नोटबंदी और कैशलेस सोसायटी के अभियान के दौरान यह बात सामने आई कि राजनीतिक दल 20 हजार रुपये तक का चंदा नकद में क्यों लेते हेँ। इस बारे में पूर्व चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी का एक हिन्दी समाचार दैनिक को दिए गऐ अपने इंटरव्यू में कहना है कि वैसे तो 20 हजार तक का चंदा चेक से ही मिलना चाहिए। पर राजनीतिक दलों का 70-75 प्रतिशत चंदा 20 हजार रुपये से कम वाला होता है। बड़ी तादाद में वे एकत्र राशि को नकदी में दिखाते हैं। उसका सूत्र हमें नहीं पता चलता कि पैसा कहां से आया है? अपराध से, भ्रष्टाचार से या रियल एस्टेट या किसी अन्य स्रोत से। यह बड़ी खतरनाक चीज है। मेरा मानना है कि अगर सब्जी वाला, रिक्शा वाला भी कैशलेस ट्रांजेक्शन का रुख कर रहा है, तो फिर राजनीतिक दल क्यों नकदी में चंदा लें? इसके लिए राजनीतिक नेतृत्व को ही आगे आना पड़ेगा।
श्री कुरैशी की बात मानें तो राजनीतिक दल अपराध,भ्रष्टाचार या अन्य किसी अवैध स्रोत से चंदा लेने के लिए ही नकदी राशि स्वीकार करते हैं या दूसरे शब्दों में कहें तो काली कमाई या काले धन को सफेद करने के लिए नकदी में चंदा लिया जाता है। इस बारे में हाल ही चुनाव आयोग ने ऐसे 200 से अधिक दलों का रजिस्ट्रेशन रद्द करते हुए आयकर विभाग से इनकी जांच करने को कहा था, साथ ही यह आशंका जाहिर की थी कि यह कागजी राजनीतिक दल कालेधन को सफेद धन बनाने की मशीन तो नहीं बने हुए हैं।
इस बार चुनाव आयोग ने सख्ती से निर्देश जारी करते हुए कहा है कि 20 हजार रुपये का चंदा एकाउंट पेयी चेक से ही लिया जाए। इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संकेत दिए हैं कि वह जल्द ही राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में आवश्यक सुधार करेंगे। उन्होंने कहा कि भाजपा सबसे पहले अपनी फंडिंग को पारदर्शी बनाएगी। प्रधानमंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा कि देश के आम नागरिक को यह जानने का पूरा अधिकार है कि राजनीतिक दलों को कहां से कितना चंदा मिलता है। अभी लागू कानूनों के मुताबिक राजनीतिक दलों पर चंदा लेने की कोई लिमिट नहीं है और आयकर से पूरी तरह से छॅूट है और आरटीआई के दायरे से बाहर हैं। सवाल यह उठा कि राजनीतिक दलों को संविधान में इतनी छूट क्यों। जब एक मध्यम वर्ग का व्यक्ति चंद हजार रुपये मासिक पगार कमाकर देख के निर्माण में अपने हिस्से का आयकर दे सकता है तो फिर करोड़ों का चंदा डकारने वाल राजनीतिक दल इससे अलग क्यों रहें?
श्री कुरैशी की बात मानें तो राजनीतिक दल अपराध,भ्रष्टाचार या अन्य किसी अवैध स्रोत से चंदा लेने के लिए ही नकदी राशि स्वीकार करते हैं या दूसरे शब्दों में कहें तो काली कमाई या काले धन को सफेद करने के लिए नकदी में चंदा लिया जाता है। इस बारे में हाल ही चुनाव आयोग ने ऐसे 200 से अधिक दलों का रजिस्ट्रेशन रद्द करते हुए आयकर विभाग से इनकी जांच करने को कहा था, साथ ही यह आशंका जाहिर की थी कि यह कागजी राजनीतिक दल कालेधन को सफेद धन बनाने की मशीन तो नहीं बने हुए हैं।
इस बार चुनाव आयोग ने सख्ती से निर्देश जारी करते हुए कहा है कि 20 हजार रुपये का चंदा एकाउंट पेयी चेक से ही लिया जाए। इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संकेत दिए हैं कि वह जल्द ही राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में आवश्यक सुधार करेंगे। उन्होंने कहा कि भाजपा सबसे पहले अपनी फंडिंग को पारदर्शी बनाएगी। प्रधानमंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा कि देश के आम नागरिक को यह जानने का पूरा अधिकार है कि राजनीतिक दलों को कहां से कितना चंदा मिलता है। अभी लागू कानूनों के मुताबिक राजनीतिक दलों पर चंदा लेने की कोई लिमिट नहीं है और आयकर से पूरी तरह से छॅूट है और आरटीआई के दायरे से बाहर हैं। सवाल यह उठा कि राजनीतिक दलों को संविधान में इतनी छूट क्यों। जब एक मध्यम वर्ग का व्यक्ति चंद हजार रुपये मासिक पगार कमाकर देख के निर्माण में अपने हिस्से का आयकर दे सकता है तो फिर करोड़ों का चंदा डकारने वाल राजनीतिक दल इससे अलग क्यों रहें?
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