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Thursday, 29 December 2016

...तो मुलायम सिंह की है ये मजबूरी

सियासी मैदान के चतुर खिलाड़ी की तरह समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव कुनबे की महाभारत की बिसात पर रोज नए नए दांव चल रहे हैं। इससे यह तो संदेश जा रहा है कि परिवार में चाहे जितनी कलह हो नेताजी के सामने कोई कुछ नहीं है। हरेक व्यक्ति नेताजी के सामने दंडवत रहता है। पार्टी की एकता को बनाए रखने का मुलायम सिंह की भी अपनी मजबूरी है कि वह कभी अखिलेश को डांटते हैं तो कभी शिवपाल सिंह को गले लगाते हैं तो कभी अमर सिंह को अपने पाले में बुला लाते हैं तो कभी अतीक अहमद जैसे लोगों से हाथ मिलाते हैं। यहां तक कि अपने कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले भाई रामगोपाल को वक्त आने पर फटकारते हैं तो वक्त आने पर उन्हें सम्मान देकर अपने पास बिठा लेते हैं। ये सारी चालें अपनी पार्टी को बचाए रखने और पार्टी पर अपना दबदबा बनाए रखने के लिए चलते हैं। एक पार्टी और इतने रूठे दिग्गज नेताओं को संभालने का पाठ सीखना हो तो मुलायम सिंह से अच्छा कोई गुरु नहीं मिल सकता। चुनाव नजदीक हैं, सपा को चुनाव मैदान में ले जाना है। वह भी एकदल के रूप में, इसलिए वह चाहते हैं कि चुनाव तक यह ऊपरी एकता बनी रहे और उसके बाद क्या होगा यह तो आने वाले परिणाम बताएंगे। सत्ता में आई तो वैसे पत्ते चले जाएंगे। 

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