नोटबंदी के प्रभावों को भी नहीं दिखाया जाएगा
आने वाले बजट के बारे में कहा जा रहा है कि यह बजट चौंकाने वाला होगा, इसमें से बहुत महत्वपूर्ण आर्थिक आंकड़ों की जगह सिर्फ लोक लुभावन वाली घोषणाएं ही होगी। इसे बजट की जगह लुभावना पत्र कहा जाए तो कुछ गलत नहीं होगा।एक फरवरी को देश का आम बजट व रेल बजट को मिलाकर एक बजट पेश किया जाने वाला है। मोदी सरकार 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बजट को अंधेरे में बना रही है। या इसे कहें कि बहुत ही सीक्रेट तरीके से बना रही है।
अब जब चूंकि बजट पेश किए जाने में एक माह से कम समय रह गया है तब सांख्यिकी विभाग ने नोटबंदी के प्रभाव वाले आंकड़ों को बजट में शामिल करने से इनकार कर दिया है। हालां िनोटबंदी के असर के बारे में कहा जा रहा है कि इस बार तीन साल में सबसे कम ग्रोथ यानी प्रगति देखी जा रही है।
इकोनामिक टाइम के अनुसार यदि बजट एक फरवरी को पेश किया जाना है तो इसके दस्तावेज 20 जनवरी तक छपने के लिए प्रेस में चले जाएंगे। ऐसी स्थिति में बजट के लिए किसी तरह के आंकड़ों की जरूरत नहीं है। साख्यिकीविद प्रोनब सेन का कहना है कि इसके मायने यह हुए कि नोटबंदी के प्रभाव वाले आंकड़ों के बिना ही यह बजट बनाया जा रहा है। यह भी संभव है कि नोटबंदी के प्रभाव वाले आंकड़े अंतिम समय में वित्त मंत्री स्वयं अपने हाथों से कुछप्रतियों में भर दें, जिसका बाद में संशोधन होता रहेगा। इससे नोटबंदी से होने वाले नफा-नुकसान के बारे में कोई भी अनुमान नहीं लगा सकता। वित्त मंत्रालय के प्रवक्ता डीएस मलिक ने कहा कि बजट बनाने के लिए सरकार के पास पर्याप्त आंकड़े हैँ।
मुख्य अर्थशास्त्री धर्मकीर्ति जोशी के अनुसार सांख्यिकी विभाक से ऐसे संकेत मिल रहे हैँ कि नोटबंदी के बाद के आउटपुट, सरकारी खर्च के आंकड़े, सेल्स टैक्स और कारपोरेट टैक्स के आंकड़े फरवरी के पहले सप्ताह से पूर्व मिल पाना असंभव है। इसके अलावा विभिन्न सेक्टरों के अनुमानित रिकवरी कितनी होगी, इसकी भी जानकारी नहीं मिल सकती है।
तमाम बातों के अलावा इस बजट में उन विशेष घोषणाओं को महत्व दिया जाएगा जो आने वाले पांच राज्यों के चुनाव को देख कर राष्ट्रीय रूप में की जा सकतीं हैं।
जानकार लोगों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भले ही नोटबंदी को टैक्स चोरी के खिलाफ सबसे बड़ा कदम बता रहे हो और उनके समर्थक इसे बोल्ड कदम बता रहे हों लेकिन उनके आालोचक जमकर आलोचना कर रहे हैं। किसी भी अर्थशास्त्री ने नोट बंदी से भारतीय अर्थव्यवस्था पर लंबे समय में होने वाले किसी तरह के प्रभाव के बारे में कोई सकारात्मक टिप्पणी की हो। इस बारे में प्राइवेट बैँकिंग ग्रुप के कंट्री प्रमुख अभय आयमा कहते हैं कि इस बारे में अभी ऐसा कुछ भी नहीं जा सकता कि आने वाले समय में क्या होगा, आप नहीं जान सकते कि आने वाले समय में क्या होने वाला है।
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