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Monday, 16 January 2017

..तो सपा का विभाजन नहीं हुआ

पूरी पार्टी ही अखिलेश को शिफ्ट हो गई

उत्तर प्रदेश के सियासी जगत में यह चर्चा आम है कि समाजवादी पार्टी का विभाजन हो गया है लेकिन कानूनी दांवपेंच यह कहते हैँ कि समाजवादी पार्टी का विभाजन नहीं हुआ है बल्कि पूरी पार्टी ही मुलायम सिंह के पास से अखिलेश के पास शिफ्ट हो गयी है।अखिलेश जहां समाजवादी पार्टी के सर्वेसर्वा बन गए हैं और मुलायम सिंह पैदल हो गए हैं। कानूनी जानकारों की मानें तो यह लड़ाई सिर्फ पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए थी और यह पद अखिलेश को मिल गया और मुलायम सिंह पैदल हो गए यानी बिना किसी पार्टी के। जीवनभर राजनीति के अखाड़े में बड़े-बड़े लोगों को चित करने वाले मुलायम सिंह यादव आज अपने ही बेटे के सामने चित हो गए हैं। इसे मुलायम सिंह की कमी कहें या ट्विटर पर आए उस कमेंट को सच माना जाए जिसमें कहा गया है कि नेताजी यानी मुलायम सिंह ने बड़ी ही चालाकी से अपनी पार्टी की कमान अपने बेटे को सौंप दी। यह सच इसलिए भी माना जा सकता है क्योंकि जब चुनाव आयोग ने दोनों खेमों को अपने-अपने समर्थक पार्टी पदाधिकारियों, सांसदों व विधायकों के समर्थन पत्र मांगे थे तो मुलायम सिंह यादव ने उन पत्रों को क्यों नहंी सौंप जबकि अखिलेश यादव ने ये कागजात सौंपा। हल्के मन से लड़ाई दूसरी ओर भी संकेत करती है। अब जब वह पैदल हो गए हैं तो वह क्या करेंगे इस पर सबकी नजरें हैं। हालांकि दोनों गुटों ने चुनाव आयोग के समक्ष पार्टी के बटवारे की बात नहीं कही,केवल पार्टी के अध्यक्ष पद की वैधता पर सवाल उठे। एक जनवरी को पार्टी के महासचिव रामगोपाल यादव द्वारा बुलाए गए पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन में अखिलेश को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर चुना गया था। यह गुट अपने चुनाव को सही ठहरा रहा था वहीं रामगोपाल यादव पर प्रहार करते हुए मुलायम सिंह यादव ने स्वयं को पार्टी का वैध राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित करके अखिलेश के चुनाव को अवैध करार देते हुए यह दावा किया गया था कि पार्टी से निष्कासित राम गोपाल यादव को पार्टी का अधिवेशन बुलाने का अधिकार नहीं था। इसलिए यह अधिवेशन असंवैधानिक था। दूसरा यह कि पार्टी के संविधान केअनुसार अधिवेशन बुलाने का अधिकार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को ही था, महासचिव या अन्य कोई गुट इसके लिए पहले पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष से आग्रह करना चाहिए था, उसके इनकार करने पर वह गुट स्वतंत्र रूप से अधिवेशन बुला सकता था। लेकिन अखिलेश गुट ने ऐसा कुछ नहीं किया था। इसलिए मुलायम सिंह ने इसे पार्टी के संविधान के खिलाफ बताया था। 

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