नतीजे बहुत अच्छे नहीं निकलने वाले
नोट बंदी का निर्णय बेशक बहुत अच्छा है। काला धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के लिए भी मोदी सरकार ईमानदार है। सरकार की ओर से बहुत मेहनत भी की जा रही है। किन्तु अब ऐसा लग रहा है कि जनता द्वारा उठाई गई परेशानी का कोई खास फायदा नहीं होने वाला। क्योंकि नोटबंदी के बाद तीन तक सरकार ने जिस तरह से 17 विकल्पों पर पुराने नोट चलाने की छूट देकर और बिना किसी अंकुश के नोट बदलने की अनुमति का लाभ उठाते हुए काले धन वालों ने पगार और कमीशन व रसूख तथा दबाव डालकर अपना अधिक से अधिक कालाधन सफेद कर लिया। अब उस सफेद धन को रिजर्व बैंक के जमा और निकासी की लिमिट खत्म करने के नियम से काला धन वाले अपने धन को वैध बना रहे हैं। सरकार को शायद इस बात का अनुमान ही नहीं था कि वह डाल-डाल चलेगी तो काला धन वाले पात-पात चलकर किसी भी अच्छी योजना की बाट लगा सकते हैं। सरकार ने कालाधन वालों को लालच देकर पुरानी डिस्क्लोजर स्कीम लागू कर दी है। यह स्कीम लोगों को पसंद नहीं आ रही है। लोग अपने काला धन को किसी भी जुगाड़ से सफेद करना चाहते हैं। इससे अच्छा होता कि सरकार वन टाइम सेटलमेंट की आकर्षक स्कीम लाती तो उसका फायदा अवश्य होता। यही आलम रहा तो जानकार लोगों का कहना है कि इससे न तो सरकार को और न ही देश को कोई खास फायदा होने वाला है।जानकारों की बात माने तो मोदी सरकार को सत्ता संभालते ही इस एकसूत्रीय योजना में काम करना चाहिए था। कहते हैं कि कोई भी जंग जीतनी तो तो विपक्षी सेना का राशन-पानी बंद कर दो। मोदी सरकार किया तो वही पर उतना फुल प्रूफ नहीं कर पाए जितनी जरूरत थी। पहले काला धन को पकडऩे के लिए आयकर विभाग को पूरा मैनपावर देकर इस विशेष अभियान के लिए विशेष भर्तियां व विशेष प्रशिक्षण देना चाहिए। जब पहरुए ईमानदार,चुस्त और अलर्ट होंगे तभी घर की चोरी रोकी जा सकती है। इसलिए सरकार को पहले इसकी तैयारी करनी चाहिए थी। यही बात चारों ओर कही जा रही है।
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