समाजवादी पार्टी और उसके चुनाव चिन्ह के विवाद में मिली जीत के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव फिलहाल अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए हैं। उन्हें इस बात का बहुत ही अफसोस है कि उन्हें अपने पिता से यह जंग लडऩी पड़ी। वह यह शुरू से कहते आए हैं कि वे पार्टी हित में यह लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्होंने अपने पिता से यहां तक कहा था कि पार्टी और उसका सिंबल मात्र तीन महीने के लिए दे दें और वे चुनाव लडक़र सरकार बनवाकर अपने पिता व राजनीतिक गुरु को तोहफा या भेंट देना चाहते हैं। इसके बाद चाहें तो वे सारे पद लेलें। परन्तु पिता मुलायम सिंह अपने काकस में इस तरह से फंसे रहे कि वे अपने बेटे की वफा को न देख सके और उसे हर कदम पर चुनौती देते आए। अंत में जब बेटा अखिलेश भारी पड़ा तो वे उसे कोसते नजर आए। अब चूंकि हर चीज साफ हो गई है और उन्हें इस हकीकत का सामना करना पड़ रहा है कि मुलायम युग बीत गया अब अखिलेश युग आ गया है। तब उन्हें झूकना पड़ रहा है। बेटे अखिलेश ने पहले से ही उन्हें अपनी पार्टी का संरक्षक बनाकर सम्मान दे दिया था लेकिन मुलायम सिंह में अध्यक्ष पद की अकड़ थी अब वह ढीली पड़ गई। परंतु इस लड़ाई का अखिलेश यादव को बहुत अफसोस है,परन्तु वह यह कहते हैं कि यह लड़ाई भी जरूरी हो गई थी। उनका इशारा यह था कि उनके पिता अपने चंद गलत साथियों की गलत सलाह पर भटक गए थे और कोई विवाद नहीं था। अखिलेश यादव की छवि और निखर आई है।
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