कभी आपने सोचा कि हर वर्ष राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस हो या गणतंत्र दिवस या गांधी जयंती, नेहरू जयंती हो अथवा अन्य किसी महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की जयंती व शहीद दिवस हो तो एक गाना आपको जरूर सुनने को मिलेगा वह होता है ‘ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी,जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी’। इस गाने का आशय अवश्य हमें अपने उन शहीदों की कुर्बानियों को याद कराने का होता है। इसमें किसी तरह की राजनीति नहीं चलती लेकिन हमारे शहीदों के साथ राजनीति चलती है, यह बात आज साबित हो रही है वरना आज दुनिया को चौंकाने वाले क्रांतिकारी शहीद ऊधम सिंह के पोते को रोटी-रोजी के लिए मोहताज न होना पड़ता। शहीद ऊधम सिंह के पोता आज पंजाब से दिल्ली की ठोकरें खाने को मजबूर है। 13 अप्रैल 1919 को जलियावालां नरसंहार का बदला लेकर शहीद हुए शहीद ऊधम सिंह के पोते को पंजाब सरकार में चपरासी पद की नौकरी पाने के लिए दस साल से संघर्ष करना पड़ रहा है। तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने उसे नौकरी देने का वादा किया था। उसके बाद से उनकी सरकार चली गई तो बेचारा शहीद परिवार का वारिस जग्गा सिंह आज एक कपड़े की दुकान में 2500 रुपये महीने की पगार पर काम करने को मजबूर है। इस महंगाई के जमाने में जग्गा को पिता सहित छह लोगों के परिवार को पालना पड़ रहा है। उसकी कोई नहीं सुन रहा है।
जग्गा उस समय बहुत खुश हुआ जब उसने सुना कि उसे राज्यपंजाब में भाजपा और शिरोमणि अकालीदल की सरकार आ रही है क्योंकि उसने सुन रखा था कि भाजपा कांग्रेस से अधिक राष्ट्रवादी है। कई बार चक्कर लगाने के बाद सुनवाई नहीं हुई तो वह निराश होकर घर बैठ गया। उसके बाद 2014 में जब केन्द्र में भाजपा की नरेन्द्र मोदी की सरकार सत्तारूढ़ हुई तो उसकी उम्मीदें एक बार फिर जिंदा हो गईं और उसने पंजाब सरकार के साथ-साथ केन्द्र सरकार के समक्ष अपनी मांग उठाई लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री राजनाथ सिह का ध्यान आकृष्ट करने के लिए दिल्ली आकर जंतर-मंतर पर धरना भी दिया। इसके बावजूद आज भी वह अपने जीवन से संघर्ष करने को मजबूर है।
जग्गा उस समय बहुत खुश हुआ जब उसने सुना कि उसे राज्यपंजाब में भाजपा और शिरोमणि अकालीदल की सरकार आ रही है क्योंकि उसने सुन रखा था कि भाजपा कांग्रेस से अधिक राष्ट्रवादी है। कई बार चक्कर लगाने के बाद सुनवाई नहीं हुई तो वह निराश होकर घर बैठ गया। उसके बाद 2014 में जब केन्द्र में भाजपा की नरेन्द्र मोदी की सरकार सत्तारूढ़ हुई तो उसकी उम्मीदें एक बार फिर जिंदा हो गईं और उसने पंजाब सरकार के साथ-साथ केन्द्र सरकार के समक्ष अपनी मांग उठाई लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री राजनाथ सिह का ध्यान आकृष्ट करने के लिए दिल्ली आकर जंतर-मंतर पर धरना भी दिया। इसके बावजूद आज भी वह अपने जीवन से संघर्ष करने को मजबूर है।
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