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Sunday, 20 November 2016

जन-धन खाते में नक्सलियों का धन हो रहा सफेद

नक्सलियों की धमकी से गरीब मजबूर,पुलिस सतर्क 

कहा जा रहा है कि 500 और 1000 के नोट बंद होने के बाद जन-धन खातो में अवैध पैसे जमा कराए जा रहे हैं। बिहार, झारखंड , छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश के नक्सल बहुल क्षेत्र में तो पुलिस ने इस मामले में लोगों को आगाह किया है कि वे अपने खातों का ग़लत इस्तेमाल नहीं होने दें।
पुलिस का कहना है कि नक्सली भोले-भाले ग्रामीणों को गुमराह कर उनके जन-धान खातों में लेवी की रक़म जमा कर रहे हैं, ताकि उन पैसों को वैध बनाया जा सके।  पुलिस का कहना है कि नक्सली ऐसा करने के लिए लोगों को धमकी भी दे रहे हैं।
इस मामले में झारखंड पुलिस के प्रवक्ता एमएस भाटिया ने कहा कि नक्सल प्रभावित इलाक़ों में लोगों को सतर्क कर दिया गया है।उन्होंने कहा कि इसके लिए पुलिस की टीम भी गठित की गई है, ताकि बैंकों पर नजऱ बनी रहे। इस टीम में सीआरपीएफ़ के पुलिस अफ़सरों को भी शामिल किया गया है।
पुलिस का दावा है कि जन-धन खातों के इस्तेमाल की उन्हें ख़ुफिय़ा जानकारी मिली थी। पुलिस का नक्सलियों से लेवी की रकम ज़ब्त करने का दावा है। पुलिस ने बैंकों को भी सतर्क कर दिया है कि कोई बड़ी रकम लेकर आए, तो वे तत्काल पुलिस को सूचित करें। पुलिस का कहना है कि नोटबंदी के कारण नक्सलियों ने लेवी में जो करोड़ों की रक़म वसूली थी, वह बर्बाद हो जाएगी। इसे रोकने के लिए वे जन-धन खातों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
हाल ही में झारखंड पुलिस ने अपने अभियान में नक्सलियों से लाखों रुपये ज़ब्त करने का दावा किया था। पिछले हफ्ते रांची पुलिस ने दावा किया था कि उसने नक्सलियों के 25 लाख 38 हज़ार रुपये बैंक में जमा कराने की कोशिश में जुटे एक पेट्रोल पंप संचालक समेत चार लोगों को गिरफ़्तार किया था। रांची के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कुलदीप द्विवेदी का दावा है कि ये कारोबारी, पीपुल्स लिब्रेशंस फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएलएफआइ) के सुप्रीमो दिनेश गोप के पैसे लेकर स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया की स्थानीय शाखा में जमा कराने पहुंचे थे। पुलिस का कहना है कि जांच में यह बात सामने आई है कि कई नक्सली, ठेकेदारों के संपर्क में हैं और लेवी के पैसे बचाने की कोशिशों में जुटे हैं। नक्सली मामलों के जानकार का कहना है कि नोटबंदी और पुलिस की चौकसी से नक्सली संगठनों को कम और उनके बड़े नेताओं को ज़्यादा नुक़सान हो सकता है।
उन्होंने कहा कि हथियारबंद दस्तों द्वारा कारोबारियों और सरकारी योजनाओं से बतौर लेवी लिए गए पैसे का बड़ा हिस्सा उनके कमांडरों या चीफ़ के पास जाता है।

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