नोट बंदी के फैसले पर रालोद नेता का प्रहार
राष्ट्रीय लोकदल किसान प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष चौधरी शौकत अली चेची का कहना है कि ं नोट बंदी पर केंद्र सरकार का फारमूला क्या वाकई काबिले तारीफ कहा जा सकता है? जरा ठंडे दिमाग से सोचे सभी देशवासी ब्लैक मनी कहां है ? 70 परसेंट लोग भली भांति जानते हैं कि नोट बंदी से केवल 5 परसेंट ही धन मिल सकता है। ऐसा मेरा मानना है लेकिन 250 के आसपास निर्दोष लोगों की जानें गई, उसका दोषी कौन हो सकता है? केंद्र या प्रदेश या वह खुद ही? उन्होंने कहा कि मैं जानना चाहता हूं कि सभी देशवासियों से केवल बयान देना या अपनी गलतियों को छुपाना, क्या इसी को इंसानियत कहते हैं, किसी ने पिता को खोया, किसी ने भाई को, किसी ने बेटा, किसी ने पति, किसी ने पोता, किसी ने दादा। रालोद नेता का कहना है कि जिस तरह से आम नागरिक परेशानी की चक्की में पिस रहा है , मुझे नहीं लगता अभी कोई राहत मिलेगी। शादियां टूटीं, बिन इलाज बीमारी से मौत, किसानों को डाई बीज समय पर नहीं मिलना आदि बातों से मौतों का आंकड़ा बढऩे का अनुमान है। उन्होंने तंज कसत हुए कहा कि क्या अच्छे दिन इसी को कहते हैं? विरोधी नोट बंदी पर ललकार रहे हैं, सिस्टम को ठीक करो। बीजेपी कह रही है आपका काला धन नष्ट हो रहा है । चेची जी जानना चाहते हैं कि राजनीति शुद्ध करने की बात तो अच्छी लगती है लेकिन सत्ता पक्ष या विपक्ष जिन लोगों की जानें गई उनको इंसाफ कौन देगा? जो परिवार तबाह हो गया,उनके आंसू कौन पोछेगा? कुछ लोग कहते हैं ह िपैसा हाथ का मैल है लेकिन चेची जी कहते हैं बगैर पैसे के कुछ भी नहीं होता। पैसे की तंगी के कारण नोट बंदी में बहुत सारे परिवार उजड़ गए। केंद्र सरकार को ऐसे परिवारों की मदद करनी चाहिए । प्रदेश सरकारें भी अपनी भागीदारी निभाएं। सिर्फ केन्द्र के फैसले का विरोध करना ही जरूरी नहीं। मृतक परिवार वालों को मुआवजा मिलना चाहिए। जब कोई नेता बीमार होता है या उसके घर में मातम होता है तो सभी नेतागण संवेदना व्यक्त करने पहुंच जाते हैं और मदद का हाथ भी बढ़ाते हैं जबकि उनके पास हर सुविधा मौजूद होती है। आम नागरिक का मुख्य सहारा पैसा है,लाइन में लगकर काम छोडक़र सरकार चुनता है फिर उसे अपने पैसे के लिए लाइन में खड़ा कर दिया जाता है जिसका कोई कसूर नहीं है। कागज की लक्ष्मी ही आम नागरिक की सरकार है जब सरकार ने इस लक्ष्मी को रद्दी बना दिया तो परिवार उजडऩे लगे। विपक्ष ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। केंद्र ने अपनी नाकामी को छुपाकर विरोधियों पर ही बाण चला रखे हैं । अत: मैं गुजारिश करता हूं सभी देश के नागरिकों से सिस्टम को ठीक करने की पहल करें। नोट बंदी के कारण किसी भी परिवार का व्यक्ति मौत के मुंह में न जाए, जो जानें गईं है,उनके आंसू पोछे जाएं,उनको मुआवजा मिले। आज 80 परसेंट देश की जनता दुखी है,आने वाला पल किसका होगा? मालूम नहीं लेकिन काठ की हांडी एक बार चढ़ती है । दर्द की दवा समय पर मिल जाए तो दुआ मिलती है वरना हाय । कंगाल हाय से लोहा भसम हो जाता है वाली,कहावत पुरानी है लेकिन कारगर है। भारत देश महान है हम सब की पहचान है। देश हो या परिवार रोशन होता है प्यार इंसानियत से हम सबको सोचना पड़ेगा
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