मात्र 29 दिनों के बाद देश का आम बजट पेश होने जा रहा है। इस बजट में रेलबजट भी शामिल होगा। मौजूदा वक्त मेंं नोटबंदी के निर्णय के बाद सबसे अधिक आयकर अदा करने वाले या अदा न कर पाने वाले करदाता स्वयं मानसिक रूप से प्रताडि़त महसूस कर रहे हैं। उनके सामने सरकार के रौद्र रूप का भय सता रहा है। हालांकि सारी तिकड़में लगाने की सोचने वाले भी यह एक बार यह भी विचार कर रहे हैं कि हाईटेक्नीक से लैस सरकार के चंगुल में फंसने के बाद बड़ा घाटा होगा। इसलिए वे कर देने का मन भी बना रहे हैं लेकिन कर की दरें ऊंची और आयकर छूट की सीमा बहुत कम होने के कारण वे हिचकिचा भी रहे हैं। आज के समय में सरकार ने मात्र ढाई लाख रुपये की आय को कर से मुक्त रखा है। आज के उपभोक्ता सूचकांक और जमीनी स्तर की महंगाई देखते हुए यह आंकड़ा बहुत ही छोटा है। तीन लाख रुपये की आमदनी वाला साल में पांच हजार रुपये आयकर देने की स्थिति में नहीं है उसके लिए पांच हजार रुपये बहुत कीमती होते हैं। इसी तरह के विचारों को देखते हुए बुद्धिजीवियों ने आयकर छूट की सीमा को ढाई लाख से बढ़ा कर पांच लाख रुपये किए जाने की मांग उठाई है लेकिन मौजूदा वक्त को देखते हुए सरकार के लिए यह संभव नहीं है। इससे बड़ी संख्या में लोग आयकर के दायरे से बाहर हो जाएंगे। किसी देश की अर्थव्यवस्था आयकर दाताओं द्वारा कर देने पर ही निर्भर करती है।
अब सवाल उठता है कि आयकर छूट सीमा कितनी रखी जाए? इस मामले पर औद्योगिक संगठन सीआईआई ने अपनी राय में कहा था कि आयकर छूट की सीमा में कुछ बढ़ोत्तरी की जानी चाहिए, लेकिन 10 लाख से ऊपर की आय पर लगने वाले 30 प्रतिशत कर को अधिक बताते हुए इसमें संशोधन की मांग की थी।
औद्योगिक मामलों के मुख्य अर्थशास्त्री एसपी शर्मा ने कहा कि सालाना पांच लाख रुपये अब नया सामान्य स्तर बन गया है। इसलिए आयकर की छूट की सीमा को पांच लाख रुपये की कर देनी चाहिए।
एक रिटायर बैँक मैनेजर ने अपना नाम न बताने की शर्त पर कहा कि सरकार को इस बात पर विचार करना चाहिए कि वह सरकारी कर्मियेां के वेतन भत्ते में कितनी वृद्धि प्रत्येक वर्ष होती है। कम से कम उतनी ही राशि को हर वर्ष आयकर सीमा से बाहर रखनी चाहिए।
एक निजी विद्यालय के संचालक ने कहा कि सरकार चाहती है कि प्रत्येक आयकर दाता अथवा आयकर के दायरे मेें आने वाला व्यक्ति ईमानदारी से अपना कर समय से चुकाए तो उसे आयकर की दरों में परिवर्तन करना होगा।
एक आईसीए धारक युवा का कहना है कि आयकर से सरकार अवश्य ही अच्छी खासी आय होती है। इसमें थोड़ा बहुत अंतर करना सरकार के लिए घातक हो सकता है। इसके लिए सरकार को विकल्प तलाश कर देश की आर्थिक मंदी के शिकार लोगों को खास रियायत देनी चाहिए क्योंकि सरकारी कर्मचारियों को तो वेतन भत्ते सरकार स्वयं देती है उसमें वह अपनी आवश्यकता नुसार घटत बढ़त स्वयं कर लेती है लेकिन आर्थिक मंदी का शिकार हुआ कारोबारी अपनी व्यथा किसको बताए।
सामान्य गृहणी ने बताया कि सरकार जब अपना बजट बनाती है तो वह उसमें नफा नुकसान का हिसाब-किताब करती है और वह यह प्रयास करती है कि उसके बजट में घाटा कम से कम हो तो उसी तरह आम आदमी के जीवन का बजट जमीनी स्तर पर बनाना चाहिए और उसमें देखना चाहिए कि कितनी आय वाले को कर देने में परेशानी नहीं होगी। उसी सीमा को आयकर से मुक्त रखना चाहिए।
अब सवाल उठता है कि आयकर छूट सीमा कितनी रखी जाए? इस मामले पर औद्योगिक संगठन सीआईआई ने अपनी राय में कहा था कि आयकर छूट की सीमा में कुछ बढ़ोत्तरी की जानी चाहिए, लेकिन 10 लाख से ऊपर की आय पर लगने वाले 30 प्रतिशत कर को अधिक बताते हुए इसमें संशोधन की मांग की थी।
औद्योगिक मामलों के मुख्य अर्थशास्त्री एसपी शर्मा ने कहा कि सालाना पांच लाख रुपये अब नया सामान्य स्तर बन गया है। इसलिए आयकर की छूट की सीमा को पांच लाख रुपये की कर देनी चाहिए।
एक रिटायर बैँक मैनेजर ने अपना नाम न बताने की शर्त पर कहा कि सरकार को इस बात पर विचार करना चाहिए कि वह सरकारी कर्मियेां के वेतन भत्ते में कितनी वृद्धि प्रत्येक वर्ष होती है। कम से कम उतनी ही राशि को हर वर्ष आयकर सीमा से बाहर रखनी चाहिए।
एक निजी विद्यालय के संचालक ने कहा कि सरकार चाहती है कि प्रत्येक आयकर दाता अथवा आयकर के दायरे मेें आने वाला व्यक्ति ईमानदारी से अपना कर समय से चुकाए तो उसे आयकर की दरों में परिवर्तन करना होगा।
एक आईसीए धारक युवा का कहना है कि आयकर से सरकार अवश्य ही अच्छी खासी आय होती है। इसमें थोड़ा बहुत अंतर करना सरकार के लिए घातक हो सकता है। इसके लिए सरकार को विकल्प तलाश कर देश की आर्थिक मंदी के शिकार लोगों को खास रियायत देनी चाहिए क्योंकि सरकारी कर्मचारियों को तो वेतन भत्ते सरकार स्वयं देती है उसमें वह अपनी आवश्यकता नुसार घटत बढ़त स्वयं कर लेती है लेकिन आर्थिक मंदी का शिकार हुआ कारोबारी अपनी व्यथा किसको बताए।
सामान्य गृहणी ने बताया कि सरकार जब अपना बजट बनाती है तो वह उसमें नफा नुकसान का हिसाब-किताब करती है और वह यह प्रयास करती है कि उसके बजट में घाटा कम से कम हो तो उसी तरह आम आदमी के जीवन का बजट जमीनी स्तर पर बनाना चाहिए और उसमें देखना चाहिए कि कितनी आय वाले को कर देने में परेशानी नहीं होगी। उसी सीमा को आयकर से मुक्त रखना चाहिए।
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