समाजवादी पार्टी में विभाजन से बचने के लिए शनिवार को भी दिन भर अंदरखाने सुलह-सफाई की कोशिशें होंती रहीं लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका। हालाकि आजम खान दिन में मुलायम सिंह को मनाने में लगे रहे लेकिन अभी तक कोई संकेत नहीं मिले है। अब यह साफ है कि अखिलेश यादव तो किसी भी सूरत में झुकने वाले नहीं हैं। उधर मुलायम सिंह यादव भी किसी तरह अपने आत्मसम्मान से समझौता नहीं करना चाहते। सपा की इस स्थिति का सियासी जगत में काफी उतार-चढ़ाव आ रहे हैं। सपा में विघटन की स्थिति में बसपा और भाजपा दोनों ही अपने को फायदे में मान रहे हैं। इस बीच यदि किसी को नुकसान हो रहा है तो वह हैं कांग्रेस। अखिलेश यादव के साथ कांग्रेस का सम्मान के साथ समझौता होगा। वहीं बसपा की ओर हाथ बढ़ाने से उसे काफी झुकना होगा। दूसरी ओर समझौता करने या न करने दोनों ही स्थिति अखिलेश यादव के लिए अच्छी नहीं होगी। समझौता होने पर सियासी जगत में यह समझा जाएगा कि यह नूराकुश्ती थी और लोग सपा को गंभीरता से नहीं लेंगे। ऐसी आशंका है कि साथ ही अंदरखाने से शिवपाल-अमरसिंह की जोड़ी भी अपना कारनामा दिखा सकते हैं। ऐसी स्थिति में अखिलेश यादव का वोट बैँक चंद परसेंट खिसका तो दर्जनों सीटों के परिणाम इधर से उधर हो सकते हैं। इससे उनकी स्थिति अच्छी नहीं रहेगी। विघटन की स्थिति में एक ओर तो यह माना जा रहा है कि मुलायम गुट का वोट बैँक उनके पास से छिटक जाएगा और उन्हे नुकसान उठााना पड़ सकता है। दूसरी तरफ इसे लाभ का सौदा देखा जा रहा है। इंदिरा गांधी से लेकर मोदी तक अनेक उदाहरण है कि जब भी वे बोल्ड होकर जनता के सामने आए तो जनता ने उन्हें अपने सिर पर बिठा लिया। इसलिए यह कहा जा रहा है कि समझौता अखिलेश यादव के लिए घाटे का सौदा साबित हो सकता है। दोनों गुटों के पास केवल रविवार का समय है,उसके बाद चुनाव आयोग के समक्ष कार्यवाही शुरू हो जाएगी।
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