देश की राजनीतिक दिशा और दशा तय करने वाला महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में बसपा सत्ता में लौट सकती है? यह सवाल राजनीतिक जगत में तेजी से उभर रहा है। यह कहा जा रहा है कि चुनावी तैयारी में बसपा ही सबसे आगे है। बसपा परिवार में किसी तरह की कलह सामने नहीं है । वह एकजुट होकर चुनाव लडऩे के लिए तैयार खड़ी है। उसने चुनावी मोहरे भी तय कर लिए हैं। इस बार वह दलित-मुस्लिम गठजोड़ पर चुनाव लडऩे जा रही है। बसपा का 18 प्रतिशत दलित वोटबैंक तो उसका अपने घर का उसके लिए उसे कोई कोशिश भी नहीं करनी है। इस वोट बैंक की एक खासियत है कि बसपा के पक्ष में एकतरफा वोट डालता है। अब देखना यह है कि प्रदेश में 21 प्रतिशत वाला मुस्लिम वोट बैंक कितना बसपा को मिलता है। सपा के घमासान के बाद बसपा की ओर बढ़ते कांग्रेस के हाथ से बसपा सुप्रीमो सुश्री मायावती इस बात को लेकर काफी आश्वस्त भी हैं कि इस बार मुस्लिम वोटर साइकिल नहीं हाथी पर सवार होगा। इसलिए उन्होंने हाल ही प्रेस कांफ्रेंस में पूरे आत्म विश्वास के साथ कहा है कि इस बार प्रदेश में उनकी सरकार बनने जा रही है। इन दो वोट बैंकों के अलावा मायावती का फैन एक और वोट बैँक है। जो कानून-व्यवस्था को तरजीह देता है। इस वोट बैंक का कोई प्रतिशत नहीं है। इसके अलावा बसपा के पक्ष में सोशल इंजीनियरिंग का वोट आ सकता है। बसपा ने लगभग सभी जातियों के लोगों को टिकट दिया है। इसका भी लाभ बसपा को मिल सकता है। मायावती भाजपा के नोटबंदी के निर्णय को भी भुना सकती हैं। दो माह तक लगातार परेशान होने वाली जनता को नए साल पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के राष्ट्र के नाम संदेश से काफी उम्मीदें थीं लेकिन प्रधानमंत्री ने बहुत निराश किया। यही नहीं एटीएम पर बैंकों के सरचार्ज, डिजिटल पेमेंट पर होने वाले बेफिजूल वाले कर्जे को बोझ दिखाकर भोली-भाली जनता को अपने पक्ष में कर सकतीं हैं। मायावती को सिर्फ इंतजार है तो वह भाजपा के प्रत्याशियों का, उसके जवाब में वह ताकतवर प्रत्याशी मैदान में उतारना चाहती हैं। भाजपा भी अंदरखाने अपना कड़ा मुकाबला बसपा से ही मान रही है।
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