क्या सपा और बसपा से कांग्रेस का मोह टूटा
कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में अकेले अपने दम पर चुनाव लडऩे का ऐलान किया है। ऐसा ऐलान पहले भी किया गया है लेकिन सपा और बसपा से हाथ मिलाने की कोशिशों और चुनाव तिथियोंं की घोषणा के बाद किया गया यह ऐलान काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। मेरठ में नोटबंदी के खिलाफ आयोजित जनाक्रोश रैली में काग्रेस के वरिष्ठ नेता और उत्तर प्रदेश के प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने घोषणा की कि कांग्रेस यूपी मे अकेले चुनाव लड़ेगी। उन्होंने सपा की कलह पर कहा कि मेरी राय में यह अच्छा होता यदि अखिलेश और मुलायम के बीच विभाजन नहीं होता। उन्होंने एक बार फिर साफ किया कि कांग्रेस धर्म-जाति की राजनीति करती वह केवल विकास की बात करती है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी जल्द ही 403 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी। अब सवाल उठता है कि सपा और बसपा की ओर हाथ बढ़ाने वाली पार्टी को अचानक ऐसा क्या हो गया कि वह अकेले चुनाव लडऩे की तैयारी में जुट गई है। सपा की कलह और बसपा से तालमेल न बैठ पाने के कारण ही कांग्रेस को ऐसा फैसला लेना पड़ रहा है। यदि जमीनी हकीकत में आएं तो कांग्रेस को हाईकमान को समझ में हीं नहीं आ रहा है कि वह यूपी के लिए क्या करें। अब से छह महीने पहले कांग्रेस ने जोरशोर से यूपी के लिए राजबब्बर को प्रदेश अध्यक्ष और शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री प्रत्याशी घोषित कर जबर्दस्त तैयारी का संकेत दिया था,उसके बाद जब कांग्रेस ने सपा से हाथ मिलाने और शीला दीक्षित के बयान कि वह अखिलेश के लिए कुछ भी कुर्बान करने को तैयार हें, ने कांग्रेस के बारे में हकीकत बता दी। उसके बाद बसपा से तालमेल की कोशिशें भी नाकाम हो गई हैं तो कांग्रेस ने अब वोटकटवा पार्टी के तौर पर यूपी के मैदान में जाने का फैसला कर लिया है। इसका सीधा-सीधा फायदा भाजपा को होगा क्योंकि कांग्रेस भाजपा के कम और अन्य पार्टियों बसपा और सपा के वोट अधिक काटेगी। पिछले 27 सालों के नतीजे बता रहे हैं कि कांग्रेस यूपी में कहां ठहरती है।
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