नोटबंदी के फ़ैसले से केवल काली मुद्रा या जमा किए गए काले धन पर ही प्रहार हो पाएगा, काली कमाई तो बरकरार रहेगी। अर्थशास्त्र में ब्लैक मनी का मतलब ग़ैर क़ानूनी आमदनी से है। वैसी आमदनी जिस पर कर नहीं चुकाया गया हो, ब्लैक मनी कहलाता है। इसमें गांजा-चरस बेचने से होने वाली आमदनी भी शामिल है और रिश्वत में लिया गया पैसा भी। इसका अनुमान यह लगाया जा सकता है कि काली कमाई करने वाले स्वतंत्र रहेंंगे और उनका खेल बदस्तूर जारी रहेगा। अब काली कमाई करने वाले कौन हैं, कौन प्रभावित होगा। इस पर विचार करने की आवश्यकता है। राजनीतिक दलों और अफसरशाह को निशाना बनाया गया अथवा बनाया जा रहा है तो इसे इंदिरा गांधी द्वारा लगाई गई इमरजेंसी के समान समझना होगा क्योंकि इंदिरा सरकार ने इमरजेंसी के दौरान पूरे प्रशासन तंत्र पर अपने पांच सूत्री कार्यक्रमों से नकेल कस दी थी। इन कार्यक्रमों को लागू करने के लिए बहुत सख्ती भी की गई थी। उस समय नौकरशाह त्राहि-त्राहि कर उठा था। यही नहीं राजनीतिक दलों के नेताओं पर आपातकाल में जो हुआ , उसके चलते वे नेता हीरो बन गए। क्योंकि कुछ अर्थशास्त्रियों का अपना मत है कि पैसों की सबसे ज़्यादा जमाखोरी राजनीतिक पार्टियां करती हैं। चुनाव अभियान को देखते हुए ये करना उनके लिए ज़रूरी भी होता है तो ऐसे में नोटबंदी के इस फ़ैसले के जरिए विपक्षी राजनीतिक पार्टियां असली निशाना हो सकती हैं। सत्तारूढ़ पार्टी को सत्ता में होने के कारण इस कदम से कम नुकसान होगा। इसके लिए यह सबसे सही तरीका नहीं है। नोटबंदी के फ़ैसले की तुलना सजिक़ल स्ट्राइक से की जा रही है। ये ठीक तुलना है। दोनों ही मामले सांकेतिक ज़्यादा हैं, इनसे बहुत कुछ हासिल नहीं किया जा सकता और दोनों में बड़ा जोखिम है। ऐसे सांकेतिक स्ट्राइक के बदले भ्रष्टाचार की जड़ों पर लगातार हमले की ज़रूरत है। क्या मोदी सरकार अपना अभियान जारी रखेगी।
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