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Saturday, 26 November 2016

अर्थव्यवस्था पर मंडराता खतरा

रबी की फसल प्रभावित हुई तो बढ़ेगी महंगाई:गैरकानूनी गतिविधियों हों सकतीं है बेलगाम

नोटबंदी से होने वाले फ़ायदे और नुक़सान दोनों अनुमानों पर आधारित हैं. लेकिन इस स्तर पर नोटबंदी का फ़ैसला अर्थव्यवस्था पर खेला गया एक बड़ा जुआ है। वैसे फिलहाल, इसके पूरे असर के बारे में अनुमान लगा पाना बेहद मुश्किल है। सबसे बेहतर स्थिति तो यही होगी कि शुरुआती झटकों के बाद अर्थव्यवस्था स्थिर हो जाए और ब्लैक मनी का बहुत बड़ा हिस्सा ख़त्म हो जाए। वहीं सबसे खऱाब स्थिति ये हो सकती है कि लंबे समय तक आर्थिक मंदी न आ जाए और ग़ैर क़ानूनी गतिविधियों पर बहुत अंकुश भी नहीं लग पाए।
शुरुआती आर्थिक झटके का असर तो दिख रहा है, लेकिन अगले कुछ महीनों में और भी प्रभाव दिखने शुरू होंगे। जैसे रबी फ़सल की बुआई में देरी का असर, फ़सलों की पैदावार पर भी होगा तो देश में महंगाई एक फिर बढ़ेगी। मजदूरों की नौकरियां जाएंगी। मैक्रो इकॉनामिक ट्रेंड्स काफी हद तक उम्मीदों पर निर्भर होते हैं। अगर शुरुआती झटकों से उलटा असर पड़ा है तो आर्थिक विकास की रफ्तार पर विपरीत असर होगा। इसे दूसरे शब्दों में कहें तो, तेजी से फलती फूलती अर्थव्यवस्था में नोटबंदी का फ़ैसला अचानक ब्रेक लगा देना है। बहरहाल, इस जुए में ना केवल आर्थिक विकास को प्रभावित करने वाले सूचकांक दांव पर हैं, बल्कि लोगों की जिंदगियां भी दांव पर लगा दी गई हैं। एक बूढ़ी विधवा जो अपने मामूली पेंशन के भरोसे गुजर बसर कर रही है, अगर वह कुछ सप्ताह तक अपने बैंक खाते से पैसे नहीं निकाल सकी, तो उनका क्या होगा? शहरों में दूर दराज से आने वाले मज़दूर से अगर उनसे काम लेने वाले कह दिया कि स्थिति सामान्य होने के बाद भुगतान मिलेगा तो वह क्या करेगा?जब शहरों और गांवों में पैसे सिमट जाएंगे तो लोग एक रुपये में तीन अठन्नी भुनाने का प्रयास करेंगे। ऐसे में अर्थव्यवस्था भी नीचे की ओर लुढक़ेगी। सरकार को इन बातों पर अभी से ध्यान देना। इन संभावित झटकों से निपटने के लिए अभी से वैकल्पिक तैयारी करनी होगी। वरना देश में अफरा-तफरी मच जाएगी और हाल वही होगा कि ज्यों-ज्यों दवा की, मर्ज बढ़ता ही गया। 

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