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Saturday, 7 January 2017

मकर संक्रांति पर्व को लेकर है आमजन में भ्रांति

हर वर्ष 14 जनवरी को नहीं होता है पर्व का प्रतीक ‘उत्तरायण’

मकर संक्रांति पर्व पूदेश में ही नहीं बल्कि नेपाल एवं अन्य हिन्दू बहुत देशों में भी मनाया जाता है। सभी लोग यह पर्व बड़ी श्रद्धा व परंपरागत तरीके से मनाते हैं परंतु यह किसी को ज्ञान नहंीं है जिस उत्तरायण के आने की खुशी में यह पर्व मनाया जाता है वह उत्तरायण पर्व वास्तव में कब आता है? आर्ष ग्रंथों की विवेचना के अनुसार यह पर्व 14 जनवरी को नहीं आता है। यह पर्व आगे-पीछे खिसकता रहता है। परंतु पुरातन समय से चली आ रही कपोलकल्पित रीति के मुताबिक यह पर्व मनाने की अंधी दौड़ चली आ रही है। कहते हैं कि समय पर किया गया कार्य उचित फल देता है। जब उचित समय ही नहीं आया और आप वह कार्य कर रहे हैं तो उसका फल क्या होगा? यह तो हर साधारण व्यक्ति जान सकता है। इसलिए मकर संक्रांति का पर्व कैसे सामने आया और किस तरह से इसकी कपोल कल्पना की गई। इस पर विचार करने की आवश्यकता है।
सूर्य की मकर राशि की संक्राति से उत्तरायण और कर्क संक्रांति से दक्षिणायन प्रारम्भ होता है। सूर्य के प्रकाशाधिक्य के कारण उत्तरायण विशेष महत्त्वशाली माना जाता है। अतएव उत्तरायण के आरम्भ दिवस मकर की संक्रांति को अधिक महत्त्व दिया जाता है और स्मरणातीत चिरकाल से उस पर पर्व मनाया जाता है। यद्यपि इस समय उत्तरायण परिवर्तन ठीक-ठीक मकर संक्रान्ति पर नहीं होता और अयन,चयन की गति बराबर पिछली ओर को होते रहने के कारण इस समय (संवत् १९९४ वि. में) मकर संक्रांतिं से 22 दिन पूर्व धनुराशि के 7 अंंश 24 कला पर ‘उत्तरायण’ होता है। इस परिवर्तन को लगभग 1350 वर्ष लगे हैं परन्तु पर्व मकर संक्रांति के दिन होता चला आता है, इससे सर्वसाधारण की ज्योतिष शास्त्रानभिज्ञता का कुछ परिचय मिलता है, किन्तु शायद पर्व का चलते न रहना अनुचित मानकर मकर संक्रांति के दिन ही पर्व मनाने की रीति चली आती हो।
दूसरी ओर शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है, जो पूरी तरह कपोलकल्पित है। इसे और पुष्ट करने के लिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढक़र पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। ये सब बातें मनगढ़ंत है। दान केवल दान होता है। प्रतिफल की आकांक्षा को लेकर किया गया दान निरर्थक होता है।  
उत्तर अयन इसी तिथि को है, सविता का सुप्रवेश हुआ। मास दिवस का इस ही कारण, अब से सविशेष हुआ।
वेदप्रदर्शित  देवयान का, जगती में विस्तार हुआ। उत्सव संक्रांति, मकर का जनता में सुप्रसार हुआ। 1
तिल के मोदक,खिचड़ी,कम्बल,आज दान में देते हैं। दीनों का दुख दूर भगाकर, उनकी आशीष लेते हैं।
सतिल सुगन्धित सुसाकल्य से होम यज्ञ भी करते हैं। हिम से आवृत नभमण्डल को शुद्ध वायु से भरते हैं।
आर्ष ग्रंथों के अनुसार मकर संक्रांति का गूढ़ रहस्य इस तरह से प्रकट किया कि जितने काल में पृथिवी सूर्य के चारों ओर परिक्रमा पूरी करती है, उसको एक ‘सौर वर्ष’ कहते हैं और कुछ लम्बी वतुलाकार जिस परिधि पर पृथिवी परिभ्रमण करती है, उसको क्रान्तिवृत्त कहते हैं। ज्योतिषियों द्वारा इसे ‘क्रांतिवृत्त’ कहते हैं। ज्योतिषियों द्वारा इस क्रान्तिवृत्त के 12 भाग कल्पित किए हुए हैं और उन 12 भागों के नाम उन-उन स्थानों पर आकाशस्थ नक्षत्रपुंजों से मिलकर बनी हुई कुछ मिलती-जुलती आकृतिवाले पदार्थों के नाम पर लिए  गए हैं। यथा-1मेष, 2 वृष, 3 मिथुन, 4 कर्क, 5 सिंह, 6 कन्या, 7 तुला, 8 वृश्चिक, 9  धनु, 10 मकर, 11 कुम्भ, 12 मीन। प्रत्येक भाग वा आकृति ‘राशि’ कहलाती है। जब पृथिवी पर एक राशि से दूसरी राशि में पृथिवी संक्रमण करती है तब उसको संक्रांति कहते हैं। लोक से उपचार से पृथिवी के संक्रमण को सूर्य का संक्रमण कहने लगे हैं। छह मास तक सूर्य क्रान्तिवृत्त से उत्तर की ओर उदय होता रहता है। प्रत्येक छह मास तक दक्षिण की ओर निकलता रहता है। प्रत्येक षण्मास की अवधि का नाम ‘अयन ’ है। सूर्य के उत्तर की ओर उदय की अवधि को ‘उत्तरायण’ और दक्षिण की ओर उदय की अवधि को ‘दक्षिणायन’ कहते हैं। उत्तरायण काल में सूर्य उत्तर की ओर से उदय होता हुआ दीखता है। उसमे दिन बढ़ता है और रात्रि घटती जाती है। दक्षिणायन में सूर्योदय दक्षिण की ओर दृष्टिगोचर होता है। उसमें रात्रि बढ़ती जाती है और दिन घटता जाता है।  महेन्द्र कुमार आर्य, पूर्व प्रधान, आर्य समाज सूरजपुर, ग्रेटर नोएडा,गौतमबुद्धनगर। 9910550033

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