नोट बंदी के फैसले के दो सप्ताह से अधिक समय बीत जाने के बाद संसद में जिस प्रकार की बहस चल रही है और पूर्व प्रधानमंत्री और अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह ने जिस तरह से सवाल उठाए हैं और नुकसान गिनाए हैं उससे अब जनमानस में सरकार की मंशा पर सवाल उठने लगे हैं। ये चर्चाएं रिटायर बैंक कर्मियों के मुख से निकले विचारों से भी आम हो रहीं हैं। इन बैँक कर्मियों का मानना है कि सरकार ने बेवजह 10 प्रतिशत काला धन रखने वालों के चक्कर में 90 प्रतिशत आम जनता को लाइन में लगवा दिया। इन दस प्रतिशत वालों में एक का कुछ भी नहीं बिगड़ा बल्कि मजदूरी करने वाले को नोट बदलने के चक्कर में मजदूरी छोडऩी पड़ी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी एक बात यह समझना होगा कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के एक ही कमी थी वे बोलते नहीं थे। बाकी ईमानदारी में उनकी भी छवि जनता में काफी अच्छी थी।
मनमोहन सिंह के सारे बयान उनके अपने खुद के नहीं थे बल्कि पार्टी की विचारधारा से जुड़े हुए थे लेकिन उनका यह बयान कि किस मद में कितना नुकसान हो रहा है उनका अपना बयान था और सबसे ज्यादा जनता के दिल को छूने वाला यह बयान था कि प्रधानमंत्री विश्व में उस देश का नाम बताएं जहां लोगों के बैंकों में जमा धन के निकासी पर रोक लगी हो। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पलटवार करते हुए मनमोहन सिंह के समय के घोटालों को गिनाए। इन घोटालों के गिनाने से हकीकत नहीं बदल सकती। जनता की तकलीफ का उपचार किया जाए सब ठीक हो जाएगा।
अब आइए एक नजर डालें कि कहां से सरकार की मंशा पर सवाल उठ रहे हैं? आठ नवंबर को दिन में बैंकों को ये निर्देश दे दिए गए कि 500 और 1000 के पुराने नोटों से छोटी बचत योजनाओं का लाभ न दें। छोटी बचत योजनाओं में काला धन नहीं खपाया जा सकता। यदि खपाया भी जाता तो सरकार की नजर में रहता। शाम को सात बजे के राष्ट्र के नाम संदेश के बाद लोगों की भीड़ पेट्रोल पम्पों की ओर बढ़ चली और रात बारह बजे से पहले ही 100 रुपये का पेट्रोल डीजल लेने वाले व्यक्ति ने 1000,2000 कहीं-कहीं तो 5000 रुपये की खरीद कर ली। रही बात काले धन वालों की तो वे कोई रिक्शा चालक, मजदूर और आम आदमी नहीं हैं जो लाइन में लगकर नोट बदलवाने आएंगे। सरकार ने जिन 17 जरूरी सेवाओं में पुराने नोटों के चलन की तीन दिन की छूट दी उसी में उन्होंने काम कर लिया। कहा जा रहा है कि जिन पांच राज्यों की विधानसभाओं में होने वाले चुनावों को देखते हुए यह फैसला लिया गया है ताकि वहां के सत्ताधारी नेता अपने-अपने घरों में रखे कालेधन को आगामी चुनावों में इस्तेमाल न कर सकें। तो यह सरकार की भूल है। तीन दिन में सत्ताधारी नेताओं ने अपना-अपना कालाधन जरूरी सेवाओं के नाम पर बदल डाला। तीन दिन बाद जब नया कानून आया तब तक काले धन वालों का काम तमाम हो गया। बाकी बचा तो 24 नवंबर तक काला धन सफेद हुआ। अब 15 दिसंबर तक की मोहलत दी गई। इन जगहों पर आम आदमी का पैसा नहीं बदला जाएगा बल्कि उसके कंधे से कालेधन का तीर चलाया जाएगा। जैसे कि तीन साल से मंदी से जूझ रहे रियल एस्टेट वालों के पास आर्थिक तंगी थी लेकिन नोटबंदी के बाद से उनके पास नोटों का अम्बार लग गया और वे नोट बदलने के लिए उत्तर प्रदेश में 40 प्रतिशत तक कमीशन देने को तैयार हो गए।
अब एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि सरकार ने स्विटजरलैंड से एक समझौता किया है कि वर्ष 2018 से जो व्यक्ति अपना खाता वहां खोलेगा उसकी जानकारी सरकार को मिल जाएगी। आम आदमी विश्व अर्थ व्यवस्था के कानूनों के बारे में नहीं जानता। वो तो यह मानता है कि सरकार ने काले धन वालों को एक साल और लूट-खसोट करने की इजाजत दे दी है और पुराने काले धन वालों से सांठगांठ करके बंदरबांट कर ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नोट बंदी के ऐप में मांगी गई राय के पक्ष में भारी समर्थन के बारे में यह कहा जा रहा है कि आज भी लोगों के मन में यह विश्वास है कि जिस दिन स्विटजरलैंड की बैँकों में जमा काला धन भारत आएगा तब उनके खातों में 15-15 लाख रुपये मिलेंंगे। तब तक देश के काला धन वालों पर जबर्दस्त कार्रवाई होगी। जमीन-मकान सस्ते हो जाएंगे और वे लोग विलासिता का जीवन बिता सकेंगे। चुनाव के वक्त में भाजपा की ओर से कहें चुनावी बयान को भले ही जुमला कह दिया जा चुका है।
मनमोहन सिंह के सारे बयान उनके अपने खुद के नहीं थे बल्कि पार्टी की विचारधारा से जुड़े हुए थे लेकिन उनका यह बयान कि किस मद में कितना नुकसान हो रहा है उनका अपना बयान था और सबसे ज्यादा जनता के दिल को छूने वाला यह बयान था कि प्रधानमंत्री विश्व में उस देश का नाम बताएं जहां लोगों के बैंकों में जमा धन के निकासी पर रोक लगी हो। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पलटवार करते हुए मनमोहन सिंह के समय के घोटालों को गिनाए। इन घोटालों के गिनाने से हकीकत नहीं बदल सकती। जनता की तकलीफ का उपचार किया जाए सब ठीक हो जाएगा।
अब आइए एक नजर डालें कि कहां से सरकार की मंशा पर सवाल उठ रहे हैं? आठ नवंबर को दिन में बैंकों को ये निर्देश दे दिए गए कि 500 और 1000 के पुराने नोटों से छोटी बचत योजनाओं का लाभ न दें। छोटी बचत योजनाओं में काला धन नहीं खपाया जा सकता। यदि खपाया भी जाता तो सरकार की नजर में रहता। शाम को सात बजे के राष्ट्र के नाम संदेश के बाद लोगों की भीड़ पेट्रोल पम्पों की ओर बढ़ चली और रात बारह बजे से पहले ही 100 रुपये का पेट्रोल डीजल लेने वाले व्यक्ति ने 1000,2000 कहीं-कहीं तो 5000 रुपये की खरीद कर ली। रही बात काले धन वालों की तो वे कोई रिक्शा चालक, मजदूर और आम आदमी नहीं हैं जो लाइन में लगकर नोट बदलवाने आएंगे। सरकार ने जिन 17 जरूरी सेवाओं में पुराने नोटों के चलन की तीन दिन की छूट दी उसी में उन्होंने काम कर लिया। कहा जा रहा है कि जिन पांच राज्यों की विधानसभाओं में होने वाले चुनावों को देखते हुए यह फैसला लिया गया है ताकि वहां के सत्ताधारी नेता अपने-अपने घरों में रखे कालेधन को आगामी चुनावों में इस्तेमाल न कर सकें। तो यह सरकार की भूल है। तीन दिन में सत्ताधारी नेताओं ने अपना-अपना कालाधन जरूरी सेवाओं के नाम पर बदल डाला। तीन दिन बाद जब नया कानून आया तब तक काले धन वालों का काम तमाम हो गया। बाकी बचा तो 24 नवंबर तक काला धन सफेद हुआ। अब 15 दिसंबर तक की मोहलत दी गई। इन जगहों पर आम आदमी का पैसा नहीं बदला जाएगा बल्कि उसके कंधे से कालेधन का तीर चलाया जाएगा। जैसे कि तीन साल से मंदी से जूझ रहे रियल एस्टेट वालों के पास आर्थिक तंगी थी लेकिन नोटबंदी के बाद से उनके पास नोटों का अम्बार लग गया और वे नोट बदलने के लिए उत्तर प्रदेश में 40 प्रतिशत तक कमीशन देने को तैयार हो गए।
अब एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि सरकार ने स्विटजरलैंड से एक समझौता किया है कि वर्ष 2018 से जो व्यक्ति अपना खाता वहां खोलेगा उसकी जानकारी सरकार को मिल जाएगी। आम आदमी विश्व अर्थ व्यवस्था के कानूनों के बारे में नहीं जानता। वो तो यह मानता है कि सरकार ने काले धन वालों को एक साल और लूट-खसोट करने की इजाजत दे दी है और पुराने काले धन वालों से सांठगांठ करके बंदरबांट कर ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नोट बंदी के ऐप में मांगी गई राय के पक्ष में भारी समर्थन के बारे में यह कहा जा रहा है कि आज भी लोगों के मन में यह विश्वास है कि जिस दिन स्विटजरलैंड की बैँकों में जमा काला धन भारत आएगा तब उनके खातों में 15-15 लाख रुपये मिलेंंगे। तब तक देश के काला धन वालों पर जबर्दस्त कार्रवाई होगी। जमीन-मकान सस्ते हो जाएंगे और वे लोग विलासिता का जीवन बिता सकेंगे। चुनाव के वक्त में भाजपा की ओर से कहें चुनावी बयान को भले ही जुमला कह दिया जा चुका है।
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