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Thursday, 5 January 2017

क्या होंगे नोटबंदी से आने वाले समय में खतरे

राष्ट्रपति की चिंता जायज,क्या कहा-व्यापारी क्षेत्र की हस्तियों ने

नोटबंदी को लेकर सरकार भले ही लाख दावा करे कि इससे  बहुत लाभ मिलने वाले हैं। लेकिन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने नोटबंदी से आने वाले खतरों के प्रति चिंता जताई है। उनकी चिंता का क्या कारण है। यह आलेख उनकी चिंता के बारे में कुछ संकेत मिल रहे हैं। आलेख के अनुसार विश्लेषकों के मुताबिक नोटबंदी से छोटे और मझोले कारोबार पर बहुत बुरा असर पड़ा है और इसे पटरी पर आने में कम से कम तीन तिमाही लगेंगे। उद्योग संगठन एसोचैम के मुताबिक नोटबंदी के बाद पिछले 50 दिन में खुदरा क्षेत्र, कृषि, कपड़ा व अन्य क्षेत्रों में करीब 60 प्रतिशत लोगों की नौकरी चली गई है। ट्रेडर, रिटेलर और विभिन्न कारोबारी संगठन कहते रहे हैं कि बहुब्रांड खुदरा क्षेत्र में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति दी गई तो यह पूरा कारोबार खत्म कर देगा। बहरहाल विशेषज्ञों का कहना है कि नोटबंदी ने कहीं उससे ज्यादा बाधा पहुंचाई है।
बिजनेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित आलेख के अनुसार कारोबारियों व खुदरा लॉबी के विरोध की वजह से नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने बहु ब्रांड खुदरा में एफडीआई की अनुमति नहीं दी, जिनको डर है कि एफडीआई की अनुमति मिलने से कारोबार के साथ साथ नौकरियां भी जाएंगी।
एसोचैम के महासचिव डीएस रावत ने कहा कि नोटबंदी छोटे कारोबारियों व व्यापारियों के ऊपर बहुब्रांड खुदरा क्षेत्र में एफडीआई से भी ज्यादा भारी पड़ी है। सरकार के इस कदम से लाखों कारोबारी प्रभावित हुए हैं, जिनके पास से बड़े पैमाने पर नकदी निकल गई और उन्हें मजदूरों का भुगतान करने में संकट हुआ। केंद्र सरकार के इस फैसले से नकदी का संकट हो गया और इससे कुछ उद्योगों के सामान्य कामकाज पर असर पड़ा। नोटबंदी ने असंगठित एवं अनौपचारिक क्षेत्रों को बुरी तरह प्रभावित किया है, जहां कामगारों की नौकरियों व उनकी जीविका पर असर पड़ा है।
उद्योग संगठन के मुताबिक नोटबंदी से निकट भविष्य में अवस्फीति और मंदी की स्थिति आ सकती है और इससे जीडीपी पर भी असर पड़ सकता है। रावत ने कहा कि निर्माण और रियल एस्टेट, हस्तशिल्प, टेक्सटाइल, चमड़ा, घरेलू पर्यटन और कृषि श्रमिकों पर भारी असर पड़ा है और इन क्षेत्रों में 60-65 प्रतिशत कामगारों की नौकरियां चली गई हैं। केपीएमजी इंडिया के पार्टनर और कर के प्रमुख गिरीश वनवारी ने कहा कि नोटबंदी की तुलना में खुदरा क्षेत्र में एफडीआई बहुत छोटी चीज है। नकदी में होने वाले खुदरा कारोबार पर इसका असर हुआ है। खर्च करने के पहले लोग दो बार सोच रहे हैं। मुझे लगता है कि कम से कम दो तिमाही बाद स्थिति बदलने की संभावना है।
सूक्ष्म, लघु और मझोले कारोबारियों पर सबसे ज्यादा असर है। मांग नीचे चली गई है और नकदी का प्रवाह घट गया है। तमाम जगहों पर मजदूरों की छुट्टी कर दी गई है और कारोबार बंद पड़ा है। फेडरेशन आफ इंडियन माइक्रो ऐंड स्माल ऐंड मीडियम इंटरप्राइजेज के महासचिव अनिल भारद्वाज ने कहा कि खुदरा क्षेत्र में एफडीआई को अनुमति दिए जाने का असर कुछ क्षेत्रों पर पडऩे की संभावना है, लेकिन नोटबंदी ने हर क्षेत्र पर असर डाला है। आज एमएसएमई के सामने यह चुनौती है कि कब और कैसे फिर मांग बहाल होगी, जिस पर जबरदस्त असर पड़ा है। बाजार में क्या मांग होगी? फिर से बाजार में पैसे कैसे आएंगे? यह अब हमारे सामने सवाल हैं। बहरहाल समर्थकों का भी अपना तर्क है।
कॉन्फेडरेशन आफ आल इंडिया ट्रेडर्स के महासचिव प्रवीन खंडेलवाल ने कहा कि हम जानते हैं कि वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) आने वाला है। जीएसटी के दौर में भुगतान की पूरी प्रक्रिया डिजिटल होगी। देर सबेर हमें डिजिटल भुगतान को स्वीकार करना होगा। खुदरा में एफडीआई हमारे लिए तात्कालिक खतरा है। नोटबंदी में अभी भी हम कुछ सांस ले पा रहे हैं और अपने कारोबार के तरीके बदल रहे हैं। अगर खुदरा में एफडीआई आता है तो वे कारोबार करेंगे और हमें मौका नहीं मिलेगा।

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