नोट बंदी के फैसले के लिए पूरा देश प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मुक्त कंठ से सराहना कर रहा है। चंद राजनीतिज्ञ अपने निजी स्वार्थ के चलते इस मुद्दे को राष्ट्रपति के समक्ष उछाल रहे हैं जबकि राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने फैसला आने के साथ ही प्रधानमंत्री को इस साहसिक कदम उठाने की प्रशंसा की थी। प्रतिक्रिया में जैसा सपा नेता मुलायम सिंह यादव कह रहे थे कि मोदी सरकार को चाहिए था कि वे देश को कम से कम एक सप्ताह की मोहलत देती। यदि एक दिन की भी मोहलत मिलती तो देश की सारी बैंकें काले धन से भर जातीं। आम आदमी तो दर-दर भटकने को विवश होता और देश में भारी अफरा-तफरी मच जाती।
नोट बंदी का फैसला जिस तरह से लागू किया गया वह भी तारीफेकाबिल है। फैसले के रुख से पता चलता है कि बहुत कम लोगों ने इस फैसले को बहुत ही कम समय में लिया है। इसलिए नोट बदलने की व्यवस्थाएं उतनी पर्याप्त नहीं हो पाईं जितनी देश की जनता को जरूरत थी, इसलिए आम जनता को थोड़ी बहुत परेशानी हुई, फिर जनता सरकार के फैसले के साथ अडिग है।
प्रधानमंत्री जी, आपके इस फैसले को एक बार पुन: सलाम। इसके साथ ही देशवासियों विशेषकर साधारण एवं मध्यम वर्ग के समक्ष एक यक्ष प्रश्न यह है कि आज की बढ़ती महंगई के दौर में सरकार द्वारा दी जा रही सीमा 2.50 लाख रुपये में वर्ष भर जेल मैनुअल के अनुसार पांच सदस्यों के एक परिवार का गुजारा किस प्रकार हो। इस प्रश्न पर गंभीरता से विचार करने के साथ राहतकारी कदम उठाने होंगे तभी देश की जनता के साथ इंसाफ होगा।
आज जरूरत इस बात की है कि सरकार ईमानदारी से बढ़ती महंगाई के वास्तविक स्तर को नापे और उसके अनुसार एक परिवार के पांच सदस्यों के मानक का साधारण,मध्यम और लक्जरी बजट बनाए और उसका औसत निकाल कर आयकर सीमा का नए सिरे से निर्धारण करे, तब सख्ती की जाए तो आम जनता को कोई परेशानी नहीं होगी।
अब आईए देखते हैं कि सरकार द्वारा प्रति परिवार को वार्षिक खर्च की सुविधा दी गई है, उसमें हम कैसे गुजारा कर सकते हैं।
2.50 लाख रुपये के हिसाब से प्रत्येक परिवार को मासिक खर्च लगभग 20 हजार 833 रुपये मिलता है। इसके हिसाब से प्रतिदिन लगभग 691 रुपये का खर्च हाथ में आता है। मात्र 691 रुपये में मुंबई, दिल्ली, चेन्नई,कोलकाता, बंगलुरु, चंडीगढ़,गुडग़ांव,नोएडा, लखनऊ सहित देश के प्रमुख महानगरों में एक परिवार का सुबह के टूथ ब्रश-पेस्ट से लेकर रात्रि के दूध तक का खर्चा चल सकता है? यह प्रश्न बहुत ही गंभीर और विचारणीय है।
अब तस्वीर का दूसरा पहलू देखें कि वर्तमान समय में एक साधारण एवं मध्यम परिवार का दैनिक,मासिक और वार्षिक खर्च कितना हो सकता है?
आईए सबसे पहले दिन की शुरुआत टूथ-ब्रश और पेस्ट के खर्चे से करते हैं। पूरे परिवार के लिए एक माह में कम से कम 200 ग्राम का एक टूथ पेस्ट और पांच टूथ ब्रश व अन्य हैंड वाश आदि का खर्च कम से कम 300 रुपये प्रतिमाह आएगा। कुल खर्च 10 रुपये
इसके बाद साधारण परिवार के नाश्ते पर नजर डालें। तीन बच्चों के लिए दूध का खर्च 36 रुपये। दो वयस्कों के लिए चाय या कॉफी का खर्च 30 रुपये। ब्रेड व स्नैक्स का खर्च 50 रुपये। कुल 116 रुपये।
अब देखते हैं भोजन का बजट किस प्रकार बनता है? थाली में दाल,रोटी,सब्जी और चावल तो होने ही चाहिए। दाल-250 ग्राम लगभग 30 रुपये, सब्जी कम से कम 30 रुपये और रोटियां भी लगभग 30 रुपये, चावल भी लगभग 30 रुपये और ईंधन लगभग 20 रुपये। बर्तन आदि का खर्च इसमें शामिल नहीं है। कुल 140 रुपये।
एक दिन में दो बार नाश्ता व दो बार भोजन तो आम बात है। इसलिए उपरोक्त दोनों राशियों को दोगुना करके पूरे दिन का खर्चा निकाला जा सकता है। इस तरह से पूरे दिन का खर्च आया 532 रुपये। अब माह का खर्च आएगा
एक परिवार के पांच लोगों के लिए पहनने के कपड़े, बिस्तर,फर्नीचर का सालाना खर्च इस प्रकार होगा। जेल मैनुअल के अनुसार दो जोड़े कपड़े अर्थात पूरे परिवार को कम से कम दस जोड़े कपड़ों की आवश्यकता होगी। सोने के लिए कम से कम दो से तीन बेड, सर्दियों के लिए गर्म बिस्तर, गर्म कपड़े आदि। इस पर साल भर में कम से कम 60 हजार रुपये का खर्च आएगा। माह का पांच हजार ।
मोदी जी! आपने जो खर्चा दिया था वह तो इसी दाल-रोटी में बहुत खींचतान के बाद खत्म हो गया। अब आप बताइये कि आम जीवन में काम आने वाले संसाधन, फ्रिज,एसी,कूलर,टीवी,वाशिंग मशीन,मिक्सी आदि कहां से लाए जाएं? बिजली का खर्च कहां से आए? रहें कहां,आवास का खर्च कहां से लाएं? शिक्षा, जो व्यवसाय का रूप ले चुकी है, इसका भारी-भरकम खर्च कहां से आए? सबसे महंगा स्वास्थ्य यानी चिकित्सा का खर्च कहां से आए? सरकारी अस्पताल तो मौत का घर बने हुए हैं, प्राइवेट अस्पताल लूट का अड्डा बने हुए हैं, झोलाछाप डॉक्टरों से यह देश चल रहा है वरना इस देश में मौत का औसत आसमान छूने लगेगा। इन सभी खर्चों को पूरा करने के लिए भारत देश का ईमानदार नागरिक या तो जहालत और मौत को चुने या फिर चोरी करे। चोरी तो चोरी, धन-माल की हो या कर की हो। सब एक समान है। इसलिए मोदी जी जनता के मन की बात को आप हमेशा सुनते हैं। अब जनता जनार्दन के मन की बात सुनें तभी देश का कल्याण हो सकेगा।
नोट बंदी का फैसला जिस तरह से लागू किया गया वह भी तारीफेकाबिल है। फैसले के रुख से पता चलता है कि बहुत कम लोगों ने इस फैसले को बहुत ही कम समय में लिया है। इसलिए नोट बदलने की व्यवस्थाएं उतनी पर्याप्त नहीं हो पाईं जितनी देश की जनता को जरूरत थी, इसलिए आम जनता को थोड़ी बहुत परेशानी हुई, फिर जनता सरकार के फैसले के साथ अडिग है।
प्रधानमंत्री जी, आपके इस फैसले को एक बार पुन: सलाम। इसके साथ ही देशवासियों विशेषकर साधारण एवं मध्यम वर्ग के समक्ष एक यक्ष प्रश्न यह है कि आज की बढ़ती महंगई के दौर में सरकार द्वारा दी जा रही सीमा 2.50 लाख रुपये में वर्ष भर जेल मैनुअल के अनुसार पांच सदस्यों के एक परिवार का गुजारा किस प्रकार हो। इस प्रश्न पर गंभीरता से विचार करने के साथ राहतकारी कदम उठाने होंगे तभी देश की जनता के साथ इंसाफ होगा।
आज जरूरत इस बात की है कि सरकार ईमानदारी से बढ़ती महंगाई के वास्तविक स्तर को नापे और उसके अनुसार एक परिवार के पांच सदस्यों के मानक का साधारण,मध्यम और लक्जरी बजट बनाए और उसका औसत निकाल कर आयकर सीमा का नए सिरे से निर्धारण करे, तब सख्ती की जाए तो आम जनता को कोई परेशानी नहीं होगी।
अब आईए देखते हैं कि सरकार द्वारा प्रति परिवार को वार्षिक खर्च की सुविधा दी गई है, उसमें हम कैसे गुजारा कर सकते हैं।
2.50 लाख रुपये के हिसाब से प्रत्येक परिवार को मासिक खर्च लगभग 20 हजार 833 रुपये मिलता है। इसके हिसाब से प्रतिदिन लगभग 691 रुपये का खर्च हाथ में आता है। मात्र 691 रुपये में मुंबई, दिल्ली, चेन्नई,कोलकाता, बंगलुरु, चंडीगढ़,गुडग़ांव,नोएडा, लखनऊ सहित देश के प्रमुख महानगरों में एक परिवार का सुबह के टूथ ब्रश-पेस्ट से लेकर रात्रि के दूध तक का खर्चा चल सकता है? यह प्रश्न बहुत ही गंभीर और विचारणीय है।
अब तस्वीर का दूसरा पहलू देखें कि वर्तमान समय में एक साधारण एवं मध्यम परिवार का दैनिक,मासिक और वार्षिक खर्च कितना हो सकता है?
आईए सबसे पहले दिन की शुरुआत टूथ-ब्रश और पेस्ट के खर्चे से करते हैं। पूरे परिवार के लिए एक माह में कम से कम 200 ग्राम का एक टूथ पेस्ट और पांच टूथ ब्रश व अन्य हैंड वाश आदि का खर्च कम से कम 300 रुपये प्रतिमाह आएगा। कुल खर्च 10 रुपये
इसके बाद साधारण परिवार के नाश्ते पर नजर डालें। तीन बच्चों के लिए दूध का खर्च 36 रुपये। दो वयस्कों के लिए चाय या कॉफी का खर्च 30 रुपये। ब्रेड व स्नैक्स का खर्च 50 रुपये। कुल 116 रुपये।
अब देखते हैं भोजन का बजट किस प्रकार बनता है? थाली में दाल,रोटी,सब्जी और चावल तो होने ही चाहिए। दाल-250 ग्राम लगभग 30 रुपये, सब्जी कम से कम 30 रुपये और रोटियां भी लगभग 30 रुपये, चावल भी लगभग 30 रुपये और ईंधन लगभग 20 रुपये। बर्तन आदि का खर्च इसमें शामिल नहीं है। कुल 140 रुपये।
एक दिन में दो बार नाश्ता व दो बार भोजन तो आम बात है। इसलिए उपरोक्त दोनों राशियों को दोगुना करके पूरे दिन का खर्चा निकाला जा सकता है। इस तरह से पूरे दिन का खर्च आया 532 रुपये। अब माह का खर्च आएगा
एक परिवार के पांच लोगों के लिए पहनने के कपड़े, बिस्तर,फर्नीचर का सालाना खर्च इस प्रकार होगा। जेल मैनुअल के अनुसार दो जोड़े कपड़े अर्थात पूरे परिवार को कम से कम दस जोड़े कपड़ों की आवश्यकता होगी। सोने के लिए कम से कम दो से तीन बेड, सर्दियों के लिए गर्म बिस्तर, गर्म कपड़े आदि। इस पर साल भर में कम से कम 60 हजार रुपये का खर्च आएगा। माह का पांच हजार ।
मोदी जी! आपने जो खर्चा दिया था वह तो इसी दाल-रोटी में बहुत खींचतान के बाद खत्म हो गया। अब आप बताइये कि आम जीवन में काम आने वाले संसाधन, फ्रिज,एसी,कूलर,टीवी,वाशिंग मशीन,मिक्सी आदि कहां से लाए जाएं? बिजली का खर्च कहां से आए? रहें कहां,आवास का खर्च कहां से लाएं? शिक्षा, जो व्यवसाय का रूप ले चुकी है, इसका भारी-भरकम खर्च कहां से आए? सबसे महंगा स्वास्थ्य यानी चिकित्सा का खर्च कहां से आए? सरकारी अस्पताल तो मौत का घर बने हुए हैं, प्राइवेट अस्पताल लूट का अड्डा बने हुए हैं, झोलाछाप डॉक्टरों से यह देश चल रहा है वरना इस देश में मौत का औसत आसमान छूने लगेगा। इन सभी खर्चों को पूरा करने के लिए भारत देश का ईमानदार नागरिक या तो जहालत और मौत को चुने या फिर चोरी करे। चोरी तो चोरी, धन-माल की हो या कर की हो। सब एक समान है। इसलिए मोदी जी जनता के मन की बात को आप हमेशा सुनते हैं। अब जनता जनार्दन के मन की बात सुनें तभी देश का कल्याण हो सकेगा।
जय हिंद-जय भारत
भारत माता की जय
अनिल कुमार मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार
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