राजनीतिज्ञों,नोट माफियाओं, हवाला कारोबारियों के बीच चल रहा है खेल
नोट बंदी के अच्छे निर्णय को किस तरह से बुरा बनाया जा सकता है और उससे देश की स्थिति किस प्रकार बिगाड़ी जा सकती है। इस बात का अंदाजा शायद ही किसी को होगा किन्तु सुप्रीम कोर्ट ने अपने यहां आने वाले मुकदमों और देश में नोट बदलने के लिए हो रही मारामारी को भांप कर सरकार को सलाह दी है कि यदि स्थिति नहीं संभली तो निश्चित रूप से लोग आज सडक़ पर उतर आए हैं उनमें कहीं रोष और असंतोष की भावना भडक़ उठी तो देश में दंगे हो सकते हैं।मोदी सरकार का निर्णय अच्छा है लेकिन काला धन के कारोबारियों, विपक्षी दलों के राजनीतिज्ञों और हवाला कारोबारियों की सांठगांठ से देश में असंतोष की भावना पनपाई जा रही है। देश का अशिक्षित एवं गरीब तबका इन लोगों के बहकावे में आ सकता है। यहीं इसमें कुछ कारगुजारी बैंक कर्मियों की भी हो रही है। कानपुर जैसे महानगर की अधिकांश बैंकों में लोग सुबह छह बजे से लाइन में लग जाते हैं, जिनकी संख्या सैकड़ों तक पहुंच जाती है। पहले दिन के 11 बजे तक कैश आने का इंतजार किया जाता है। नई करंसी लेकर कैश बॉक्स आता है तो काम बंद हो जाता है, पुरानी करंसी लेकर कैश बाक्स वापस जाता है और दिन में एक बजे ही बैंक में ऐलान कर दिया जाता है कैश खत्म। मात्र 10-15 लोगों को ही कैश मिल पाता है बाकी लोग मोदी सरकार को भद्दी गाली देकर अपने घरों को जाते हैं। एटीएम का हाल तो और भी बुरा है। कैस डालने के कई घंटों पहले लोग लाइन में लग जाते हैं। एक-एक व्यक्ति चार से पांच एटीएम कार्ड लेकर आता है। इस तरह से वहां भी यही हाल हो रहा है। जरूरतमंद जब एटीएम के द्वार पर पहुंचता है तो कैस खत्म हो जाता है।
इस खेल में माफिया जबर्दस्त तरीके से काम कर रहा है। मुहल्ले में खेलने वाले बच्चों, आवारा घूमने वाले बेकार लोगों को लाइन में लगाया जाता है और उनका एजेंट नोट लिए खड़ा रहता है और जैसे ही ये लोग बैंक के कार्यालय के अंदर पहुंचते हैं तो उन्हें भरा हुआ फार्म और नोट दे दिये जाते हैं। इसके बाद काम होने पर उन्हें चंद रुपये कमीशन दे दिये जाते हैं। निर्णय के दस दिन बाद ये एक्सपर्ट लोग पहले से ही बैंक को घेर लेते हैं जिससे जरूरतमंद पैसे पाने से वंचित रह जाता है।
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