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Sunday, 27 November 2016

भगवान के लिए भी नहीं लाइन लगाते मध्यम व उच्च वर्ग के लोग

इन्हीं लोगों की इस आदत के चलते चुनी जातीं हैँ लूली-लंगड़ी सरकारें

नोट बदलने की लाइनों में कहीं नहीं दिखा जुगाड़ू मध्यम व  अभिजात्य वर्ग

आजादी मिलने के बाद हमारे नेताओं ने बहुत ही सोच समझ कर लोकतांत्रिक प्रणाली लागू की थी लेकिन तथाकथित अभिजात्य वर्ग के लोगों और मध्यम वर्ग के लोगों ने अपनी आदतों के चलते लोकतंत्र लूट तंत्र में बदल गया। आज नोट बंदी में बैंकों की शाखाओं के सामने देशभर में लम्बी-लम्बी लाइनें लगीं लेकिन शायद ही किसी लाइन में सूट-बूट या कार से उतर कर कोई आकर लगा हो। लाइन यानी कतार से कतराने की आदत ने आज हमारे लोकतंत्र को लूटतंत्र में तबदील कर दिया है। लोकतंत्र का सबसे बड़ा हथियार मतदान यानी मताधिकार का इस्तेमाल करना होता है। लाइन मे लगने की बजाये ये लोग अपना मतदान करना पसंद नहीं करते। ये लोग ऐसे होते हैं कि मतदान के दिन मतदान केन्द्र के बाहर सुबह से शाम तक तमाशा देखते रहते हैं लेकिन कतार में खड़े होकर वोट देने में अपनी हेठी समझते हैं। लेकिन ये नहीं समझते कि वे ऐसा करके खुद अपने को और अपने देश को गड्ढे में डाल रहे हैं। यही कारण है कि आज देश में मात्र 40 से 45 प्रतिशत मतदान से चुनाव सम्पन्न हो जाता है। यानी आधे से अधिक लोग मतदान ही नहीं करते। ये लोकतंत्र का मजाक नहीं है तो क्या है? इन 45 प्रतिशत में एक सीट पर 18 से 20 प्रत्याशी खड़े होते हैं। अधिक से अधिक 10 प्रतिशत मत प्राप्त करने वाला हमारा नेता होता है। वह नेता कैसा होता है, इस बात का अंदाजा लगाइये। वह हमारे राज्य व देश का नेता नहीं होता बल्कि एक समुदाय या दो समुदाय या वर्ग का नेता होता है और सत्ता पाते ही वह अपने वर्ग, जाति,समुदाय,सम्प्रदाय को लाभ पहुंचाने वाला काम करता है। इसे लोकतंत्र कहा जा रहा है। जब तक इसमें सुधार नहीं होगा तब तक देश का कल्याण संभव होना मुश्किल सा लग रहा है।
क्यों ऐसा होता है?
अब सवाल यह उठता है कि आज नोट बंदी के निर्णय के बाद लाइन में लगने वाले गरीब वर्ग को देखकर देश के नेता ये सवाल उठा रहे हैं कि एक भी उच्च और मध्यम वर्ग का व्यक्ति लाइन में लगकर नोट क्यों नहीं बदल रहा है। क्या उनके पास पुराने नोट नहीं हैं? सबसे अधिक पुराने नोट उन्हीं के पास हैं लेकिन लाइन में लगने की आदत नहीं है तो वे लाइन में नहीं लगते। ऐसे लोग जब भी ऐसी समस्या आती है तो वह अपने परमानेन्ट जुगाड़ से काम चलाते हैं। इस बार भी उन्होंने गरीबों को लालच देकर पहले अपनी जगह लाइन लगवाकर नोट बदलवाए और फिर अपने काले धन को जन-धन खातों में जमा करवाकर सरकार की आंख में धूल झोंकने की कोशिश की है। ऐसे लोग सरकार तो क्या ईश्वर के दरबार में भी लाइन नहीं लगाते। आजकल किसी भी नामचीन धार्मिक स्थल में जाइए तो आपको एक ओर तो लम्बी-लम्बी लाइनें लगीं देखने को पाएंगे। अपने इष्ट देव के दर्शन के लिए लोगों को पूरा-पूरा दिन लग जाता है और एक सेकेंड से अधिक दर्शन नहीं हो पाते। वहीं दूसरी ओर चंद रुपये खर्च करके वीआईपी दर्शन कराये जाते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि वे ईश्वर की प्रतिमा के दर्शन करने नहीं आते बल्कि अपने खुद के दर्शन देने आते हैं। हे ईश्वर! ऐसे लोगों को सद्बुद्धि दे और वे लाइन का महत्व समझें और देश व समाज का कल्याण करने को खुद बदलें।

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