सात समंदर पार से आए लोगों ने नोट फाड़ कर फेंके?
नोटबंदी का दुखद पहलू उस समय सामने आया जब सात समंदर पार से आए लोगों को अपने पुराने नोट को बदलने के लिए रिजर्व बैंक के कार्यालयों के बाहर धक्के खाने पड़े। वहा बैठे सिक्योरिटी गाड्र्स ने लम्बा सफर करके आने वाले भारतीय मूल के लोगों को कार्यालय के अन्दर जाने से रोक दिया। ऐसे लोगों ने अपना दर्द बयां करते हुए ईटी को बताया कि वह यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से पूछना चाहते हैं कि पुराने नोटों को जलाएं अथवा क्या करें। कुछ लोग तो इस कदर परेशान हो गए कि उन्होंने विरोध स्वरूप रिजर्व बैंक के कार्यालय के सामने ही अपने पुराने नोटों को फाडक़र फेंक दिया।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गत आठ नवम्बर को नोटबंदी का निर्णय सुनाते वक्त कहा था कि पुराने नोट 31 मार्च तक बदले जा सकते हैं। एक जनवरी के बाद ये नोट रिजर्व बैँक की देश में पांच शाखाओं में बदले जाने का आरबीआई ने फरमान जारी किया था। भारतीय मूल के विदेश नागरिकों के समक्ष यह टेढ़ी समस्या उत्पन्न हो गई है कि लम्बा सफर करके रिजर्व बैँक के इन पांच कार्यालयों के सामने लम्बी लाइन लगाए हुए हैं। जब वे हारथक कर गेट के पास पहुंचते हैं तो वहां मौजूद सिक्योरिटी गार्ड दस्तावेजों की पूछताछ करके बैरंग लौटा देता है। इकोनामिक टाइम्स के अनुसार भारतीय मूल की अमेरिकी नागरिक रीतू दीवान ने बताया कि मेेरे पास विदेशी पासपोर्ट है लेकिन मेरी जड़े आज भी भारत से जुड़ी हैं। हमारा परिवार हर वर्ष भारत आता रहता है। हमारे पास कुछ पुराने नोट हैं जिन्हें हम बदलना चाहते हैं लेकिन हमें रिजर्व बैँक के कार्यालय में घुसने ही नहीं दिया गया। गार्ड ने दस्तावेजों देखकर हमें भगा दिया। अब हमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बताएं कि क्या इन पुराने नोटों को जला डालें। उन्होंने कहा कि अनावश्यक शोषण से हमें यह संदेश मिलता है कि भारत में भारतीय मूल के लोगों को किसी तरह का सम्मान नहीं मिलने वाला। इसी तरह एक अन्य अमेरिकी नागरिक धर्मवीर ने बताया कि भारतीय मूल के लोग आम तौर पर कुछ भारतीय रुपये अपने पास इसलिए रख लेते हैं ताकि उन्हें बार-बार भारत आने पर मुद्रा बदलने के लिए हर बार कमीशन न देना पड़े। उन्होंने कहा कि लगातार भारत की यात्रा पर आने वाला कोई भी भारतीय मूल का व्यक्ति अपने पास 50 हजार से लेकर एक लाख रुपये की भारतीय मुद्रा अपने पास रख लेता है ताकि उसे अपने अगले सफर के दौरान किसी तरह की कोई मुसीबत न उठानी पड़े। उन्होंने कहा कि मैं सरकार को इस बात की चुनौती देता है कि मेरे इन नोटों को कालाधन साबित करें और मुझे सजा दिलवाए। उन्होंने बताया कि हम जहां रहते हैं वहां पर इन भारतीय नोटों को खर्च नहीं कर सकते बल्कि हम जहां जन्में हैं वहां खर्च कर सकते हैं। धर्मवरीर का कहना है कि यह तो अच्छा संयोग है कि हम ऐसे समय में यहां आए हैं जब नोट बदलने की तारीख चल रही है। इस पर जब ये नोट नहीं बदले जा रहे हैं तो मुझे काफी तकलीफ हो रही है।
इसी तरह से अनेक भारतीय मूल के विदेशी नागरिकों ने भी रिजर्व बैंक की तानाशाही और सरकार की मनमानी नीतियों का कड़ा विरोध जताया। उनका कहना था कि हम लोग कोई करोड़ों रुपया बदलने के लिए नहीं आए। कुछ हजार रुपये ही बदलना चाहते हैं लेकिन आरबीआई बदलने की अनुमति नहीं दे रहा है। कुछ ऐसे विदेशी नागरिकों ने विरोध स्वरूप अपने पुराने नोट फाडक़र आरबीआई बैंक के कार्यालय के सामने फेक दिए। इसी तरह कुछ भारतीय नागरिकों को आरबीआई की इस नीति का शिकार होना पड़ा जिन्होंने 50 दिनों के दौरान अपने पुराने नोट नहीं बदल पाए थे।
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