकार रहे थे।
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