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Wednesday, 30 November 2016

...तो पेट्रोल पम्पों,हवाई टिकटों में खपाया जा रहा था काला धन

भनक मिलते ही सरकार ने उठाया कड़ा कदम

काला धन को लेकर सरकार जहां डाल-डाल, वहीं काला धन वाले पात-पात वाली कहावत चरितार्थ कर रहे हैं। नोटबंदी कर सरकार ने चोर-सिपाही के खेल में सिपाही को आगे चलाया था लेकिन चोर इतने चालाक हैं कि वे अपनी चालबाजियों से सिपाही को धता बताकर कई कदम आगे निकल गए। अब बेचारा सिपाही चोरों के पीेछे-पीछे चलकर डंडे फटकारने और सख्ती करने को मजबूर है। यही दशा आज सरकार की है जहां भी थोड़ी बहुत अनियमितताओं की भनक लगती है वहीं सख्ती करना शुरूकर देती है। रोज-रोज नये नियम बनाने पड़ते हैं औरे जनता को दी गई राहत को वापस भी लेना पड़ता है। इसके कहते हैं कि गेहूं के साथ घुन का पिसना। इन कालेधन वालों के चक्कर में आम आदमी को परेशानी होती है। ऐसा ही एक नया फैसला यह आया कि  पेट्रोल पंपों और हवाई अड्डों और टोल पर 500 रुपये के पुराने नोट अब दो दिसंबर तक ही स्वीकार किये जायेंगे, पहले यह समयसीमा 15 दिसंबर तक थी। सरकार ने समयसीमा घटाकर दो दिसंबर कर दी। सरकार ने कहा है कि पेट्रोल पंप पर ईंधन खरीदने और हवाई अड्डों पर विमान यात्रा के टिकट खरीदने के लिये 500 रुपये के पुराने नोट दो दिसंबर तक ही स्वीकार किये जायेंगे। सरकारी अधिसूचना में कहा गया है कि तीन दिसंबर 2016 से सरकारी पेट्रोलियम कंपनी के पेट्रोल पंपों पर पेट्रोल, डीजल और गैस आदि खरीदने में पुराने 500 रुपये के नोट स्वीकार नहीं किये जायेंगे। इसके अलावा हवाई अड्डों की खिडक़ी पर हवाई यात्रा के लिये भी तीन दिसंबर से पुराने नोट स्वीकार नहीं किये जायेंगे। इसके अलावा राष्ट्रीय राजमार्गों पर टोल भुगतान में भी तीन दिसंबर से 500 रुपये के पुराने नोट स्वीकार नहीं किये जायेंगे। इससे पहले सरकार ने कहा था कि दो दिसंबर तक 500 और 1,000 रुपये के नोट से टोल भुगतान हो सकेगा। तीन दिसंबर के बाद 15 दिसंबर तक केवल 500 रुपये के नोट ही स्वीकार किये जायेंगे। लेकिन अब इस योजना को त्याग दिया गया है। दो दिसंबर के बाद टोल भुगतान में 500, 1000 रुपये के पुराने नोट स्वीकार नहीं किये जायेंगे। ताजा अधिसूचना के मुताबिक बिजली, पानी के बिल का भुगतान, रेलवे टिकट खरीदने तथा सार्वजनिक क्षेत्र के परिवहन निगम की बसों में यात्रा के लिये टिकट खरीदने में पुराने 500 रुपये के नोट 15 दिसंबर तक स्वीकार किये जायेंगे  सरकार ने इन सुविधाओं में पुराने नोट का इस्तेमाल करते हुये कालेधन को निकाले जाने की रिपोर्टें मिलने के बाद यह कदम उठाया है।

दर्द की दवा समय पर मिल जाए तो दुआ मिलती है, वरना हाय

नोट बंदी के फैसले पर रालोद नेता का प्रहार

राष्ट्रीय लोकदल किसान प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष चौधरी शौकत अली चेची का कहना है कि ं नोट बंदी पर केंद्र सरकार का फारमूला क्या वाकई काबिले तारीफ कहा जा सकता है? जरा ठंडे दिमाग से सोचे सभी देशवासी ब्लैक मनी कहां है ? 70 परसेंट लोग भली भांति जानते हैं कि नोट बंदी से केवल 5 परसेंट ही धन मिल सकता है। ऐसा मेरा मानना है लेकिन 250 के आसपास निर्दोष लोगों की जानें गई, उसका दोषी कौन हो सकता है? केंद्र या प्रदेश या वह खुद ही? उन्होंने कहा कि मैं जानना चाहता हूं कि सभी देशवासियों से केवल बयान देना या अपनी गलतियों को छुपाना, क्या इसी को इंसानियत कहते हैं, किसी ने पिता को खोया, किसी ने भाई को, किसी ने बेटा, किसी ने पति, किसी ने पोता, किसी ने दादा। रालोद नेता का कहना है कि जिस तरह से आम नागरिक परेशानी की चक्की में पिस रहा है , मुझे नहीं लगता अभी कोई राहत मिलेगी। शादियां टूटीं, बिन इलाज बीमारी से मौत, किसानों को डाई बीज समय पर नहीं मिलना आदि बातों से मौतों का आंकड़ा बढऩे का अनुमान है। उन्होंने तंज कसत हुए कहा कि क्या अच्छे दिन इसी को कहते हैं? विरोधी नोट बंदी पर ललकार रहे हैं, सिस्टम को ठीक करो। बीजेपी कह रही है आपका काला धन नष्ट हो रहा है । चेची जी जानना चाहते हैं कि राजनीति शुद्ध करने की बात तो अच्छी लगती है लेकिन सत्ता पक्ष या विपक्ष जिन लोगों की जानें गई उनको इंसाफ कौन देगा? जो परिवार तबाह हो गया,उनके आंसू कौन पोछेगा? कुछ लोग कहते हैं ह िपैसा हाथ का मैल है लेकिन चेची जी कहते हैं बगैर पैसे के कुछ भी नहीं होता।  पैसे की तंगी के कारण नोट बंदी में बहुत सारे परिवार उजड़ गए। केंद्र सरकार को ऐसे परिवारों की मदद करनी चाहिए । प्रदेश सरकारें भी अपनी  भागीदारी निभाएं। सिर्फ केन्द्र के फैसले का विरोध करना ही जरूरी नहीं। मृतक परिवार वालों को मुआवजा मिलना चाहिए। जब कोई नेता बीमार होता है या उसके घर में मातम होता है तो सभी नेतागण संवेदना व्यक्त करने पहुंच जाते हैं और मदद का हाथ भी बढ़ाते हैं जबकि उनके पास हर सुविधा मौजूद होती है। आम नागरिक का मुख्य सहारा पैसा है,लाइन में लगकर काम छोडक़र सरकार चुनता है फिर उसे अपने पैसे के लिए लाइन में खड़ा कर दिया जाता है जिसका कोई कसूर नहीं है। कागज की लक्ष्मी ही आम नागरिक की सरकार है जब सरकार ने इस लक्ष्मी को रद्दी बना दिया तो परिवार उजडऩे लगे। विपक्ष ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। केंद्र ने अपनी नाकामी को छुपाकर विरोधियों पर ही बाण चला रखे हैं । अत: मैं गुजारिश करता हूं सभी देश के नागरिकों से सिस्टम को ठीक करने की पहल करें। नोट बंदी के कारण किसी भी परिवार का व्यक्ति मौत के मुंह में न जाए, जो जानें गईं है,उनके आंसू पोछे जाएं,उनको मुआवजा मिले। आज 80 परसेंट देश की जनता दुखी है,आने वाला पल किसका होगा? मालूम नहीं लेकिन काठ की हांडी एक बार चढ़ती है । दर्द की दवा समय पर मिल जाए तो दुआ मिलती है वरना हाय । कंगाल हाय से लोहा भसम हो जाता है वाली,कहावत पुरानी है लेकिन कारगर है। भारत देश महान है हम सब की पहचान है। देश हो या परिवार रोशन होता है प्यार इंसानियत से हम सबको सोचना पड़ेगा

कैशलेस सोसायटी से क्यों हिचक रहा है ग्रामीण भारतीय

भारत को कैशलेस सोसायटी बनाने के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अभियान का असर शहरों और युवाओं पर पड़ता दिखाई पड़ रहा है लेकिन ग्रामीण,किसान,गरीब व आम जनता का निचला तबका क्यों हिचक रहा है, यह जानने की कोशिश की जानी चाहिए। आम आदमी आज बिना कोई अतिरिक्त खर्च किए अपने रुपये का शत-प्रतिशत अपने ऊपर खर्च कर संतुष्ट रहता है। अब वह इस कैशलेस सोसायटी को अभिजात्य वर्ग का सुख-सााधन मान रहा है। उसका कहना है कि ये लोग इतने संपन्न हैं कि वे दस-पांच हजार का खर्च वर्दाश्त कर सकते हैं। दूर ग्राम में रहने वाला जिसका माह का खर्चा ही हजार-पांच सौ रुपये नकद महीने है तो वह किस प्रकार से पांच हजार रुपये का एक मोबाइल खरीदे। फिर इंटरनेट पर हर माह 500 रुपये खर्चे। इसके बाद उसे कैशलेस सुविधा के लिए अपने रुपये में से 2 परसेंट का कमीशन उन कंपनियोंं को दे, जो कैशलेस लेन-देन की सुविधा दें। एक तरह से देखा जाए तो ये बैंकों का निजीकरण एवं सडक़ीकरण कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगा। इस सरकार को कोई विशेष ध्यान देना होगा तभी यह अभियान घर-घर में सफल होगा। 

सरकारी सब्सिडी के लिए आधार कार्ड जरूरी नहीं

केन्द्र सरकार ने एक बार फिर स्पष्ट किया है कि सरकारी योजनाओं और सेवाओं में मिलने वाली सब्सिडी और अन्य लाभ प्राप्त करने के लिए आधार कार्ड जरूरी नहीं है। लोकसभा में आईटी एवं इलेक्ट्रानिक्स मंत्रालय के राज्य मंत्री पीपी चौधरी ने यह जानकारी दी कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को मानने को तैयार है जिसमें कहा गया है कि लाभार्थी को सरकारी योजनाओं और सेवाओं में मिलने वाली सबसिडी और अन्य लाभ पाने के लिए आधार कार्ड जरूरी नहीं है। इसके लिए अन्य आईडी प्रूफ स्वीकार किए जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि आधार कार्ड अधिनियम की धारा 7 में कहा गया है कि यदि व्यक्तिगत रूप से आधार कार्ड का नंबर उपलब्ध नहंीं है तो लाभार्थी को अन्य किसी पहचान के दस्तावेज के आधार पर सबसिडी अथवा सरकारी योजनाओं का लाभ दिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने 11 अगस्त 2015 अपने आदेश में आधार कार्ड को सबसिडी के लिए अनिवार्य नहीं बताया था। 

काम बोलता है: पीएम मोदी देश ही नहीं विश्व के हीरो

दुनिया के दिग्गज नेताओं को पछाड़ा

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश में ही नहीं बल्कि विश्व में भी हीरो हैं। देशवासियों ने जहां मोदी को सिरमाथे पर बैठा रखा है। नोट बंदी की तमाम आलोचनाओं और विपक्षी नेताओं के भडक़ीले प्रयासों के बावजूद मोदी और उनकी पार्टी को लगातार सफलता मिल रही है। इससे यही माना जा रहा है कि फिलहाल मोदी नेता नहीं आंदोलन का रूप बन गए हैं। आज कल पूरे देश में नोटबंदी और मोदी दो का ही जिक्र हो रहा है। देश के बाद विश्व में हीरो कैसे है यह बता रहा है टाइम मैगजनी का सर्वे।
टाइम पर्सन ऑफ द ईयर  के इस ऑनलाइन सर्वे में नरेंद्र मोदी को सबसे आगे बताया गया है। मौजूदा समय तक के पोल में मोदी को 21 परसेंट वोट मिले हैं। उन्होंने विकीलीक्स के फाउंडर जूलियन असांजे, अमेरिका के प्रेसिडेंट इलेक्ट डोनाल्ड ट्रम्प और रूस के प्रेसिडेंट व्लादिमीर पुतिन को पीछे छोड़ दिया है। दूसरी पोजिशन पर असांजे हैं, इनके फेवर में 10 परसेंट लोगों ने वोट किया है। 7 दिसंबर को पर्सन ऑफ द ईयर का नाम ऐलान किया जाएगा। 2015 का पर्सन ऑफ द ईयर जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल को चुना गया था। यह लगातार चौथा साल है, जब टाइम मैगजीन के ‘पर्सन ऑफ द ईयर’ दावेदारों की लिस्ट में नरेंद्र मोदी का नाम शामिल किया गया है। टाइम मैगजीन ने 2016 में दावेदारों के उनके उस वक्त का एनालिसिस किया है, जिसमें सबसे ज्यादा चर्चा में रहे।  मोदी ने 16 अक्तूबर को गोवा में हुए ब्रिक्स देशों के शिखर सम्मेलन के दौरान पाकिस्तान को आतंकवाद का ‘निर्यातक’ देश कहा था। इस दौरान मोदी सबसे ज्यादा चर्चा में रहे। ऐसा माना जा रहा है कि सब कुछ ठीकठाक चला तो मोदी को पर्सन आफ द ईयर घोषित किया जा सकता है।

शुरू हो गया काला धन पकडऩे का अभियान

पहले विदेश से आने वाली करंसी पर है नजर

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा नोट बंदी और डिजिटल इंडिया के अभियान के तेज करने के बाद सरकार ने अब काले धन को पकड़ऩे का अभियान शुरू कर दिया है। फिलहाल अभी देश के बाहर से आने वाली नई करंसी पर सरकार की नजर है। हवाला डीलरों पर सरकार की विशेष निगाहें हैं क्योंकि ये लोग सेकेंडों में करोड़ोंन्-अरबों की हेराफेरी कर देते हैं। इसलिए
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने  सक्रियता बढ़ा दी है। नोटबंदी के मद्देनजर करंसी एक्सचेंजों, हवाला डीलरों व अन्य के पास कालेधन की थाह पाने के लिए ईडी ने देश भर में 40 स्थानों पर तलाशी ली।  एजेंसी की अनेक टीमें इस तलाशी में लगी हैं। विभिन्न शहरों में उसके 100 अधिकारियों के साथ स्थानीय पुलिस बल इस अभियान में लगा है। पूर्वी भारत में जिन स्थानों पर तलाशी ली गई उनमें कोलकाता में छह, भुवनेश्वर, पारादीप व गुवाहाटी में दो-दो जगह शामिल हैं। निदेशालय के अधिकारियों ने कोलकाता में एक चिकित्सक के परिसर से 10 लाख रुपये की नकदी नये नोटों में जब्त की है। इसके अलावा चार लाख रुपये की विदेशी मुद्रा भी बरामद हुई है। संभवत: काले धन को सफेद धन किए जाने की खबरों के बीच ये कार्यवाही की जा रही है।

कैशलेस सोसायटी : चलाना होगा ‘जागो और सीखो इंडिया’ अभियान

साइबर सिक्योरिटी और साइबर अटैक से लोगों को करना होगा जागरुक

कैशलेस सोसायटी यानी डिजिटल इंडिया अभियान के खतरों से निपटने के लिए सरकार और कारोबार करने वाली कंपनियों को अपनी ओर पहल करनी होगी। क्योंकि डिजिटल पेमेंट से जुडऩे वाले भारी संख्या में नए यूजर्स ऐसे भी होंगे, जो पहली बार इन सेवाओं का उपयोग करेंगे। जिन्हें मोबाइल बैंकिंग का प्रारंभिक ज्ञान भी नहीं होगा। ऐसे लोगों को साइबर अटैक के खतरों का ज्ञान भी नहीं होगा। किसी भी संस्था को ऐसे यूजर्स बहुत बड़ा झटका दे सकते हैं। इसलिए सरकार और निजी कंपनियों को मिलकर नये यूजर्स के लिए जागो और सीखो इंडिया अभियान चलाना होगा। इसके लिए चाहे सरकार या कंपनियां अपने अपने प्रयासों से लोगों को पहले डिजिटल ट्रांजेक्शन के बारे में बताएं फिर बताएं कि किस तरह से सावधानी बरतें कि कोई जोखिम न रहे। इन कंपनियों को चाहिए कि अपनी सेवाएं देने से पहले जागरुकता अभियान चलाएं और अपने ग्राहकों को साइबर अटैक के खतरों से आगाह करें और उन्हें इन खतरों से बचने के लिए प्रशिक्षित भी करें। इसके अलावा कंपनियों को आने वाले खतरों से निपटने और उनकी जानकारी रखने के लिए टेक्निकल स्टाफ रखना होगा जो अपनी वेबसाइट और अन्य माध्यमों से ग्राहकों को सतर्क कर सकें। इसके बारे में सभी प्रचार माध्यमों पर हैकिंग प्रणाली  का प्रचार करके समय-समय पर सतर्क करते रहना होगा।
निजी कंपनियों के अलावा सरकार को भी चाहिये कि वह भी अपनी नीतियों को लागू किए जाने के बारे में जांच पड़ताल करे यदि कोई गड़बड़ी हो तो उसे दुरुस्त कराये। लोगों को सरकारी नीतियों को सख्ती से लागू करने के बारे में भी बताया जाए। जो कंपनी पर्याप्त सुरक्षा न दे सके उस पर नजर रखी जाए और आवश्यक होने पर कार्यवाही की जाए। इसका फायदा यह होगा कि लोग अधिक से अधिक खतरों के बारे में जान जाएंगे और लोगों का नुकसान कम से कम होगा। सुरक्षा इंतजामों को पीपीपी मोड में अधिक से प्रसारित करने पर लोग साइबर अटैक से अधिक परिचित हो जाएंगे। इसके बाद तीसरा पक्ष आता है ग्राहक का। ग्राहकों को भी चाहिए कि अधिक से अधिक सुविधा पाने के लिए साइबर सुरक्षा और साइबर अटैक के प्रति खुद अधिक से अधिक अपडेट करते रहें ताकि नुकसान न हो। ग्राहकों को चाहिए कि सतर्कता के चलते जल्दी जल्दी अपने पासवर्ड बदलते रहें। 

कैशलेस सोसायटी :साइबर सिक्योरिटी बहुत हाईटेक हो

साइबर हमले से होता है बहुत बड़ा नुकसान

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के डिजिटल इंडिया अभियान को पंख लगने शुरू हो गए हैं। अगर इस काम में लगी कंपनियों के आंकड़ों को देखें तो अवश्य ही चौंकाने वाले हैं लेकिन साथ ही साइबर सिक्योरिटी के साथ साइबर अटैक का भय भी दस्तक दे रहा है। अभी पिछले माह के अंत में भारत में बहुत बड़े वित्तीय आंकड़ों पर साइबर अटैक हुआ था। इस संस्था से जुड़ी बड़ी-बड़ी बैँकिंग कंपनियों और तीस लाख से अधिक यूजर्स को काफी नुकसान हुआ है। यह घटना उस समय हुई जब हिटैची एटीएम के आंकड़ों को चुरा लिया गया और इनके यूजर्स के लागिन भी हैक कर लिए गए और इससे बड़े पैमाने पर अवैध लेन-देन हुआ। बिना सुरक्षा के इस तरह के ट्रंाजेक्शन को बढ़ावा देना खतरनाक होगा। हालांकि प्रधानमंत्री अपनी इस स्कीम पर जोर दे रहे हैं और देश उनकी आवाज सुन भी रहा है। पिछले सप्ताह के आंकड़ों पर नजर डालें तो डिजिटल पेमेन्ट ने नया रिकार्ड बनाया है। पेटीएम का कहना है कि मेरी कंपनी के मोबाइल एप्लीकेशन को डाउनलोड करने की संख्या में 200 परसेंट का इजाफा हुआ है और पूरे ट्रांजेक्शन में 250 परसेंट की वृद्धि हुई है। मोबीक्विक का कहना है कि मेरी कंपनी के यूजर्स ने डिजिटल पेमेंट के बारे में पूछताछ बड़े पैमाने पर की है और यह वृद्धि 200 परसेंट के करीब है। आक्सीजन और पेयू कंपनियों का कारोबार भी चमक गया है। यह संकेत कैशलेस सोसाइटी की ओर सही दिशा में अग्रसर हैं। लेकिन हमारी नकदीरहित अर्थव्यवस्था को सुरक्षित करने के लिए हमारे पास टेक्नॉलॉजी डेवलपमेंट भी उतने हैं जितने जरूरी हैं। साइबरसिक्योरिटी भी असामान्य तरीके की चाहिए ताकि कोई उसमें आसानी से सेंध न लगा सके। अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या देश नए पेमेंट प्लेटफार्म के लिए सुरक्षित है? विश्व की जानी मानी कंपनी आईबीएम और पोनेमोन ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि भारत डाटा हैकरों के लिए सबसे अधिक पंसदीदा देश है। यानी कि जोखिम बहुत अधिक है। इस तरह के साइबर अटैक बहुत ही अत्याधुनिक होते हैं। कोई भी आईटी का एक्सपर्ट कभी भी अपना रंग दिखा सकता है। इसमें मोबाइल एप्लीकेशंस, जासूसीप्रोग्रामों के जरिये आपकी सारी सूचनाएं प्राप्त कर सकते हैं यहां तक आपके लॉगइन जानकारियां हासिल कर बहुत बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं। इस खतरे को लेकर डिजिटल पेमेंट में कारोबार करने की इच्छुक कंपनियां लाख सुरक्षा उपाय उठाने के बावजूद चिंतित हैं। उनकी समझ में नहीं आ रह है कि वह क्या करें कि आने वाले समय में जुडऩे वाले नए अनपढ़ एवं अप्रशिक्षित यूजर्स के जुडऩे के बाद भी कोई खतरा न हो। 

Tuesday, 29 November 2016

व्यंग्य पुराण: जब नारद जी को पड़ गए लेने के देने

मुझ भक्त को छोड़ कर नारद जी मोदी-मोदी कह कर काला धन वाले किसी भक्त की तलाश में भटक रहे थे। वे ऐसी जगह पहुंच गए जहां पर कुछ महिलाएं नोटबंदी को कोसतीं हुईं आपस में चर्चा कर रहीं थीं कि पहली बार ऐसा देखा कि घर-घर की महिलाओं को किसी ने लक्ष्मी,गृह लक्ष्मी और महालक्ष्मी से कंगाल बना दिया हो। किसी का निकला हो या न निकला हो पर घर-घर की महिलाओं का काला धन जरूर बाहर निकल आया। एक महिला बोली,बहनों आजकल तो हालात बहुत खराब हैं, भला हो इस सरकार ने जिसने हमें पैसे-पैसे के लिए मोहताज बना दिया है। कुछ दिन के लिए अपने ही लोगों का मुंह ताकना होगा। कोई बात नहीं देश सुधरे तो हम यह भी त्याग,बलिदान करने को तैयार हैं। बस सरकार हमारी कमाई पर नजर न डाले। जैसे बेशरम की बेल कट जाने के कुछ दिन बाद हरी हो जाती है। हमारी भी बैंक खाली होने के बाद फिर भर जाएगी। हम मालामाल हो जाएंगे। लेकिन सुना है कि रुपया-पैसा चलना हो जाएगा बंद। मोबाइल से सारे काम होंगे तो फिर हमारी कमाई मारी जाएगी। लक्ष्मी जी की चर्चा सुनकर वहां से गुजर रहे नारदजी उन महिलाओं की बातें सुनने लगे लेकिन मोदी-मोदी की माला का जाप कर रहे थे। इन महिलाओं ने नारद जी का रुख देखा और मोदी-मोदी की आवाज सुनी तो भडक़ उठीं, उनमें से कुछ ऐसी भडक़ीं कि नारद जी को दौड़ा लिया। अब क्या नारद जी आगे-आगे और महिलाएं पीछे-पीछे। जब नारदजी की भागते-भागते सांस फूल गई तो कान पकड़ कर महिलाओं के समक्ष त्राहिमाम-त्राहिमाम करते हुए गिर पड़े। महिलाएं भी वहीं थम गईं। जब थोड़ी देर बाद नारदजी की हालात सामान्य हुई तो वे हाथ जोडक़र बोले कि देवियों मुझसे ऐसी कौन सी त्रुटि हो गई, जिससे क्रोधित होकर आप लोगों ने मेरी यह दशा बना डाली। मैं तो लक्ष्मी जी की चर्चा सुनकर आपकी ओर मुखातिब हुआ था।
उनमें से एक बोली,बड़ा आया मोदी का भक्त, पता है कि तेरे भगवान ने मुझे कंगाल बना दिया। अब तो निर्धन बनाने जा रहा है। कहा जा रहा है कि आने वाले समय में रुपया-पैसा बंद हो जाएगा। नौकरी करो या कारोबार, सारा पैसा मोबाइल से आएगा और मोबाइल से खर्च होगा। तो फिर हम लोग अब लक्ष्मी कहां रह जाएंगी। महिलाओं के इस दर्द को देखकर नारदजी रोने लगे। महिलाओं ने पूछा कि अब क्या हुआ तो उन्होंने त्रैलोकी का हाल बताया और लक्ष्मी जी की दशा का बयान किया। महिलाओं ने पूछा कि तब मोदी-मोदी क्यों रट रहे हो। लगता है कि कोई बड़े साधु हो तुम्हें तो भगवान का नाम जपना चाहिए। तब उन्होंने कहा कि मैं ब्रह्मर्षि नारद हूं और चौबीस घंटे हर पल नारायण-नारायण का जाप करता हूं। लेकिन नोट बंदी के बाद से जब देवताओं को मिलने वाले नोट में भारी कमी आ गई तो वहां भूचाल आ गया। हर देवता परेशान हो गया और लक्ष्मीजी तो इधर-उधर भाग-दौड़ कर रहीं हैं। उनका दुख था जब रुपया-पैसा बंद हो जाएगा तो लोग मेरी पूजा-आराधना करना बंद कर देंगे। आपका दुख देखकर लग रहा है कि माता लक्ष्मी का दुख अवश्य ही गंभीर है।
इस पर एक महिला बोली कि हमारी कोई काली कमाई नहीं थी। हम तो वो पैसे बचा लेते थे जो हमारे परिवार में जन्म से लेकर विवाह तक भाई-भतीजों से भेंट में मिल जाते थे। अब मोबाइल से कहां मिलेंगे। अरे वे हमारे परजे क्या करेंगे जिन्हें संस्कारों में जगह-जगह पर नेग मिलते थे। उन्हें कौन मोबाइल से पैसे देगा। इतना सुनते ही नारदजी वहां से अब मोबाइल-मोबाइल रटते हुए चल दिए।















नोट बंदी: बहुत देर कर दी सरकार ने

नतीजे बहुत अच्छे नहीं निकलने वाले

नोट बंदी का निर्णय बेशक बहुत अच्छा है। काला धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के लिए भी मोदी सरकार ईमानदार है। सरकार की ओर से बहुत मेहनत भी की जा रही है। किन्तु अब ऐसा लग रहा है कि जनता द्वारा उठाई गई परेशानी का कोई खास फायदा नहीं होने वाला। क्योंकि नोटबंदी के बाद तीन तक सरकार ने जिस तरह से 17 विकल्पों पर पुराने नोट चलाने की छूट देकर और बिना किसी अंकुश के नोट बदलने की अनुमति का लाभ उठाते हुए काले धन वालों ने पगार और कमीशन व रसूख तथा दबाव डालकर अपना अधिक से अधिक कालाधन सफेद कर लिया। अब उस सफेद धन को रिजर्व बैंक के जमा और निकासी की लिमिट खत्म करने के नियम से काला धन वाले अपने धन को वैध बना रहे हैं। सरकार को शायद इस बात का अनुमान ही नहीं था कि वह डाल-डाल चलेगी तो काला धन वाले पात-पात चलकर किसी भी अच्छी योजना की बाट लगा सकते हैं।  सरकार ने कालाधन वालों को लालच देकर पुरानी डिस्क्लोजर स्कीम लागू कर दी है। यह स्कीम लोगों को पसंद नहीं आ रही है। लोग अपने काला धन को किसी भी जुगाड़ से सफेद करना चाहते हैं। इससे अच्छा होता कि सरकार वन टाइम सेटलमेंट की आकर्षक स्कीम लाती तो उसका फायदा अवश्य होता। यही आलम रहा तो जानकार लोगों का कहना है कि इससे न तो सरकार को और न ही देश को कोई खास फायदा होने वाला है।
जानकारों की बात माने तो मोदी सरकार को सत्ता संभालते ही इस एकसूत्रीय योजना में काम करना चाहिए था। कहते हैं कि कोई भी जंग जीतनी तो तो विपक्षी सेना का राशन-पानी बंद कर दो। मोदी सरकार किया तो वही पर उतना फुल प्रूफ नहीं कर पाए जितनी जरूरत थी। पहले काला धन को पकडऩे के लिए आयकर विभाग को पूरा मैनपावर देकर इस विशेष अभियान के लिए विशेष भर्तियां व विशेष प्रशिक्षण देना चाहिए। जब पहरुए ईमानदार,चुस्त और अलर्ट होंगे तभी घर की चोरी रोकी जा सकती है। इसलिए सरकार को पहले इसकी तैयारी करनी चाहिए थी। यही बात चारों ओर कही जा रही है।


डिजिटलाइजेशन: भाजपा सरकारों के समक्ष कड़ी चुनौती

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा गत आठ नवंबर को नोट बंदी के आदेश के बाद से देश को डिजिटल इंडिया बनाने के अभियान को लेकर भाजपा शसित राज्य सरकारों के समक्ष कड़ी चुनौती उत्पन्न होने वाली है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपनी पार्टी की इन सरकारों से काफी उम्मीदें हैं। फिलहाल मौजूदा समय में महाराष्ट्र,मध्य प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, राजस्थान, कर्नाटक, गुजरात,हरियाणा और असम सहित 12 राज्यों में भाजपा की सरकारेंं हैं। जबकि पंजाब और जम्मू-कश्मीर में सरकार में भाजपा प्रमुख सहयोगी दल हैं। यदि इन सभी राज्यों ने डिजिटल इंडिया को ईमानदारी से लागू करने का बीड़ा उठाया तो अवश्य ही मोदी सरकार अपने मिशन में कामयाब हो जाएगी। हालांकि यह काम इन राज्य सरकारों के लिए कड़ी चुनौती है क्योंकि ये सभी राज्य साक्षरता की दृष्टि से काफी पीछे हैं। इसलिए इन राज्यों की सरकारों को काफी काम करना होगा। इन राज्य सरकारों के अलावा भाजपा कार्यकर्ताओं को भी इसमें रुचि लेनी होगी।  विश्व की सबसे बड़ी पार्टी होने का रिकार्ड बना चुकी है भाजपा तो अब उसके लिए डिजिटल इंडिया अभियान चलाने में थोड़ी बहुत दिक्कत के बाद कामयाबी अवश्य मिलेगी। भाजपा शासित राज्य सरकारों में से छत्तीसगढ़ की रमन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने डिजिटल इंडिया अभियान की शुरुआत कर दी है।

सावधान! कालाधन की रीसाकिलिंग पर है सरकार की नजर

स्वैच्छिक घोषणा से 50 परसेंट नहीं और कम मिलेगा

लोकसभा में आयकर अधिनियम का संशोधन विधेयक पारित हो गया। अब इसको राज्यसभा से पारित कराना है। दूसरी ओर रिजर्व बैंक ने व्यापारियों के लिए जितना जमा उतनी निकासी की छूट दे दी है। सरकार को यह आशंका है कि व्यापारियों की आड़ में काला धन वाले अपने काले धन को सफेद करने के लिए जमा करके निकालने की होड़ में जुट जाएंगे। इसी को देखकर सरकार ने स्वैच्छिक घोषणा कर 50 प्रतिशत राशि बचाने का दांव खेला है। इसके तहत सरकार 50प्रतिशत का टैक्स सरचार्ज लगाने के बाद उस खाते की 25 प्रतिशत राशि चार वर्ष के लिए फ्रीज कर देगी और चार वर्ष बाद बिना ब्याज के रकम लौटा दी जाएगी। अब चार वर्ष तक आपकी राशि जमा किये जाने पर जो ब्याज प्राप्त होगा। इस तरह से स्वैच्छिक घोषणा करने वाले को पहले 25 प्रतिशत की राशि मिलेगी। चार वर्ष बाद बाकी 25 प्रतिशत की राशि मिलेगी। उस पर मिलने वाली राशि का घाटा होगा। सरकार पूर्व में घोषित अपनी स्वैच्छिक घोषणा को फिर से लागू कर दिया है। यानी काले धन वालों को एक मौका दिया है। सरकार को यह अंदेशा है कि लोग अपनी काले धन को तरह-तरह के तिकडक़ों से रीसाइकिल करने का प्रयास करेंगे। इसलिए सरकार स्वयं बढ़ कर यह दांव चला है जो देशहित में अच्छा है। सरकार इन सारे तिकड़मों पर बारीकी से नजर रखे हुए है। 

खुशखबरी ! नए साल पर मिलेंगे नए तोहफे

नोट बंदी का गम भूल जाएंगे आप, खिलेंगे चेहरे

नोट बंदी से परेशान हो रहे आम नागरिकों और व्यापारियों के लिए खुशखबरी देने वाली खबरें आने लगीं हैं। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि अगले वर्ष फरवरी में पेश होने वाले बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली कुबेर का खजाना बरसाने वाले हैं। इससे न केवल आम आदमी अथवा जरूरतमंद उपभोक्ता खुश होगा बल्कि व्यापारी वर्ग भी खुश होगा। सरकार फिलहाल ऐसी योजना बना रही है कि संकट से गुजर रहे प्रापर्टी व्यवसाय को कुछ राहत मिले। प्रापर्टी व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए कई नई ऐसी योजनाएं सरकार की चलाने की मंशा है जिससे लोग आसानी से पहले से ज्यादा प्रापर्टी की खरीद-फरोख्त कर सकें। यह माना जा रहा है कि नोट बंदी से जमा रकम को सरकार गरीबों के लिए आवास योजना में कुछ राहत देने वाली है। चर्चा तो यहां तक है कि सरकार उन लोगों को बहुत कम दरों पर आवास लोन देने वाली है जिन्होंने अभी तक होम लोन के लिए अप्लाई नहीं किया है। संकेत मिले हैं कि मौजूदा समय में 13 से 14 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की जगह पर ये दरें मात्र छह या सात प्रतिशत वार्षिक दरों पर आसानी से लोन मिल सकेगा। दूसरी ओर नोट बंदी के बाद बैँकों में जमा राशि से होने वाले लाभ के लिए बैँकों पर दबाव डाला जा रहा है कि वह अपनी लोन दरें कम करें। ऐसा माना जा रहा है कि बैंक सरकार की  मंशा के अनुरूप लोन दरों को कम करेंगी। इस तरह से आम जनता का दोहरा फायदा होगा। लोग सरकारी और प्राइवेट दोनों तरह के लोन लेकर अपने घर का सपना पूरा कर सकते हैं। इसलिए ऐसा प्रतीत हो रहा है कि नोट बंदी का यह गम नए साल के तोहफों से छू मंतर हो जाएगा। 

विदेशी चंदा: कांग्रेस-भाजपा ने पैर वापस क्यों खींचे?

गत 2014 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने ब्रिटेन स्थित वेदांता रिसोर्सेज की सहायक दो कंपनियों से राजनीतिक दलों द्वारा चंदा स्वीकार किए जाने के मामले में कहा कि इन दलों ने संबंधित कानून का प्रथम दृष्टया उल्लंघन किया है। इस मामले को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। इस अपील को दोनों ही दलों ने वापस ले लिया है। आज जब पूरे देश में नोट बंदी से काला धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग चल रही है तो ऐसे में ये अपील वापस करना दोनों दलों के खिलाफ सवाल खड़ा कर रहे हैं। न्यायमूर्ति जेए खेहड़,न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की तीन सदस्यीय खंडपीठ को भाजपा के वकील श्याम दीवान और कांग्रेस के वकील कपिल सिब्बल ने अपनी याचिकाएं वापस लेने के अनुरोध के साथ सूचित किया कि विदेशी चंदा विनियमन कानून, में 2010 में किये गये संशोधन के मद्देनजर कानून का उल्लंघन करके कथित रूप से विदेशी धन स्वीकार करने पर उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। दीवान ने कहा कि कानून में 2010 में हुये संशोधन के अनुसार एक राजनीतिक दल को मिला चंदा विदेशी योगदान नहीं है यदि उस फर्म में एक भारतीय के 50 फीसदी या इससे अधिक शेयर हैं। उन्होंने यह भी कहा कि विदेश में पंजीकृत कंपनी की भारतीय सहायक कंपनी चंदा दे सकती है और संशोधित कानून के मद्देनजर ऐसे चंदे को विदेशी चंदा नहीं माना जा सकता है।
 उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि ब्रिटेन स्थित वेदांता रिसोर्सेज की सहायक दो कंपनियों से राजनीतिक दलों ने चंदा स्वीकार करके संबंधित कानून का उल्लंघन किया था। उच्च न्यायालय ने केन्द्र और निर्वाचन आयोग को इन दलों के खिलाफ छह महीने के भीतर उचित कार्रवाई का निर्देश दिया था। कांग्रेस ने इस फैसले को चुनौती देते हुये कहा था कि वेदांता के मालिक भारतीय नागरिक अनिल अग्रवाल हैं और उनकी दो सहायक कंपनियां भारत में पंजीकृत है। इसलिए वे विदेशी स्रोत नहीं हैं। उच्च न्यायालय ने कहा था कि वेदांता कंपनी कानून के अनुसार विदेशी कंपनी है और इसलिए अनिल अग्रवाल के स्वामित्व वाली फर्म और उसकी सहायक स्टरलाइट तथा सेसा विदेशी चंदा विनियमन कानून के अनुसार विदेशी स्रोत हैं। 

क्या ममता दीदी ने सही कहा?

मोदी-शाह करे खातों के खुलासे की शुरुआत

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री एवं तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी ने कहा कि अपने सांसदों और विधायकों के बैंक खातों का हिसाब मांगने वाले मोदी को इसकी शुरुआत खुद तथा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से करनी चाहिये। ममता ने  नोटबंदी के खिलाफ लखनऊ मेंं आयोजित रैली में मोदी को तुगलक और हिटलर से भी ज्यादा खतरनाक शासक बताया। उन्होंने रैली में नारा भी दिया कि ‘नोटबंदी वापस लो नहीं तो मोदी जी वापस जाओ’। भाजपा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, बजरंग दल इत्यादि का धन विदेशी बैंकों में ठिकाने लगाने के बाद जनता के धन पर धावा बोला। प्रधानमंत्री आने वाले वक्त में लोगों की जमीन और घर भी छीन लेंगे। उन्होंने कहा कि नोटबंदी से ऐन पहले भाजपा और उसके अध्यक्ष के नाम पर बड़े पैमाने पर जमीनें खरीदी गयीं, दाल में कुछ काला लगता है। उन्होंने कहा कि यह नोटबंदी नहीं ‘ब्लैक इमरजेंसी’ है। उन्होंने कहा कि हिन्दुस्तान जनता की मर्जी से चलता है। मोदी मनमानी कर रहे हैं। यहां तक कि आपातकाल में भी ऐसा नहीं हुआ था। रैली में सपा नेता ने कहा कि विदेश से कालाधन लाने की बात कहकर मुकरने और फिर सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर होहल्ला करने वाली भाजपा पर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में जनता ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ करेगी। उन्होंने आरोप लगाया कि केन्द्र सरकार ने विजय माल्या जैसे लोगों द्वारा लिये गये भारी कर्ज से बैंकों को हुए नुकसान की भरपाई करने के लिये अम्बानी और अडाणी की योजना को अमली जामा पहनाते हुए नोटबंदी का कदम उठाया और गरीब जनता के पाई-पाई जोडक़र जमा किये गये धन को काला धन बताकर बैंकों में जमा कराया। कई नेताओं ने कहाकि अब जनता पैसे के लिए परेशान है और खुद जीत का जश्न मना रहे हैं।

खटपट मिस्त्री करे खबरों की मुरम्मत

विवादों में रामदेव, बिना मंजूरी नेपाल में निवेश
जय हो बाबा की, कहीं काला धन तो नहीं....
पर्रिकर पर शिवसेना की तंज, फोड़ें पाक की आंख
आतंकी ही हैं पाक की आंख, चार को फोड़ डाला
राबड़ी बोलीं, मोदी नीतीश से कराएं बहन की शादी
आते ही बिहार की सीएम बन गई तब क्या करोंगी भौजी?
मोदी ने भाजपा सांसदों और विधायकों से मांगा बैंक खातों का ब्यौरा
लगता है केजरीवाल ने झाड़ू थमा दी,शुरू हो गया स्वच्छ भारत अभियान
मैं समाजवादी पार्टी का घोषित झंडू बाम हूं: अमर सिंह
खुद को पहचानने में बहुत देर कर दी नेताजी, अब नहीं होता किसी सपाई के सिरदर्द
नोट बंदी पर संसद में घमासान
सडक़ पर नहीं था आसान, तभी संसद को चुना मेरी जान
नोट बंदी का असर, नक्सलियों का रेकार्ड सरेंडर
बेरोजगारों के लिए खुशखबरी, चलों कहीं तो हुआ नौकरी का जुगाड़
खटपट मिस्त्री

‘माननीयों’ पर ऐसे कसेगा शिकंजा!

नोट बंदी के गर्मागर्म मामले को नई दिशा देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के सभी सांसदों और विधायकों के समक्ष नैतिकता व आत्म सम्मान बचाने का एक अवसर दिया है। उन्होंने सबसे पहले अपनी ही पार्टी के सांसदों व विधायकों पर नकेल कसी है। प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया है कि पार्टी के सांसद नोट बंदी के दिन यानी आठ नवंबर से 30 दिसंबर तक के बैंक के लेन-देन की पूरी डिटेल  राष्ट्रीय अध्यक्ष को सौंप दें ताकि भ्रष्टाचार व कालेधन के खिलाफ निर्णायक लड़ाई में आर-पार का फैसला किया जा सके। अरविंद केजरीवाल द्वारा केन्द्रीय मंत्री व गौतमबुद्धनगर के भाजपा सांसद डॉ. महेश शर्मा की बेटी की शादी पर अंगुल उठाते हुए शादी के खर्चे का ब्यौरा मांगा था। इस पर डॉ. शर्मा ने स्वयं ही उन्हें जवाब देकर लाजवाब कर दिया। इसके अलावा विपक्षी दलों द्वारा लगातार यह आरोप लगाए जा रहे हैं कि नोट बंदी के फैसले की जानकारी भाजपा नेताओं को पहले ही दे दी गई थी ताकि लोग अपना-अपना काला धन ठिकाने लगा सकें। इन दोनों मुद्दों पर विचार करने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह कदम उठाया है। यह माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस कदम के बाद सभी दलों के सांसदों व विधायकों पर भी नैतिकता के लिए दबाव बढ़ेगा। यदि कोई इस मामले में दोषी पाया गया तो सरकार पर पक्षपातपूर्ण कार्यवाही का आरोप तो नही लग सकेगा। मतलब यह है कि सांसदों व विधायकों पर इस तरह से कसेगा शिकंजा। इस तरह से माननीयों की की जा रही है घेराबंदी। 

नोट बंदी पर कठोरवाणी: निरंकुश कार्रवाई:प्रो. सेन


नोट बंदी के फैसले पर अर्थशास्त्रियों की राय महत्वपूर्ण है। वह भी तब जब अपनी राय देने वाला भारतीय हो तो और भी अधिक महत्व बढ़ जाता है। संसद में पूर्व प्रधानमंत्री और अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह ने जिस तरह से नोट बंदी को सुव्यस्थित लूट करार दिया था उससे काफी भूचाल आ गया था। हालांकि जनसमर्थन के चलते मनमोहन सिंह के कठोर वचन अधिक प्रभाव नहीं छोड़ पाए। लेकिन हमारे देश के नोबेल पुरस्कार प्राप्त अर्थशास्त्री प्रो. अमत्र्य सेन ने मनमोहन सिंह से एक कदम और आगे बढ़ कर अपनी कठोर प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उसका प्रभाव अवश्य पड़ रहा है। प्रो सेन ने केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले की आलोचना की। उन्होंने सरकार के नोटबंदी के इरादे और उसे लागू करने के तरीके पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा है यह ‘निरंकुश कार्रवाई’जैसी है। केवल एक सत्तावादी मानसिकता वाली सरकार ही लोगों को इस तरह की तकलीफ दे सकती है। लोगों को अचानक बताना कि उनके पास जो करेंसी है उसका इस्तेमाल नहीं हो सकता, सत्तावादी प्रवृति को जाहिर करता है। लाखों बेगुनाह लोग अपने खुद के पैसे वापस लाने की कोशिश में पीड़ा,असुविधा और अपमान झेल रहे हैं।

Monday, 28 November 2016

दुखद: महेन्द्र कुमार आर्य की धर्मपत्नी श्रीमती चमेली देवी का निधन

गौतमबुद्धनगर में आर्य समाज की ध्वजा प्रचंड करने वाले आर्य समाज सूरजपुर के 20 वर्षों तक रहे प्रधान श्री महेन्द्र कुमार आर्य की सहधर्मिणी श्रीमती चमेली देवी का लगभग 65 वर्ष की आयु में अचानक दुखद निधन हो गया। उनका निधन हृदय गति रुकने के कारण हुआ। प्रतिदिन की भांति सुबह के पांच बजे उठ कर नित्य कर्म से निवृत होकर दैनिक यज्ञ-हवन में भाग लेकर लगभग साढ़े आठ निवृत हुईं। इसके पश्चात नित्य की भांति सुबह का नाश्ता करने के बाद सभी बच्चों के हाल चाल जानें और इसी बीच उनके सीने में दर्द उठा। हालत बिगडऩे पर सभी लोग दौड़े और कैलाश अस्पताल ले गए। जहां पर डाक्टरों ने मृत करार दिया। परिजनों पर तो दुख का पहाड़ टूट पड़ा। क्योंकि वे सभी के सुख-दुख का बहुत ख्याल रखतीं थीं। वे अपने पीछे पति श्री महेन्द्र कुमार आर्य और छह बेटों और तीन बेटियों का भरा-पूरा परिवार छोड़ गईं हैं।  गत 27 मार्च 2016 को उनकी शादी की 50वीं सालगिरह थी। इस अवसर को धूमधाम से मनाया गया था। इस अवसर पर एक वेद के पाठ का महायज्ञ का आयोजन किया गया था।
श्रीमती चमेली देवी के निधन पर एक शोकसभा आगामी 4 दिसम्बर दिन रविवार को सूरजपुर,ग्रेटर नोएडा, गौतमबुद्धनगर में आयोजित की जा रही है।
इस दुखद भरे माहौल में ड्रीमलाइन परिवार श्रीमती चमेली देवी के निधन पर दिल की गहराइयों से शोक व्यक्त करता है और श्री महेन्द्र कुमार आर्य सहित पूरे परिवार को इस दुख सहने की परमपिता ईश्वर से प्रार्थना करता है। 

बंद तो सफल हुआ नहीं, मोदी सरकार को गिराएंगी?

जीवित रहूं या मरूं,मोदी को सत्ता से हटा के रहूंगी:ममता बनर्जी

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी ने नोट बंदी के विरोध में आयोजित जनाक्रोश रैली को सम्बोधित करते हुए ऐलान किया है कि जीवित रहूं या मरूं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सत्ता से हटा कर रहूंगी। विपक्ष  का यह बंद देश में कितना सफल रहा है, इसकी बताने की जरूरत नहीं है। फिर भी ममता बनर्जी को लगता है कि वह दिल्ली में प्रधानमंत्री आवास के सामने चंद लोगों के साथ धरना देने से मोदी की सरकार गिर जाएगी तो यह उनकी गलतफहमी नहीं है तो और क्या है। पहले जिस विपक्ष ने बंद का आयोजन किया उसमें से कई दल अलग खड़े हो गए। मोदी को चेतावनी देने के साथ ही सुश्री ममता बनर्जी यह सच भी स्वीकारतीं हैं कि लखनऊ में उनकी पार्टी की ताकत ज्यादा नहीं है। जब लखनऊ में ताकत ज्यादा नहीं है तो दिल्ली में इतनी ताकत कहां से आ गई तृणमूल पार्टी में कि मोदी सरकार को गिरा दे। इस लिए ममता दीदी जोश में कम होश में आकर काम करों क्योंकि आप एक जिम्मेदार मुख्यमंत्री हैं। 

क्या नास्त्रेदमस की ये भविष्यवाणी भी सच होगी?

नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी उनकी कविताओं में छिपी होतीं थीं। उनकी भविष्यवाणी इतनी सटीक होतीं हैं कि लोग आज भी उनकी कविताओं पर शोध करके आने वाले समय के बारे में जानने में तल्लीन हैं। भारत के बारे में नास्त्रेदमस की अनेक भविष्यवाणियां सच हुईं हैं। इनमें से एक राजीव हत्याकांड था। दूसरा मोदी की ताजपोशी। नास्त्रेदमस ने मोदी का नाम लिए बिना कहा था कि भारत में 21 वी सदी के पहले दशक के बाद एक ऐसा व्यक्तित्व सामने आएगा जो देश की तकदीर बदल देगा। इस व्यक्तित्व के बारे में लिखा है यदि वह संत बनता तो वह विश्व के चुने हुए संतों में से एक होता। यदि वह राजनीतिज्ञ बनता है तो वह भारत के साथ विश्व की राजनीति पर अपनी अमिट छाप छोड़ेगा। सन् 2014 से सत्ता संभालने के बाद नरेन्द्र भाई मोदी ने जिस तरह से देश को संभाला है , वह नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी को सच साबित कर रहा है। नास्त्रेदमस ने भारत के लिए 2017 वर्ष भी ऐतिहासिक बताया है। अभी 2016 गुजर ही रहा है कि देश में नोटबंदी से बहुत बड़ा भूचाल आ गया है। नास्त्रेदमस ने अपनी भविष्यवाणी में कहा है कि 2017 को भारत के लोग वर्षोँ तक याद रखेंगे। 2017 आने वाला है और ऐसे ही लक्षण दिखाई दे रहे हैं। 2017 वास्तव में भारी उथल-पुथल मचाने वाला होगा। विशेषकर काला धन के खिलाफ और गरीबों के हित में ऐतिहासिक साल होने वाला है। इसी तरह से उन्होंने एक और भविष्यवाणी की है कि यह व्यक्तित्व पूरे 12 वर्ष तक देशहित में देश की सत्ता पर विराजमान रहेगा। अब देखना है कि कौन-कौन सी भविष्यवाणियां सच होने वाली हैं। साभार नभाटा

भारत बंद : विपक्ष बताए किसके खिलाफ था जनाक्रोश

बंद की जगह मतदान हुआ होता तो मोदी फिर बन जाते हीरो

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब से नोट बंदी की घोषणा की है तब से लगातार विपक्ष तरह-तरह की बयानबाजी कर जनता को बरगलाने की कोशिश कर रहा था। इन दलों के चंद समर्थक अपने-अपने आकाओं को खुश करने के लिए उनकी जुबान में बोल रहे थे। एक बार पीएम को भी लगा हो सकता है कि कठोर फैसला है, जनता को परेशानी हो रही है लेकिन जनता इस फैसले को लेकर उनके खिलाफ तो नहीं खड़ी हो रही है। यह सोच कर उन्होंने अपने ऐप में रायशुमारी कर डाली। इसमें मोदीजी को 85 प्रतिशत से अधिक समर्थन मिला। अब इस पर विपक्षी दल यहां तक भाजपा के कुछ असंतुष्ट लोगों ने सवाल उठाए। बसपा सुप्रीमों सुश्री मायावती ने तो रायशुमारी को फर्जी और भाजपा द्वारा प्रायोजित करार देकर चुनौती ही दे डाली कि दम हो तो चुनाव कराकर देख लें। अब इसी नोटबंदी को लेकर विपक्ष ने एकजुट होकर भारत बंद का आयोजन किया। बंद से पहले ही कई विपक्षी दल मोदी जी के साथ आ खड़े हुए। बाकी विपक्षी दलों के हौंसले पस्त हो गए और सडक़ों पर बिखरे विपक्ष का हाल पूरा देश जान गया। इसे रायशुमारी माना जाए तो बंद को लेकर मोदी जी बड़ी भारी विजय है और विपक्ष की करारी हार। यदि बंद की जगह इसी मुद्दे वोट डाले जाते तो विपक्ष की लुटिया ही डूब जाती। 

काले धन वालों के लिए सुनहरा मौका

चाहे 47 परसेंट बचाओ याद 85 परसेंट गंवाओ
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार ने देश के काला धन को जमा करने वालों के लिए एक और सुनहरा मौका दे दिया है। लोकसभा में रखे गए आयकर संशोधन विधेयक में सरकार ने एक प्रस्ताव किया है कि आठ नवम्बर के नोट बंदी के निर्णय के बाद से बैंक में जमा किए गए बेनामी रुपये पर टैक्स व सरचार्ज मिलाकर 53 परसेंट लगाया जाएगा जो सरकारी खाते में जमा हो जाएगा। इस तरह की सम्पत्ति को छिपाने वाले जब पकड़े जाएंगे तो सरकार उनकी जमा पूंजी का 85 प्रतिशत ले लेगी। इस विधेयक की खास बात यह है कि खाते में जमा ढाई लाख रुपये से अधिक की राशि के 25 परसेंट को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण सेस अकाउंट में जमा कर दिया जाएगा। इससे   शिक्षा, स्वास्थ्य और इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च किया जाएगा। सरकार ने अघोषित आय पर करीब 75 पर्सेंट टैक्स लगाने का फैसला लिया है, जबकि बाकी बची 25 पर्सेंट रकम को निकाला जा सकेगा। गरीब कल्याण योजना के तहत खर्च होने वाली राशि को घर, सिंचाई और शौचालय में खर्च किया जाएगा। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 8 नवंबर को हुई नोटबंदी के बाद से बैंकों के पास करीब 6.50 लाख करोड़ रुपए जमा हो चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहले ही कह चुके हैं कि काले धन वालों सुधरना या न सुधरना दोनों ही आपकी मर्जी पर हैं आप जो चाहे चुन सकते हो। अपनी घोषणा के अनुसार ही सरकार ने कदम उठाया है।

लो आ गया आपका मोबाइल बैंक

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगातार डिजिटल इंडिया पर जोर दे रहे हैं। इस ओर एक कदम और आगे बढ़ गया है। देश में पहली तरह के मोबाइल पेमेंट बैंक की शुरुआत हो गई है। ऐयरटेल कंपनी ने ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए सिर्फ पहचान पत्र पर एक लाख रुपये तक का एकाउंट खोलने का रास्ता साफ कर दिया है। कंपनी ने एक लाख रुपये के बचत एवं चालू खाते खोलने की योजना शुरू की है। यह कंपनी सभी बैँकों से अधिक ब्याज भी 7.25 प्रतिशत की दर से देगी। एक लाख रुपयु का निजी बीमा दुर्घटना भी देगी। इस पेमेंट बैँक के जरिये आप अपने मोबाइल फोन से अपने पैसे को ट्रांसफर कर सकते हैं, निकाल सकते हैं। पेमेंट बैँक से आपको मोबाइल बैँकिंग और ऑनलाइन बैंकिंग की सुविधा मिलेगी। इन बैँकों से लोन नहीं मिल सकेगा। 

व्यंग्य:ओ३म जय मोबाइल फोना

ओ३म जय मोबाइल फोना, जय मोबाइल फोना।
तुमसे चमक रहा है मेेरे घर का कोना- कोना।
ओ३म जय मोबाइल फोना..
तू ही ब्रह्मा हो, तू ही विष्णु, तुम हो जादू टोना
लक्ष्मी मइया तुम हो, तुम ही हो चांदी- सोना
ओ३म जय मोबाइल फोना...
अब तक घर-घर में लोग करते थे बात
तरह-तरह के तुम दिखलाते हो करामात
ओ३म जय मोबाइल फोना..
तुम कैमरा बन जाते, बन जाते कम्प्यूटर
हिसाब लगाने को बन जाते कैलकुलेटर
ओ३म जय मोबाइल फोना..
अब बनने जा रहे हो नोटो की टकसाल
जो कोई तुमको चाहे हो जाए मालामाल
ओ३म जय मोबाइल फोना..
मोबाइल फोना जी, आरति जो कोई गावे
कह गड़बड़ कविराय बिगड़े काज बन जावे
ओ३म जय मोबाइल फोना..

व्यंग्य पुराण: जब नारद जी को पड़ गए नोट के लाले

मोदी-मोदी,मोदी-मोदी के नारों की गूंज आवाज में पड़ी तो चौंक कर देखा कि नारद जी मोदी-मोदी के नारे लगा रहे हैं। अरे-अरे नारद जी क्या हो गया? नारायण-नारायण की जगह मोदी-मोदी क्यों? कहां से आ रहे हैं? क्या माजरा है? अरे भक्त कुछ  मत पूछो। त्रैलोकी में आजकल भूकम्प आया हुआ है। सभी लोग सकते में हैं। सबसे ज्यादा परेशान हैं लक्ष्मी मइया। वो कहतीं हैं कि जब हमारे भक्तों का नोट यानी धन यानी लक्ष्मी के बिना ही मोबाइल से काम चल जाएगा तो मेरी पूजा ही कौन करेगा। और कुबेर जी का क्या हाल है? वे तो खजाने के साथ लापता हैं। उन्हीं को तो खोजने आया हूं। तो मोदी-मोदी क्यों चिल्ला रहे थे? पता चला है कि कुबेरजी मोदी के खजाने में हैं। वह क्यों? वह इसलिए कि त्रैलोक में यह खबर पहुंच गई है कि अब रुपया पैसा, अठन्नी-चवन्नी नहीं चलेगी, अब मोबाइल फोन से सब कुछ होगा। तो क्या हुआ? अरे बुद्धू भगत तू निरा बुद्धू का बुद्धू ही रहा। अब भगवान पर भक्त क्या मोबाइल चढ़ाएगा। अब तो सभी भगवानों को मोबाइल सिम खरीदने होंगे तभी तो भक्त उन पर अपना चढ़ावा चढ़ा पाएगा। इसलिए सभी ने मोबाइल फोन और सिम मंगवाए हैं। वही लेने आया हूं। उसी के लिए कुबेर को खोज रहा हूं। तो वहां कुछ भी नहीं बचा। नहीं-नहीं, वहां तो बहुत कुछ बचा लेकिन जब यहां आया तो पता चला कि अभी कुछ दिन पहले के 500 और 1000 के नोट नहीं चल रहे हैं तो हमारे पुराने तांबे,पीतल और गिलट आदि के सिक्के कहां से चलेंगे? सोना-चांदी का क्या हुआ? अरे मूर्ख तुझे नहीं मालूम। सोना-चांदी जब कलयुग आया तो सारा का सारा ले आया था। अब इन सिक्कों को लेकर जहां जाता हूं लोग कहते हैं कि बाबा पगला गया है। इस जमाने में ये सिक्के लेकर इधर उधर डोल रहा है। मोबाइल फोन वाले और सिम वाली कंपनियां तो पुराने नोट ले रहीं हैं। यही तो चूक गए। वहां भक्तों के चढ़ाए हुए एक हजार और पंाच सौ के नोट तो थे पर जब पता चला कि वे नहीं चल रहे हैं तो सिक्के ले आया। मोबाइल फोन वाले और सिम वाले एक ही रट लगाए हैं कि पुराने नोट ले आओ तो काम चलेगा इस भंगार का हम क्या करेंगे। नारद जी एक बात तो बताओ कि मानो मोबाइल फोन मिल गया और सिम मिल गया तो त्रैलोकी में कौन सी कंपनी का टॉवर लगा है जो आप सभी का मोबाइल फोन काल पहुंचेगी और नोट-सिक्के बिना छनाछन होगी? ये क्या बवाल है? वहां तो ऐसा कुछ भी नहीं है तो इसके बिना कोई काम नहीं होगा। नहीं-नहीं बिलकुल नहीं होगा। तो फिर क्या करें। जाओ पहले त्रैलोकी में टॉवर लगवाओ तब आओ। ऐसा नहीं है भक्त, वो क्या होता है,फीमेल,ई-मेल, बेमेल से काम नहीं चलेगा क्या? नहीं नारदजी,नहीं। किसी बेमेले झेमेल से काम नहंीं चलने वाला क्योंकि ये सारा तालमेल से काम चलता है। तो भक्त किसी एक काले धन वाले का पता बताओ,जिसके पास कोठरियों मे ंनोट बंद हों,उससे मिलकर कुछ काम बन सकता है। नारदजी पगला गए हो, तुम तो जेल जाओगे साथ में हमको भी मुफ्त की रोटियां तुड़वाओगे। प्रणाम नारद जी। अच्छा भक्त, तू जा, तू मेरे किसी काम का नहीं। मैं किसी और भक्त को तलाशता हूं। मोदी-मोदी कहते हुए नारद जी अज्ञात मंजिल की ओर रवाना हो गए।

Sunday, 27 November 2016

धीरे-धीरे कैशलेस की ओर बढ़ रहा है इंडिया

सरकार जल्द ही कर सकती है कई घोषणाएं

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार लगातार कैशलेस इंडिया के अभियान पर जोर दे रही है। सरकार ने मोबाइल क्रांति को कैशलेस अभियान में तबदील करने की ठानी है। सरकार की मंशा सही लगती है। वह इसमें सफल भी हो सकती है क्योंकि आज मार्केट में युवा ही सबसे अधिक खरीददारी करता है। गांव का किसान तो अपने खेतों में व्यस्त रहता है और उसे बीज,खाद,खेती के काम आने वाले कल-पुर्जे, ट्रैक्टर,ट्राली आदि वस्तुएं खरीदने होतीं हैं। इसके लिए भी व्यवस्था की जाएगी। भारत में शायद ही कोई ऐसा घर होगा जिसके घर में मोबाइल फोन न होगा। मोबाइल फोन घर में होगा तो सभी लोग चलाने लगते हैं। आजकल एंड्रायड फोन या अन्य कोई इतने आसान हैं कि इन्हें चलाने के लिए किसी पढ़ाई-लिखाई या डिग्री व ट्रेनिंग की जरूरत नहीं है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कुशीनगर की रैली में भाजपा कार्यकर्ताओं से कहा भी है कि गांवों में एक कार्यकर्ता कम से कम दस परिवारों को कैशलेस इंडिया के फायदे के बारे में बताए व उन्हें मोबाइल फोन चलाना सिखाए क्योंकि अब मोबाइल फोन ही बैंक की ब्रांच है। आपको भागने-दौडऩे की जरूरत नहीं है न ही लाइन लगाने की जरूरत। मोबाइल फोन का बटन दबाते ही पलक झपकते ही सारे काम हो जाएंगे।
गत आठ नवम्बर को नोट बंदी के आदेश के अगले ही दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इशारा किया था कि 30 दिसम्बर के बाद कुछ और नई घोषणाएं करेंगे। शायद उनका इशारा कैशलेस इंडिया की ओर था। अब ऐसी खबरें आ रहीं हैं कि सरकार बाजारों और छोटे दुकानदारों के अलावा आम उपभोक्ताओं के बीच इलेक्ट्रनिक भुगतान बढ़ाने की काफी कोशिशें कर रहीं है। कुछ अधिकारियों ने संकेत दिया है कि दुकानों पर डिजिटल पेमेंट के लिए सारे डिवासेज खत्म हो जाएंगे और सिर्फ आधार कार्ड का नंबर और फिंगर प्रिंट की मदद से हर तरह के पेमेंट हो सकेंगे। इसका ताजा उदाहरण रिलाइंस के जियो सिमकार्ड के जारी करने के लिए आधार नंबर और फिंगर प्रिंट का प्रयोग सामने है। आज आपको रिलायंस का जियो सिम चाहिए तो रिलायंस स्टोर में अपना आधार कार्ड नंबर बताइये और फिंगर प्रिंट दीजिये, बाद बाकी हो गया काम। इस प्रयोग को देखते हुए सरकार ऐसी योजनाओं को बढ़ावा देने के लिए कई आकर्षक घोषणाएं कर सकती है। 

भगवान के लिए भी नहीं लाइन लगाते मध्यम व उच्च वर्ग के लोग

इन्हीं लोगों की इस आदत के चलते चुनी जातीं हैँ लूली-लंगड़ी सरकारें

नोट बदलने की लाइनों में कहीं नहीं दिखा जुगाड़ू मध्यम व  अभिजात्य वर्ग

आजादी मिलने के बाद हमारे नेताओं ने बहुत ही सोच समझ कर लोकतांत्रिक प्रणाली लागू की थी लेकिन तथाकथित अभिजात्य वर्ग के लोगों और मध्यम वर्ग के लोगों ने अपनी आदतों के चलते लोकतंत्र लूट तंत्र में बदल गया। आज नोट बंदी में बैंकों की शाखाओं के सामने देशभर में लम्बी-लम्बी लाइनें लगीं लेकिन शायद ही किसी लाइन में सूट-बूट या कार से उतर कर कोई आकर लगा हो। लाइन यानी कतार से कतराने की आदत ने आज हमारे लोकतंत्र को लूटतंत्र में तबदील कर दिया है। लोकतंत्र का सबसे बड़ा हथियार मतदान यानी मताधिकार का इस्तेमाल करना होता है। लाइन मे लगने की बजाये ये लोग अपना मतदान करना पसंद नहीं करते। ये लोग ऐसे होते हैं कि मतदान के दिन मतदान केन्द्र के बाहर सुबह से शाम तक तमाशा देखते रहते हैं लेकिन कतार में खड़े होकर वोट देने में अपनी हेठी समझते हैं। लेकिन ये नहीं समझते कि वे ऐसा करके खुद अपने को और अपने देश को गड्ढे में डाल रहे हैं। यही कारण है कि आज देश में मात्र 40 से 45 प्रतिशत मतदान से चुनाव सम्पन्न हो जाता है। यानी आधे से अधिक लोग मतदान ही नहीं करते। ये लोकतंत्र का मजाक नहीं है तो क्या है? इन 45 प्रतिशत में एक सीट पर 18 से 20 प्रत्याशी खड़े होते हैं। अधिक से अधिक 10 प्रतिशत मत प्राप्त करने वाला हमारा नेता होता है। वह नेता कैसा होता है, इस बात का अंदाजा लगाइये। वह हमारे राज्य व देश का नेता नहीं होता बल्कि एक समुदाय या दो समुदाय या वर्ग का नेता होता है और सत्ता पाते ही वह अपने वर्ग, जाति,समुदाय,सम्प्रदाय को लाभ पहुंचाने वाला काम करता है। इसे लोकतंत्र कहा जा रहा है। जब तक इसमें सुधार नहीं होगा तब तक देश का कल्याण संभव होना मुश्किल सा लग रहा है।
क्यों ऐसा होता है?
अब सवाल यह उठता है कि आज नोट बंदी के निर्णय के बाद लाइन में लगने वाले गरीब वर्ग को देखकर देश के नेता ये सवाल उठा रहे हैं कि एक भी उच्च और मध्यम वर्ग का व्यक्ति लाइन में लगकर नोट क्यों नहीं बदल रहा है। क्या उनके पास पुराने नोट नहीं हैं? सबसे अधिक पुराने नोट उन्हीं के पास हैं लेकिन लाइन में लगने की आदत नहीं है तो वे लाइन में नहीं लगते। ऐसे लोग जब भी ऐसी समस्या आती है तो वह अपने परमानेन्ट जुगाड़ से काम चलाते हैं। इस बार भी उन्होंने गरीबों को लालच देकर पहले अपनी जगह लाइन लगवाकर नोट बदलवाए और फिर अपने काले धन को जन-धन खातों में जमा करवाकर सरकार की आंख में धूल झोंकने की कोशिश की है। ऐसे लोग सरकार तो क्या ईश्वर के दरबार में भी लाइन नहीं लगाते। आजकल किसी भी नामचीन धार्मिक स्थल में जाइए तो आपको एक ओर तो लम्बी-लम्बी लाइनें लगीं देखने को पाएंगे। अपने इष्ट देव के दर्शन के लिए लोगों को पूरा-पूरा दिन लग जाता है और एक सेकेंड से अधिक दर्शन नहीं हो पाते। वहीं दूसरी ओर चंद रुपये खर्च करके वीआईपी दर्शन कराये जाते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि वे ईश्वर की प्रतिमा के दर्शन करने नहीं आते बल्कि अपने खुद के दर्शन देने आते हैं। हे ईश्वर! ऐसे लोगों को सद्बुद्धि दे और वे लाइन का महत्व समझें और देश व समाज का कल्याण करने को खुद बदलें।

जन-धन में जमा काला धन जब्त होगा

पकड़े जाने पर होगा जुर्माना, दोषियों को हो सकती है जेल

गत आठ नवंबर को नोटबंदी के निर्णय की घोषणा के बाद गरीबों के लिए प्रधानमंत्री जनधन योजना के तहत खोले गए बैंक के खातों में अचानक 50 हजार रुपये तक जमा किए गए हैं। इस तरह से इन खातों में देशभर में 64 हजार करोड़ रुपये जमा हो चुके हैं। सरकार की इन खातों पर नजर है। सरकार और आयकर विभाग ने पहले ही चेतावनी दे रखी है कि इन खातों में जमा रकम के बारे में खाताधारक और जमा कराने वाले दोनों से पूछताछ होगी और कानून के हिसाब से सजा दी जाएगी।

पहले क्या कार्यवाही होगी?

एक रिटायर्ड बैंक अधिकारी के अनुसार जन धन खाता में जमा अवांछित रकम को जब्त करने के साथ ही खाता को चार साल के लिए सीज कर दिया जाएगा। इसके बाद सुनवाई होगी। यदि इस बीच केस फाइनल होगा तभी कोई निर्णय हो सकेगा। 

काला धन: बज गई खतरे की घंटी

बड़ी मछलियों की अब खैर नहीं,शुरू हो गया स्विस अकाउंट्स को खंगालने का काम

देश की ब्लैक मनी पर सर्जिकल स्ट्राइक के दूसरे चरण में सरकार ने काला धन रखने वालों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। सरकार ने विदेश में काला धन जमा करने वालों जानकारी जुटानी शुरू कर दी है। सरकार ने स्विटजरलैंड से ऐसे लगभग दो दर्जन लोगों के अकाउंट की डिटेल मांगी है जिन्होंने कर बचाकर अपना काला धन वहां की बैंकों में जमा किया है। इनमें कई बड़ी कंपनियां, रियल एस्टेट की नामचीन कंपनियां, एक नौकरशाह के परिवार के नाम से खाता, एक बैंकर और कुछ गुजरात मूल के बिजनेसमैन हैं। स्विटजरलैँड के कानून के अनुसार प्रशासनिक सहायता के अनुरोध पर उस देश को उसके नागरिकों द्वारा टैक्स की चोरी करने की जानकारी देनी होती है। सरकार नेसंदिग्ध खातों की जानकारी जुटाने का काम पिछले महीनों में काफी तेज कर दिया है। ऐसा माना जा रहा है कि इन खातों के बारे में जानकारी आसानी से मिल गई तो काला धन वापस लाने में बड़ी सफलता मिलेगी। इसी माह में पांच बड़ी मछलियों की डिटेल सरकार को मिल चुकी है। जल्द ही कार्रवाई किए जाने के आसार है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज एक कार्यक्रम में कहा कि काले धन वालों ये तुम्हारे ऊपर निर्भर है कि सुधर जाओ या न सुधरो लेकिन कम से कम गरीबों की जिन्दगी से न खेलो। उनके जनधन खातों में काला धन न खपाओ। 

रुपये में भारी मंदी आने की आशंका

दिसम्बर में 70 रुपये प्रति डॉलर और अगले वर्ष 72.50 रुपये प्रति डालर तक गिरने का अंदेशा

भारतीय मुद्रा में आने वाले समय में भारी गिरावट आने की आशंका बनी हुई है। आगामी माह में यह स्तर 70 रुपये प्रति डॉलर तक जा सकता है और 2017 के अंत तक यह स्तर 72.50 रुपये प्रति डॉलर तक हो सकता है। एक सर्वेक्षण में अमेरिकी चुनाव के बाद विश्व की वित्तीय सेवाओं के आंकड़ों में रुपये की कमजोर स्थिति को दर्शाया गया है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि भुगतान की स्थिति को देखते हुए यह अनुमान लगाया जा रहा है कि भविष्य में भी रुपये में गिरावट का दौर चलता रहेगा। विश्व के दलाल यह आशा कर रहे हैं कि वित्तीय वर्ष 2017-18 में भारत का चालू खाता घाटा बढक़र जीडीपी का 1.1 प्रतिशत हो जाएगा। यह घाटा वर्तमान 2016-17 के वित्तीय वर्ष में 0.5 प्रतिशत है।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि अमेरिकी फेडरल बैँक के 2017 में अधिक सक्रिय होने के कारण डॉलर को और अधिक मजबूती मिलेगी। सर्वेक्षण करने वाली संस्था को उम्मीद है कि चीन और अमेरिकी मुद्रा दिसम्बर 2017 तक काफी उछाल मारेगी। इसी तरह यूरो भी नए स्तर पर आएगा। ऐसी स्थिति में यह मालूम पड़ रहा है कि रुपया अगले वर्ष तक 70 रुपये के स्तर तक गिरेगा और दिसम्बर 2017 तक यह स्तर 72.50 तक पहुंच जाएगा। 

अर्थव्यवस्था: रुपया गिरा धड़ाम, डॉलर पहुुचा आसमान

बीते सप्ताह में डॉलर के मुकाबले रुपये ने गिरावट के पिछले 39 माह का रिकार्ड तोड़ते हुए 68.86 रुपये प्रति डॉलर का रेट तय किया। भारतीय मुद्रा के गिरावट में आए इस भूचाल के बाद रिजर्व बैंक ने हस्तक्षेप किया तब रुपया 27 पैसे बढ़ा और वह 68 रुपये 46 पैसे पर थम सका। निर्यातकों और बैंकों द्वारा डॉलर्स की भारी थोक में बिक्री से डॉलर के भाव आसमान छूने लगे। गुरुवार को रुपये का लगातार गिरना जारी रहा और यह रेट 68.86 पर पहुंच गया। इससे मुद्रा बाजार में अफरा-तफरी मचने का भय उत्पन्न हो गया। इसके बाद रिजर्व बैंक ने हस्तक्षेप किया। तब कहीं जाकर स्थिति शांत हुई।
बताया जाता है कि डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद से अमेरिकी व्यवस्था में काफी तेजी आई है। एक डीलर के अनुसार डोनाल्ड ट्रम्प ने अपनी विजय के बाद अमेरिकी नागरिकों के प्रति आभार प्रकट करने के लिए विशाल रैली का आयोजन किया। रैली को मिले समर्थन से अमेरिकी अर्थव्यवस्था में भूचाल आ गया। इसका नतीजा सीधा डॉलर पर पड़ा और वह तेजी से आसमान की ओर चढ़ गया। इससे पूर्व के पिछले दो सप्ताह से डॉलर 66.43 रुपये पर था। इसे भी काफी दमदार स्थिति कहा जा रहा था। इसके बाद रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप से रुपया 68.46 प्रति डॉलर और 72.38 प्रति यूरो के दर पर रुका। 

क्या रिजर्व बैंक के गवर्नर ला सकते हैं भूचाल

नोट बंदी: फैसले के कानूनी हक पर उठ रहे सवाल

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा गत आठ नवंबर को लिए गए नोट बंदी के निर्णय को जल्दबाजी में लिया गया निर्णय बताया जा रहा है। साथ ही इसके लिए अवश्यक कानून का पालन न किए जाने की भी चर्चा चल रही है। साथ ही यह कहा जा रहा है कि रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल इस बारे में रहस्यमयी चुप्पी साधे हुए हैं। क्या रिजर्व बैंक के गवर्नर बोले तो आ सकता है भूचाल? क्या वह ऐसा करना चाहेंगे। ये कई महत्वपूर्ण सवाल फिजां में हैं।
नोटबंद को आईबीआई ऐक्ट, 134 की धारा 26 के तहत लागू किया है। इस कानून के तहत केन्द्र सरकार रिजर्व बैंक के सेंट्रल बोर्ड की सिफारिश पर नोट बंद करने का निर्णय ले सकती है। यानी इस फैसले पर रिजर्व बैंक का हक है,सरकार का नहीं। सरकार सिर्फ सिफारिश को लागू करवाने के लिए अधिकृत है। संविधान में यह स्पष्ट लिखा है कि अधिकार प्राप्त संस्था के सिवा दूसरा कोई भी इसका इस्तेमाल नहीं कर सकता। दूसरी ओर आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल हैरतअंगेज रूप से चुप्पी साधे हैं।  ना ही आरबीआई ने उस मीटिंग के मिनट्स ही जारी किए हैं जिसमें नोटबंदी की नीति की सिफारिश करने की सहमति बनने की बात कही जा रही है। पटेल की चुप्पी, मिनट्स जारी नहीं होना, इस आशंका को बल देते हैं कि यह पीएमओ का अचानक और गुप्त रूप से उठाया गया कदम है।
नोट बंदी के निर्णय के बाद रोज-रोज नए-नए कानून का लागू होना भी शंका का विषय है। दूसरी ओर रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर,अर्थशास्त्री और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जिस तरह से नोट बंदी पर पीएमओ को घेरा था,उससे भी यही लगता है कि समस्त कार्यवाही पीएमओ के इशारे पर हुई है। इसके बावजूद यह माना जा रहा है कि इसकी अधिसूचना जो जारी की गई है। वह वास्तव में काबिले तारीफ है। इस अधिसूचना की ईमानदारी ने देशवासियों को प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से प्रभावित किया है कि वे इसका खुलकर समर्थन कर रहे हैं।

क्यों नहीं बन सकती कैशलेस सोसायटी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं ही कहा कि गांव और किसान देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। ये बात आपकी शत-प्रतिशत सही है लेकिन आज देश को आजाद हुए सत्तर साल हुए किसी ने गांव किसान को याद किया है। बचपन में पाठ्यक्रम में एक पाठ था जिसका शीर्षक हुआ करता था ‘हे ग्राम देवता नमस्कार’ वह इसीलिए था कि पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी ग्रामदेवता का सम्मान करे। किन्तु आजकल न तो वह पाठ्यक्रम रहा और न ही ग्राम देवता का सम्मान करने वाले रहे। इस ग्राम देवता को देहाती,बुद्धू,गंवार आदि शब्दों से सुशोभित किया जाता है और गांवों की उपेक्षा की जाती है। गांवों को मूलभूत जरूरत बिजली और सडक़ की सुविधा नहीं दी जाती है। ग्राम देवता की कितनी कड़ी परीक्षा ली जाती है। यह जानने की कोशिश कभी नहीं की गई। बुआई के समय बीज महंगी,खाद महंगी,डीजल महंगा और जब फसल तैयार होकर बाजार में पहुंचती है तो उसके दाम मनमाने तरीके से लगाए जाते हैं। ये कैसा अर्थशास्त्र है? इस कभी सोचा गया। यदि आज से पहले गांवों और किसानों के बारे में सोचा जाता तो मोदी जी आज ये नौबत न आती और न ही कोई परेशानी होती। कभी गांवों और किसानों को शिक्षित करने की कोशिश की गई?कभी शिक्षा को व्यवसाय बनने से रोका गया? बिना साधन-सुविधा के गांवों में अनपढ़ लोगों के बीच कैसे चलेगी आपकी कैशलेस व्यवस्था। आज के युवा से यह उम्मीद कर रहे हैं कि वह आपकी क्रांति में भाग लेगा। युवा भी बेरोजगारी के आलम में जगह-जगह धक्के खाता फिर रहा है। हां, सरकार ग्रामीणों और लोगों को सिखाने के लिए अस्थायी रूप से विभाग खोल ले और उनमें ऐसे युवाओं को भर्ती करके देशभर में कैशलेस व्यवस्था के संचालन का प्रशिक्षण दे और फिर इसके बारे में प्रचार करे और सारी सुविधाएं दे तो आसानी से आपकी कैशलेस सोसायटी बन जाएगी।
टोटल कैशलेस सोसायटी बनाने में एक और दिक्कत हैं। हमारे तीज-त्योहार व जन्म से मरण तक होने वाले 16 संस्कारों के आयोजन। धार्मिक आयोजन, जिनमें सैकड़ों जगह छोटी-छोटी दक्षिणा, चढावा व दान आदि की रस्म अदा की जाती है। यह कैसे संभव होगा।
प्रधानमंत्री जी यदि देश में टोटल कैशलेश व्यवस्था लागू कर दी गई तो वर्तमान समय में लगभग विलुप्त हो चुके पंडित यानी पुरोहित सहिस सात परजों का क्या होगा? ये स्वयं ही नहीं बल्कि इनको दान देने वाली महिलाएं सबसे अधिक चिंतित हैं। इसलिए टोटल कैशलेस इंडिया के विचार से दूर ही रहें तो ठीक होगा। 

Saturday, 26 November 2016

अर्थव्यवस्था पर मंडराता खतरा

रबी की फसल प्रभावित हुई तो बढ़ेगी महंगाई:गैरकानूनी गतिविधियों हों सकतीं है बेलगाम

नोटबंदी से होने वाले फ़ायदे और नुक़सान दोनों अनुमानों पर आधारित हैं. लेकिन इस स्तर पर नोटबंदी का फ़ैसला अर्थव्यवस्था पर खेला गया एक बड़ा जुआ है। वैसे फिलहाल, इसके पूरे असर के बारे में अनुमान लगा पाना बेहद मुश्किल है। सबसे बेहतर स्थिति तो यही होगी कि शुरुआती झटकों के बाद अर्थव्यवस्था स्थिर हो जाए और ब्लैक मनी का बहुत बड़ा हिस्सा ख़त्म हो जाए। वहीं सबसे खऱाब स्थिति ये हो सकती है कि लंबे समय तक आर्थिक मंदी न आ जाए और ग़ैर क़ानूनी गतिविधियों पर बहुत अंकुश भी नहीं लग पाए।
शुरुआती आर्थिक झटके का असर तो दिख रहा है, लेकिन अगले कुछ महीनों में और भी प्रभाव दिखने शुरू होंगे। जैसे रबी फ़सल की बुआई में देरी का असर, फ़सलों की पैदावार पर भी होगा तो देश में महंगाई एक फिर बढ़ेगी। मजदूरों की नौकरियां जाएंगी। मैक्रो इकॉनामिक ट्रेंड्स काफी हद तक उम्मीदों पर निर्भर होते हैं। अगर शुरुआती झटकों से उलटा असर पड़ा है तो आर्थिक विकास की रफ्तार पर विपरीत असर होगा। इसे दूसरे शब्दों में कहें तो, तेजी से फलती फूलती अर्थव्यवस्था में नोटबंदी का फ़ैसला अचानक ब्रेक लगा देना है। बहरहाल, इस जुए में ना केवल आर्थिक विकास को प्रभावित करने वाले सूचकांक दांव पर हैं, बल्कि लोगों की जिंदगियां भी दांव पर लगा दी गई हैं। एक बूढ़ी विधवा जो अपने मामूली पेंशन के भरोसे गुजर बसर कर रही है, अगर वह कुछ सप्ताह तक अपने बैंक खाते से पैसे नहीं निकाल सकी, तो उनका क्या होगा? शहरों में दूर दराज से आने वाले मज़दूर से अगर उनसे काम लेने वाले कह दिया कि स्थिति सामान्य होने के बाद भुगतान मिलेगा तो वह क्या करेगा?जब शहरों और गांवों में पैसे सिमट जाएंगे तो लोग एक रुपये में तीन अठन्नी भुनाने का प्रयास करेंगे। ऐसे में अर्थव्यवस्था भी नीचे की ओर लुढक़ेगी। सरकार को इन बातों पर अभी से ध्यान देना। इन संभावित झटकों से निपटने के लिए अभी से वैकल्पिक तैयारी करनी होगी। वरना देश में अफरा-तफरी मच जाएगी और हाल वही होगा कि ज्यों-ज्यों दवा की, मर्ज बढ़ता ही गया। 

नोटबंदी:गरीब तबका और असहाय हो रहा है परेशान

आम आदमी की बात है, उनके लिए ब्लैक मनी का मतलब सूटकेस या बेसमेंट में छुपाकर रखा गया नोटों का बंडल है, जिसका इस्तेमाल ग़ैर क़ानूनी कामों में होता है। बहरहाल, केवल विमुद्रीकरण (डीमॉनिटाइजेशन) से ग़ैर क़ानूनी आमदनी बंद नहीं हो सकती। इससे केवल ग़ैर क़ानूनी ढंग से जमा बैंक नोट को निशाना बनाया जा सकता है, लेकिन ऐसे नोट शायद बहुत ज़्यादा नहीं होंगे। क्योंकि ऐसी आमदनी वाले लोग सूटकेस में पैसा रखने से बेहतर उपाय जानते हैं। वे इन पैसों को खर्च कर देते हैं, निवेश करते हैं, दूसरों को कर्ज़ दे देते हैं या फिर दूसरे तरीकों से उसे बदल लेते हैं। वे इन पैसों से ज़मीन जायदाद खरीदते हैं, शाही अंदाज़ में शादी करते हैं, दुबई जाकर खऱीददारी करते हैं या फिर राजनेताओं का समर्थन करते हैं।
नोटबंदी का गरीबों,मज़दूरों और पेंशन पर आधारित असहाय लोगों पर सबसे अधिक असर हो रहा है। निस्संदेह, इन लोगों के पास किसी वक्त ऐसा कुछ पैसा पास भी रहता होगा, लेकिन ब्लैक मनी के नाम पर ऐसे बचे हुए पैसों की पीछे पडऩा वैसा ही जैसा कि ऊसर में बीज बोना है। इसे ब्लैक इकॉनमी पर निर्णायक क़दम बताना तो बड़े भ्रम में पडऩा है। नोटबंदी के फ़ैसले को बढ़चढ़ कर बताने वाली सरकार इसके नुक़सान को कमतर बताने की कोशिश कर रही है। कुछ नुकसान तो साफ़ दिखाई दे रहे हैं- लंबी कतारों में लोग समय जाया कर रहे हैं, गैर संगठित क्षेत्रों में पैसों की कमी हो गई है, मज़दूरों का काम छिन गया है और कई लोगों की मौत भी हुई है। अर्थव्यवस्था पर इसके गंभीर परिणाम भी जल्द महसूस किए जाएंगे। कुछ रिपोर्टों में बताया जा रहा है कि ग्रामीण बाज़ार में मंदी महूसस की जा रही है। उदाहरण के लिए, इंदिरा गांधी इंस्टीच्यूट ऑफ़ डेवलपमेंट रिसर्च की निधी अग्रवाल और सुधा नारायण के अध्ययन के मुताबिक नोटबंदी के फ़ैसले के एक सप्ताह के अंदर कई चीज़ों की आवक मंडी में काफ़ी तेज़ी से गिरावट आई है। मंडी में कपास की आवक में 30 फ़ीसदी की कमी हुई है, जबकि सोयाबीन की आवक 87 फ़ीसदी गिर गई है। पिछले साल इस समय इस तरह की गिरावट नहीं आई थी। जब किसानों के पास नकदी की कमी होगी तो खेतिहर मज़दूर और स्थानीय कामगारों की तकलीफ़ भी बढ़ेगी। मनरेगा के मज़दूरों पर भी असर पड़ेगा। पहले से ही उनको मज़दूरी काफी देरी से मिलती रही है और मौजूदा हालात में जब बैंक स्टाफ अगले कई सप्ताह तक ये काम नहीं करेंगे तो बैंक से अपनी मज़दूरी ले पाना इनके लिए और भी कठिन होगा।
यही स्थिति सामाजिक सुरक्षा पेंशन, विधवा पेंशन,वृद्धावस्था पेंशन की होगी। ये पेंशन लाखों लोगों के लिए ङ्क्षज़ंदगी की डोर है। हाशिए पर रह रहे लोगों के लिए ये डरावनी स्थिति है। 

काली कमाई (भ्रष्टाचार ) पर रोक नहीं लगेगी

नोटबंदी के फ़ैसले से केवल काली मुद्रा या जमा किए गए काले धन पर ही प्रहार हो पाएगा, काली कमाई तो बरकरार रहेगी। अर्थशास्त्र में ब्लैक मनी का मतलब ग़ैर क़ानूनी आमदनी से है। वैसी आमदनी जिस पर कर नहीं चुकाया गया हो, ब्लैक मनी कहलाता है। इसमें गांजा-चरस बेचने से होने वाली आमदनी भी शामिल है और रिश्वत में लिया गया पैसा भी। इसका अनुमान यह लगाया जा सकता है कि काली कमाई करने वाले स्वतंत्र रहेंंगे और उनका खेल बदस्तूर जारी रहेगा। अब काली कमाई करने वाले कौन हैं, कौन प्रभावित होगा। इस पर विचार करने की आवश्यकता है। राजनीतिक दलों और अफसरशाह को निशाना बनाया गया अथवा बनाया जा रहा है तो इसे इंदिरा गांधी द्वारा लगाई गई इमरजेंसी के समान समझना होगा क्योंकि इंदिरा सरकार ने इमरजेंसी के दौरान पूरे प्रशासन तंत्र पर अपने पांच सूत्री कार्यक्रमों से नकेल कस दी थी। इन कार्यक्रमों को लागू करने के लिए बहुत सख्ती भी की गई थी। उस समय नौकरशाह त्राहि-त्राहि कर उठा था। यही नहीं राजनीतिक दलों के नेताओं पर आपातकाल में जो हुआ , उसके चलते वे नेता हीरो बन गए। क्योंकि कुछ अर्थशास्त्रियों का अपना मत है कि पैसों की सबसे ज़्यादा जमाखोरी राजनीतिक पार्टियां करती हैं। चुनाव अभियान को देखते हुए ये करना उनके लिए ज़रूरी भी होता है तो ऐसे में नोटबंदी के इस फ़ैसले के जरिए विपक्षी राजनीतिक पार्टियां असली निशाना हो सकती हैं। सत्तारूढ़ पार्टी को सत्ता में होने के कारण इस कदम से कम नुकसान होगा। इसके लिए यह सबसे सही तरीका नहीं है। नोटबंदी के फ़ैसले की तुलना सजिक़ल स्ट्राइक से की जा रही है। ये ठीक तुलना है। दोनों ही मामले सांकेतिक ज़्यादा हैं, इनसे बहुत कुछ हासिल नहीं किया जा सकता और दोनों में बड़ा जोखिम है। ऐसे सांकेतिक स्ट्राइक के बदले भ्रष्टाचार की जड़ों पर लगातार हमले की ज़रूरत है। क्या मोदी सरकार अपना अभियान जारी रखेगी। 

यूपी की सियासत:‘बुआ और बबुआ’ का खेल उचित?

ये पब्लिक है सब जानती है

देश की राजनीतिक दिशा तय करने वाला प्रदेश उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर राजनीतिक दलों में गहमागहमी मची हुई है। नोट बंदी का फैसला भी इस बारे में काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। प्रदेश की सियासत में सक्रिय सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह, बसपा सुप्रीमो सुश्री मायावती और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव काफी सक्रिय हैं। मुलायम सिंह तो सीनियर पॉलिटिशियन का रोल निभा रहे हैं और अखिलेश यादव बसपा सुप्रीमो सुश्री मायावती को बुआ का दर्जा देकर उन पर तंज कस रहे हैं और बुआ सुश्री मायावती भी उन्हें बबुआ और उनकी सरकार को बबुआ सरकार कह कर तंज कस रहीं हैं। इस पर नेताओं को फैसला करना चाहिए कि जो आचरण वह कर रहे हैं क्या जनता के बीच सरकार चुनने जैसी गंभीर प्रक्रिया के लिए उचित हैं या नहीं, क्योंकि ये पब्लिक है। वह अच्छी तरह से सोच कर फैसला करती है। यदि ऐसा न होता तो सरकारें बदलतीं नहीं। इसलिए इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।

क्यों न मिले मोदी को समर्थन

देश की ‘जनता’ अब बन चुकी है ‘जनार्दन’
नोटबंदी को लेकर जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को समर्थन मिल रहा है उससे विपक्ष के नेता खासकर अरविंद केजरीवाल, राहुल गांधी, सुश्री मायावती, सुश्री ममता बनर्जी भले विरोध कर रहे हैं वहीं अमर सिंह, नीतीश कुमार, रतन टाटा जैसे लोग खुलकर समर्थन कर रहे हैं। सबसे कीमती बात रतन टाटा ने कही कि देश में समान अर्थव्यवस्था चला रहे कालेधन, हवाला कारोबारियों और मनी लांड्र्रिंग करने वालों से ये लड़ाई है। ये लड़ाई आसान नहीं है। इस लड़ाई में भले ही सरकारी मशीनरी विशेषकर बैँकों पर बोझ बढ़ गया है लेकिन आने वाले समय में इसका फायदा अवश्य ही देश की जनता को मिलेगा। जब प्रधानमंत्री इतनी बड़ी लड़ाई लड़ रहे हैं तो देश के लोग भी बढ़ चढ़ कर समर्थन कर रहे हैं। ये कोई नई बात नहीं है। देश के लोग अब भेडिय़ा धसान की तरह नहीं रह गए हैँ बल्कि लोकतांत्रिक राज में आने वाले उतार-चढ़ाव को समझने लगे और उसके बाद ही अपना फैसला देते हैं। अन्ना हजारे का आंदोलन, मनमोहन सिंह सरकार की चुप्पी, पर जनता ने जैसी प्रतिक्रिया दे चुकी है। उस पर गंभीरता से विचार करें तो साफ हो जाएगा कि देश की जनता जनार्दन बन चुकी है। वह भावनाओं से ऊपर उठकर सही निर्णय करती है। सोचना तो उन नेताओं को चाहिए कि जो देश की जनता को अपना बंधक समझ लेते हैँ। यदि आज इंदिरा सरकार के समान राज्यों में फैसले होने लगें तो एक दिन ऐसा फिर आएगा कि केन्द्र और राज्यों में एक ही पार्टी की सरकार होगी। अभी खींचतान के चलते ही आम जनता उस आदमी को सरकार चुनने का अवसर देती है जहां तक उसकी पहुंच हो सके। जब प्रधानमंत्री के इरादे नेक हैं और भावनाएं सहीं हैं तो जनता कष्ट उठाकर भी उनका समर्थन कर रही है और क्यों न करे?

सविधान दिवस:ये खटपट ठीक है क्या?

आज संविधान दिवस है। हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। हमको यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे देश की कानून-व्यवस्था, नागरिकों से लेकर लोकसेवकों और उनपर निगरानी रखने वाले महामहिम राष्ट्रपति, मुख्य न्यायाधीश के अधिकार और कत्र्तव्य इसी संविधान की देन है। हमें इस दिन देश में संविधान की वास्तविक स्थिति और नागरिक अधिकारों की सुरक्षा, इंसाफ पर विचार करना चाहिए। यही हो भी रहा है। लेकिन सभी का अपना-अपना दर्द है। इसी दर्द को लेकर छोटे-मोटे मनभेद तो चलते हैं लेकिन व्यवस्था को लेकर तीखे बयान शायद उचित नहीं। सुप्रीम कोर्ट के लॉन में आयोजित समारोह में जजों की कमी को लेकर न्यायपालिका ने अपना पक्ष रखा तो सरकार यानी कार्यपालिका का मर्म आहत हुआ तो उन्होंने न्यायपालिका को लक्ष्मण रेखा का संज्ञान करा दिया। इस पर न्यायपालिका ने नहले पर दहला मारते हुए अपनी अंतिम लक्ष्मण रेखा का भी संज्ञान करा दिया। लक्ष्मण रेखा सभी के लिए हैं। इसीलिए यह संविधान बना है और इसी संविधान के चलते आज देश 70 साल से बिना किसी व्यवधान के चल रहा है और इसी तरह चलता रहेगा।
  

रियल एस्टेट : रियल कारोबारियों को कोई परेशानी नहीं

आने वाले समय में रियल कारोबारियों की छवि तो सुधरेगी

नोट बंदी का सबसे अधिक असर रियल एस्टेट पर पडऩे वाला है। इस तरह की खबरें चहुंतरफा आ रहीं है लेकिन कुछ ऐसे रियल स्टेट के कारोबारी हैं, जो नोट बंदी के फैसले का खुले दिल से समर्थन करते हैं और ये कहते हैं कि इससे कोई खास फर्क नहीं पडऩे वाला। इन लोगों का कहना है कि अच्छे भविष्य के लिए देश बदल रहा है तो थोड़ी-थोड़ी परेशानी सभी के हिस्से में आएगी तो ऐसे में यदि रियल एस्टेट में तीन-चार माह की मंदी आ जाएगी तो कौन भूखों मर जाएगा। ग्रेटर नोएडा, कानपुर महानगर,लखनऊ,गाजियाबाद,नोएडा के कुछ कारोबारियों ने अपनी राय देते हुए कहा कि परेशानी तो उन्हें हो रही है जो तीन महीने में करोड़ों की सम्पत्ति को दो गुने से अधिक रेट पर बेच रहे थे और उसकी वास्तविक कीमत का दसवां हिस्सा सफेद धन में ले रहै। बाकी हिस्सा ब्लैक में ले रहे थे। इन लोगों ने तर्क दिया कि आज भी जो कर भुगतान करने वाला नौकरशाह है वे जमीन जायदाद खरीद रहे हैं। उनके लिए कोई परेशानी नहंीं है और ऐसे लोगों को प्रापर्टी बेचने वालों को भी कोई परेशानी नहीं है। उन्होंने कहा कि आज पूरा देश प्रापर्टी डीलरों को काले धनपति के रूप में देख रहा है। जब नोट बंदी का झंझावात खत्म हो जाएगा तो कम से कम हमारी छवि सुधरेगी और सरकार को हम भी टैक्स देकर ही बिजनेस करना चाहते हैं। ऐसे लोगों की छवि तो सुधरेगी। 

Thursday, 24 November 2016

नोट बंदी : क्या वास्तव में भर गए खजाने

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कह रहे हैं कि नोट बंदी के फैसले से बहुत से लोगों को फायदा हुआ है विशेष कर नगर निगम और नगर परिषद जैसे निकायों के खजाने भर गए हैं। लोगों ने पुराने नोटों को खपाने के लिए कई वर्षों से बकाया टैक्स चुका दिया है। इसके अलावा उन्होंने कहा कि फैसले के पहले दस दिनों में बैंकों के खजाने में 500 हजार करोड़ पहुंच गए हैं। वहीं आम आदमी पार्टी के मुखिया कहते हैं कि मोदी ने आठ लाख रुपये घोटाला कर बैंकों के खजाने फुल कर दिए हैं। रियल एस्टेट में तीन साल के कंगाली का आलम झेल रहे रियल एस्टेट के व्यवसायियों के खजाने भी आठ नवंबर के बाद से भर गए हैं।



डिजिटल करंसी के चलन के फायदे और नुकसान

प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई दामोदार दास मोदी के नेतृत्व वाली सरकार देश में नई क्रांति लाकर अपने नाम नया इतिहास रचना चाहती है हालांकि आधा काम तय कर लिया है । शेष आधा काम वह डिजिटल इंडिया बनाकर करना चाहती है। इसके लिए देश के वह लोग सरकार का साथ देने को तैयार हैं जो आम आदमी हैं। गत आठ नवम्बर को नोट बंदी की घोषणा नई क्रांति की शुरुआत है। तब से आज तक लगातार सरकार कैशलेस ट्रांजेक्शन पर जोर दे रही है। इस तरह के ट्रंाजेक्शन के कई फायदे हैं तो कई नुकसान भी हैं क्योंकि बचपन में एक निबंध परीक्षाओं में बहुत आता था कि ‘साइंस इज ए गुड सर्वेंड बट ए बैड मास्टर’ उस समय तो कुछ समझ में आता नहीं था परन्तु आज उसका साफ मतलब समझ में आ रहा है कि यदि डिजिटल करेंसी के अनेक फायदे हैं तो इसके नुकसान भी ऐसे हैं कि आम आदमी सहन नहीं कर पाएगा। सबसे पहले हमें अपने देशवासियों को इसके लिए शिक्षित करना पड़ेगा क्योंकि हमारा कृषि प्रधान देश है और आज यहां गांवों में 80 प्रतिशत जनता अशिक्षित रहती है। इसके अलावा डिजिटल करंसी के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर भी बहुत बड़े पैमाने पर चाहिए क्योंकि आज भी गांवों की बैँक शाखाओं में कम्प्यूटर पर काम नहीं हो पाता। देश के सबसे बड़े बैंक की ग्रामीण शाखाओं में सर्वर फेल और कम्प्यूटर खराब होने से हफ्तों काम नहीं हो पाता है। ऐसे में डिजिटल करेंसी से आम आदमी बहुत परेशान हो जाएगा। इन सारी सुविधाओं के बाद यदि डिजिटल करेंसी का चलन हो तो कोई बात नहीं। इसके बाद भी निगरानी का स्तर हमें चीन और अमेरिका के बराबर रखना होगा वरना यहां के लोग दिन-दहाड़े लुट जाएंगे और कोई कुछ नहीं कर पाएगा। साइबर क्राइम के विशेषज्ञों पर पार होना होगा। सबसे बड़ी आशंका तो यह है कि पूरे देशवासी बैंकों के बंधक हो जाएंगे। जैसा कि अभी हो गया है कि जरूरत पडऩे पर भी हम अपना पैसा बैंक से अपने मनमाने तरीके से नहीं निकाल पा रहे हैं।
 करना क्या होगा?
डिजिटल करंसी के चलन के लिए करना क्या होगा?.सबसे पहले देश के सभी नागरिकों को बैंक में खाता खुलवाना होगा और डेबिट या क्रेडिट कार्ड लेना होगा। इसके लिए सारी कागजी कार्यवाही पूरी करनी होगी।
बाधाएं
क. डिजिटल करंसी के संचालन के लिए हमारे पास अभी कैसी आधारभूत संरचना है और कैसी होनी चाहिए। ख.हमारे पास कैसी टेक्नॉलॉजी है और कैसी होनी चाहिए। ग. देश के गांवों में आज भी 80 प्रतिशत लोग अशिक्षित हैं, ये कैसे कर पाएंगे अपने काम।
फायदे
क.लेन-देन में भारी सुविधा होगी। ख.चोरी,छिनैती,लूट का खतरा समाप्त होगा। ग.भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। घ. लेन-देन में पारदर्शिता आएगी। ङ.टैक्स चोरी पर अंकुश लगेगा। च. अपराध और आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए धन के इंतजाम पर रोक लगेगी। छ. जाली और नकली नोटों की समस्या पर लगेगा विराम।ज.बैंकों के पास विकास के लिए पर्याप्त मात्रा में पूंजी रहेगी। झ. ई-कामर्स को मिलेगा बढ़ावा। ञ.बैंकिंग, टैक्स व्यवस्था और निगरानी आधुनिक होगी।
नुकसान
क.टेक्निकल समस्या से रोजाना दोचार होना होगा। ख.ताकतवर बैंकों और वित्तीय संस्थानों की मनमानी की आशंका। ग. हद से अधिक निगरानी की आशंका। घ. साइबर क्राइम व जालसाजी का खतरा बढ़ेगा।
प्रधानमंत्री ने क्या कहा-
प्रधानमंत्री ने दिल्ली के विज्ञान भवन में संविधान दिवस से एक दिन पूर्व संविधान के डिजिटल संस्करण के उदघाटन समारोह में अपने भाषण में कहा कि  यदि आम लोग व्हॉट्सऐप का इस्तेमाल कर सकते हैं तो मोबाइल के ज़रिए डिजिटिल करेंसी का इस्तेमाल क्यों नहीं कर सकते हैं? देश की कुल आबादी में 65 फ़ीसदी लोग युवा हैं और करोड़ों के पास स्मार्टफ़ोन हैं, ऐसे में हमें डिज़िटल करेंसी को बढ़ावा देना चाहिए। आठ नवंबर को जो हमने फ़ैसला लिया है उससे सबसे ज्य़ादा फ़ायदा नगर निगम और नगरपालिकाओं को हुआ है, उन्हें भारी टैक्स हासिल हुआ। देशहित में फ़ैसले लेने होते हैं और हमें उसका पालन भी करना होता है। लोगों को लगता है कि पिछले 70 सालों से संविधान का दुरुपयोग कर भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया गया.

अगर केजरीवाल के आरोपों में दम है तो...


नोट बंदी के फैसले में देश प्रधानमंत्री मोदी के साथ है। दूसरी ओर दिल्ली के मुख्यमंत्र और आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल जिस पूर्ण विश्वास से मोदी सरकार पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं और उन आरोपों को आयकर विभाग के दस्तावेजों से साबित करने को तैयार हैं, इस पर विचार करने की जरूरत है। यदि इन आरोपों में दम है तो अरविंद केजरीवाल एक बार फिर देश के हीरो बन जाएंगे। 

मनमोहन सिंह को मोदी का दो टूक जवाब

संविधान दिवस के मौके पर संविधान के डिजिटल संस्करण के विमोचन के अवसर पर अपने बयान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि नोट बंदी का विरोध करने वालों को वक्त न मिलने का है दर्द। उन्होंने कहा कि कुछ लोग ये कह रहे हैं कि नोट बंदी के लिए सरकार ने तैयारी नहीं, सच है कि सरकार ने इन लोगों को तैयारी करने का मौका नहीं दिया।

नोटबंदी:क्या अब सरकार की मंशा पर उठने लगे हैं सवाल

नोट बंदी के फैसले के दो सप्ताह से अधिक समय बीत जाने के बाद संसद में जिस प्रकार की बहस चल रही है और पूर्व प्रधानमंत्री और अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह ने जिस तरह से सवाल उठाए हैं और नुकसान गिनाए हैं उससे अब जनमानस में सरकार की मंशा पर सवाल उठने लगे हैं। ये चर्चाएं रिटायर बैंक कर्मियों के मुख से निकले विचारों से भी आम हो रहीं हैं। इन बैँक कर्मियों का मानना है कि सरकार ने बेवजह 10 प्रतिशत काला धन रखने वालों के चक्कर में 90 प्रतिशत आम जनता को लाइन में लगवा दिया। इन दस प्रतिशत वालों में एक का कुछ भी नहीं बिगड़ा बल्कि मजदूरी करने वाले को नोट बदलने के चक्कर में मजदूरी छोडऩी पड़ी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी एक बात यह समझना होगा कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के एक ही कमी थी वे बोलते नहीं थे। बाकी ईमानदारी में उनकी भी छवि जनता में काफी अच्छी थी।
मनमोहन सिंह के सारे बयान उनके अपने खुद के नहीं थे बल्कि पार्टी की विचारधारा से जुड़े हुए थे लेकिन उनका यह बयान कि किस मद में कितना नुकसान हो रहा है उनका अपना बयान था और सबसे ज्यादा जनता के दिल को छूने वाला यह बयान था कि प्रधानमंत्री विश्व में उस देश का नाम बताएं जहां लोगों के बैंकों में जमा धन के निकासी पर रोक लगी हो। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पलटवार करते हुए मनमोहन सिंह के समय के घोटालों को गिनाए। इन घोटालों के गिनाने से हकीकत नहीं बदल सकती। जनता की तकलीफ का उपचार किया जाए सब ठीक हो जाएगा।
अब आइए एक नजर डालें कि कहां से सरकार की मंशा पर सवाल उठ रहे हैं? आठ नवंबर को दिन में बैंकों को ये निर्देश दे दिए गए कि 500 और 1000 के पुराने नोटों से छोटी बचत योजनाओं का लाभ न दें। छोटी बचत योजनाओं में काला धन नहीं खपाया जा सकता। यदि खपाया भी जाता तो सरकार की नजर में रहता। शाम को सात बजे के राष्ट्र के नाम संदेश के बाद लोगों की भीड़ पेट्रोल पम्पों की ओर बढ़ चली और रात बारह बजे से पहले ही 100 रुपये का पेट्रोल डीजल लेने वाले व्यक्ति ने 1000,2000 कहीं-कहीं तो 5000 रुपये की खरीद कर ली। रही बात काले धन वालों की तो वे कोई रिक्शा चालक, मजदूर और आम आदमी नहीं हैं जो लाइन में लगकर नोट बदलवाने आएंगे। सरकार ने जिन 17 जरूरी सेवाओं में पुराने नोटों के चलन की तीन दिन की छूट दी उसी में उन्होंने काम कर लिया। कहा जा रहा है कि जिन पांच राज्यों की विधानसभाओं में होने वाले चुनावों को देखते हुए यह फैसला लिया गया है ताकि वहां के सत्ताधारी नेता अपने-अपने घरों में रखे कालेधन को आगामी चुनावों में इस्तेमाल न कर सकें। तो यह सरकार की भूल है। तीन दिन में सत्ताधारी नेताओं ने अपना-अपना कालाधन जरूरी सेवाओं के नाम पर बदल डाला। तीन दिन बाद जब नया कानून आया तब तक काले धन वालों का काम तमाम हो गया। बाकी बचा तो 24 नवंबर तक काला धन सफेद हुआ। अब 15 दिसंबर तक की मोहलत दी गई। इन जगहों पर आम आदमी का पैसा नहीं बदला जाएगा बल्कि उसके कंधे से कालेधन का तीर चलाया जाएगा। जैसे कि तीन साल से मंदी से जूझ रहे रियल एस्टेट वालों के पास आर्थिक तंगी थी लेकिन नोटबंदी के बाद से उनके पास नोटों का अम्बार लग गया और वे नोट बदलने के लिए उत्तर प्रदेश में 40 प्रतिशत तक कमीशन देने को तैयार हो गए।
अब एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि सरकार ने स्विटजरलैंड से एक समझौता किया है कि वर्ष 2018 से जो व्यक्ति अपना खाता वहां खोलेगा उसकी जानकारी सरकार को मिल जाएगी। आम आदमी विश्व अर्थ व्यवस्था के कानूनों के बारे में नहीं जानता। वो तो यह मानता है कि सरकार ने काले धन वालों को एक साल और लूट-खसोट करने की इजाजत दे दी है और पुराने काले धन वालों से सांठगांठ करके बंदरबांट कर ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नोट बंदी के ऐप में मांगी गई राय के पक्ष में भारी समर्थन के बारे में यह कहा जा रहा है कि आज भी लोगों के मन में यह विश्वास है कि जिस दिन स्विटजरलैंड की बैँकों में जमा काला धन भारत आएगा तब उनके खातों में 15-15 लाख रुपये मिलेंंगे। तब तक देश के काला धन वालों पर जबर्दस्त कार्रवाई होगी। जमीन-मकान सस्ते हो जाएंगे और वे लोग विलासिता का जीवन बिता सकेंगे। चुनाव के वक्त में भाजपा की ओर से कहें चुनावी बयान को भले ही जुमला कह दिया जा चुका है।

जरूरी सेवाओं में पुराने नोट की छूट 15 दिसंबर तक बढ़ी

एक हजार का नोट बंद, जरूरी सेवाओं में सिर्फ 500 का नोट चलेगा

जरूरी सेवाओं में कुछ और सेवाओं को जोड़ा गया

500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों को अब 24 नवंबर की आधी रात के बाद बैंक काउंटर्स से एक्सचेंज नहीं कराया जा सकेगा। इसका मतलब यह है कि शुक्रवार से इन नोटों को अब सिर्फ बैंक में जमा कराया जा सकेगा। ऐसे नोटों को बैंक में जमा कराने की अवधि 30 दिसंबर तक है। हालांकि, कई जरूरी सेवाओं में सिर्फ 500 रुपये के पुराने नोटों का इस्तेमाल 15 दिसंबर तक किया जा सकेगा। यानी अब 1000 रुपये के नोटों का इस्तेमाल कहीं नहीं हो सकेगा।
सरकार ने चलन से बाहर कर दिए गए पुराने नोटों और उनके इस्तेमाल को लेकर कई अहम निर्देश जारी किए। इसके मुताबिक, गुरुवार आधी रात के बाद 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों को बैंक काउंटर्स से नए नोटों से बदला नहीं जा सकेगा। इन नोटों को 30 दिसंबर तक सिर्फ बैंकों में जाकर जमा कराया जा सकेगा।
हालांकि, राहत देते हुए सरकार ने कई जरूरी सेवाओं में सिर्फ 500 रुपये के पुराने नोटों के उपयोग की अवधि 15 दिसंबर तक के लिए बढ़ा दी है। इनमें वे सेवाएं हैं, जिनके बारे में पिछली बार घोषणा की गई थी। साथ ही कुछ नई सेवाओं को भी जोड़ा गया है। पहले से घोषित सेवाओं में बिजली और पानी के बिलों का भुगतान, पेट्रोल पंप और दवा दुकानों पर इनका इस्तेमाल आदि शामिल हैं।
जिन नई सेवाओं के लिए 500 के पुराने नोटों का इस्तेमाल किया जा सकता है, वे इस प्रकार हैं:
- 3 दिसंबर से लेकर 15 दिसंबर तक टोल टैक्स का भुगतान है। 3 दिसंबर से इसलिए क्योंकि सरकार ने 2 दिसंबर तक टोल टैक्स  फ्री कर दिया है।
- केंद्र और राज्य सरकार के स्कूलों, म्युनिसिपैलिटी और स्थानीय निकाय के स्कूलों में प्रति छात्र 2000 रुपये तक की फीस 500 के पुराने नोट के जरिए अदा की जा सकेगी।
- केंद्र और राज्य सरकारों के कॉलेज की फीस अदा करने में चलेंगे 500 के पुराने नोट।
-500 रुपये तक के लिए प्रीपेड मोबाइल टॉप-अप में हो सकेगा इस्तेमाल।
- कंज्यूमर कोऑपरेटिव स्टोर्स से एक बार में 5000 रुपये की कीमत की खरीददारी की जा सकेगी।
पहले से घोषित सेवाएं
- सभी अस्पतालों में इलाज के लिए 500 रुपये के पुराने नोट स्वीकार किए जाएंगे।
- डॉक्टर के दिए गए पर्चे पर इन पुराने नोटों से दवा खरीदने की सुविधा भी 72 घंटे तक उपलब्ध रहेगी।
-  रेलवे, बस और एयरलाइंस के टिकट बुकिंग के लिए ये नोट यूज किए जा सकेंगे।
- केंद्र या राज्य सरकार द्वारा प्रमाणित को-ऑपरेटिव संस्थानों में भी पुराने नोट स्वीकार करने की छूट रहेगी। ऐसे संस्थाओं को अपने स्टॉक और बिक्री की सूचना अपडेट करनी पड़ेगी।
- पेट्रोल, डीजल और सीएनजी की बिक्री के लिए भी  पुराने नोट स्वीकार करने की छूट रहेगी। स्टॉक और बिक्री की सूचना रखनी होगी।
- अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों पर विदेश से आ रहे या विदेश जा रहे लोगों के पास मौजूद पुराने नोटों में से 5 हजार मूल्य तक के नोटों को नए और मान्य नोटों से बदले जाने की इजाजत होगी।

क्या ऐसा पीएम देखा है आपने

राज्यसभा में  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं चलकर विपक्षी नेताओं के पास गए और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत विभिन्न दलों के नेताओं से काफी देर तक बातचीत की। उच्च सदन में आज भोजनवकाश की घोषणा होने के बाद मोदी विपक्षी दीर्घाओं के पास गए। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस नेता कर्ण सिंह, आनन्द शर्मा आदि से बातचीत की। मोदी आम तौर पर सदन में गंभीर मुद्रा में रहने वाले मनमोहन का कुछ देर तक हाथ पकड़े रहे और दोनों को किसी बात पर हंसते हुए देखा गया। गौरतलब है कि इससे पूर्व मनमोहन सिंह ने नोट बंदी के फैसले पर जमकर प्रहार किए।
मोदी ने इससे पहले जदयू नेता शरद यादव, तृणमूल कांग्रेस के सुखेन्दु शेखर, कांग्रेस के सुब्बीरामी रेड्डी आदि से भी बातचीत की। उन्होंने बसपा प्रमुख का हाथ जोडक़र अभिवादन किया और और जवाब में मायावती ने भी हाथ जोड़े। किन्तु दोनों के बीच कोई बातचीत नहीं हुई। प्रधानमंत्री जब राकांपा नेता प्रफुल्ल पटेल और द्रमुक की कनिमोई से बात कर रहे थे, उसी समय विख्यात महिला बॉक्सर एवं मनोनीत मैरीकॉम एवं मनोनीत संभाजी राव भी वहां पहुंचे। मोदी मैरीकॉम और संभाजी राव के साथ काफी उत्साह से बात करते दिखे। इस दौरान उन्होंने संभाजी के कंधे पर हाथ रखा हुआ था।

मनमोहन सिंह ने किया नोट बंदी के फैसले पर तीखा प्रहार

व्यवस्थित लूट बताकर दी चुनौती,पीएम बताएं बैंक में जमा पैसा निकालने वाला देश कौन

अर्थशास्त्री से राजनीतिज्ञ बने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आज संसद में प्रधानमंंत्री नरेन्द्र मोदी के नोट बंदी के निर्णय पर आंशिक सहमति प्रकट करते हुए कहा कि हम नोटबंदी के फैसले के खिलाफ नहीं है लेकिन इसे लागू किए जाने के तरीके के खिलाफ हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी में श्री सिंह ने कहा कि पीएम कह रहे हैं कि यह कदम आतंकवाद को रोकने के लिए उठाया गया है, मुझे इससे कोई आपत्ति नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार के रुख से पूरी तरह असमहत नहीं। नोटबंदी लागू करने में बदइंतजामी हुई। श्री सिंह ने कहा कि हर दिन नए नियम बनाना सही नहीं है। पीएमओ फेल रहा लागू करने में इससे लोगों को काफी परेशानी हुई तथा संबंधित प्रशासकीय तंत्र को खूब मनमानी करने की छूट भी मिली है।
श्री सिंह ने कहा कि पीएम मोदी ने कहा था कि 50 दिन दीजिए लेकिन गरीब लोगों के लिए 50 दिन बहुत होते हैं। गरीबों के लिए 50 दिन भी पीड़ादायक है। आम लोगों को नोटबंदी से तकलीफ हुई है। उन्होंने कहा कि आठ नवंबर को नोट बंदी के फैसले के बाद से 60-65 लोगों ने अपनी जानें गंवा दीं, इससे देश के लोगों का देश की बैंकिंग और करंसी सिस्टम में विश्वास कम हुआ होगा। अपने तीखे प्रहार में  पूर्व मनमोहन सिंह ने मोदी सरकार के नोटबंदी को ‘व्यवस्थित तरीके से की जा रही लूट’ बताया। उन्होंने खुली चुनौती दी कि क्या पीएम मोदी एक भी ऐसे देश का नाम बता सकते हैं जहां लोगों को उनका बैँक में जमा पैसा निकालने से रोका जा रहा हो। उन्होंने आशंका जतायी कि नोट बंदी के निर्णय से कृषि, छोटे उद्योगों और असंगठित क्षेत्र के लोगों को नुकसान होगा। जीडीपी में 2 पॉइंट की गिरावट आ सकती है।



Wednesday, 23 November 2016

क्या मायावती की चुनौती सही है

क्या मायावती की चुनौती सही है,मोदी नोट बंदी पर ऐप में सर्वे की जगह चुनाव करवा जनता की राय लें?
शायद मायावती ने नोटबंदी के बाद हुए उपचुनाव के नतीजे नहीं देखे हैं वरना ऐसा न कहतीं। 

विदेशी सैलानियों में हो रही छवि खराब

मेरा क्या दोष है? मुझे लूटा जा रहा है,मुसीबत में आ कर फंस गए

नोट बंदी से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ऐप पर भले ही 98 प्रतिशत समर्थन मिल रहा हो लेकिन इससे विदेशी सैलानियों पर बुरा असर पड़ रहा है। सभी के मुंह से यही निकल रहा है कि इसमें मेरा क्या दोष है? या तो भारत सरकार यह नोटिस जारी करवा दे कि अभी करंसी बदलने का दौर चल रहा है। कोई भी विदेशी सैलानी न आए अथवा उनके लिए नोट बदलने की व्यवस्था करे। अनेक सैलानियों ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि इसमें मेरा दोष क्या है? कोई आरोप लगा रहा है कि नोट के अभाव में उन्हें लूटा जा रहा है, कोई कह रहा हैकि भारत में आकर नई मुसीबत में फंस गए।
बीबीसी के लिए शालिनी जोशी ने अपने अनुभव बयां करते हुए बताया कि जयपुर से देहरादून की हवाई यात्रा में मेरे साथ बैठी उस विदेशी महिला ने नोटबंदी पर कहा, ‘इट इज़ टेरीबल. वी आर ट्रैप्ड’ यानीये भयानक है, हम तो भारत आकर मुसीबत में फंस गए। दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन से आई 67 साल की एस्टी मेलेट, राजस्थान घूमने के बाद, गंगा दर्शन और योगाभ्यास के लिए ऋषिकेश जा रही थीं।
एस्टी ने बताया कि मैं डॉलर लेकर आई थी। दिल्ली पंहुचकर उन्हें रुपयों में बदला सभी नोट पांच सौ के मिले और जब तक जयपुर पहुंचती, पता चला सारे नोट बंद हो चुके हैं। मेरे तो होश ही उड़ गए.।होटल में तो कार्ड से काम बन गया लेकिन पैसे न होने के कारण मैं गांव के इलाकों में नहीं जा पाई, हाथी की सैर नहीं कर पाई, अपने परिजनों के लिए उपहार तक नहीं खरीद पाई।  एस्टी को उम्मीद थी कि शायद एयरपोर्ट पर सैलानियों के लिए कोई व्यवस्था की गई होगी।वो कहती हैं कि इंतज़ाम तो दूर की बात जयपुर से लेकर दिल्ली के विश्व प्रसिद्ध इंदिरा गांधी हवाई अड्डे और देहरादून के एयरपोर्ट तक की सभी एटीएम मशीनें बंद पड़ी थीं।
इन दिनों पुष्कर का मेला देखने भी बड़ी संख्या में विदेशी सैलानी आते हैं और नज़दीक होने के कारण उनकी यात्रा में हरिद्वार और ऋषिकेश भी शामिल हो जाता है। सोमवार को मैं वापस देहरादून से जयपुर की यात्रा पर थी और संयोग से ऐसे ही कुछ विदेशी सैलानी उस ट्रेन में थे। उनसे बात कर लगा हालात बदले नहीं बल्कि बदतर होते जा रहे हैं। इसरायल से आए एरेज़ की शिकायत थी कि उनकी मजबूरी का फ़ायदा उठाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि बैंकों में नोट नहीं बदल पाया तो आखिऱ में ऋषिकेश में होटल मालिक से मदद ली।उसने एक डॉलर की एवज़ में सिर्फ चालीस रुपये की दर से कुछ रुपये दिए और वो भी इसी शर्त पर कि कमरे का किराया बढ़ा कर देना होगा। इस तरह से मुझे लूटा गया।
फ्रांस से आईं मैडलीन ने कहा किमैं पांच सौ के तीन नोट बदलने के लिए दो दिन कतार में लगी रही। पहले दिन तो मेरा नंबर ही नहीं आया और दूसरे दिन जब काउंटर तक पंहुची तो उन्होंने कहा कि पैसा ख़त्म हो चुका है। मैडलीन के लिए ये समझना कठिन है कि फ्रांस की तरह यहां हर जगह कार्ड से भुगतान क्यों नहीं किया जा सकता और आखिऱ क्यों हर भारतीय का बैंक खाता नहीं है। वो कहने लगीं कि बहुत ज्यादा कठिनाई आ रही है.।नाश्ते के पैसे देने हैं, पानी खरीदना है या सार्वजनिक शौचालय का इस्तेमाल करने के लिए पैसा देना है.।आखऱि कैसे करें?
मैडलीन बताती हैं, इटली से मेरी दोस्त भी साथ आई थीं लेकिन ऐसे हालात देखकर घबरा कर वापस चली गईं। मैं भी जल्दी चली जाऊंगी।

अब छोटी बचत योजनाओं पर सरकार की नजर

जन धन खातों में जमा हुए 21 हजार करोड़ रुपये, दोषियों पर होगी कार्रवाई

जन धन खातों में जमा भारी रकम के बाद पुराने नोटों से छोटी बचत योजना की खरीद पर अब सरकार की नजर है क्योंकि बैंकों को पहले ही छोटी बचत योजनाओं में जमा करने के लिए 500 रुपये तथा 1,000 रुपये के नोटों को स्वीकार न करने का निर्देश दिया गया था। छोटी बचत योजनाओं में पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (पीपीएफ), पोस्ट ऑफिस सेविंग स्कीम्स, नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट्स (एनएससी), सीनियर सिटिजन सेंविग्स स्कीम (एससीएसएस) अकाउंट तथा किसान विकास पत्र (केवीपी) शामिल हैं।
रिजर्व बैंक ने साफ किया है कि भारत सरकार ने फैसला किया है कि ग्राहकों को पुराने नोटों को छोटी बचत योजनाओं में जमा करने की मंजूरी नहीं दी जा सकती। इसलिए बैंकों को तत्काल प्रभाव से 500 रुपये तथा 1,000 रुपये के पुराने नोटों को छोटी बचत योजनाओं के लिए स्वीकार नहीं करने की सलाह दी गई थ्री।
केंद्र सरकार द्वारा आठ नवंबर को की गई नोटबंदी के बाद जन धन बैंक खातों  बड़ी छानबीन के बाद यह पता चला है कि  इन खातों में 21,000 करोड़ रुपये जमा कराए गए हैं। ये रकम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आठ नवंबर को नोटबंदी की घोषणा करने के बाद जमा कराई गई है। वित्त मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि अधिकांश रकम पश्चिम बंगाल में लोगों के जन धन खाते में जमा कराए गए हैं। राजनीतिज्ञों ने यह टिप्पणी की है कि इसीलिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को सबसे अधिक गुस्सा आ रहा है।वित्त मंत्री अरुण जेटली ने चेतावनी देते हुए कहा था कि इस तरह की गतिविधि के लिए अपने खातों का इस्तेमाल करने की मंजूरी देने वालों को कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। मंत्रालय ने कहा कि अगर इस बात का खुलासा हो जाता है कि खाते में डाली गई रकम खाताधारक की नहीं, बल्कि किसी और की हैं, तो इसमें दो राय नहीं कि कर चोरी की यह गतिविधि आयकर तथा दंड के अधीन विषय है। इस उद्देश्य के लिए अपने खातों का गलत इस्तेमाल करने की मंजूरी देने वाले लोगों को आयकर अधिनियम के तहत दंडित किया जाएगा।

कोई मोदी को दे दो संदेश

कोई मोदी को दे दो संदेश,अब दुनिया का नक्शा बदलना चाहिए
सैंतालिस का फोड़ा नासूर बन गया है,अब आपरेशन होना चाहिए
कोई मोदी को दे दो संदेश...
नाम पाक रखकर दुनियां के सारे नापाक दुष्कर्म करता है नरपिशाच
कायरों की भांति शहीद भारतीयों के शवों पर करता है नंगा नाच
कोई मोदी को दे दो संदेश...
देख भारतीय शेरों की है ये हुंकार,अब क्यों कर रहा है हाहाकार
जब गरजेंगे ये शेर फिर होगा लाचार, और मानेगा एक और हार
कोई मोदी को दे दो संदेश...
बोले सुब्रह्मण्यम स्वामी जंग से करो पाक के टुकड़े चार
मामला जरा गंभीर है,जोश से नहीं होश से करो चौतरफा वार
कोई मोदी को दे दो संदेश...
आजादी के 24 साल बाद इंदिराजी ने मिटाया था पूर्वी पाकिस्तान
उसे बांग्लादेश बना डाला जो था पहले पूरब का पाकिस्तान
कोई मोदी को दे दो संदेश...
अब तो बीत रहे हैं 70 साल,पाकिस्तान नाम भी मिटना चाहिए
कितने भी सर्जिकल स्ट्राइक करने पड़े, लेकिन सूरत बदलना चाहिए
कोई मोदी को दे दो संदेश...

....ऐसे खत्म हो रहा आधे घंटे में बैंकों में कैश

नोट बंदी के बाद से आम आदमी परेशान हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बहुत ही सावधानी से यह फैसला लागू किया। लोगों को कानो तक भनक नहीं लगी। लेकिन यह हिन्दुस्तान है यहां सारा काम जुगाड़ से चलता है। यहां के लिए कहते हैं कि मार्केट में आने वाले मजबूत से मजबूत ताले की चाभी पहले ही तैयार हो जाती है। ये तो नोट बंदी है बहुत ही मामूली बात है। देश के सिस्टम के बारे में पूर्व प्रधानमंत्री कहते थे कि केन्द्र अपनी योजना से लाभ दिलाने के लिए एक रुपये जारी करता है परन्तु लाभार्थी को मात्र दस पैसे मिल पाते हैं। यही हाल आज भी बना हुआ है।
नोट बंदी के निर्णय के एक-दो दिन तक तो सभी चकराए, उस बीच पहुंच वालों ने अपने नोट बदल डाले। जब तक दूसरे कानून आए तब तक उन लोगों ने अपना खेल खेल डाला। आम आदमी लम्बी-लम्बी लाइनों में थक कर चला गया। अब तुम डाल-डाल तो हम पात-पात का खेल चल रहा है। आइए बैंक में मात्र आधे घंटे में कैश कैस खत्म होता है। इसका आंखों देखा हाल लाइन में लगे लोगों ने बताया उसके अनुसार एक राष्ट्रीयकृत बैंक की महानगर की शाखा में दिन में 12 से 01 के बीच कैश बाक्स आया और लगभग आधे घंटे बाद कैश वापस भी चला गया। मात्र चार या पांच लोगों के नोट बदलने के बाद ही कैश खत्म होने का ऐलान कर दिया गया। आखिर इतना रुपया कहां गया? यह यक्ष प्रश्न सभी के दिमाग में घूम रहा था। लाइन में खड़े होने वालों के बयान की ओर ध्यान दे तो यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि यह कारगुजारी बैंक मैनेजर से लेकर सिक्योरिटी के बंदरबांट से चल रही है। रही सही कसर पूर्व बैंक कर्मचारी और हल्की-फुल्की जान-पहचान वाले व रिेश्तेदार पूरी कर देते हैं। सुबह छह बजे से लाइन में लगे लोगों के बीच घुसकर वो आसानी काउंटर पर पहुंच जाते हैं। वहां बैठा बैँक कर्मी चीन्ह-चीन्ह कर रेवड़ी बांटे की तर्ज पर उनका काम कर देता है। लाइन वालों का जब तक नम्बर आता है तब तक कैश खत्म होने का ऐलान हो जाता है। छोटी आय कमाने वालों की चांदी हो रही है। लोगों के बर्तन मांजने वाली महिलाएं,या अन्य ऐसे छोटे काम करने वाली महिलाएं व उनके बच्चे आजकल लाइन लगकर अपने परिचितों के नोट बदल रहे हैं। इस काम में उन्हें काफी अच्छी आमदनी हो रही है। नोट माफिया इनका बहुत अच्छी तरह से इस्तेमाल कर रहे हैं। चार हजार की सीमा में नोट बदलने वाले को पांच सौ रुपये की आमदनी हो जाती थी जबकि उसकी माह की आमदनी दो हजार से तीन हजार होती है। अब कैश खत्म होने की घोषणा से तंग होकर परेशान होने वालों का सब्र टूट रहा है। उत्तर प्रदेश के लखनऊ और अलीगढ़ में ऐसे गुस्साए लोगों ने सडक़ जाम कर प्रदर्शन किया। कहीं ऐसा न हो जाए कि सुप्रीम कोर्ट की यह आशंका सच हो जाए कि देश में दंगे की नौबत आ जाए।

Tuesday, 22 November 2016

आजम मिले नेता जी, खिल गए चेहरे

सपा के कद्दावर नेता आजम खान से भेंट करने पहुंचे गौतमबुद्धनगर के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष हाजी ननका और उनके बेटे तो सभी के चेहरे खिल उठे। हाजी ननका बहुत पुराने सपा नेता हैं। सपा पर हर तरह के समय आया पर उन्होंने इसका दामन नहीं छोड़ा। बहुत ही सक्रिय नेता हैं और बहुत ही त्यागी है। आज भी वह जहां हैं वह संतुष्ट हैं। पद के लिए मारामारी नहीं करते। ऐसे नेता बहुत कम मिलते हैं। ऐसे नेताओं की तारीफ की जानी चाहिए।

नोट बंदी: किसको होगा नुकसान और कौन रहेगा फायदे में

नोटबंदी से होने वाले फायदे और नुकसान पर नजर डालते हैं तो पता चलता है कि एक वर्ग को नुकसान होगा तो एक वर्ग का फायदा होगा। जानकार कहते हैं कि अप्रैल में जाकर नोटबंदी से उत्पन्न स्थिति सामान्य हो सकेगी।
कई लोग शहरों में काम करते हैं लेकिन उनके अकाउंट गांवों में हैं, उन्हें पैसे जमा करने के लिए अगर गांव जाने में ख़र्च करने पड़ता है तो ये बड़ा नुकसान होगा। इन लोगों को अपने खातों को शहरों में ट्रांसफर कराना होगा।
लोगों ने नकदी की कमी को देखते हुए खर्च करना बहुत कम कर दिया है। संभल-संभल कर खर्च कर रहे हैं जो कि अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी बात नहीं।लोगों की इस आदत को सामान्य होने में काफ़ी वक्त लग सकता है। इसका देश की प्रमुख बाजारों और अर्थव्यवस्था पर सीधा असर पड़ेगा लेकिन कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है।
नकदी के अचानक खत्म हो जाने से कई ऐसे लोग हैं जो बेरोजग़ार हो गए हैं। ऐसे लोग अगर 10-15 दिन भी काम के बिना रहते हैं तो उनकी कमर टूट सकती है और असंगठित क्षेत्रों में काम करनेवाले ऐसे लोगों की संख्या लाखों में है। यह बात अवश्य दुखद है।
नोट बंदी का फायदा यह हुआ कि लोगों को अब समझ में आ गया है कि बैंक में खाता होना अब अनिवार्य है। साथ ही ये भी कि बैंक में रखा पैसा ब्याज कमाता है, अर्थव्यवस्था का हिस्सा होता है।
सबसे करारा झटका उन गृहणियों को लगा जो महिलाएं घर खर्च से काफी पैसे बचा कर घरों में जमा रखती हैं। संदूक में छिपा कर रखा अचानक बाहर निकल आया। ये पैसा लगातार कम हो रहा होता है क्योंकि ये महिलाएं अब पैसे नहीं बचाएंगी।
पिछले दो-तीन साल से रिएल एस्टेट में मंदी का रुख है जो कि अब और गहराएगा। सेकेंडरी मार्केट में मकानों की खऱीद नकदी पर बहुत ज्य़ादा निर्भर थी जो कि अब थम-सी जाएगी। इसका असर मकानों की कीमतों पर पड़ेगा. उसमें गिरावट आएगी। विमुद्रीकरण के बाद से मकानों की मांग लगभग थम-सी गई है क्योंकि लोगों के पास नक़द पैसे नहीं हैं। आनेवाले समय में भी इस मांग में तेज़ी आती नजऱ नहीं आती।
रिएल एस्टेट को निवेश का विकल्प मानने वालों के लिए निराशा की ख़बर है क्योंकि मकान खऱीदना अब पैसे को तेज़ी से बड़ा बनाने का विकल्प नहीं रहेगा। लोगों को फिलहाल रिएल एस्टेट में निवेश करने से बचना चाहिए। बाज़ार थोड़ा स्थिर हो तभी निवेश के बारे में सोचना चाहिए।
सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि विमुद्रीकरण से लोगों का ईमानदारी में भरोसा बढ़ेगा। अभी तक कारोबार का एक बड़ा हिस्सा नकदी में होता था और कारोबारियों में इसे लेकर कोई अपराधबोध नहीं था लेकिन लोग टैक्स देकर कारोबार करना पसंद करेंगे जो कि अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी बात होगी।
अर्थव्यवस्था में निवेश को बढ़ावा मिलेगा। आज लोग अपने पैसे को बाज़ार में नहीं लगाते। शेयर बाज़ार में विदेशी संस्थागत निवेशकों की बड़ी भूमिका होती है। अब परिदृश्य बदलेगा और लोग बाज़ार में पैसे लगाएंगे जिसका फ़ायदा अर्थव्यवस्था को होगा।
कंपनियों के मालिक पहले बेईमानी कर फ़ायदा कमाते थे। अब ईमानदारी से फ़ायदा कमाने की अर्थव्यवस्था का विकास होगा जो कि एक बहुत अच्छी ख़बर है।
सबसे अधिक नुकसान उन लोगों को होगा जो अपने पास भारी मात्रा में नकदी रखते थे। रही बात काला धन की तो ऐसे लोग पहले से काफी सतर्क रहते हैं वे अपना धन ठिकाने लगाने के लिए भारी-भरकम स्टाफ रखते हैं। इनमें सीए और अन्य बड़े-बड़े मास्टर माइंड शामिल होते हैं।
मोदी सरकार ने काला धन का कारोबार करने वालों को 2017 तक की मोहलत दी है। स्विस सरकार से समझौता कर 2018 के काले धन के कारोबारियों को नकेल डालने के लिए उपाय कर लिए हैं। अब तक के कालेधनपतियों को किस तरह से डील करेगी सरकार यह तो भविष्य बताएगा। 

2018 से स्विस बैंक में भी नहीं चल पाएंगा कालेधन का कारोबार

भारत-स्विस में करार, नोटबंदी तो शुरुआत है: पीएम

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस बयान के चंद घंटों बाद भारत और स्विट्जऱलैंड के बीच एक समझौता हुआ है जिससे काले धन की जानकारी पाने में मदद मिल सकती है, कि नोट बंदी काला धन के खिलाफ लड़ाई की शुरुआत है। स्विटजरलैंड से समझौते के बादे में  भारत के राजस्व सचिव डॉक्टर हसमुख अधिया ने ट्वीट कर  जानकारी दी।  भारत और स्विट्जऱलैंड के बीच ऑटोमैटिक एक्सचेंज ऑफ़ इन्फ़ॉर्मेशन के कार्यान्वयन के लिए दोनों देशों के बीच संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर किया जाना एक बड़ा क़दम है। राजस्व सचिव का कहना है कि इस समझौते के बाद 2018 से स्विट्जऱलैंड के बैंकों में खोले गए किसी भी भारतीय के खाते के बारे में भारतीय आयकर विभाग को सीधे जानकारी मिल सकेगी। ऐसा माना जा रहा है कि इस क़दम से दोनों देशों को ब्लैक मनी से लडऩे में मदद मिलेगी। विदेशों और ख़ासकर स्विट्जऱलैंड में कथित तौर से रखे गए काले धन को लेकर भारत में कई बार सवाल उठते रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए एक एसआईटी भी बनाई है। भारत ने काले धन पर अंकुश को लेकर स्विटजरलैंड से मंगलवार को अहम समझौता किया। इसके तहत स्विस बैंकों में भारतीयों के खातों के बारे में सितंबर 2019 से सूचनाएं मिल सकेंगी।
भारत की ओर से प्रत्यक्ष कर बोर्ड के अध्यक्ष सुशील चंद्र और भारत में स्विस दूतावास के उप प्रमुख गिलिस रोड्यूड ने समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसके तहत दोनों देश सितंबर 2018 से वैश्विक मानकों के अनुरूप बैंकिंग आंकड़ों का संग्रह शुरू करेंगे और 2019 से इन सूचनाओं का स्वत: आदान-प्रदान होने लगेगा।
राजस्व सचिव हसमुख अधिया ने घोषणापत्र पर हस्ताक्षर को बड़ा कदम बताते हुए ट्विटर पर लिखा कि आयकर विभाग स्विटजरलैंड में भारतीयों के खातों के बारे में 2018 के बाद की सूचनाएं प्राप्त कर पाएगा। गौरतलब है कि भारत में कालाधन एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा रहा है,मोदी सरकार ने इसके खिलाफ व्यापक अभियान चला रखा है। वहीं स्विस बैंकों के खाताधारकों की गोपनीयता को लेकर दुनिया भर में सवाल उठते रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय दबाव के बाद स्विटजरलैंड बैंक खाताधारकों की सूचना देने के लिए सहमत हुआ है। इसी दबाव का नतीजा है कि कराधान मामलों में बहुपक्षीय प्रशासनिक सहयोग संधि का सितंबर में अनुमोदन किया था। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छह जून को स्विस राष्ट्रपति जॉन श्नीडर से मुलाकात की थी और कर चोरी रोकने से जुड़े इस समझौते को जल्द से जल्द लागू करने का अनुरोध किया था। ताजा घोषणा पत्र में चुराए गए आंकड़े या भारत से पहले मांगी गई सूचनाओं के आदान-प्रदान के बारे में कुछ नहीं कहा गया है। ऐसे में पहले के खाताधारकों के बारे में जानकारी इसके तहत मिलेगी या नहीं, यह स्पष्ट नहीं है।