बड़े लम्बे समय से भाजपा कार्यकर्ता उत्तर प्रदेश में अपनी संरकार बनने का ख्वाब देखकर टिकट की राह देख रहे थे लेकिन भाजपा ने चुनाव के ऐन समय जो प्रत्याशियों की सूची जारी की है, उससे उनमें विद्रोह की भावना पनप गई है। कहीं दिल्ली और बिहार जैसी हालत पश्चिमी उत्तर प्रदेश की न बन जाए। यह देखकर बड़े-बड़े राजनीतिज्ञों के सिर चकरा गए हैं। भाजपा के शुभचिंतक पत्रकारों के समक्ष यह सवाल उठना शुरू हो गया कि भाजपा ने ये क्या किया? क्या दस दिन में इन असंतुष्टों को मैनेज कर लिया जाएगा या इन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा। यह समय बहुत नाजुक है। एक गलती बहुत भारी पड़ सकती है, यूपी से पांच साल के लिए बाहर होकर भाजपा 2019 में कैसे जीत पाएगी। मोदी जी का नोटबंदी मंत्र असंतुष्टों और वोटकटवा पार्टी कार्यकर्ताओं के आगे धरा का धरा रह जाएगा। बसपा की तो बांछे ही खिल गईं होंगी। इस पर भाजपा हाईकमान को एक फिर से ठंडे दिल से सोचना होगा। इस विवाद को जितनी जल्दी सुलझा लिया जाएगा, पार्टी उतनी ही अधिक लाभ में रहेगी। यूपी में परिवर्तन लाने के लिए भाजपा ने बाहरियों पर भरपूर भरोसा जताया है। पश्चिमी यूपी के लिए प्रत्याशियों की सूची जारी करते समय तमाम बाहरियों को टिकट थमा दिया है। बीजेपी ने कई जगह संघ से जुड़े लोगों को भी तरजीह देकर चुनावी दंगल में उतारा है। सहारनपुर में तो सात में चार सीट पर बाहरी ही टिकट पा गए। पहले और दूसरे राउंड के चुनाव के लिए जारी सूची ने लोगों को चौंका दिया। सत्ता की दौड़ में बीजेपी के निष्ठावानों पर बाहरी बाजी मारने में कामयाब दिखे। टिकट पाने वाले बाहरियों पर नजर दौड़ाएं को सहारनपुर में बेहट सीट पर महावीर राणा टिकट पा गए। वह बीएसपी से बीजेपी में आए थे और सिटिंग विधायक हैं। नकुड़ से धर्म सिंह सैनी भी बीएसपी से आकर प्रत्याशी बन गए। इसी तरह गंगोह से कांग्रेस से आए विधायक प्रदीप चौधरी टिकट झटकने में कामयाब रहे। सहारनपुर देहात से मनोज चौधरी भी बीएसपी से हाल ही में आए थे। वह देवबंद से विधायक थे। बुलंदशहर में शिकारपुर से पूर्व विधायक अनिल शर्मा को मैदान में उतारा है। अनिल बीएसपी से विधायक रह चुके हैं। वह कुछ दिन पहले ही बीजेपी में आए थे। उस समय उनका बीजेपी में जबरदस्त विरोध हुआ था। बागपत में बागपत सीट से योगेश धामा को बीजेपी ने उतारा है। योगेश लंबे समय से जिला पंचायत की राजनीति करते हैं। जिला पंचायत अध्यक्ष भी रह चुके हैं। एक माह पहले ही उन्होंने भगवा चोला पहना था।
बिजनौर की नगीना सीट से ओमवती बीजेपी की प्रत्याशी बनी हैं। वह पहले कांग्रेस में रह चुकी हैं। फिर बीएसपी में और बाद में एसपी में। वह नगीना से विधायक रहीं। मंत्री भी बनी। 2014 के लोकसभा चुनाव में वह बीजेपी में शामिल हो गई थी। अब उनको विधानसभा चुनाव में उतारा हैं। मेरठ में सिवालखास सीट से दावेदारों की लंबी लिस्ट थी, लेकिन बीजेपी ने संघ से जुड़े एक कॉलेज के प्रधानाचार्य जितेंद्र सतवाई को टिकट दिया है। उनकी पैरवी संघ कर रहा था। बाकी सभी को मायूसी मिली है। इसी तरह सहारनपुर की देवबंद सीट से कुंवर ब्रजेश सिंह पर भरोसा जताया। वह भी आरएसएस से जुड़े हैं। उनके नाम देखकर भी सब हतप्रभ हैं। वहां बीजेपी से 19 लोग टिकट मांग रहे थे। खुर्जा सीट से बिजेंद्र खटीक प्रत्याशी बनाए गए हैं। यह भी आरएसएस से जुड़े हैं।
बिजनौर की नगीना सीट से ओमवती बीजेपी की प्रत्याशी बनी हैं। वह पहले कांग्रेस में रह चुकी हैं। फिर बीएसपी में और बाद में एसपी में। वह नगीना से विधायक रहीं। मंत्री भी बनी। 2014 के लोकसभा चुनाव में वह बीजेपी में शामिल हो गई थी। अब उनको विधानसभा चुनाव में उतारा हैं। मेरठ में सिवालखास सीट से दावेदारों की लंबी लिस्ट थी, लेकिन बीजेपी ने संघ से जुड़े एक कॉलेज के प्रधानाचार्य जितेंद्र सतवाई को टिकट दिया है। उनकी पैरवी संघ कर रहा था। बाकी सभी को मायूसी मिली है। इसी तरह सहारनपुर की देवबंद सीट से कुंवर ब्रजेश सिंह पर भरोसा जताया। वह भी आरएसएस से जुड़े हैं। उनके नाम देखकर भी सब हतप्रभ हैं। वहां बीजेपी से 19 लोग टिकट मांग रहे थे। खुर्जा सीट से बिजेंद्र खटीक प्रत्याशी बनाए गए हैं। यह भी आरएसएस से जुड़े हैं।
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