प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं ही कहा कि गांव और किसान देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। ये बात आपकी शत-प्रतिशत सही है लेकिन आज देश को आजाद हुए सत्तर साल हुए किसी ने गांव किसान को याद किया है। बचपन में पाठ्यक्रम में एक पाठ था जिसका शीर्षक हुआ करता था ‘हे ग्राम देवता नमस्कार’ वह इसीलिए था कि पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी ग्रामदेवता का सम्मान करे। किन्तु आजकल न तो वह पाठ्यक्रम रहा और न ही ग्राम देवता का सम्मान करने वाले रहे। इस ग्राम देवता को देहाती,बुद्धू,गंवार आदि शब्दों से सुशोभित किया जाता है और गांवों की उपेक्षा की जाती है। गांवों को मूलभूत जरूरत बिजली और सडक़ की सुविधा नहीं दी जाती है। ग्राम देवता की कितनी कड़ी परीक्षा ली जाती है। यह जानने की कोशिश कभी नहीं की गई। बुआई के समय बीज महंगी,खाद महंगी,डीजल महंगा और जब फसल तैयार होकर बाजार में पहुंचती है तो उसके दाम मनमाने तरीके से लगाए जाते हैं। ये कैसा अर्थशास्त्र है? इस कभी सोचा गया। यदि आज से पहले गांवों और किसानों के बारे में सोचा जाता तो मोदी जी आज ये नौबत न आती और न ही कोई परेशानी होती। कभी गांवों और किसानों को शिक्षित करने की कोशिश की गई?कभी शिक्षा को व्यवसाय बनने से रोका गया? बिना साधन-सुविधा के गांवों में अनपढ़ लोगों के बीच कैसे चलेगी आपकी कैशलेस व्यवस्था। आज के युवा से यह उम्मीद कर रहे हैं कि वह आपकी क्रांति में भाग लेगा। युवा भी बेरोजगारी के आलम में जगह-जगह धक्के खाता फिर रहा है। हां, सरकार ग्रामीणों और लोगों को सिखाने के लिए अस्थायी रूप से विभाग खोल ले और उनमें ऐसे युवाओं को भर्ती करके देशभर में कैशलेस व्यवस्था के संचालन का प्रशिक्षण दे और फिर इसके बारे में प्रचार करे और सारी सुविधाएं दे तो आसानी से आपकी कैशलेस सोसायटी बन जाएगी।
टोटल कैशलेस सोसायटी बनाने में एक और दिक्कत हैं। हमारे तीज-त्योहार व जन्म से मरण तक होने वाले 16 संस्कारों के आयोजन। धार्मिक आयोजन, जिनमें सैकड़ों जगह छोटी-छोटी दक्षिणा, चढावा व दान आदि की रस्म अदा की जाती है। यह कैसे संभव होगा।
प्रधानमंत्री जी यदि देश में टोटल कैशलेश व्यवस्था लागू कर दी गई तो वर्तमान समय में लगभग विलुप्त हो चुके पंडित यानी पुरोहित सहिस सात परजों का क्या होगा? ये स्वयं ही नहीं बल्कि इनको दान देने वाली महिलाएं सबसे अधिक चिंतित हैं। इसलिए टोटल कैशलेस इंडिया के विचार से दूर ही रहें तो ठीक होगा।
टोटल कैशलेस सोसायटी बनाने में एक और दिक्कत हैं। हमारे तीज-त्योहार व जन्म से मरण तक होने वाले 16 संस्कारों के आयोजन। धार्मिक आयोजन, जिनमें सैकड़ों जगह छोटी-छोटी दक्षिणा, चढावा व दान आदि की रस्म अदा की जाती है। यह कैसे संभव होगा।
प्रधानमंत्री जी यदि देश में टोटल कैशलेश व्यवस्था लागू कर दी गई तो वर्तमान समय में लगभग विलुप्त हो चुके पंडित यानी पुरोहित सहिस सात परजों का क्या होगा? ये स्वयं ही नहीं बल्कि इनको दान देने वाली महिलाएं सबसे अधिक चिंतित हैं। इसलिए टोटल कैशलेस इंडिया के विचार से दूर ही रहें तो ठीक होगा।
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