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Tuesday, 29 November 2016

विदेशी चंदा: कांग्रेस-भाजपा ने पैर वापस क्यों खींचे?

गत 2014 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने ब्रिटेन स्थित वेदांता रिसोर्सेज की सहायक दो कंपनियों से राजनीतिक दलों द्वारा चंदा स्वीकार किए जाने के मामले में कहा कि इन दलों ने संबंधित कानून का प्रथम दृष्टया उल्लंघन किया है। इस मामले को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। इस अपील को दोनों ही दलों ने वापस ले लिया है। आज जब पूरे देश में नोट बंदी से काला धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग चल रही है तो ऐसे में ये अपील वापस करना दोनों दलों के खिलाफ सवाल खड़ा कर रहे हैं। न्यायमूर्ति जेए खेहड़,न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की तीन सदस्यीय खंडपीठ को भाजपा के वकील श्याम दीवान और कांग्रेस के वकील कपिल सिब्बल ने अपनी याचिकाएं वापस लेने के अनुरोध के साथ सूचित किया कि विदेशी चंदा विनियमन कानून, में 2010 में किये गये संशोधन के मद्देनजर कानून का उल्लंघन करके कथित रूप से विदेशी धन स्वीकार करने पर उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। दीवान ने कहा कि कानून में 2010 में हुये संशोधन के अनुसार एक राजनीतिक दल को मिला चंदा विदेशी योगदान नहीं है यदि उस फर्म में एक भारतीय के 50 फीसदी या इससे अधिक शेयर हैं। उन्होंने यह भी कहा कि विदेश में पंजीकृत कंपनी की भारतीय सहायक कंपनी चंदा दे सकती है और संशोधित कानून के मद्देनजर ऐसे चंदे को विदेशी चंदा नहीं माना जा सकता है।
 उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि ब्रिटेन स्थित वेदांता रिसोर्सेज की सहायक दो कंपनियों से राजनीतिक दलों ने चंदा स्वीकार करके संबंधित कानून का उल्लंघन किया था। उच्च न्यायालय ने केन्द्र और निर्वाचन आयोग को इन दलों के खिलाफ छह महीने के भीतर उचित कार्रवाई का निर्देश दिया था। कांग्रेस ने इस फैसले को चुनौती देते हुये कहा था कि वेदांता के मालिक भारतीय नागरिक अनिल अग्रवाल हैं और उनकी दो सहायक कंपनियां भारत में पंजीकृत है। इसलिए वे विदेशी स्रोत नहीं हैं। उच्च न्यायालय ने कहा था कि वेदांता कंपनी कानून के अनुसार विदेशी कंपनी है और इसलिए अनिल अग्रवाल के स्वामित्व वाली फर्म और उसकी सहायक स्टरलाइट तथा सेसा विदेशी चंदा विनियमन कानून के अनुसार विदेशी स्रोत हैं। 

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