भारत को कैशलेस सोसायटी बनाने के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अभियान का असर शहरों और युवाओं पर पड़ता दिखाई पड़ रहा है लेकिन ग्रामीण,किसान,गरीब व आम जनता का निचला तबका क्यों हिचक रहा है, यह जानने की कोशिश की जानी चाहिए। आम आदमी आज बिना कोई अतिरिक्त खर्च किए अपने रुपये का शत-प्रतिशत अपने ऊपर खर्च कर संतुष्ट रहता है। अब वह इस कैशलेस सोसायटी को अभिजात्य वर्ग का सुख-सााधन मान रहा है। उसका कहना है कि ये लोग इतने संपन्न हैं कि वे दस-पांच हजार का खर्च वर्दाश्त कर सकते हैं। दूर ग्राम में रहने वाला जिसका माह का खर्चा ही हजार-पांच सौ रुपये नकद महीने है तो वह किस प्रकार से पांच हजार रुपये का एक मोबाइल खरीदे। फिर इंटरनेट पर हर माह 500 रुपये खर्चे। इसके बाद उसे कैशलेस सुविधा के लिए अपने रुपये में से 2 परसेंट का कमीशन उन कंपनियोंं को दे, जो कैशलेस लेन-देन की सुविधा दें। एक तरह से देखा जाए तो ये बैंकों का निजीकरण एवं सडक़ीकरण कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगा। इस सरकार को कोई विशेष ध्यान देना होगा तभी यह अभियान घर-घर में सफल होगा।
No comments:
Post a Comment