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Friday, 6 January 2017

पार्टी विरोधी कौन मुलायम या अखिलेश?

समाजवादी पार्टी को विघटन की कगार से बचाने के लिए चल रही सुलह-सफाई की कोशिशें बेकार हो रही हैं। इन कोशिशों को लेकर आजम खान काफी गंभीर दिख रहे है। आजम खान को दोनों कैम्पों में बराबर की मान्यता व सम्मान मिला हुआ है। उनकी कोशिशों की तारीफ की जानी चाहिए। वह पार्टी के हित में काम कर रहे हैं। अब सवाल उठता है कि पार्टी विरोधी कौन है? एक सप्ताह के पूर्व की स्थिति का आंकलन किया जाए तो पार्टी विरोधी अखिलेश यादव को करार दिया जा रहा था तब ऐसा लग रहा था कि अखिलेश वास्तव में पार्टी विरोधी हैं क्योंकि उनके पिता ने 25 साल पूर्व यह पार्टी बनाई थी और लगातार 25 साल से अपने खून-पसीने से सींच कर आज की स्थिति में लाए थे और आज 5 साल से अपने पिता की मेहरबानी से ही आज यहां तक पहुंचे हैं। ऐसे में पिता के सामने खड़े होने वाले को कोई भी पार्टी विरोधी करार देगा। यही हो रहा था। लेकिन सवाल कैरियर का था। इस कैरियर को लेकर अखिलेश यादव काफी गंभीर थे। उन्हें यह विश्वास था कि वह अपनी राह पर चलेंगे तो यूपी में निश्चित रूप से सपा की पुन: सरकार बनेगी। पुरातन परंपरा के चलते और अपनी वफादारी नीति के चलते मुलायम सिंह ने अखिलेश यादव को पार्टी को बिना सोचे-समझे बाहर कर दिया। उधर अखिलेश यादव ने पिछले पांच सालों में सियासी धरातल पर अपनी मेहनत व उदारवादी छवि से युवाओं के बीच अपनी जगह बना  ली। अखिलेश को आत्म विश्वास था यदि वह अपने पिता व चाचा शिवपाल सिंह का मोहरा बने तो पार्टी आज नहीं तो कल टूटेगी और इस मौके पर मिलने वाली पार्टी की जीत हाथ से निकल जाएगी। इसलिए उन्हें विद्रोह का झंडा उठाना पड़ा। उनका दांव सही पड़ गया। अब चूंकि अखिलेश यादव के पास पार्टी और सरकार को 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा है। यह सार्वजनिक भी हो गया है। तो ऐसी स्थिति में मुलायम सिंह को उदारता दिखानी चाहिए। पार्टी हित में अपना अहम थोड़े दिनों के लिए किनारे रखना चाहिए। ऐसा करने में उनकी छवि और अधिक निखर के आती। शिवपाल सिह और अमर सिंह सहित कुछ लोग बहुत चहेते हैं तो वे कहीं भागे नहीं जा रहे। सरकार बनेगी । पार्टी की ताकत बढ़ेगी । रुतबा बढ़ेगा। इसका लाभ आगे चलकर इन सभी को दिया जा सकता है। अखिलेश यादव पर उन्हें भरोसा करना होगा वरना सपा के खाते में घाटा ही आएगा। क्योंकि चुनाव सिर पर हैं। ऐसी दशा में एक बार यह संदेश चला गया कि मुलायम इधर और अखिलेश उधर तो मुस्लिम वोट बट जाएगा। इसके साथ ही मुलायम वफादार भी वोटकटवा बनकर अखिलेश को नुकसान पहुंचाएंगे तो सपा को ही नुकसान होगा। इसका लाभ बसपा को आसानी से मिल जाएगा। और मौका पाकर यूपी में भाजपा आसानी से सत्ता में आ जाएगी। इन सब बातों का आंकलन करके ही मुलायम सिंह को फैसला करना चाहिए। वरना इन परिस्थितियों में मुलायम सिंह को ही पार्टी विरोधी करार दे दिया जाएगा।

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