नोट बंदी के बाद से आम आदमी परेशान हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बहुत ही सावधानी से यह फैसला लागू किया। लोगों को कानो तक भनक नहीं लगी। लेकिन यह हिन्दुस्तान है यहां सारा काम जुगाड़ से चलता है। यहां के लिए कहते हैं कि मार्केट में आने वाले मजबूत से मजबूत ताले की चाभी पहले ही तैयार हो जाती है। ये तो नोट बंदी है बहुत ही मामूली बात है। देश के सिस्टम के बारे में पूर्व प्रधानमंत्री कहते थे कि केन्द्र अपनी योजना से लाभ दिलाने के लिए एक रुपये जारी करता है परन्तु लाभार्थी को मात्र दस पैसे मिल पाते हैं। यही हाल आज भी बना हुआ है।
नोट बंदी के निर्णय के एक-दो दिन तक तो सभी चकराए, उस बीच पहुंच वालों ने अपने नोट बदल डाले। जब तक दूसरे कानून आए तब तक उन लोगों ने अपना खेल खेल डाला। आम आदमी लम्बी-लम्बी लाइनों में थक कर चला गया। अब तुम डाल-डाल तो हम पात-पात का खेल चल रहा है। आइए बैंक में मात्र आधे घंटे में कैश कैस खत्म होता है। इसका आंखों देखा हाल लाइन में लगे लोगों ने बताया उसके अनुसार एक राष्ट्रीयकृत बैंक की महानगर की शाखा में दिन में 12 से 01 के बीच कैश बाक्स आया और लगभग आधे घंटे बाद कैश वापस भी चला गया। मात्र चार या पांच लोगों के नोट बदलने के बाद ही कैश खत्म होने का ऐलान कर दिया गया। आखिर इतना रुपया कहां गया? यह यक्ष प्रश्न सभी के दिमाग में घूम रहा था। लाइन में खड़े होने वालों के बयान की ओर ध्यान दे तो यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि यह कारगुजारी बैंक मैनेजर से लेकर सिक्योरिटी के बंदरबांट से चल रही है। रही सही कसर पूर्व बैंक कर्मचारी और हल्की-फुल्की जान-पहचान वाले व रिेश्तेदार पूरी कर देते हैं। सुबह छह बजे से लाइन में लगे लोगों के बीच घुसकर वो आसानी काउंटर पर पहुंच जाते हैं। वहां बैठा बैँक कर्मी चीन्ह-चीन्ह कर रेवड़ी बांटे की तर्ज पर उनका काम कर देता है। लाइन वालों का जब तक नम्बर आता है तब तक कैश खत्म होने का ऐलान हो जाता है। छोटी आय कमाने वालों की चांदी हो रही है। लोगों के बर्तन मांजने वाली महिलाएं,या अन्य ऐसे छोटे काम करने वाली महिलाएं व उनके बच्चे आजकल लाइन लगकर अपने परिचितों के नोट बदल रहे हैं। इस काम में उन्हें काफी अच्छी आमदनी हो रही है। नोट माफिया इनका बहुत अच्छी तरह से इस्तेमाल कर रहे हैं। चार हजार की सीमा में नोट बदलने वाले को पांच सौ रुपये की आमदनी हो जाती थी जबकि उसकी माह की आमदनी दो हजार से तीन हजार होती है। अब कैश खत्म होने की घोषणा से तंग होकर परेशान होने वालों का सब्र टूट रहा है। उत्तर प्रदेश के लखनऊ और अलीगढ़ में ऐसे गुस्साए लोगों ने सडक़ जाम कर प्रदर्शन किया। कहीं ऐसा न हो जाए कि सुप्रीम कोर्ट की यह आशंका सच हो जाए कि देश में दंगे की नौबत आ जाए।
नोट बंदी के निर्णय के एक-दो दिन तक तो सभी चकराए, उस बीच पहुंच वालों ने अपने नोट बदल डाले। जब तक दूसरे कानून आए तब तक उन लोगों ने अपना खेल खेल डाला। आम आदमी लम्बी-लम्बी लाइनों में थक कर चला गया। अब तुम डाल-डाल तो हम पात-पात का खेल चल रहा है। आइए बैंक में मात्र आधे घंटे में कैश कैस खत्म होता है। इसका आंखों देखा हाल लाइन में लगे लोगों ने बताया उसके अनुसार एक राष्ट्रीयकृत बैंक की महानगर की शाखा में दिन में 12 से 01 के बीच कैश बाक्स आया और लगभग आधे घंटे बाद कैश वापस भी चला गया। मात्र चार या पांच लोगों के नोट बदलने के बाद ही कैश खत्म होने का ऐलान कर दिया गया। आखिर इतना रुपया कहां गया? यह यक्ष प्रश्न सभी के दिमाग में घूम रहा था। लाइन में खड़े होने वालों के बयान की ओर ध्यान दे तो यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि यह कारगुजारी बैंक मैनेजर से लेकर सिक्योरिटी के बंदरबांट से चल रही है। रही सही कसर पूर्व बैंक कर्मचारी और हल्की-फुल्की जान-पहचान वाले व रिेश्तेदार पूरी कर देते हैं। सुबह छह बजे से लाइन में लगे लोगों के बीच घुसकर वो आसानी काउंटर पर पहुंच जाते हैं। वहां बैठा बैँक कर्मी चीन्ह-चीन्ह कर रेवड़ी बांटे की तर्ज पर उनका काम कर देता है। लाइन वालों का जब तक नम्बर आता है तब तक कैश खत्म होने का ऐलान हो जाता है। छोटी आय कमाने वालों की चांदी हो रही है। लोगों के बर्तन मांजने वाली महिलाएं,या अन्य ऐसे छोटे काम करने वाली महिलाएं व उनके बच्चे आजकल लाइन लगकर अपने परिचितों के नोट बदल रहे हैं। इस काम में उन्हें काफी अच्छी आमदनी हो रही है। नोट माफिया इनका बहुत अच्छी तरह से इस्तेमाल कर रहे हैं। चार हजार की सीमा में नोट बदलने वाले को पांच सौ रुपये की आमदनी हो जाती थी जबकि उसकी माह की आमदनी दो हजार से तीन हजार होती है। अब कैश खत्म होने की घोषणा से तंग होकर परेशान होने वालों का सब्र टूट रहा है। उत्तर प्रदेश के लखनऊ और अलीगढ़ में ऐसे गुस्साए लोगों ने सडक़ जाम कर प्रदर्शन किया। कहीं ऐसा न हो जाए कि सुप्रीम कोर्ट की यह आशंका सच हो जाए कि देश में दंगे की नौबत आ जाए।
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