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Monday, 9 January 2017

...तो इस तरह हड़बड़ी में लिया गया नोटबंदी का फैसला

नोटबंदी के फैसले को लेकर सरकार पर तरह-तरह के सवाल उठाए जा रहे थे। यह कहा जा रहा था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं अकेले ही यह फैसला लिया। इस फैसले के लिए उन्हें तानाशाह तक करार दिया जा रहा था। अब इंडियन एक्सप्रेस के पहले पन्ने पर छपी एक ख़बर ने यह खुलासा कर दिया है कि यह फैसला सरकार और आरबीआई की जुगलबंदी से लिया गया और इसमें सभी विधिक कार्यवाही पूरी की गईं। हालांकि अखबार लिखता है कि अब तक सरकार यह कहती आई है कि नोटबंदी का फ़ैसला भारतीय रिजर्व बैंक का था, लेकिन बीते महीने के आरबीआई के एक दस्तावेज़ के अनुसार सरकार ने यह सुझाव दिया था। अख़बार के पास मौजूद 7 पन्नों के आरबीआई के दस्तावेज़ के अनुसार 7 नवंबर को सरकार ने आरबीआई को सुझाव दिया था कि अर्थव्यवस्था से जुड़ी तीन समस्याओं पर लगाम लगाने के लिए 500 और 1000 रुपये के नोटों को बैन कर दिया जाना चाहिए. ये समस्याएं हैं, नकली नोट, आतंकवाद के पोषण के लिए धन और काला धन। यह कहा जा सकता है कि यह फैसला इतनी जल्दी में क्यों लिया गया? उसका कारण साफ दिख रहा है कि यदि इस फैसले को तत्काल लागू करने के बाद ही इतनी अफरा-तफरी मची और निजी और सहकारी बैँकों ने जमकर खेल किया और अरबों की कालेधन को सफेद धन बनाने का काम किया। इसी डर की वजह से सरकार ने इस फैसले को तत्काल लागू कर दिया था।
यह दस्तावेज़ बीते 22 दिसंबर को कांग्रेस नेता एम वीरप्पा मोइली के नेतृत्व में वित्त मंत्रालय की एक संसदीय समिति को आरबीआई ने सौंपा था।अख़बार का कहना है कि इसके अगले दिन आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की बैठक हुई, जिसमें सरकार के नोटबंदी के सुझाव को मान लिया गया और नोटबंदी का फ़ैसला ले लिया गया। इसी शाम पाएम मोदी ने घोषणा की कि 8 नवंबर की रात से 500 और 1000 के नोट अमान्य हो जाएंगे।
नोटबंदी के कुछ 8 दिन बाद राज्यसभा में इस विषय में हुई चर्चा में केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने कहा  कि रिज़र्व बैंक के बोर्ड ने ये निर्णय लिया। इसको सरकार के पास भेजा और सरकार ने इस निर्णय की सराहना करते हुए कैबिनेट ने इसे मंज़ूरी दी कि 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट रद्द किए जाएं, नए नोट आएं। 

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